डाॅ. एन.के. सोमानी का लेख : कूटनीतिक कौशल से निकालें हल

डाॅ. एन.के. सोमानी का लेख : कूटनीतिक कौशल से निकालें हल
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कतर-भारत संबंधों का सवाल है तो वर्ष 1973 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की शुरूआत हुई। दोहा में भारत का दूतावास है, जबकि कतर का नई दिल्ली मंे दुतावास और मुंबई में वाणिज्य दूतावास है। मार्च 2015 में कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल थानी भारत यात्रा पर आए थे। इसके बाद जून 2016 मेें प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी कतर गए थे। राजनयिक दृष्टि से दोनों देशों के संबंध हमेशा से मधुर रहे हैं, ऐसा भी नहीं है। जाकिर नायिक व नूपुर शर्मा के मामले में दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट घूलती हुई दिखाई दी थी। इन हालात में भारत को कानूनी दाव पेंच से अधिक कूटनीतिक कौशल से समाधान का मार्ग तलाशना चाहिए।

अरब देश कतर द्वारा भारत के आठ पूर्व नौसैनिकों को सजा-ए-मौत के फैसले से पूरा देश स्तब्ध है। सभी सैन्य अधिकारी कतर की राजधानी दोहा में ग्लोबल टेक्नालाॅजी एंड कंसल्टेंसी नाम की निजी कंपनी में काम करते थे। यह कंपनी कतर की सेना को ट्रेनिग और टेक्निकल कंसल्टेंसी सर्विस प्रोवाइड कराती है। ओमान एयरफोर्स के रिटायर्ड स्क्वाॅड्रन लीडर खमिस अल अजमी इसके प्रमुख हैं। कतर की इंटेलिजेंस के स्टेट सिक्योरिटी ब्यूरों ने इनको 30 अगस्त, 2022 को गिरफ्तार किया था। कतर का आरोप है कि भारत के पूर्व सैन्य अधिकारी कतर के हाइटेक सबमरीन प्रोगाम की गोपनीय जानकारी इजराइल को दे रहे थे। इस मामले में कंपनी के मालिक को भी गिरफ्तार किया गया था जिसे बाद में रिहा कर दिया गया।

दोहा में भारतीय दूतावास को करीब एक माह बाद सिंतबर के मध्य में पहली बार इनकी गिरफ्तारी के बारे में बताया गया। इसी साल मार्च में लीगल एक्शन शुरू हुआ। गिरफ्तार अधिकारियों ने कई बार जमानत याचिकाएं लगाई, लेकिन जमानत नहीं मिली। अब पिछले गुरुवार को अचानक इनको दोषी मानते हुए मृत्यु दंड की सजा का ऐलान कर दिया गया ।

भारतीय दूतावास के अधिकारियों के संपर्क के बाद जिस तरह से इन अधिकारियों को काउंसलर एक्सेस (परिजनों से बात करने की सुविधा) प्रदान की तो ऐसा लग रहा था कि कतर इस मामले में नरम रुख अपना रहा है, लेकिन अब यकायक मौत की सजा का ऐलान कर भारत को सकते में डाल दिया। कतर सरकार ने आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया है। न ही परिवारजनों को आरोपों की कोई औपचारिक जानकारी दी गई है। ऐसे में कतर की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। कतर का दावा है कि उसके पास पर्याप्त सबूत हैं, जिन्हंे इलेक्ट्राॅनिक डिवाइस के जरिये प्राप्त किया गया है। इन हालात में सवाल यह है कि अगर कतर के पास गिरफ्तार भारतीय अधिकारियों के खिलाफ कोई सबूत है, तो वह उसे भारत सरकार के साथ साझा क्यों नहीं कर रहा है। अगर वास्तव में कतर सरकार के पास कोई सबूत है, तो वह इन सबूतों को विश्व समुदाय के सामने रखकर अपने खिलाफ बन रहे परसेप्शन को क्यों नहीं रोक रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमास पर भारत के रुख से क्षुब्ध होकर कतर ने यह फैसला लिया हो। कहा तो यह भी जा रहा है कि भारत के पूर्व नौसैनिक अधिकारियों की फांसी का ऐलान कर कतर भारत के साथ सौदे-बाजी के मनसूबे पाल रहा है। कतर की ओर से पूरे मामले में जिस तरह से भारत सरकार को अंधरे में रखकर हीलाहवाली की गई उससे भी सजा के फैसले पर सवाल खड़े हो रहे है।

हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि उसे फैसले के विस्तृत ब्योरे का इंतजार हैं और वह सभी कानूनी रास्ते तलाश रहा है। विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे को कतर के अधिकारियों के सामने उठाने व गिरफ्तार अधिकारियों को काउंसलर एक्सेस मिलते रहने की बात भी कही है, लेकिन अहम सवाल यह है कि भारत इस मामले में क्या कर सकता है। हालांकि, गिरफ्तार अधिकारियों को छुड़ाने के लिए भारत के पास अभी बहुत सारे कानूनी और कूटनीतिक विकल्प हैं, लेकिन सवाल यही है कि भारत कतर पर दबाव बना पाने मेें कितना सफल होता है।

कतर सरकार ने चाहे भारत के पूर्व सैन्य अधिकारियों के लिए मृत्यु दंड की सजा का ऐलान कर दिया हो, लेकिन सजा को लागू करना उसके लिए आसान नहीं है। भारत के पास कई विकल्प हैं। प्रथम, निचली अदालत के फैसले को भारत के राजनयिकों द्वारा वहां की ऊपरी अदालत मे चुनौती दी जा सकती है। राष्ट्रद्रोह के कई मामलों में कतर की सर्वोच अदालत ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला है। साल 2014 में फिलिपींस के एक नागरिक को भी इसी तरह से मौत की सजा सुनाई गई थी। फिलिपींस सरकार द्वारा कतर की सर्वोच्च अदालत में अपील किए जाने पर अदालत ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

द्वितीय, कतर की अदालत के इस फैसले को भारत इंटरनेशनल कोर्ट आॅफ जस्टिस (आईसीजे) में चैलेंज कर सकता है। कुलभुषण जाधव के मामले में भी भारत ने पाकिस्तान की अदालत के निर्णय के विरुद्ध आईसीजे में गुहार लगाई थी। कोर्ट ने जाधव की सजा पर रोक लगा दी थी। तृतीय, व्यापार संबंधों के जरिये भी भारत कतर को झुकने के लिए मजबूर कर सकता है। 2021-22 में दोनों देशों के बीच 15.03 बिलियन डाॅलर का व्यापार हुआ। भारत को स्पेशल करोबारी दोस्त के तौर पर ट्रीट करने वाला कतर भारत को 13.19 बिलियन डाॅलर का निर्यात करता है, जबकि कतर भारत से महज 1.83 बिलियन डाॅलर का आयात करता है। कारोबारी पलड़ा कतर के पक्ष में झुका हुआ है।

इसके अलावा भारत अपनी कुल आवश्यकता की 90 फीसदी गैस कतर से आयात करता है। दूसरी ओर खाद्य आपूर्ति के मामले में कतर काफी हद तक भारत पर निर्भर करता है। लिहाज भारत कतर पर दबाव बना सकता है। चर्तुथ, पूरे मामले को भारत कूटनीति के जरिये भी हल कर सकता है। कतर के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं। साल 2017 में जब गल्फ काॅरपोरेशन काउंसिल ने कतर पर आतंकवाद के समर्थन का आरोप लगाकर काउंसिल से बाहर कर दिया था, उस वक्त भारत ने बिना किसी शर्त कतर को अनाज भेजा था। मिडिल ईस्ट के कई देशों से भारत के संबंध अच्छे हैं। भारत इनके जरिये भी कतर पर दबाव बना सकता है। पंचम, कतर की कुल 25 लाख की आबादी में से 6.5 लाख भारतीय है। 6000 से ज्यादा छोटी-बड़ी भारतीय कंपनियां कतर मेें कारोबार कर रही हैं। कतर के विकास और उसकी इकाॅनमी में भारतीयों का बड़ी भूमिका है। ऐसे में भारत कतर के साथ रिश्तों का उपयोग कर सकता है। व्यक्तिगत तौर पर कतर के अमीर के साथ हमारे प्रधानमंत्री के अच्छे संबंध हैं। जरूरत पड़ने पर प्रधानमंत्री भी इस मामले में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

जहां तक कतर-भारत संबंधों का सवाल है तो वर्ष 1973 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की शुरूआत हुई। दोहा में भारत का दूतावास है, जबकि कतर का नई दिल्ली मंे दुतावास और मुंबई में वाणिज्य दूतावास है। मार्च 2015 में कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल थानी भारत यात्रा पर आए थे। इसके बाद जून 2016 मेें प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी कतर गए थे। राजनयिक दृष्टि से दोनों देशों के संबंध हमेशा से मधुर रहे हैं, ऐसा भी नहीं है। जाकिर नायिक व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के मामले में दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट घूलती हुई दिखाई दी थी। कुल मिलाकर कतर के साथ हमारे रिश्ते अच्छे ही हैं। इन हालात में भारत को कानूनी दाव पेंच से अधिक कूटनीतिक कौशल से समाधान का मार्ग तलाशना चाहिए।

(लेखक- वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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