अलका आर्य का लेख : बाल टीकाकरण पर हो फोकस

अलका आर्य का लेख : बाल टीकाकरण पर हो फोकस
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केंद्र व राज्य सरकारों की हरसंभव कोशिश है कि मुल्क का कोई भी बच्चा चाहे वह कहीं भी रहता हो, जीवनरक्षक टीकों से वंचित न रहे। बाल टीकाकरण की दर को और अधिक गति देने के लिए 25 दिसंबर 2014 को मिशन इंद्रधनुष योजना लांच की गई। इस महत्वाकांक्षी योजना के सकारात्मक नतीजे सामने आए। इसी 7 फरवरी 2022 को सघन मिशन इंद्रधनुष 4.0 शुरू किया गया है और इसका फोकस ऐसे शिशुओं पर भी है जिन्हें नियमित टीकाकरण के तहत एक भी टीका नहीं लगा है। यानी जिन्हें डिप्थीरिया, टेटनेस व काली खांसी वाली वैक्सीन की पहली खुराक तक नहीं मिली है। ऐसे बच्चों की जान अधिक खतरे में पड़ सकती है। और ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसे अधिकांश बच्चे अक्सर वंचित तबकों से आते हैं, जिनमें ग्रामीण परिवार, कम शिक्षित महिलाओं वाले परिवार शमिल हैं।

अलका आर्य

देश की राजधानी दिल्ली के कनाट प्लेस में लड़कियों के एक झुंड से इस बार संवाद का विषय था-टीकाकरण। इस झुंड में शमिल झरना, आस्था, सीता, पार्वती आदि ने बताया कि टीकाकरण काे लेकर उन्हें इतना याद है कि उनकी माएं उन्हें टीका लगवाने के लिए लेकर जाती थी। डर लगता था, लेकिन मां का पकड़ना व दुलारना आज भी उन्हें याद है। उन्हें उन नर्सों के नाम, चेहरे तो याद नहीं जिन्होंने उन्हें टीके लगाए, लेकिन वे उन सबकी शुक्रगुजार हैं। टीके लगने के कारण आज वे सुरक्षित जिंदगी जी रही हैं। इस बातचीत का जिक्र यहां विश्व टीकाकरण सप्ताह (24-30 अप्रैल) के संदर्भ में किया जा रहा है। विश्व टीकाकरण सप्ताह की शुरुआत 2012 से हुई और हर साल अप्रैल के आखिरी सप्ताह में मनाया जाता है। विश्व टीकाकरण सप्ताह में विभिन्न राष्ट्र सरकारों का फोकस अपने यहां टीकाकरण को रफ्तार देना है, ताकि दुनिया का कोई भी बच्चा पीछे न छूटे। इस साल विश्व टीकाकरण सप्ताह का थीम-लांग लाइफ फाॅर ऑल है। बीते दो सालों में कोविड-19 महामारी की रोकथाम व कोविड-19 टीकाकरण पर अधिक फोकस रहा, लेकिन अब हालात में सुधार के मद्देनजर फिर से नियमित टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित करने का वक्त है। कोविड-19 महामारी में सामान्य स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुईं और 2020 में करीब 2 करोड़ 30 लाख बच्चे मूलभूत टीकाकरण से छूट गए। यह एक बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि दुनियाभर में बच्चों की जिंदगी और उनके भविष्य को बचाने व स्वस्थ और सुरक्षित समुदायों के निर्माण के वास्ते टीकाकरण प्रभावी व किफायती तरीकों में से एक है। गौरतलब है कि अब 25 से अधिक रोगों से बचाव के लिए प्रभावशाली व सुरक्षित टीके उपलब्ध हैं। बीते 20 सालों में 1 अरब से अधिक बच्चों का टीकाकरण हुआ है। अब तक अरबों बच्चों की जिंदगी बचाने का काम इस टीकाकरण से संभव हो सका है।

विश्व टीकाकरण सप्ताह की अगुआई विश्व स्वास्थय संगठन करता है, इसमें यूनिसेफ की भूमिका भी अहम होती है क्योंकि यूनिसेफ यह सुनिश्चित करता है कि दुनिया के पांच साल से कम आयु के करीब 50 प्रतिशत बच्चों को जीवनरक्षक टीके मिले। टीकाकरण उच्च संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए जरूरी है और ऐसे रोग शिशुओं व युवा बच्चों की जिंदगी को खतरे में डाल सकते हैं, क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता उस समय तक पूरी तरह से विकसित नहीं हुई होती। विश्व टीकाकरण सप्ताह का मकसद विश्वभर में जिन रोगों की टीकों से रोकथाम संभव है, उसके बारे में आमजन को बताना व ऐसे टीकाकरण की दर में वृद्धि करना है। विश्व टीकाकरण की दर में वृद्वि हुई। वैक्सीन को मानव की महान उपलब्धि के तौर पर देखा जाता है। यूनिसेफ ने इस बार विश्व टीकाकरण सप्ताह के अवसर पर एक आभार पत्र जारी किया है। इस आभार पत्र में जोनस साल्क का आभार व्यक्त किया है, जिस वैज्ञानिक ने पोलियो के खिलाफ पहली वैक्सीन विकसित की। कटीकरिको का भी धन्यवाद किया है, जिन्होंने जिंदगी भर एमआरएनए पर काम किया और इसने कोविड के खिलाफ लड़ने में हमारी मदद की। सोलर फ्रिज डिजाइन करने वालों को भी शुक्रिया कहा जिनके डिजाइन किए गए फ्रिज वैक्सीन को ठंडा रखते हैं। उन बच्चों को भी इस आभार सूची में शमिल किया है, जिन्होंने टीके लगवाए हैं और टीके लगाने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का भी, जो हर पल अपना काम करने के लिए तत्पर रहते हैं। वैश्विक बाल टीकाकरण के आंकड़ों पर निगाह डाले तो पता चलता है कि हर साल करीब 2 करोड़ 30 लाख बच्चे टीकाकरण से छूट जाते हैं। ऐसे अधिकांश बच्चे संघर्षरत इलाकों, गरीब बस्तियों, दूर-दराज इलाकों में रहते हैं। ऐसे बच्चों तक पहुंचना एक बहुत बड़ी चुनौती है। जहां तक भारत का सवाल है, यहां कोविड-19 से टीकाकरण कितना प्रभावित हुआ, इसके आकलन के लिए एक सर्वे कराया गया। डब्लयूएचओ यूनिसेफनेशनल एस्टीमेट आॅफ इम्युनजाइशन कवरेज (2020-2021) के अनुसार 32 लाख से अधिक बच्चे नियमित टीकाकरण अभियान के तहत लगने वाले मूलभूत टीकों से छूट गए। यानी उन्हें टीके नहीं लग पाए। भारत के सामने इस समय एक चुनौती ऐसे बच्चों का पता लगाकर उन्हें टीके लगाना है और यह सुनिश्चित भी करना है कि उनका पूर्ण टीकाकरण हो। भारत को बाल टीकाकरण का लंबा अनुभव है और उसके पास चुनौतियों से निपटने का एक विजन भी है। पूर्वोतर के मेघालय राज्य के रीभोई जिले में स्थित जीरंग स्टेट डिस्पेंसरी ने बाल टीकाकरण में जो सफलता हासिल की है,उसका जिक्र करने से पता चलता है कि दूर-दराज इलाकों में यह काम करना कितना मुश्किल होता है। जीरंग स्टेट डिस्पेंसरी 35 गांवों में रहने वाली करीब 9,909 आबादी को अपनी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराती हैं। इन 35 गांवों में से 32 गांवों तक पैदल ही पहुंचा जा सकता है। वह राह भी आसान नहीं है, यही नहीं कई गांवों के रास्ते में तो जंगली हाथी तक का सामना करना पड़ता है। इस डिस्पेंसरी के मेडिकल अधिकार डा. हिमांशु दास का कहना है कि एक तरफ जंगली हाथी तो दूसरी तरफ इस इलाके में मोबाइल नेटवर्क कनेक्टिीविटी का नहीं होना गंभीर समस्या है, लेकिन इसके बावजूद डिस्पेंसरी के पास उपलब्ध फरवरी 2022 तक आंकड़ों के अनुसार यहां टीकाकरण की दर करीब 114 फीसद है। पहले कई गांवों में लोग बच्चों को जीवन रक्षक टीका लगवाने का प्रतिरोध करते थे, लेकिन अब समझाने पर ऐसा नहीं करते। इसी तरह रीभोई जिले के ही एमजांग सब-सेंटर के बारे में मेडिकल अधिकारी डा. प्रीतम मारक बताते हैं कि इस सब-सेंटर के अंतर्गत आने वाले लोग अब टीकों को लेकर अधिक प्रतिरोध नहीं करते। अब वे इनके महत्व को समझने लगे है। यहां के लोग दूर-दराज इलाकों में रहते हैं, वे यहां खुद नहीं आ सकते, यहां आने का मतलब एक दिन की दिहाड़ी को खोना है।

दरअसल केंद्र व राज्य सरकारों की हरसंभव कोशिश है कि मुल्क का कोई भी बच्चा चाहे वह कहीं भी रहता हो, जीवनरक्षक टीकों से वंचित न रहे। बाल टीकाकरण की दर को और अधिक गति देने के लिए 25 दिसंबर 2014 को मिशन इंद्रधनुष योजना लांच की गई। इस महत्वाकांक्षी योजना के सकारात्मक नतीजे सामने आए। इसी 7 फरवरी 2022 को सघन मिशन इंद्रधनुष 4.0 शुरू किया गया है और इसका फोकस ऐसे शिशुओं पर भी है जिन्हें नियमित टीकाकरण के तहत एक भी टीका नहीं लगा है। यानी जिन्हें डिप्थीरिया, टेटनेस व काली खांसी वाली वैक्सीन की पहली खुराक तक नहीं मिली है। ऐसे बच्चों की जान अधिक खतरे में पड़ सकती है और ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसे अधिकांश बच्चे अक्सर वंचित तबकों से आते हैं, जिनमें ग्रामीण परिवार, कम शिक्षित महिलाओं वाले परिवार शमिल हैं। संयुक्त राष्ट्र का बाल अधिकार सम्मेलन भी इस बात की वकालत करता है कि सभी बच्चों की पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं तक एक समान पहुंच होनी चाहिए।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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