नितिन प्रधान का लेख : समावेशी विकास पर फोकस

नितिन प्रधान
यह तो इस बार के आर्थिक सर्वेक्षण से ही स्पष्ट हो गया था कि सरकार अब विकास दर के दोहरे अंक को लेकर तवज्जो देने के मूड में नहीं है। चालू वित्त वर्ष में 9.2 प्रतिशत की विकास दर के अनुमान के बावजूद आर्थिक सर्वेक्षण में अगले वित्त वर्ष के लिए आठ से साढ़े आठ प्रतिशत की आर्थिक विकास दर का अनुमान विकास दर की धीमी रफ्तार रहने की तरफ इशारा कर रही है। संसद में पेश साल 2022-23 के आम बजट ने सरकार की इस बदली सोच पर मुहर भी लगा दी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को जो बजट पेश किया वो बतौर सरकार अगले 25 वर्ष के भारत का खाका पेश करता है। एक नजर में देखें तो इस बजट का झुकाव शहरी मुद्दों पर अधिक है। किसानों और ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े मुद्दों को इस बार बजट में कम तव्वजो मिली है। यह काफी हैरानी भरा है।
बजट में मुख्यतः बड़ा जोर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर है। गतिशक्ति मिशन के तहत बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया गया है। भारतीय जनता पार्टी की सरकारों का हमेशा इन्फ्रास्ट्र्क्चर पर फोकस रहा है। इस बार भी वित्त मंत्री ने सड़क, रेल, एयरपोर्ट, शिपिंग, बंदरगाह जैसे सात क्षेत्रों के विकास पर जोर दिया है, इसीलिए वित्त मंत्री ने पीएम गतिशक्ति को सरकार की प्राथमिकता बताया है। इस संदर्भ में बजट के प्रावधानों से स्पष्ट है कि सरकार अब इसमें निजी क्षेत्र की और भागीदारी बढ़ाना चाहती है। अर्थव्यवस्था की आधुनिक सोच के लिहाज से यह सही भी है कि सरकार को बिजनेस करने में नहीं उसे रेगुलेट करने तक सीमित रहना चाहिए। सरकार की इस सोच को वित्त मंत्री ने इस बार के बजट में भी आगे बढ़ाया है। डिजिटल इकोनॉमी की तरफ कदम बढ़ाते हुए भी वित्त मंत्री ने कई घोषणाएं अपने बजट में की हैं। बजट में वित्त मंत्री ने डिजिटल रुपये के रूप में डिजिटल करेंसी लाने का बड़ा ऐलान तो कर दिया है, लेकिन डिजिटल करेंसी पर कानून को लेकर सरकार की सोच इस बार बजट में भी स्पष्ट नहीं हुई है। देश के 75 जिलों में 75 डिजिटल बैंकिंग यूनिट स्थापित करने का विचार भी सरकार की डिजिटल इंडिया सोच को दर्शाता है। यह बैंकों की लागत कम करने में मदद करेगा। पिछले लगभग दो साल जिस तरह कोविड महामारी में गुजरे हैं उसने अर्थव्यवस्था को तो नुकसान पहुंचाया ही है, बेरोजगारी के स्तर में भी इजाफा किया है। वित्त मंत्री ने इस बजट में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम का दायरा बढ़ाया है। सरकार का दावा है कि जिन 14 उद्योगों को इस स्कीम का लाभ मिल रहा है उससे देश में साठ लाख नौकरियां मिलेंगी। यह विडंबना ही है कि सरकार बीते कई वर्षों से इस स्कीम का विस्तार कर रही है, लेकिन उद्योगों को दिए गए ये इंसेंटिव कितनी नौकरियां देने में सक्षम रहे हैं, इसका आंकड़ा सामने नहीं आता, लेकिन घरेलू रक्षा मैन्यूफैक्चरिंग यूनिटों से खरीद का प्रतिशत बढ़ाकर 68 प्रतिशत करने का असर घरेलू रक्षा उद्योग क्षेत्र पर अवश्य पड़ेगा। इस बार सहकारी क्षेत्र के लिए बजट काफी विशेष रहा है। संभवतः केंद्र में अलग से सहकारी मंत्रालय बनने का ही नतीजा है कि इस बार बजट में सहकारी क्षेत्र को टैक्स में राहत मिल गई है। अभी तक सहकारी समितियों को 18 प्रतिशत वैकल्पिक कर जमा करना होता था, जबकि निजी कंपनियों के लिए इस कर की दर 15 प्रतिशत थी। इस बार के बजट में सरकार ने सहकारी क्षेत्र को निजी कंपनियों के बराबर ला दिया है। सहकारी समितियों को सरचार्ज के रूप में भी अब 12 प्रतिशत की बजाय केवल सात प्रतिशत सरचार्ज का भुगतान करना होगा। सरकार के इस कदम से सहकारी समितियों के लाभ में वृद्धि होगी, जिसका फायदा इन समितियों के सदस्यों यानी किसानों को अधिक आमदनी के रूप में मिल सकेगा। सहकारी क्षेत्र लंबे समय से इसकी मांग कर रहा था।
शिक्षा के क्षेत्र में वित्त मंत्री का पूरा जोर बजट में डिजिटल शिक्षा पर रहा है। वन क्लास वन चैनल की तर्ज पर 200 चैनल शुरू करने का ऐलान है। यह सही है कि देश की आधी आबादी 2047 तक शहरों में रहने लगेगी, लेकिन बावजूद इसके गांवों कस्बों में रहने वाली आधी आबादी के लिए शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जिम्मेदारी भी सरकार को ही उठानी होगी। राज्य सरकारों को इसके लिए मदद देनी होगी, ताकि बच्चे बेसिक शिक्षा से वंचित न रहें। इसी तरह किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर पिछले चार-पांच बजट से चर्चा हो रही है, लेकिन इस बार बजट इस पर चुप्पी साधे हुए है। यही नहीं बजट में इस बार कृषि, ग्रामीण और सामाजिक सरोकार से जुड़ी स्कीमों के बजटों में भी मामूली वृद्धि हुई है। रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना के लिए सरकार ने बजट में सिर्फ 73 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। पिछले साल के संशोधित अनुमानों में इस पर खर्च 98 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचा है। इसी तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कई स्कीमों के बजट में या तो मामूली वृद्धि हुई है या बजट घट गया है। चालू वित्त वर्ष में देश के कोविड महामारी के चपेट में होने के बावजूद सरकार बजट में आवंटित पूरी राशि को खर्च करने में सफल नहीं हो पाई है। बजट की एक बात जो राहत देती है कि वह यह कि सरकार ने मान लिया है कि बिना उसके खर्च किए निवेश का स्तर नहीं बढ़ेगा। यही वजह है कि इस बार सरकार ने पूंजीगत व्यय के मद में वित्त मंत्री ने साढ़े सात लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। वैसे भी साल 2021-22 में सरकार का खर्च उसके बजट लक्ष्य से ऊपर निकल गया है। यही वजह है कि इस बार बजट के आकार में साढ़े चार प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। इस बार सरकार ने 39.45 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया है। यानी पिछले साल के मुकाबले करीब पौने दो लाख करोड़ रुपये अधिक। सरकार मान रही है कि अधिक खर्च और अधिक खपत से रोजगार में वृद्धि होगी और लोगों की आय बढ़ेगी। अधिक खर्च का अधिकांश हिस्सा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर खर्च होने की उम्मीद है।
अगर बजट में मिलने वाली रियायतों की बात करें तो लगता है अब आयकर के मामले में रियायतों का सिलसिला रुक गया है। इस बजट में आयकर स्लैब में कोई बदलाव नहीं हुआ है। अलबत्ता एक राहत आयकर रिटर्न में होने वाली चूक को ठीक करने के लिए अतिरिक्त एक वर्ष का समय मिलने के रूप में मिला है। अब यदि रिटर्न फाइल करने के बाद कुछ अतिरिक्त आय सामने आती है तो दो साल तक रिटर्न को संशोधित करने की सुविधा वित्त मंत्री ने आयकरदाताओं को प्रदान की है। बजट की वास्तविक तस्वीर तो अगले दो तीन दिन में ही स्पष्ट होगी जब उसका विस्तृत अध्य्यन होगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि कल्याणकारी सरकार की अवधारणा अब बदल रही है और यह इस बजट ने स्पष्ट कर दिया है, लेकिन क्या यह वास्तव में नए भारत का बजट है?
(लेखक वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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