राकेश अचल का लेख : गांधी के पीछे भी गांधी हासिल

राकेश अचल का लेख : गांधी के पीछे भी गांधी हासिल
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आज भारत जोड़ो पदयात्रा पर निकले अधमरी कांग्रेस के हीरो राहुल गांधी भी राजनीति के मायने बदलने की कोशिश कर रहे हैं। देश की सियासत करने में कामयाबी की शर्त है कि आप देश को अपनी आँखों से देखते हों। जनता से आपका सीधा सम्पर्क हो। राहुल गांधी ने इस भारत जोड़ो पदयात्रा में अपने लिए जो पोशाक चुनी है। वो आज के युग के बहुसंख्यक युवाओं की पोशाक है, देश के दूरस्थ आदिवासी अंचल में भी युवा जींस और टीशर्ट पहन रहे हैं, यानि वे महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलकर सियासत को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल की इस पदयात्रा का राजनीतिक फलित तो चुनावों में ही पता चलेगा, बहरहाल एक राजनीतिक कोशिश जरूर दिख रही है।

महात्मा गांधी अतुलनीय हैं और अनुकरणीय भी। आज मै महात्मा गांधी के आयुधों का अनुकरण करने वाले आज के गांधी यानि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर एक निरपेक्ष बात कर रहा हूँ। इसमें न राग है न द्वेष। एक आकलन भर है। मुमकिन है आपको गलत लगे और ये भी मुमकिन है कि आप इससे सहमत हों। मेरे लिए दोनों महत्वपूर्ण हैं।

महात्मा गांधी की जो तस्वीरें आप देखते हैं, महात्मा गांधी शुरू से वैसे नहीं थे। महात्मा गांधी बनने से पहले के मोहनदास करमचंद गांधी तब घुटनों तक धोती नहीं बल्कि बाकायदा पेण्ट-शर्ट और कोट पहनते थे। महात्मा गाँधी ने घुटनों तक धोती और कमर के ऊपर एक चादर ओढ़कर भारतीय राजनीति में एक नया सूत्रपात किया था। वे इसी पोशाक में चर्चिल से मिले और दुनिया के तमाम नेताओं से। यानि उन्होंने सियासत में पोशाक का ट्रेंड बदला,लेकिन उनकी पोशाक का अनुकरण करने वाले बहुत कम लोग निकले. हाँ खादी को असंख्य भारतीयों ने अपनाया। आज खादी एक विशाल ब्रान्ड है।

महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तो वे बाल गंगाधर तिलक से मिले और आपने लिए काम माँगा तो तिलक ने उन्हें सबसे पहले देशाटन की सलाह दी। महात्मा ने ये काम शिद्द्त से किया और आजीवन करते रहे। कभी पदयात्राओं के जरिये, तो कभी रेल यात्राओं के जरिये। उन्हें मंहगे विमानों की जरूरत शायद कभी नहीं पड़ी। मुझे लगता है कि जनता से सीधा संवाद या मन की बात कर ही मोहन बाबू महात्मा बने।

आज भारत जोड़ो पदयात्रा पर निकले अधमरी कांग्रेस के हीरो राहुल गांधी भी राजनीति के मायने बदलने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें देशाटन करने की सलाह आज के किस तिलक ने दी, मुझे नहीं पता, लेकिन जिसने भी दी उसने ठीक किया। देश की सियासत करने में कामयाबी की शर्त है कि आप देश को अपनी आँखों से देखते हों। जनता से आपका सीधा सम्पर्क हो। कोई भी आपसे राह चलते गले मिल सकता हो, आपसे लिप्त सकता हो। आपके साथ दौड़ लगा सकता हो। आपके साथ सेल्फी ले सकता हो, आपको अपने खेत में पैदा हुए खीरे दे सकता हो।

राहुल गांधी ने इस भारत जोड़ो पदयात्रा में अपने लिए जो पोशाक चुनी है। वो आज के युग के बहुसंख्यक युवाओं की पोशाक है, मैंने देश के दूरस्थ आदिवासी अंचल में भी युवाओं को जींस और टीशर्ट पहने देखा है, यानि वे महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलकर देश की सियासत में काम करने वालों की बदनाम हो चुकी पोशाक के खिलाफ एक विकल्प प्रस्तुत कर रहे हैं .राहुल के आलोचकों ने शुरू में उनकी टीशर्ट की कीमत को लेकर बावेला खड़ा किया था, लेकिन यदि आप वैसी टी शर्ट पहनना चाहने तो आपको किसी भी बाजार में दो-ढाई सौ रूपये मिल जाएगी।

बहरहाल राहुल का हासिल ये भी है कि वे उन इलाकों से गुजर रहे हैं हैं जो हाल में ही अनेकानेक कारणों से नफरत की आग में झुलस चुके हैं। वे अपनी पदयात्रा में सबके लिए उपलब्ध हैं, केवल कांग्रेसियों के लिए नहीं, कोई भी उनसे हाथ मिलाये,मन की बात करे, अपना भय और आशंकाएं बताये। उनकी पदयात्राओं का हासिल ये भी है कि उनके लिए किसी सरकार को भीड़ जुटाकर नहीं देना पड़ रही यानि राहुल की ये पदयात्रा 'ईवेंट पॉलटिक्स ' के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। अभी हाल ही में मैंने अपने क्षेत्र में माननीय प्रधानमंत्री और माननीय गृहमंत्री जी की आमसभाओं के लिए भीड़ जुटाने के लिए सरकारी मशीनरी को हलकान होते देखा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा से देश में कोई जाग्रति आएगी या फिर उनकी ख़ाक में मिलती कांग्रेस को नवजीवन मिलेगा, इसके बारे में मै कोई भविष्यवाणी नहीं करना चाहता, ये मेरा काम भी नहीं है। मेरा काम अपनी नजर से घटनाओं को देखकर उनका आकलन करना है। भारत जोड़ो पदयात्रा से लाभ या हानि का आंकलन करना कांग्रेस का अपना काम है।

महात्मा गांधी का अनुशरण करते हुए देशाटन पर निकले राहुल गांधी ने जो तीसरा हासिल किया है कि वे सत्तापेक्षी मीडिया के सहारे नहीं हैं। जैसे महात्मा गांधी ने तत्कालीन मीडिया की और देखे बिना खुद पत्रकार बनने का प्रयोग किया था लगभग कुछ-कुछ राहुल ने भी किया है। राहुल के कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फ़ौज सोशल मीडिया के जरिये इस भारत जोड़ो पदयात्रा को इतना प्रचारित कर चुकी है कि उसे अब देश के गोदी या मोदी मीडिया की आवश्यकता नहीं है। अब ये दोनों प्रकार के मीडिया मजबूरन राहुल गांधी को स्थान दे रहे हैं।

मेरा मानना है कि कोई सात सर का भी हो जाए तो महात्मा गांधी नहीं हो सकता, लेकिन कोशिश करे तो महात्मा गांधी के आजमाए हुए फार्मूलों का इस्तेमाल कर अपने लक्ष्य तक पहुँच जरूर सकता है। राहुल गांधी ने ये हिम्मत कहिये या हिमाकत कहिये की है, अन्यथा आज देश में शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो पैदल देश को नापने की गलती करे। सियासत के लिए रथ यात्राएं निकाली जा सकतीं हैं, लेकिन पदयात्राएं नहीं की जा सकतीं। पदयात्राएं बेहद कष्टप्रद होती हैं लेकिन उनका प्रतिफल सुस्वाद और मीठा होता है, ये मेरा निजी अनुभव है। जैसा मैंने पहले ही कहा कि मै आज महात्मा गांधी और राहुल गांधी के बीच कोई तुलना नहीं कर रहा, किन्तु मै देख रहा हूँ कि 150 साल बाद भी देश में ऐसे लोग हैं जो महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चलकर सियासत का रंग -रूप बदलने के लिए सड़क पर निकलने का माद्दा रखते हैं। देश के दूसरे दलों में भी राहुल की तरह ऊर्जावान युवाओं की कमी नहीं है, किन्तु कोई भी इस तरह के प्रयोग करने की स्थिति में नहीं है। या तो दूसरे दलों के युवाओं की इसकी महत्ता का अनुमान नहीं है या वे इसकी जरूरत महसूस नहीं करते। करते तो देश को जानने के लिए कम से कम एक बार तो देशाटन कर जनता की नब्ज टटोलने की जुर्रत जरूर करते। किन्तु आज की पीढ़ी तो राजनीति में सीधे छलांग लगाने में यकीन रखती है।

भारत जोड़ो पदयात्रा से सत्ता केंद्र में हलचल है लेकिन उसे कोई बाहर नहीं आने दे रहा। घबड़ाहट को छिपाने के लिए एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए जा रहे हैं ,लेकिन घबड़ाहट आखिर कब तक छिप सकती है? देश की सियासत में कोई तब्दीली आये या न आये ये देश की जनता को तय करना है। हम और आप जैसे लोग ये तय नहीं कर सकते, लेकिन हम और आप ये कह सकते हैं कि देश में राजनीति करवट लेती दिखाई दे रही है। देश में आज महात्मा गाँधी कि वशंजों की आंधी भले न हो किन्तु उनके अनुयायी गांधी की आंधी अवश्य उठती नजर आ रही है। ये वेगवती होगी या नहीं, कहना आवश्यक नहीं है। राहुल की इस पदयात्रा का राजनीतिक फलित तो चुनावों में ही पता चलेगा, बहरहाल एक राजनीतिक कोशिश जरूर दिख रही है।

(लेखक राकेश अचल, वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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