योगेश सोनी का लेख : गैंगस्टरों पर शिकंजा कसा जाए

योगेश सोनी का लेख : गैंगस्टरों पर शिकंजा कसा जाए
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एनआईए ने पिछले दिनों राजधानी दिल्ली सहित कई प्रदेशों में बड़े गैंग पर छापे मारे। एनआईए ने एक डोजियर बनाकर उस पर कार्रवाई शुरू की है, लेकिन हकीकत यही है कि गैंगस्टर जेलों में बैठकर ही अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। जेलों में मोबाइल आसानी से पहुंच रहे हैं। इतनी कड़ी निगरानी में यह घिनौना खेल इतने खुलेआम चल रहा है तो अन्य क्षेत्रों की सुरक्षा को लेकर हमें गंभीरता से सोचना पड़ेगा। इस मामले में शासन-प्रशासन को बेहद कड़ा एक्शन लेने की जरूरत है। तभी अपराध पर लगाम लगाया जाना संभव हो सकेगा। इस पर काम किया जाना चाहिए और गैंगस्टरों पर शिकंजा कसा जाना चाहिए।

योगेश सोनी

बीते दिनों गैंगस्टरों पर शिकंजा कसने के लिए उनके अड्डों पर एनआईए ने दिल्ली,पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में स्थित ठिकानों पर छापे मारे। केन्द्र सरकार के अनुसार बवाना गैंग और बिश्नोई गैंग से जुड़े लोगों पर केंद्रीय एजेंसियों ने छापेमारी की। 'दिल्ली का दाऊद' कहे जाने वाले बवाना गैंग पर एनआईए ने नीरज बवाना की क्राइम कुंडली को खंगाला है। गृहमंत्री अमित शाह से मंजूरी मिलने के बाद एनआईए ने जो डोजियर तैयार किया था, उसके अनुसार लिस्ट बनाकर काम करना शुरू कर दिया। टारगेटेड किलिंग में शामिल दिल्ली के क्रिमिनल गैंग्स और सिंडिकेट पर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई की हुंकार भरी जा रही है। बवाना गैंग और बिश्नोई गैंग से जुड़े लोगों पर भी केंद्रीय एजेंसियां बड़ा प्रहार बताने में लगी हैं, लेकिन हकीकत अभी भी यह ही है कि गैंगस्टरों पर सिर्फ बात ही कही जाती है, चूंकि उन लोगों द्वारा की जा रही हत्या, लूटपाट व रंगदारी की वारदातों में कोई कमी नहीं आ रही। वैसे तो दिल्ली के बारे में यह कहा जाता है कि यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन गैंगस्टरों ने इस मिथक को तोड़ दिया है। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो गैंगस्टर व गैंगवार बढ़ी हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर इनके क्राइम करते व जेल के अंदर से वीडियो शेयर होते हैं, जिसके युवा पीढ़ी इनसे प्रभावित हो रही है, जिससे हमारा समाज गलत दिशा की ओर जा रहा है। अब गैंगस्टर गली-गली जन्म लेने लगे हैं। जब सरकार को यह बात पता है कि यह जेल से पूरा गैंग चला रहे हैं तो इनको खत्म क्यों नहीं किया जा रहा।

एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2016 से 2020 तक हर वर्ष लगभग 600 कैदी फरार हुए हैं जो बहुत बड़ा आंकड़ा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि गैंगस्टर जेल से ही पूरा सिस्टम चला रहे हैं। यदि जेलों की स्थिति पर गौर करें तो हालात बेहद चिंताजनक हैं। जेल में कैदियों की सुरक्षा व संचालन प्रक्रिया को लेकर हमेशा सवालिया निशान लगते रहे हैं। इसका उदाहरण एक बार फिर सामने आया जब हाल ही में दिल्ली स्थित मंडोली जेल में एक कैदी को पेट दर्द की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया। जहां पता चला कि उसने पेट में मोबाइल निगल रखा था। जब उसकी जांच हुई तो चार मोबाइल निकले। इस घटना ने एक बार फिर एहसास दिलाया कि जेल सुरक्षा केवल बातों और दावों में है। इस मामले में दिल्ली की जेलों को लेकर आरटीआई लगाई, जिससे जानकारी मिली कि इस वर्ष के जून महीने तक कैदियों के पास से 320 मोबाइल बरामद किए जा चुके थे, जो बेहद चौंकाने वाला मामला है।

कड़ी सुरक्षा के बावजूद कैदी जेल के अन्दर मोबाइल ले जाने में कामयाब हो जाते हैं। आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि जेल में बड़े पैमाने पर कैदी मोबाइल लेकर जाते हैं। यह सिर्फ दिल्ली का आंकड़ा है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि देश ही नहीं पूरे एशिया की सबसे सुरक्षित कही जाने वाली तिहाड़ जेल का आलम भी अन्य जेलों की तरह है। कुछ कैदी जो जेल से बाहर आकर वहां की आप बीती बताते हैं। उनके अनुसार जेल में रह रहे पुराने व खूंखार कैदी जेल में से ही अपनी सरकार चलाते हैं। वो नए व मजबूर कैदियों को अपने परिजनों से बात कराने का पैसा मांगते हैं जो रकम वह बाहर अपने गुर्गों के अकाउंट में जमा करवाते हैं। मोबाइल के अलावा नशीले पदार्थ व अन्य सुविधाएं भी बेहद आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। यदि जेल में किसी कैदी से मिलने उसका मित्र या परिजन जाता है तो करीब पांच जगहों पर कड़ी चेकिंग होती है। इसके आधार पर यह कहा जाता सकता है कि कैदियों की कितनी कड़ी चेकिंग होती होगी। कुछ कैदियों के अनुसार तो यह तक पता चला है कि जेल में नए व शरीफ कैदी की पिटाई न हो या यूं कहें कि उनके साथ गलत बर्ताव न हो तो उसके एवज में बड़ी रकम मांगी जाती है। जो कैदी नहीं देते या असक्षम होते हैं तो उनको जीना हराम कर दिया जाता है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पूरे खेल में जेल प्रशासन पूर्ण रूप से मिला होता है, क्योंकि हर तरह की कमाई का हिस्सा संबंधित अधिकारियों को जाता है। खेल स्पष्ट है कि जहां जेल प्रशासन की मर्जी के बिना कोई परिंदा पर नहीं मार सकता, वहां इस तरह की स्थिति बहुत बड़ी गड़बड़ दर्शाता है। इसके अलावा देश की अन्य राज्यों की जेलों की बात करें तो कई उदाहरण है। विगत दिनों पंजाब के लुधियाना शहर की जेल में दो गुटों में हुई हिंसक झड़प में एक कैदी की मौत को गई थी और 11 घायल हुए थे, जिसमें छह पुलिसकर्मी भी शामिल थे। दोनों गुटों ने एक-दूसरे पर पत्थरबाजी की। कैदियों ने अपने मोबाइल में घटना का वीडियो बनाया और उसे फेसबुक पर लाइव तक चला डाला था।

उत्तर प्रदेश की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई दिन जाता होगा कि कोई बड़ी घटना न होती हो। पूरे देश की स्थिति लगभग एक जैसी है। यहां के किस्से फिल्म की तरह होते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार 2021 के अंत तक 4,33,031 लोग देश की जेलों में बंद थे। जिसमें से 69 फीसदी कैदी अंडर ट्रायल थे या फिर ऐसे लोग जिन्हें अपराध के लिए दोषी तय किया जाना है। अंडर ट्रायल कैदियों की यह संख्या दुनिया के किसी अन्य देश में बंद विचाराधीन कैदियों से कहीं ज्यादा है। भारत में 31 दिसंबर 2016 तक कुल 1412 जेल हैं जिसमें 137 सेंट्रल जेल और 394 जिला जेल के अलावा 732 सब जेल हैं। देशभर में महिलाओं के लिए अलग से 20 जेल बनाई गई हैं। सबसे अधिक महिला जेल तमिलनाडु में हैं, जहां पर राज्यभर में 5 महिला जेल हैं, जबकि इसके बाद केरल में 3 और राजस्थान में 2 जेल हैं। आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में महज एक महिला जेल है।

देश के 1412 जेलों में लगभग साढ़े चार लाख कैदी बंद हैं, जबकि इन जेलों में 3,80,876 कैदियों को ही रखने की क्षमता है। उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो यहां की जेलों में करीब 96000 कैदी हैं, जबकि यहां पर महज अठ्ठावन हजार कैदियों को रखने की क्षमता है। इस तरह से यूपी की जेलों में क्षमता से कहीं ज्यादा 165 फीसदी कैदी बंद हैं। ऐसी ही स्थिति दादर एंड नगर हवेली, छत्तीसगढ़, नई दिल्ली और मेघालय की जेलों की है। दादर नागर हवेली में क्षमता से दोगुना 200 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 190 फीसदी, दिल्ली में 180 फीसदी और मेघालय में 133 फीसदी कैदी बंद हैं। बहराहल कई प्रकार के अन्य भी आंकड़े हैं, लेकिन समस्या एक ही है कि इतनी कड़ी निगरानी में यह घिनौना खेल इतने खुलेआम चल रहा है तो अन्य क्षेत्रों की सुरक्षा को लेकर हमें गंभीरता से सोचना पड़ेगा। इस मामले में शासन-प्रशासन को बेहद कड़ा एक्शन लेने की जरूरत है, चूंकि ऐसी घटनाओं से हमारा सम्मान देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों तक में कम हो रहा है। चूंकि मामला सुरक्षा का है, इसलिए इस पर काम किया जाना चाहिए और गैंगस्टरों पर शिकंजा कसा जाना चाहिए।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )

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