डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख : वैश्विक कारोबार बढ़ने की उम्मीद

डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख :  वैश्विक कारोबार बढ़ने की उम्मीद
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में जी-20 के शिखर सम्मेलन के दौरान प्रमुख देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभावी बातचीत की है, वहीं 28 अक्टूबर को आसियान देशों के शिखर सम्मेलन में विभिन्न आसियान देशों के साथ की गई द्विपक्षीय वार्ताओं से इन देशों के साथ भारत के कारोबार बढ़ने की उम्मीदें हैं। विगत 24 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच व्हाइट हाउस में पहली द्विपक्षीय वार्ता के बाद अमेरिका के साथ नए कारोबार संबंधों का भी परिदृश्य सामने आया है। उम्मीद करें कि अमेरिका, जी-20 और आसियान देशों के साथ भारत के नए द्विपक्षीय आर्थिक रिश्तों की संभावनाएं आगे बढ़ेंगी।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी

भारत के वैश्विक कारोबार के बढ़ने की नई उम्मीदें दिखाई दे रही हैं। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 और 31 अक्टूबर को जी-20 के शिखर सम्मेलन के दौरान प्रमुख देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभावी बातचीत की है, वहीं 28 अक्टूबर को आसियान देशों के शिखर सम्मेलन में विभिन्न आसियान देशों के साथ की गई द्विपक्षीय वार्ताओं से इन देशों के साथ भारत के कारोबार बढ़ने की उम्मीदें हैं। विगत 24 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच व्हाइट हाउस में पहली द्विपक्षीय वार्ता के बाद अमेरिका के साथ नए कारोबार संबंधों का भी परिदृश्य सामने आया है।

गौरतलब है कि अब जी-20 और आसियान देशों के साथ द्विपक्षीय कारोबार की नई आशाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। ज्ञातव्य है कि 28 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रूनेई के सुल्तान हाजी हसनल बोलकिया के साथ संयुक्त रूप से भारत-आसियान शिखर बैठक की अध्यक्षता करते हुए वर्ष 2022 को भारत-आसियान फ्रेंडशिप वर्ष के तौर पर मनाने का फैसला किया है। इससे भारत-आसियान आर्थिक रिश्तों और कारोबार संबंधों की नई संभावनाएं आगे बढ़ी हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरोना काल के दौरान भारत और आसियान दोनों तरफ से जिस तरह एक-दूसरे को सहयोग किया गया है, उससे अब भारत-आसियान आर्थिक रिश्ते प्रगाढ़ होंगे। उल्लेखनीय है कि दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान में वियतनाम, लाओस, म्यांमार, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रूनेई और कंबोडिया शामिल हैं। पिछले वर्ष 15 नवंबर, 2020 को दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड समझौते रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) ने 15 देशों के हस्ताक्षर के बाद जो मूर्तरूप लिया है, भारत उस समझौते में शामिल नहीं हुआ है। इस बार फिर आसियान सदस्यों के साथ मोदी ने स्पष्ट किया कि मौजूदा स्वरूप में भारत आरसेप का सदस्य होने को इच्छुक नहीं है।

अब भारत दुनिया के कई ऐसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को तेजी से अंतिम रूप देने पर अपना ध्यान फोकस करते हुए दिखाई दे रहा है, जिन्हें भारत के बड़े चमकीले बाजार की जरूरत है और जो देश बदले में भारत के विशेष उत्पादों के लिए अपने बाजार के दरवाजे भी खोलने के लिए उत्सुक हैं। वस्तुतः विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत विश्व व्यापार वार्ताओं में जितनी उलझनें खड़ी हो रही हैं उतनी ही तेजी से विभिन्न देशों के बीच एफटीए बढ़ते जा रहे हैं। यह एक अच्छी बात है कि डब्ल्यूटीओ कुछ शर्तों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए की इजाजत भी देता है। एफटीए ऐसे समझौते हैं जिनमें दो या दो से ज्यादा देश आपसी व्यापार में कस्टम और अन्य शुल्क संबंधी प्रावधानों में एक-दूसरे को तरजीह देने पर सहमत होते हैं। दुनिया में इस समय 300 से ज्यादा एफटीए दिखाई दे रहे हैं। भारत ने पिछले 10 वर्षों में किसी बड़े एफटीए पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। वर्ष 2011 में भारत ने मलेशिया के साथ एफटीए किया था। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष विगत 22 फरवरी को भारत और मॉरिशस के द्वारा सीमित दायरे वाले एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इसमें कोई दोमत नहीं है कि 24 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की पहली द्विपक्षीय वार्ता दोनों देशों के आपसी कारोबार में मील का पत्थर बन सकती है।

ज्ञात हो कि 24 सितंबर को राष्ट्रपति जो बाइडेन और एक दिन पहले 23 सितंबर को उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और अमेरिका की प्रभावी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात में भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक और कारोबारी संबंधों को ऊंचाई दिए जाने का नया उत्साहवर्द्धक परिदृश्य सामने आया है। उल्लेखनीय है कि जिस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन की मेजबानी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑस्ट्रेलिया और जापान के अपने समकक्षों स्काट मारिसन व योशिहिदे सुगा के साथ क्वाड देशों की प्रभावी बैठक में हिस्सा लिया, उससे चारों देशों का यह समूह न केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र चीन की महत्वाकांक्षाओं पर नकेल कस सकेगा, वरन्ा आपसी कारोबार को भी ऊंचाई दे सकेगा। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जिस तरह राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत और अमेरिका को एक परिवार के रूप में रेखांकित किया उससे पूरी दुनिया के विभिन्न देश भारत के साथ आर्थिक-कारोबारी रिश्तों के लिए नए कदम आगे बढ़ाते हुए भी दिखाई दे सकेंगे। नि:संदेह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहा जाना महत्वपूर्ण हैं कि नए आर्थिक विश्व में भारत और अमेरिका दोनों एक दूसरे की जरूरत बन गए हैं। यह बात महत्वपूर्ण है कि मोटे तौर पर भारत और अमेरिका के बीच कारोबार के सभी विवादास्पद बिंदुओं का समाधान कर लिया गया है। भारत ने अमेरिका से जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज (जीएसपी) के तहत कुछ निश्चित घरेलू उत्पादों को निर्यात लाभ फिर से देने की शुरुआत करने और कृषि, वाहन, वाहन पुर्जों और इंजीनियरिंग क्षेत्र के अपने उत्पादों के लिए बड़ी बाजार पहुंच देने की मांग की है। दूसरी ओर अमेरिका भारत से अपने कृषि और विनिर्माण उत्पादों, डेयरी उत्पादों और चिकित्सा उपकरणों के लिए बड़े बाजार की पहुंच, डेटा का स्थानीयकरण और कुछ सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों पर आयात शुल्कों में कटौती चाहता है।

इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि कोरोना काल ने एफटीए को लेकर सरकार की सोच बदल दी है। सरकार बदले वैश्विक माहौल में ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ (ईयू) और ब्रिटेन सहित कुछ और विकसित देशों के साथ सीमित दायरे वाले व्यापार समझौतों की निर्णायक डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। यद्यपि ऑस्ट्रेलिया, ईयू और ब्रिटेन सहित कुछ और देशों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए के लिए चर्चाएं संतोषजनक रूप में हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां भी बनी हुई हैं। अब भारत को मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव देश की कारोबार जरूरतों और वैश्विक व्यापार परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए करना होगा।

हम उम्मीद करें कि दीपावली के बाद शुरू होने वाले नए वर्ष में अमेरिका, जी-20 और आसियान देशों के साथ भारत के नए द्विपक्षीय आर्थिक रिश्तों की संभावनाएं आगे बढ़ेंगी। साथ ही भारत दुनिया के विभिन्न देशों के साथ नए सीमित दायरे वाले मुक्त व्यापार समझौतों की डगर पर भी तेजी से आगे बढ़ेगा। खासतौर से आस्ट्रेलिया, अमेरिका, ईयू और ब्रिटेन के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जाएगा। ऐसी वैश्विक और विदेश व्यापार रणनीति से भारत के विदेश-व्यापार के नए अध्याय लिखे जा सकेंगे।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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