नृपेन्द्र अभिषेक नृप का लेख : बायो इकोनॉमी का सुनहरा भविष्य

नृपेन्द्र अभिषेक नृप
विश्व में सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जैव-आधारित उद्योगों के समन्वय के लिए सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार की गई है। दुनिया भर के देश स्थायी भविष्य की दिशा में परिवर्तन शुरू करने के लिए जैव-अर्थव्यवस्था रणनीतियों को तैयार और कार्यान्वित कर रहे हैं। उनमें से भारत भी अपनी अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के लिए नई राहें बना रहा है। ऐसी ही एक राह है, जैव अर्थव्यवस्था यानी बायो इकोनॉमी। हाल ही में संसद में केंद्रीय राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने जैव अर्थव्यवस्था का भारत में भविष्य और सरकारी प्रयास पर जबाब दिया है। जिसमें सरकार के भविष्य के लक्ष्यों के बारे में विवरण दिया है। 2019 तक भारत में जैव अर्थव्यवस्था 44 अरब डालर की थी जो कि 2021 में 80.1 अरब डालर तक पहुंच गई है। जिसे 2030 तक 300 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। उम्मीद है कि अगले 25 वर्ष में यह भारत में अर्थव्यवस्था की मजबूती की मुख्य कारक बनकर उभरेगी।
जैव अर्थव्यवस्था की परिभाषा की विशाल विविधता है। जैव अर्थव्यवस्था में अर्थव्यवस्था के वे हिस्से शामिल हैं जो भूमि और समुद्र से अक्षय जैविक संसाधनों का उपयोग करते हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, जैव अर्थव्यवस्था को जैविक संसाधनों के उत्पादन, उपयोग और संरक्षण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें संबंधित ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी व नवाचार, सूचना, उत्पाद, प्रक्रियाएँ प्रदान करना शामिल है ताकि स्थाई अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के उद्देश्य से सभी आर्थिक क्षेत्रों को जानकारी, उत्पाद, प्रक्रियाओं और सेवाएँ प्रदान की जा सकें।
भारत में बायो टेक्नोलाजी उद्योग पांच बड़े स्तंभों पर आधारित है। जिसमें बायो एनर्जी, बायो एग्री, बायो फार्मा, बायो इंडस्टि्रयल और सर्विस सेवाएं हैं। इसमें बायो आईटी और शोध सेवाएं भी शामिल हैं। जिसके माध्यम से भारत सरकार अर्थव्यवस्था के चुनौतियों से निपटने के साथ - साथ सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास कर रही है। इसके लिए सरकार प्रयास भी कर रही है। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए एक विशेष बायोटेक इग्निशन ग्रांट काल भी शुरू किया था। बायो इकोनॉमी से संबद्ध स्टार्टअप के लिए 50 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की थी।
पिछले कुछ दशकों में मानव गतिविधियों ने वैश्विक जलवायु को संशोधित किया है जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। इसके बदले में पृथ्वी के औसत तापमान और जलवायु परिवर्तन में वृद्धि हुई है। खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, प्रवासी प्रवाह, जैव विविधता हानि, और समुद्र के बढ़ते स्तर पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, अन्य पहलुओं के साथ, उत्पादकता और धन सृजन में गिरावट का कारण बनेगा, विशेष रूप से कम विकसित देशों में। जैव अर्थव्यवस्था जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाएगी।
हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बिराक) ने भारत की जैव अर्थव्यवस्था रिपोर्ट, 2022 जारी की है। भारत की जैव-अर्थव्यवस्था के वर्ष 2025 तक 150 अरब अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की संभावना है। वर्ष 2021 में देश की जैव अर्थव्यवस्था 80 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है, जो कि वर्ष 2020 के 2 अरब अमेरिकी डॉलर से 14.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्शा रही है। वर्ष 2021 में हर दिन औसतन कम-से-कम तीन बायोटेक स्टार्टअप शामिल किये गए हैं और उद्योग ने अनुसंधान एवं विकास खर्च में 1 अरब अमेरिकी डॉलर को पार कर लिया।
भारत के पास अमेरिका के बाहर अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (यूएसएफडीए) द्वारा अनुमोदित विनिर्माण संयंत्रों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है। वर्ष 2021 में भारत में हर दिन औसतन कम से कम तीन स्टार्टअप के हिसाब से कुल 1,128 बायोटेक स्टार्टअप शुरू हुए। इसमें निवेश की गई राशि लगभग एक अरब डालर पार कर गई है। देश में बायोटेक स्टार्टअप्स की संख्या पिछले 10 वर्ष में 50 से बढ़कर 5,300 से अधिक हो गई है। वर्ष 2025 तक यह दोगुना बढ़कर 10,000 तक पहुंचने की उम्मीद है।
यह सतत विकास के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होगी। वैश्विक जनसंख्या वृद्धि और कई संसाधनों की अधिक खपत से पर्यावरणीय दबाव और जलवायु परिवर्तन बढ़ रहा है। जैव अर्थव्यवस्था इन चुनौतियों से निपटने में सहायक साबित होगी। इसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और अधिक टिकाऊ प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को बढ़ावा देना और साथ ही गैर-नवीकरणीय संसाधनों, जैसे जीवाश्म प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों पर निर्भरता को कम करना है। कुछ हद तक जैव-अर्थव्यवस्था भी अर्थव्यवस्था को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद करती है और जलवायु परिवर्तन को कम करने और अनुकूल बनाने में सहायता करती है।
बायोमास अक्षय प्रकृति का संसाधन है लेकिन यह अभी भी सीमित संसाधन है। विश्व स्तर पर विशाल संसाधन हैं, लेकिन पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक पहलू इसके उपयोग को सीमित कर रहे हैं। हालांकि, बायोमास ग्राहक आपूर्ति, ऊर्जा, भोजन और फ़ीड के क्षेत्र में कम कार्बन समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका और उत्पादों के स्रोत की भूमिका निभा सकता है। व्यवहार में, कई प्रतिस्पर्धी उपयोग हैं। जैव आधारित अर्थव्यवस्था पहली पीढ़ी के बायोमास (फसल), दूसरी पीढ़ी के बायोमास (फसल शरण), और तीसरी पीढ़ी के बायोमास (समुद्री शैवाल, शैवाल) का उपयोग करती है।
जैव-आधारित उत्पादों को जीवाश्म ईंधन और गैर-नवीकरणीय संसाधनों पर निर्भरता को कम करने के लिए विकसित किया जाता है। इसे प्राप्त करने के लिए, नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों को जैव-आधारित उत्पादों, सामग्रियों और ईंधनों में स्थायी रूप से बदलने के लिए नई जैव-रिफाइनिंग प्रौद्योगिकियों को विकसित करना महत्वपूर्ण होता है, उदाहरण के लिए जैव प्लास्टिक को देखा जा सकता है। बायो इकोनॉमी को सामाजिक चुनौतियों के हल के तौर पर भी देखा जा रहा है। जैसे- बायोमास या नवीकरणीय संसाधनों का ऊर्जा उत्पादन में उपयोग किया जा रहा है। आज बायो फर्टिलाइजर, हरित रसायनों और सामग्री का उपयोग कृषि में किया जा रहा है। कुछ दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत को बायोटेक के क्षेत्र में अवसरों की भूमि माना जा रहा है, तो उसके पांच बड़े कारण हैं। पहला- डायवर्स पापुलेशन, डायवर्स क्लाइमेट जोन्स, दूसरा- भारत का टैलेंटेड ह्यूमन कैपिटल पूल, तीसरा- भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए बढ़ रहे प्रयास। चौथा- भारत में लगातार बढ़ रही बायो-प्रोडक्ट्स की डिमांड और पांचवां- भारत के बायोटेक सेक्टर यानि सफलताओं का ट्रेक रिकॉर्ड। भारत में भविष्य सुनहरा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS