अखिलेश आर्येन्दु का लेख : बढ़ता असंतुलन चिंता का विषय

अखिलेश आर्येन्दु का लेख :  बढ़ता असंतुलन चिंता का विषय
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विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत सहित दुनिया में असमानता तेजी से बढ़ रही है। वर्ल्ड इनक्वेलिटी लैब द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक उदारीकरण और मुक्त बाजार की वजह से आय और सम्पत्ति दोनों में व्यापक असमानता है। शोधकर्ताओं के अनुसार आज दुनिया की हालत कमोवेश 20वीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी साम्राज्यवाद के चरम के वक्त जैसी है। प्रख्यात अर्थशास्त्री लुकास चांसल का मानना है कि गैरबराबरी की हालत तकरीबन दो सौ साल पहले वाली है। 1820 और 2020 के दौरान शीर्ष दस प्रतिशत लोग ही आय का 50-60 प्रतिशत हिस्सा अर्जित करते थे जबकि निम्न आय वाले 50 प्रतिशत लोग सिर्फ 5 से 15 प्रतिशत अर्जित करते थे।

अखिलेश आर्येन्दु

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2020 में कोरोना महामारी के दौरान गरीबी स्तर में कोई वृृृद्धि नहीं हुई। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2019 में सबसे कम क्रय-शक्ति वाले लोगों का प्रतिशत 1 फीसदी से भी नीचे रहा। वहीं पर प्रति व्यक्ति खरीदारी क्षमता की समानता यानी पीपीपी 1.9 डाॅलर प्रति व्यक्ति रोजाना आंकी गई है। गौरतलब है 2020 के दौरान भी यह रफ्तार उसी स्तर पर बनी रही। केंद्र सरकार की गरीब कल्याण योजना जिसकी शुरुआत 2016 में की गई थी का फायदा गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले 80 करोड़ लोगों को अन्न मुहैया कराने के लिए की गई थी को मिला, लेकिन दूसरी तरफ बेरोजागारी तेजी के साथ बढ़ी। निम्न आय वर्ग के दायरे में आने वाले करोड़ों लोगों की हालत पिछले दो सालों में ज्यादा खराब हुई।

विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत सहित दुनिया में असमानता तेजी से बढ़ रही है। वर्ल्ड इनक्वेलिटी लैब द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक उदारीकरण और मुक्त बाजार की वजह से आय और सम्पत्ति दोनों में व्यापक असमानता रही है। शोधकर्ताओं के अनुसार आज दुनिया की हालत कमोवेश 20वीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी साम्राज्यवाद के चरम के वक्त जैसी है। प्रख्यात अर्थशास्त्री लुकास चांसल का मानना है कि गैरबराबरी की हालत तकरीबन दो सौ साल पहले वाली है। 1820 और 2020 के दौरान शीर्ष दस प्रतिशत लोग ही आय का 50-60 प्रतिशत हिस्सा अर्जित करते थे जबकि निम्न आय वाले 50 प्रतिशत लोग सिर्फ 5 से 15 प्रतिशत अर्जित करते थे। गैरबराबरी लगातार बढ़ने के कारण आर्थिक व सामाजिक संतुलन गड़बड़ाता गया। 'क्रेडिट सुइस ग्रूप एजी' के मुताबिक देश की आधी आबादी के पास देश की महज 2.1 फीसदी संपत्ति है। आंकड़े के मुताबिक 2010 में देश के एक फीसदी लोगों की संपत्ति 40 फीसदी थी जो 2016 में बढ़कर 58.4 फीसदी हो गई। इसी तरह 2010 में 10 फीसदी लोगों के पास देष की 68.8 फीसदी संपत्ति थी, लेकिन 2016 में बढ़कर 80.7 फीसदी संपत्ति पर उनका कब्जा हो गया। सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति की हालत को संवारने की जो कवायदें केंद्र व राज्य सरकारों के जरिए की गईं, वे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। आंकड़े बोलते हैं कि भारत के महज एक प्रतिशत लोगों के पास ही सबसे अधिक संपत्ति है।

जिस कंपनी ने देश की आर्थिक रिपोर्ट जारी की है वह न तो किसी राजनीतिक दल से जुड़ी है और न तो किसी ऐसी विचारधारा से कि उसे वामपंथ या दक्षिणपंथ होने का समर्थक कहा जाए। भारत में दुनिया के करोड़पतियों में से 2 प्रतिशत करोड़पति रहते हैं और 5 प्रतिशत अरबपति रहते हैं। इसी तरह मुंबई में सबसे अधिक 1, 340 धनपति रहते हैं। नाइट फैंट वेल्थ की रपट के मुताबिक यदि यही रफ्तार जारी रही तो महज दो वर्ष में दस हजार से अधिक नए धनपति इस कतार में जुड़ जाएंगे। जाहिर है जैसे-जैसे देश में गैर बराबरी बढ़ रही है वैसे-वैसे गरीबों और अमीरों की तादाद बढ़ती जा रही है। केंद्र सरकार का कहना है धनपतियों की तादाद बढ़ने से आयकर के संग्रहण में वृद्धि हुई है। इससे विकास योजनाओं को कार्यान्वित करने में सहुलियत होती है। आने वाले दस साल में भारत में अति धनाढ्यों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक हो सकती है। इसी तरह भारत में गरीबों, बीमारों और असहायों की तादाद सबसे ज्यादा होगी। अर्थषास्त्रियों के मुताबिक गैरबराबरी के बढ़ते जाने से आर्थिक और सामाजिक असंतुलन बढ़ेगा, जिससे समस्याएं बढ़ेंगी।

मेट्रो शहरों के निर्माण की जो योजनाएं केंद्र सरकार लागू कर रही है उससे शहरों में प्राकृतिक संसाधनों की खपत तेजी से बढ़ेगी। इससे सबको समुचित शुद्ध पानी, हवा, सस्ता खाद्यान्न, सुरक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की किल्लत बढ़ेगी। इस पर केंद्र और राज्य सरकारों को ध्यान देने की जरूरत है। गौरतलब है देश में शहरीकरण तेज रफ्तार से बढ़ने के आसार बढ़ गए है। भारत के नए मेट्रो शहरों के निर्माण का जो खाका केंद्र सरकार ने तैयार किया है उससे गांवों से पलायन बढ़ने और गैरबराबरी बढ़ेगी और सामाजिक समरता, समुचित शिक्षा व्यवस्था चरमराने के हालात बन रहे हैं। जिस तरह शिक्षा, स्वास्थ्य से जुड़े संसाधन महंगे हो रहे हैं, उससे तमाम तरह की समस्याएं पैदा होने लगी हैं। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झाारखंड, बिहार जैसे प्रदेशों में गरीबों के हालात खराब ही बने हुए हैं। कोरोनाकाल में मुफ्त राशन और सिलेंडर से कुछ राहत जरूर मिली, लेकिन यह दूरगामी योजना नहीं है। गौरतलब है कांग्रेस पूंजीवादी व्यवस्था के जरिए देश के विकास की योजनाएं बनाती रही है।

गौरतलब है कांग्रेस ने अपने 60 साल के शासनकाल में गैरबराबरी बढ़ाने वाले कार्य किए, जिससे गांवों से श्ाहर की ओर पलायन हुआ और नए शहरों का निर्माण हुआ। इसका उदाहरण दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, बंगलौर और उसके उपनगर की तरह ही कोलकाता, हैदराबाद और उसके उपनगर जैसे अनेक नए नगर या शहर अस्तित्व में आ गए। इतना ही नहीं, इन शहरों में ऐसे अनेक धनपतियों का दबदबा देखने को मिला, जिसका नाम तक लोग नहीं जानते थे। कुछ ही सालों में अनेक नए धनपतियों का उदय हुआ और देखते ही देखते भारत के सौ प्रमुख धनपतियों में इनका नाम लिया जाने लगा, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों ने कभी यह समझने की कोशिश नहीं की कि दो-चार वर्षों में इनती बड़ी संपत्ति इनके पास कहां से इकट्ठा हो गई? अब जब कि नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार पर पूंजीपतियों को लाभ देने की बात कही जा रही है ऐसे में क्या केंद्र नए धनपतियों की संपत्ति के स्रोतों की पड़ताल करवाने के लिए कोई कड़ा कदम उठाएगा?

भारत में धनपतियों की नई कतार चौंकाने वाली नहीं है, क्योंकि यह नई कतार उसी में शामिल है जिस कतार में भारत के पुराने धनपति खड़े दिखाई देते हैं। ये सभी धनपति उन हरों में अपना मायाजाल फैलाए हुए हैं जहां उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से उन्हें हर तरह का मुफ्त व्यापार करने के लिए सुरक्षित गलियारा देने का यकीन दिलाया जा रहा है, इसलिए नए बन रहे मेट्रो शहरों में रोजगार पाने के नाम पर गांवों से पलायन अधिक तेजी के साथ बढ़ रहा है। अच्छा तो यह होता कि, केंद्र और राज्य सरकारें मेट्रो शहर बसाने की जगह मेट्रो गांवों के निर्माण की योजना बनाती और गांवों से शहरों की ओर बढ़ रहे पलायन पर रोक लगाती। गौरतलब है उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पहली बार 'मेट्रो गांव' बनाने की बात कही है, लेकिन केशव का मेट्रो गांव का माॅडल कैसा होगा, यह आने वाले वक्त में पता चलेगा। यदि मेट्रो गांव के निर्माण की बात केंद्र सरकार मुकम्मल योजना के साथ लाए तो ऐसा लगता है कि यह भारत की बढ़ती गैरबराबरी, गरीबी, अशिक्षा, पलायन और बेरोजगारी खत्म करने का ऐतिहासिक कार्य होता। इससे गांवों से शहरों के ओर बढ़ता पलायन रुकेगा और गांव में ही लोगों को सालभर रोजगार की व्यवस्था हो जाएगी।

( ये लेखक के अपने विचार हैं। )

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