रवि शंकर का लेख : बढ़ती जनसंख्या वैश्विक चुनौती

संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट मुताबिक 15 नवंबर को दुनिया की जनसंख्या 8 अरब हो गई। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को मानें तो साल 2030 तक ये आबादी साढ़े 850 करोड़, 2050 तक 970 करोड़ और साल 2100 तक ये आबादी 10.4 अरब होने का अनुमान व्यक्त किए गए हैं। वैश्विक आबादी बढ़ने के पीछे प्रजनन दर के अलावा और भी कई फैक्टर हैं। खैर, भारत की जनसंख्या अभी 1.04 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ रही है। देश में परिवार नियोजन के सघन प्रयासों से प्रजनन दर में गिरावट के बावजूद महज भारत अगले साल चीन को पछाड़ कर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश हो जाएगा। अभी चीन की आबादी 1.44 बिलियन और भारत की आबादी 1.39 बिलियन है। इसमें कोई दोराय नहीं कि बढ़ती आबादी किस तरह से नई-नई चुनौतियां खड़ी कर रही है।
आज़ादी समय भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो अब तक चार गुना बढ़ गई है। परिवार नियोजन के कमजोर तरीकों, अशिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के अभाव, अंधविश्वास और विकासात्मक असंतुलन के चलते आबादी तेजी से बढ़ी है। फिलहाल भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 18 फीसदी है। भूभाग के लिहाज के हमारे पास 2.5 फीसदी जमीन है। 4 फीसदी जल संसाधन है, इसलिए जनसंख्या का संसाधनों पर दबाव बढ़ने से देश में आर्थिक, सामाजिक समस्याओं पर प्रभाव और बढ़ेगा। चाहे देश की विकास दर बढ़ती है या संसाधन, देश में हासिल सुविधाओं के न्यायपूर्ण वितरण की ठोस व्यवस्था न होने पर आबादी के एक बड़े हिस्से को अनिवार्य जरूरतों को पूरा करने में चुनौतियां आएंगी। एक अनुमान के अनुसार देश में कामकाजी लोगों की संख्या अगले दो दशक में 30 फीसदी तक बढ़ जाएगी। विश्व में बीमारियों का जितना बोझ है उसका 20 फीसदी बोझ अकेले भारत पर है।
वर्तमान में जिस तेज दर से विश्व की आबादी बढ़ रही है, उसके हिसाब से विश्व की आबादी में प्रत्येक साल तकरीबन आठ करोड़ लोगों की वृद्धि हो रही है। इतना ही नहीं, विश्व समुदाय के समक्ष माइग्रेशन भी एक समस्या के रूप में उभर रहा है, क्योंकि बढ़ती आबादी के चलते लोग बुनियादी सुख-सुविधा के लिए दूसरे देशों में पनाह लेने को मजबूर हैं। चिंता की बात यह है कि भारत के कई राज्य विकास में भले ही पीछे हों, परन्तु उनकी जनसंख्या विश्व के कई देशों की जनसंख्या से अधिक है। उदाहरणार्थ तमिलनाडु की जनसंख्या फ्रांस से अधिक है तो वहीं उड़ीसा अर्जेंटीना से आगे है। मध्यप्रदेश की जनसंख्या थाईलैंड से ज्यादा है तो महाराष्ट्र मैक्सिको को टक्कर दे रहा है। उत्तर प्रदेश ने ब्राजील को पीछे छोड़ा है तो राजस्थान ने इटली को पछाड़ा है। गुजरात ने साउथ अफ्रीका को मात दे दी तो पश्चिम बंगाल वियतनाम से आगे बढ़ गया। यही नहीं हमारे छोटे-छोटे राज्यों जैसे झारखंड, उत्तराखंड, केरल, ने भी कई देशों जैसे उगांडा, आॅस्िट्रया, कनाडा, उज्बेकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है। अपनी इस उपलब्धि के साथ हम यह कह सकते हैं कि भारत में जनसंख्या के आधार पर विश्व के कई देश बसते हैं। जनसंख्या वृद्धि के दो मूल कारण अशिक्षा एवं गरीबी हैं। लगातार बढ़ती आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो पैदा हो ही रही है, कई तरह की अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं।
भारत के समक्ष तेजी से बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस ने 'प्रिंसिपल ऑफ पॉपुलेशन' में जनसंख्या वृद्धि और इसके प्रभावों की व्याख्या की है। माल्थस के अनुसार, 'जनसंख्या दोगुनी रफ्तार(1, 2, 4) से बढ़ती है,जबकि संसाधनों में सामान्य गति (1, 2, 3) से ही वृद्धि होती है। परिणामतः प्रत्येक 25 वर्ष बाद जनसंख्या दोगुनी हो जाती है। भले पिछले दो दशकों में भारत ने काफी तरक्की की है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि से बेरोजगारी स्वास्थ्य, परिवार, गरीबी, भुखमरी और पोषण से संबंधित कई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। हालांकि इन समस्याओं का विश्व के प्रायः सभी देशों को सामना करना पड़ रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत में अभी भी जागरूकता और शिक्षा की कमी है। अभी हाल में ही हमें दुनिया में बढ़ते खाद्यान्न संकट के लिए एशिया जिम्मेदार ठहराया गया था। खाद्यान्न संकट तेजी से बढ़ रहा है। अन्न के साथ जल संकट बढ़ रहा है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने प्रदूषण की दर को भी धधका दिया है। आने वाली पीढ़ियों को सुखी और समृद्ध बनाने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण जरूरी है।
जनसंख्या वृद्धि के कारणों में अन्य प्रमुख कारण है कम उम्र में विवाह होना। कानून बनने के बाद बाल विवाहों में तो कुछ कमी अवश्य आई है, परन्तु अभी तक पर्याप्त सुधार नहीं हुआ है। भारतीय समाज में लड़के की चाहत भी जनसंख्या वृद्धि के लिए काफी कुछ जिम्मेदार है। यदि हमें देश को जनसंख्या वृद्धि के विस्फोट से बचाना है तो हमें ऐसी योजनाएं बनानी पड़ेंगी जो देश के आम लोगों को आर्थिक रूप से सम्पन्न बना सके। साथ ही साक्षरता के लिए भी प्रयास करना होगा। परिवार कल्याण कार्यक्रम में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। जनसंख्या नियंत्रण को लेकर देश में एक मत का निर्माण होना चाहिए, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बढ़ती जनसंख्या को धार्मिक रंग देने की कोशिश भी करते हैं। स्वतंत्र भारत में दुनिया का सबसे पहला जनसंख्या नियंत्रण हेतु राजकीय अभियान वर्ष 1951 में आरंभ किया गया, किंतु सफलता नहीं मिल सकी। वर्ष 1975 के आपातकाल के दौरान बड़े स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास किए गए। इन प्रयासों में कई अमानवीय तरीकों का उपयोग किया गया। इससे न सिर्फ यह कार्यक्रम असफल हुआ बल्कि लोगों में नियोजन और उसकी पद्धति को लेकर भय का माहौल उत्पन्न हो गया। भारत में कानून का सहारा लेने के बजाय जागरूकता अभियान, शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर व गरीबी समाप्त करने जैसे उपाय करके जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास करने चाहिए। परिवार नियोजन से जुड़े परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
निश्चित रूप से भारत में जनसंख्या वृद्धि को रोकना एक कठिन चुनौती है, जिसे हमें स्वीकारना होगा और इसके लिए उत्तरदायी कारणों का समूल नाश करना होगा। साथ ही, देश के प्रत्येक नागरिक को निजी स्वार्थ त्याग कर देशहित में परिवार का स्वरूप निर्धारित करना होगा और यथा सामर्थ्य समाज को जागरूक करने का प्रयास करना होगा। यदि सभी नागरिक ईमानदारी पूर्वक अपना सहयोग दें तो निश्चय ही देश की बढ़ती आबादी को नियंत्रित किया जा सकता है। तभी आबादी से उत्पन्न तमाम संकट दूर होंगे और देश खुशहाल हो सकेगा।
(लेखक रवि शंकर वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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