डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख : उच्च विकास दर की उम्मीद कायम

डॉ. जयंतीलाल भंडारी
31 मई को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर 8.7 फीसदी रही, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में विकास दर में 6.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन गई है। खास बात यह है कि राजकोषीय घाटा अनुमान से भी कम जीडीपी का 6.7 फीसदी ही रहा है। गौरतलब है कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद के इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि जी-20 देशों में भारत सबसे तेज गति से आर्थिक विकास करने वाला देश है और देश में अब तक का सबसे ज्यादा पूंजी निवेश हुआ है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस समय यूक्रेन संकट के कारण जब अमेरिका और जापान सहित दुनिया की विभिन्न अर्थव्यवस्थाएं मंदी और गिरावट का सामना कर रही हैं, तब संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि चालू वित्त वर्ष 2022-23 में 6.4 फीसदी रहने का अनुमान है और भारत सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि पिछले वित्त वर्ष की विकास दर 8.7 फीसदी पहुंचाने में देश से निर्यात में लगातार वृद्धि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की ऊंचाई, निजी उपयोग के साथ सरकारी पूंजीगत खर्च में इजाफा, कृषि क्षेत्र की मजबूत वृद्धि, खाद्यान्न के पर्याप्त भंडार की अहम भूमिका रही है। वर्ष 2021-22 में उत्पाद निर्यात लक्ष्य से भी अधिक 419 अरब डॉलर से अधिक रहा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में रिकॉर्ड तोड़ बढ़ोतरी हुई है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के द्वारा 19 मई को जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत ने 2021-22 में 83.57 अरब डॉलर का रिकॉर्ड एफडीआई प्राप्त किया है। पिछले वर्ष 2020-21 में देश में 81.97 अरब डॉलर का एफडीआई हुआ था। इस समय वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच भी तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की अहमियत बढ़ गई है। केंद्र सरकार कृषि के विकास और किसानों को सामर्थ्यवान बनाने के लिए पिछले 8 वर्षों में अभूतपूर्व कदम उठाते हुए दिखाई दी है। 31 मई को प्रधानमंत्री मोदी ने शिमला में आयोजित गरीब कल्याण सम्मेलन कार्यक्रम के दौरान 10 करोड़ से अधिक लाभार्थी किसान परिवारों को 21,000 करोड़ रुपये से अधिक की सम्मान निधि राशि उनके बैंक खातों में ट्रांसफर कर की। इस किस्त के साथ ही केंद्र सरकार अब तक सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की रकम ट्रांसफर कर चुकी है। हाल ही में कृषि मंत्रालय के द्वारा प्रस्तुत चालू फसल वर्ष 2021-22 के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, फसल वर्ष 2021-22 में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 31.45 करोड़ टन होगा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है। यद्यपि इस वर्ष गेहूं का उत्पादन 10.64 करोड़ टन होगा, जो कि पिछले साल के मुकाबले 31 लाख टन कम है, लेकिन चावल, मोटे अनाज, दलहन और तिलहन का रिकॉर्ड उत्पादन चमकते हुए दिखाई दे रहा है। 2021-22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन 12.97 करोड़ टन रिकॉर्ड अनुमानित है। मोटे अनाज वाली फसलों का उत्पादन 5.07 करोड़ टन और मक्के का उत्पादन रिकार्ड 3.3 करोड़ टन रहेगा। दलहनी की पैदावार 2.78 करोड़ टन होने का अनुमान है। दालों के उत्पादन का लक्ष्य 2.5 करोड़ टन रखा था। तिलहन की रिकार्ड 3.85 करोड़ टन पैदावार होगी।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारत के करोड़ों लोगों को महंगाई के नए चक्रव्यूह से बचाने के मद्देनजर अपनाई गई कृषि विकास एवं खाद्यान्न उत्पादन के अभूतपूर्व प्रोत्साहनों की दूरदर्शी रणनीतियाें में उनके सफल क्रियान्वयन की अहम भूमिका है। कृषि मंत्री तोमर के मुताबिक किसान कल्याण अनेक पहल के रूप में योजनाओं एवं कार्यक्रमों के सफल क्रियान्यवन, सरकार के द्वारा पिछले आठ वर्षों में कृषि बजट में करीब छह गुना वृद्धि, कृषि स्टार्टअप, कृषि क्षेत्र में ड्रोन का प्रयोग, कृषि शोध और कृषि के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से देश में कृषि एवं किसानों की दशा और दिशा दोनों बदल गई है। ऐसे में देश में खाद्यान्नों की प्रचुरता निर्मित हुई है। देश में गेहूं की भी कोई कमी नहीं है, लेकिन केंद्र ने इस खाद्यान्न की अनियंत्रित विदेशी बिक्री पर अंकुश के लिए गेहूं पर निर्यात प्रतिबंध लगाया है। बाजार में संतुलन बनाए रखना सरकार का फर्ज है। यह बात महत्वपूर्ण है कि पड़ोसी, गरीब और अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार के द्वारा गेहूं का निर्यात उपयुक्त रूप से किया जाता रहेगा। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि 24 मई को अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने क्वाड के दूसरे शिखर सम्मेलन के बाद जिस नई ताकत के उदय का शंखनाद किया है तथा अमेरिका की अगुवाई में भारत सहित 13 देशों के जिस हिंद-प्रशांत आर्थिक फ्रंट (आईपीईएफ) का गठन किया गया है, वह भारत के उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे भारत के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने को बड़ा आधार मिलेगा। नि:संदेह सामर्थ्यवान भारत से दुनिया की उम्मीदें लगातार बढ़ती जा रही हैं। देश और दुनिया के करोड़ों लोगों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए अभी देश को कई बातों पर ध्यान देना होगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाना होगा। देश में खाद्यान्न उत्पादन और खाद्यान्न निर्यात और अधिक बढ़ाने के रणनीतिक प्रयत्न किए जाने होंगे। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करनी होगी। ऐसे में नया सामर्थ्यवान देश बनने की डगर पर आगे बढ़ते हुए भारत के बारे में 19 मई को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के द्वारा प्रस्तुत की गई वह रिपोर्ट साकार हो सकेगी, जिसमें कहा गया है कि भारत वर्ष 2026-27 तक पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
हम उम्मीद करें कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 में अधिक निर्यात, मजबूत घरेलू मांग, विनिर्माण और सर्विस सेक्टर के अच्छे प्रदर्शन, ज्यादा कृषि उत्पादन, अच्छे मानसून और ग्रामीण भारत के प्रति सरकार की समर्थनकारी नीति से देश की विकास दर दुनिया की सर्वाधिक विकास दर बनी रहेगी। उम्मीद करें कि चालू वित्त वर्ष में सरकार अर्थव्यवस्था में निजी निवेश की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कुछ खास कदम उठाएगी तथा महंगाई की चुनौती से पार पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेगी। देश के उद्योग कारोबार, कृषि और सर्विस सेक्टर की मजबूती वाली अर्थव्यवस्था के बल पर सामर्थ्यवान भारत देश के करोड़ों लोगों को आर्थिक-सामाजिक खुशियां देने के साथ दुनिया के जरूरतमंद देशों की उम्मीदों को पूरा करते हुए भी दिखाई देगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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