रवि शंकर का लेख : युद्ध बढ़ा तो किसान को नुकसान

रवि शंकर का लेख : युद्ध बढ़ा तो किसान को नुकसान
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यूएन कॉमट्रेड के आंकड़ों के अनुसार, साल 2020 में भारत, यूक्रेन के लिए 15वां सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट और दवा उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा इंपोर्ट मार्केट था। वहीं दूसरी ओर भारत के लिए यूक्रेन 23वां सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है और 30वां सबसे बड़ा इंपोर्ट मार्केट है। साफ है, रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध का असर सिर्फ रूस और यूक्रेन पर ही नहीं बल्कि भारत समेत दुनिया के तमाम देशों पर पड़ेगा। दोनो देश दुनिया की कुल सकल घरेलू उत्पाद में 2 फीसदी का योगदान देते हैं। चूंकि रूस दुनियाभर में प्राकृतिक गैस और खनिज का अहम आपूर्तिकर्ता है, ऐसे में इनके दामों में होने वाली वृद्धि से दुनियाभर में आर्थिक नुकसान होना निश्चित है।

रवि शंकर

रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुआ युद्ध अब भारत के लिए बड़ी चिंता बनता जा रहा है। दरअसल,दोनों देशों के बीच चल रहे भीषण युद्ध के बीच भारत की अर्थव्यवस्था, कृषि और खाद्य बाजार पर भी इसका व्यापक असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है। यूक्रेन संकट का सीधा असर भारत की आम जनता पर भी पड़ेगा। पेट्रोल-डीजल, गैस, खाद्य तेल और गेहूं जैसी कमोडिटीज महंगी होंगी। भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार रूस-यूक्रेन संघर्ष के चलते तेल कीमतों में पिछले एक महीने में 21 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। यह 2014 के स्तर पर हैं। पांच विधानसभा चुनावों को देखते हुए नवंबर, 2021 से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को अपरिवर्तित रखा गया है, लेकिन चुनावों के बाद पेट्रोल और डीजल कीमतों में तेजी दिखेगी। तेल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई पर भी असर आएगा जिसके चलते खाने-पीने की चीजों जैसे सब्जियों-फल, दालें, तेल आदि सभी के महंगे होने के आसार हैं। अगर महंगाई बढ़ी और यह रिजर्व बैंक के अनुमानित आंकड़ों से ऊपर चली जाएगी तो देश का केंद्रीय बैंक दरें बढ़ाने पर मजबूर हो जाएगा। एलपीजी कीमतों में भी बड़ी वृद्धि के आसार हैं। प्राकृतिक गैस महंगी होने से फर्टिलाइजर, बिजली और ऐसे सभी रसायनों के दाम बढ़ेंगे। मालूम हो, पूरी दुनिया में रूस अकेले 12 प्रतिशत के करीब कच्चे तेल का उत्पादन करता है। भारत रूस से कच्चा तेल, गैस, सैन्य उपकरण खरीदता है। पिछले साल दोनों देशों के बीच करीब 8 अरब डॉलर से अधिक का कारोबार हुआ था।

रूस ही नहीं भारत और यूक्रेन के बीच भी अच्छे कारोबारी रिश्ते हैं। एशिया प्रशांत में यूक्रेन सबसे अधिक भारत को ही निर्यात करता है। भारत यूक्रेन से दवा, मशीन, रसायन, पॉलिमर और खाने का तेल खरीदता है। ऐसे में रूस और यूक्रेन के बीच जो संकट खड़ा हुआ है उसका दायरा सिर्फ दो देशों के बीच सीमित नहीं बल्कि यह काफी बड़ा है, संकट को जल्द सुलझा लेने से ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी से उतरने से रोका जा सकता है, जो पहले ही कोरोना महामारी की वजह से कमजोर स्थिति में है। ऐसा नहीं है कि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी केवल भारत में ही होगी। पूरी दुनिया में ही इसका असर देखने को मिलेगा। भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी तेल इंपोर्ट करता है। इसमें से ज्यादातर इंपोर्ट सऊदी अरब और अमेरिका से होता है। इसके अलावा भारत, ईरान, इराक, ओमान, कुवैत, रूस से भी तेल लेता है। दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश अमेरिका है। यहां करीब 16-18 फीसदी तेल उत्पादन होता है। वहीं, रूस और सऊदी अरब में 12-12 फीसदी का उत्पादन होता है। 3 में से 2 बड़े देश युद्ध जैसी स्थिति में आमने-सामने होंगे तो तेल की सप्लाई पूरी दुनिया में प्रभावित होगी। यही वजह है कि तेल की कीमतें 8 साल की ऊंचाई पर हैं। यही नहीं युद्ध का असर शेयर बाजार, उद्योग-कारोबार पर दिखने लगा है। रुपये में भी गिरावट आ रही है। कई प्रमुख वैश्विक मुद्राओं की तुलना में डॉलर मजबूत हुआ है। वहीं रूस और यूक्रेन मिलकर दुनिया को करीब 25 फीसदी गेहूं का निर्यात करते हैं, जबकि दुनिया में सबसे ज्यादा रिफाइंड सूरजमुखी यूक्रेन से एक्सपोर्ट होता है। यूक्रेन के बाद रिफाइंड सप्लाई में रूस का नंबर है। यदि दोनों देशों के बीच युद्ध लंबे समय चला तो घरों में इस्तेमाल होने वाले सूरजमुखी तेल की किल्लत हो सकती है। भारत हर साल करीब 25 लाख टन सनफ्लॉवर तेल का आयात करता है। इसमें से 70 फीसदी यूक्रेन और 20 फीसदी रूस से आयात किया जाता है। कहा जा रहा है कि युद्ध की वजह से इसकी सप्लाईपर असर पड़ने के साथ ही, कृषि क्षेत्र पर दबाव बढ़ेगा। मालूम हो, रूस जौ का सबसे बड़ा उत्पादक है। वहां सालाना उत्पादन 1.8 करोड़ टन के आसपास है। यूक्रेन चौथे नंबर पर है जहां उत्पादन 95 लाख के आसपास है। जबकि भारत में जौ का उत्पादन 16-17 लाख टन के आसपास रहता है। इसके अलावा विश्वभर में मक्के की बिक्री का पांचवां हिस्सा और सूरजमुखी तेल निर्यात का करीब 70 फीसदी इन दोनों देशों द्वारा होता है।

इन आंकड़ों से जाहिर है कि रूस-यूक्रेन संकट सेन केवल भारत बल्कि दुनिया के अधिकांश देशों में खाद्य तेलों और आयात की जाने वाली अन्य खाद्य सामग्री की आपूर्ति प्रभावित होने के साथ वैश्विक बाजार में कीमतें बढ़ेंगी। भले ही इस युद्ध से भारत के रणनीतिक हित नहीं जुड़े हैं, लेकिन इसका भारत पर आर्थिक असर तो होगा ही। रूस पर प्रतिबंधों से भारत से निर्यात होने वाली चाय और अन्य नियमित उत्पादों पर भी असर पड़ सकता है। आयात रुका तो गेहूं-मकई और यूरिया के दाम बढ़ सकते हैं। वहीं यूक्रेन सूरजमुखी के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। एक अनुमान के मुताबिक भारत के कुल सूरजमुखी तेल में यूक्रेन की हिस्सेदारी 60 से 70 फीसदी है। जाहिर है कि संकट बढ़ा तो इसकी कीमतों में और आग लगनी संभव है। जापान की रिसर्च कंपनी नोमुरा नोमुरा की रिपोर्ट के अनुसार, तेल की कीमतों में प्रति 10 फीसदी की उछाल के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में लगभग 0.20 फीसदी की गिरावट आएगी। लेकिन थोक महंगाई दर में 1.20 फीसदी व खुदरा महंगाई दर में 0.40 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके अलावा रूस भारत को खाद देता है और युद्ध के हालात के बीच इसके आयात में भी रुकावट आ सकती है इससे हालात और खराब होंगे, इस समस्या का सीधा असर किसानों पर पड़ेगा।

यूएन कॉमट्रेड के आंकड़ों के अनुसार, साल 2020 में भारत, यूक्रेन के लिए 15वां सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट और दवा उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा इंपोर्ट मार्केट था। वहीं दूसरी ओर भारत के लिए यूक्रेन 23वां सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है और 30वां सबसे बड़ा इंपोर्ट मार्केट है। साफ है, रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध का असर सिर्फ रूस और यूक्रेन पर ही नहीं बल्कि भारत समेत दुनिया के तमाम देशों पर पड़ेगा। चूंकि यूक्रेन और रूस दोनों ही आर्थिक महाशक्ति में नहीं गिने जाते हैं, इसलिए इस नुकसान को कम आंका जा रहा रहा है, लेकिन दोनो देश मिलकर दुनिया की कुल सकल घरेलू उत्पाद में 2 फीसदी का योगदान देते हैं। चूंकि रूस दुनियाभर में प्राकृतिक गैस और खनिज का अहम आपूर्तिकर्ता है, ऐसे में इनके दामों में होने वाली वृद्धि से दुनियाभर में आर्थिक नुकसान होना निश्चित है। हालांकि, सरकारखाद से लेकर खाद्य तेल पर पड़ने वाले असर का मूल्यांकन कर रही है। इसको लेकर विभिन्न मंत्रालयों के साथ बैठक कर सरकार सार्थक विकल्प तलाश कर रही है। यह अच्छा प्रयास है, लेकिन बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि युद्ध का मौजूदा माहौल कौन-सा रुख लेता है। युद्ध यदि लंबा खिंचता है तो भारत को कृषि प्रभावित हो सकती है और युद्ध के बाद भी यह स्थिति रहेगी। इससे निपटने के लिए ठोस और सार्थक कवच बनाने की आवश्यकता है। दूसरी ओर युद्ध को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास होना चाहिए। यद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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