सुभाष चंद्र का लेख : विश्व में आशा की किरण भारत

सुभाष चंद्र
पिछली सदी से ही जलवायु परिवर्तन को लेकर विशेषज्ञ अपनी चेतावनी जारी कर रही हैं। पर्यावरण संरक्षण की बात होती रही है। बीते सालों में कोरोना महामारी ने पूरे मानव समुदाय को झकझोर कर रख दिया है। उसके बाद रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ने कई देशों की दशा और दिशा बदल दी है। 2021-22 के मानव विकास सूचकांक में भारत 191 देशों और क्षेत्रों में 132वें स्थान पर है। यह सूचकांक मानव विकास की वैश्विक गिरावट पर नजर रखता है। नब्बे प्रतिशत देशों ने 2020 या 2021 में अपने मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में गिरावट दर्ज की है, जो सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में हुई प्रगति को उलटकर रख देता है। मानव विकास सूचकांक किसी देश के स्वास्थ्य, शिक्षा और औसत आय का मापदंड है। इसमें लगातार दो वर्षों, 2020 और 2021 में गिरावट हुई है जो पांच वर्षों की प्रगति को उलट देता है।
यह वैश्विक गिरावट के अनुरूप है, जो दर्शाता है कि दुनियाभर में मानव विकास 32 वर्षों में पहली बार रुक गया है। मानव विकास सूचकांक की हालिया गिरावट का एक बड़ा कारण जीवन प्रत्याशा में वैश्विक गिरावट है, जो 2019 में 72.8 वर्ष से घटकर 2021 में 71.4 वर्ष हो गई है। पिछले दो वर्षों में दुनियाभर में अरबों लोगों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। कोविड-19 जैसी महामारी और यूक्रेन युद्ध ने लगातार सामाजिक और आर्थिक बदलाव किए हैं और विश्व पर खतरनाक असर हुआ है। यूएनडीपी की इस रिपोर्ट-अनसर्टेन टाइम्स, अनसेटल्ड लाइव्स: शेपिंग अवर फ्यूचर इन ए ट्रांसफॉर्मिंग वर्ल्ड- में कहा गया है कि अनिश्चितता बढ़ रही है और अप्रत्याशित तरीके से जीवन को अस्थिर बना रही है। यूएनडीपी के एडमिनिस्ट्रेटर अकिम स्टेनर के अनुसार, "दुनिया लगातार आने वाले संकटों से निजात पाने के लिए संघर्ष कर रही है। बढ़ते निर्वहन व्यय और ऊर्जा संकट के कारण जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी देने जैसे त्वरित सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना स्वाभाविक है, लेकिन तत्काल राहत उपायों के कारण उन दीर्घकालिक व्यवस्थागत परिवर्तनों में विलंब हो रहा है, जो हमें करने चाहिए। हम सामूहिक रूप से ये परिवर्तन करने में असफल हुए हैं। अनिश्चितता के बीच झूलती दुनिया में हमें परस्पर संबंधित, आम चुनौतियों से निपटने के लिए विश्व स्तर पर एकजुटता की एक नई भावना पैदा करनी होगी।" भारत का एचडीआई मान 0.633 है और इससे वह मानव विकास की मध्ययम श्रेणी में पहुंच गया है।
यूएनडीपी की 2020 की रिपोर्ट में इसका मान 0.645 था। एचडीआई में मानव विकास के 3 प्रमुख आयामों की प्रगति को मापा जाता है। लंबा और स्वस्थ जीवन, शिक्षा तक पहुंच और एक उचित जीवन स्तर। इसकी गणना 4 संकेतकों का उपयोग करके की जाती है-जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई)। वैश्विक रुझानों की ही तरह भारत के मामले में, 2019 में एचडीआई 0.645 से गिरकर 2021 में 0.633 हुई। इसका एक कारण जीवन प्रत्याशा में गिरावट है जो 69.7 वर्ष से 67.2 वर्ष हो गई है। भारत में स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 11.9 वर्ष हैं, और स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 6.7 वर्ष हैं। प्रति व्यक्ति जीएनआई 6,590 डॉलर है। 2021 में आर्थिक बहाली के बावजूद स्वास्थ्य संकट गहरा हुआ है और दो-तिहाई देशों ने जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में और भी कमी दर्ज की है। विश्व स्तर पर मानव विकास में निरंतर गिरावट हो रही है। कई देश मानव विकास की श्रेणियों में स्थिर बने हुए हैं या उनमें गिरावट दर्ज कर रहे हैं। फिलीपींस और वेनेजुएला जैसी अर्थव्यवस्थाओं में मानव विकास का स्तर उच्च रहा है, लेकिन वे मध्यम श्रेणी में फिसल गई हैं। लैटिन अमेरिका, कैरिबियन, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
दूसरी तरफ भारत का एचडीआई मान दक्षिण एशिया के औसत मानव विकास से अधिक बना हुआ है। 1990 के बाद से भारत का एचडीआई मान लगातार विश्व औसत तक पहुंच रहा है-जो मानव विकास की प्रगति की वैश्विक दर से अधिक है। यह उन नीतिगत विकल्पों का परिणाम है जो भारत ने समय़-समय पर अपनाए हैं, जिनमें स्वास्थ्य और शिक्षा में किए गए निवेश शामिल हैं। कोविड-19 महामारी ने लोगों के स्वास्थ्य और मानसिक स्थितियों को तो प्रभावित किया ही है, अर्थव्यवस्थाओं को तबाह भी किया है और लैंगिक असमानता को बढ़ाया है। विश्व के सभी देशों में लैंगिक असमानता में लगभग 6.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन बांग्लादेश और भूटान जैसी दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं ने इस प्रवृत्ति को रोका है। अनिश्चितता, असमानता और असुरक्षा ध्रुवीकरण और विश्वास की कमी पर निर्भर होते हैं। ध्रुवीकरण और अविश्वास सामाजिक संवाद की क्षमता को कम करते हैं और सामूहिक पहल को प्रभावित करते हैं। विश्व स्तर पर 30 प्रतिशत से भी कम लोग सोचते हैं कि अधिकांश लोगों पर भरोसा किया जा सकता है।
यह अब तक का सबसे कम मान है। कोविड-19 के बाद विश्व बेहतरी की तरफ नहीं बढ़ रहा। इसकी बजाय प्रत्येक क्षेत्र में विकासशील देश एक भिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दौर में प्रवेश कर रहे हैं, जिसमें विशेष रूप से सबसे कमजोर तबके के पतन का और लैंगिक असमानता का जोखिम है। रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि मौजूदा परिस्थितियों में हमेशा की तरह व्यापार नीति और कार्यक्रमगत पहल तर्कसंगत नहीं है। रिपोर्ट उन नीतियों को लागू करने की सिफारिश करती है जो 3 'आई' पर केंद्रित हों- इनवेस्टमेंट यानी निवेश-अक्षय ऊर्जा की मदद से महामारी की तैयारी। इंश्योरेंस यानी बीमा- ताकि अनिश्चित दुनिया के उतार-चढ़ावों के लिए समाज को तैयार किया जा सके। इनोवेशन यानी नवाचार- तकनीकी, आर्थिक, सांस्कृतिक नवाचार, जो भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए क्षमता निर्माण कर सकें। सुश्री शोको नोडा ने कहा, 'जो नीतियां 3 आईज़ पर केंद्रित होती हैं, वे लोगों को अनिश्चितता का सामना करने लायक बनाती हैं। भारत पहले से ही इन क्षेत्रों में काम कर रहा है। वह अक्षय ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ रहा है, सबसे कमजोर लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा दे रहा है और यूएनडीपी द्वारा समर्थित को-विन के माध्यम से दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला रहा है।' भारत स्वच्छ जल, स्वच्छता और सस्ती स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच में सुधार कर रहा है। 2020-21 की तुलना में 2021-22 में सामाजिक सेवा क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन में 9.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सतत विकास में भारत का अंतरराष्ट्रीय योगदान लगातार बढ़ रहा है। 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य और प्रतिबद्धता के साथ भारत जलवायु संबंधी पहल का भी नेतृत्व कर रहा है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर एसडीजी के कार्यान्वयन और निगरानी पर भी नजर रखे हुए है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )
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