डाॅ. एन.के. सोमानी का लेख : भूटान के ‘रुख’ पर चिंता लाजिमी

भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वाॅन्गचुक इन दिनों भारत के दौरे पर हैं। डोकलाम मामले में भूटान के बदले हुए रूख की पृष्ठभूमि के बीच भूटान नरेश का भारत आना न केवल भारत बल्कि चीन के रणनीतिक हल्कों में उत्सुकता का कारण बना हुआ है। संभवतः यह पहला अवसर है, जब भूटान जैसे छोटे राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष के दौरे को लेकर भारत के सामरिक हल्कों मेें इस तरह की गर्मजोशी देखी जा रही है। गर्मजोशी की कुछ खास वजह भी हैं।
पिछले दिनों भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग यूरोपीय देश बेल्जियम की यात्रा पर गए थे। यात्रा के दौरान उन्होंने बेल्जियम के एक अखबार को इंटरव्यू देते हुए डोकलाम के मुद्दे पर भारत को असहज कर देने वाली कुछ बातें कही थी। शेरिंग ने कहा था कि डोकलाम विवाद में भारत, चीन व भूटान बराबर के पक्षकार हैं, कोई छोटा-बड़ा नहीं है। जब भी भारत-चीन चाहेंगे भूटान बातचीत करने के लिए तैयार रहेगा। इससे पहले भूटान ने कभी भी डोकलाम मसले पर चीन को पक्षकार नहीं माना था। इसके अलावा शेरिंग ने डोकलाम में अतिक्रमण के सवाल पर चीन को क्लीन चीट देते हुए कहा कि चीन ने भूटान की सीमा में किसी तरह का कोई अतिक्रमण नहीं किया है, जबकि सेटेलाइट तस्वीरें कुछ और ही बयां कर रही हैं। भूटान की जमीन पर चीन द्वारा बसाए गए गांवों की तस्वीर सबने देखी थी। इन तस्वीरों में इस बात का खुलासा हुआ कि चीन ने डोकलाम पठार के 9 किमी पूर्व दिशा की ओर भूटान के क्षेत्र में एक गांव बसा लिया है। यह वही जगह है, जहां 2017 में भारत और चीन के सैन्य बलों के बीच झड़प हुई थी, जबकि भूटानी पीएम कह रहे हैं कि यह कथित बस्तियां भूटानी क्षेत्र में नहीं आती है।
शेरिंग का यह बयान अपने पहले के स्टैंड से बिल्कुल अलग और नया है। उनके इस बयान पर चीनी प्रभाव की झलक देखी जा सकती है। दूसरी ओर भारत का कहना है कि डोकलाम मसले पर चीन का कोई दखल नहीं होना चाहिए। साल 2019 तक भूटान भी भारत के इस स्टैंड पर उसके साथ खड़ा था। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि नेपाली पीएम ने भारत को परेशान करने वाला यह बयान क्यों दिया है? कहीं ऐसा तो नहीं कि डोकलाम के मोर्चे पर भूटान चीन की आड़ में भारत से किसी तरह की सौदेबाजी की इच्छा रखता हो। कयास तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि भूटान अपनी जमीन चीन को सौंप सकता है। पीएम शेरिंग की मंशा पर सामरिक हल्कों में भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
हालांकि, शेरिंग ने भूटान नरेश के भारत आने से पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि त्रिपक्षीय सीमा क्षेत्र डोकलाम को लेकर भूटान के रूख में कोई बदलाव नहीं आया है। भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने भी वस्तुस्थिति को साफ करते हुए कहा है कि शेरिंग के बयान से भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। भारत और भूटान के बीच अच्छा तालमेल है। उन्हें एक संवेदनशील मसले पर चीन की तरफदारी करने से बचना चाहिए। कोई भी ऐसा बयान जो डोकलाम पर चीन को बराबर का साझीदार मानता हो भारत के लिए चिंता का विषय है।
आर्थिक रूप से अल्प विकसित राष्ट्र होने के कारण भूटान की अर्थव्यवस्था कमजोर है, तथा वह मदद के लिए भारत और चीन पर ही निर्भर है। भारत उसका बड़ा मददगार रहा है। भूटान पन-बिजली का एक बड़ा उत्पादक है। वह प्रतिवर्ष भारत को करोड़ों रुपयों की बिजली बेचता है। साल 2018-23 के बीच भारत ने भूटान के विकास के लिए 4500 करोड़ की वित्तीय सहायता दी है। कोविड काल में भी भारत ने भूटान को जरूरी चिकित्सा उपकरण और टीके देकर मदद की थी। भारत की सहायता से वहां चार बड़े बिजली प्रोजेक्ट स्थापित किए गए हैं, जिनकी क्षमता 2000 मेगावाट की है। लैंडलाॅक्ड देश होने के कारण भूटान अपनी जरूरतों का 75 प्रतिशत सामान भारत से आयात करता है। उसका 95 प्रतिशत निर्यात भी भारत से ही है। इसके अलावा भूटान भारत की सुरक्षा ंिचंताओं को लेकर संधि से बंधा हुआ है। वह भारत की सहमति के बीना किसी तीसरे देश से सीमा संबंधी समझौता नहीं कर सकता है। ऐसे में भूटान के भीतर एक तबके का मानना है कि भारत पर भूटान की इतनी निर्भरता ठीक नहीं है और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर उसे चीन के साथ भी मजबूत संबंध बनाने चाहिए।
दूसरी ओर चीन भारत और भूटान के 74 साल पुराने घनिष्ट संबंधों को अपनी विस्तारवादी नीतियों में बाधा मानता है। वह दूसरे दक्षिण एशियाई देशों की तरह भूटान में अपनी पैठ जमा रहा है। इसी साल जनवरी में चीन के कुनंमिंग शहर में सीमा के मुद्दे पर चीन-भूटान के विशेषज्ञों की बैठक हुई थी। दोनों देश सीमा विवाद सुलझाने के लिए बातचीत में तेजी लाने पर सहमत हुए है। पिछले पांच-छह सालों के दौरान उसने जिस कूटनीतिक तरीके से भूटान के रूख में बदलाव किया है, उससे भारत की सुरक्षा चिंता बढ़ी है। डोकलाम झड़प भी उसकी विस्तारवादी नीति का ही हिस्सा है। चीन चाहता है कि इस ट्राइजक्शन को अंतराष्ट्रीय मानचित्र पर सात किमी दक्षिण में दिखाया जाए। जिससे तकनीकी तौर पर पूरा डोकलाम इलाका चीन के कब्जे में आ जाए। क्षेत्रीय विवाद का हल खोजने में चीन की हिस्सेदारी को लेकर भूटानी पीएम का बयान भारत के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। ऐसे में भारत कभी नहीं चाहेगा कि डोकलाम पर चीन साझेदार बने।
1960 तक भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद के कारण संबंध तनावपूर्ण ही रहे हैं। इससे पहले 1954 में ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री आफ चाइना’ में प्रकाशित नक्शे में भूटान के बहुत से क्षेत्र पर चीन अपना दावा कर चुका है। लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों में चीन जिस तरह से भूटान में अपना निवेश बढ़ा रहा है, उससे यह संभावना भी जताई जा रही है कि भूटानी पीएम ने चीन के दबाव में आकर भारत को असहज करने वाली बातें कहीं हो। पूरे घटनाक्रम को देखते हुए ही भूटान नरेश भारत का यात्रा पर हों। भारत दौरे के दौरान द्विपक्षीय संबंधों को विस्तार देने के साथ-साथ भारत को डोकलाम मुद्दे पर भूटान की मनोदशा को समझने एवं उसके बदलते रुख की स्थिति को और अधिक साफ करने की कोशिश करनी चाहिए। हालांकि, प्रधानमंत्री शेरिंग के स्पष्टीकरण के बाद संशय के बादल काफी हद तक छंट चुके हैं, फिर भी यदि भारत भूटान नरेश से इस बात का आश्वासन लेने में कामयाब हो जाता है कि डोकलाम पर उनका देश चीन को उसके नापाक मंसूबों में कामयाब नहीं होने देगा तो कूटनीतिक मोर्चे पर भारत की यह बड़ी जीत होगी।
(लेखक- डाॅ. एन.के. सोमानी कूटनीतिक विश्लेषक हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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