भारत को चीन पर कड़ी नजर रखना आवश्यक

भारत को चीन पर कड़ी नजर रखना आवश्यक
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अब पेंटागन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास एक बड़ा गांव बसा लिया है। हालांकि भारत सरकार की इस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। एक गैर अधिकारिक सूत्र ने इस पर इतना ही कहा है कि चीन का यह गांव उसी के क्षेत्र में है।

Haribhoomi Editorial : भारत की तरफ से बार-बार चेतावनी के बावजूद चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। गलवान के समय से ही वह भारतीय सीमाओं पर अनर्गल व्यवहार करता रहता है। इसमें टेंट लगाने से लेकर गांव बसाने तक शामिल है। कभी नापाक पड़ोसी पाकिस्तान को भड़काता है तो कभी भारत विरोधी तालिबान को बढ़ावा देने का ऐलान करता है। बीते साल 15 जून को गलवान घाटी में हुई भारत-चीन सैनिकों में खूनी झड़प के बाद से सीमा पर तो उसकी हरकतें कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं। इस झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे और दर्जनों की संख्या में चीनी अधिकारी और सैनिक मारे गए, लेकिन चीन ने आज तक अपने सैनिकों के हताहत होने की पुष्टि तक नहीं की। उसके बाद ड्रैगन ने कई बार सीमा पर घुसपैठ का प्रयास किया, लेकिन सतर्क भारतीय जवानों ने हर बार उसे मुंह तोड़ जवाब दिया। सिक्किम सीमा पर तो ऐसे ही प्रयास के दौरान चीन से दो दर्जन से ज्यादा जवान गंभीर रूप से घायल हो गए। इन झड़पों के बाद अनेक दौर की बातचीत के बाद चीनी जवान सीमा से पीछे तो हटे, लेकिन चीन अभी भी बाज नहीं आ रहा।

अब पेंटागन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास एक बड़ा गांव बसा लिया है। हालांकि भारत सरकार की इस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। एक गैर अधिकारिक सूत्र ने इस पर इतना ही कहा है कि चीन का यह गांव उसी के क्षेत्र में है। इस गांव का निर्माण चीन ने उस इलाके में किया है, जिस पर 1959 में जनमुक्ति सेना ने अरुणाचल प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में एक आपरेशन में असम राइफल्स की चौकी पर हमले के बाद कब्जा कर लिया था। इसे लोंगजू घटना के तौर पर जाना जाता है। अभी हाल फिलहाल उसने सीमा का कोई उल्लघंन नहीं किया है। इसके बावजूद प्रश्न तो भ्ाी उठता है कि सीमा पर तनाव के समय में उसे गांव बसाने की क्या जरूरत आन पड़ी। असल में इसके पीछे चीन की कोई साजिश जरूर है, क्योंकि सीमा पर हिंसक झड़प के बाद से वो बौखलाया हुआ है।

भारत ने उसे एक के बाद एक कई बड़े झटके दिए हैं। 2019 से पहले तक भारत चीनी कार्बनिक रसायन, उवर्रक, एंटीबायोटिक्स और एल्युमीनियम फॉयल का सबसे बड़ा निर्यातक देश था। हमारे बाजार चीनी मोबाइल, खिलौनों, खेल का सामान, जूतों, बिजली के उपकरणों व ब्यूटी प्रोडक्ट्स से अटे पड़े थे, लेकिन सैनिकों में झड़प के बाद भारतीय समुदाय ने चीनी सामान उपयोग कम कर दिया। यही कारण रहा कि चीन से आयात में 13 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इस साल के पहले 10 महीनों में चीन से आयात में 16.2 फीसदी की गिरावट आई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि सीमा पर जारी विवाद के कारण भारत में चीनी उत्पादों का बड़े स्तर पर बहिष्कार हुआ। इससे कारोबारियों ने चीन से आयात में कटौती की, जिससे आयात के आंकड़ों में गिरावट देखने को मिली है।

इस दौरान चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा एक दशक में पहली बार कम हुआ। 2005 के बाद व्यापार घाटा 2 फीसदी कम होकर 56.95 अरब डॉलर रहा था। पिछले साल भारत और चीन के बीच 92.89 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था। वैसे तो हर त्योहार पर बाजारों में चीनी सामान की खूब बिक्री होती थी, लेकिन इस साल दिवाली पर बाजार से चीन का सामान गायब था। देश के बड़े आयातकों ने चीनी सामान से मुंह मोड़ लिया है। इसका असर चीनी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। पहले बाढ़ और फिर बिजली की किल्लत से बेहाल चीन को भारतीय लोगों ने उसका सामान न खरीदकर जो झटका दिया है उसी का असर है कि वो रह रहकर भारत को छेड़ने के प्रयास कर रहा है। भारत को चाहिए कि चीन को उसी की भाषा में और कड़ा जवाब दे ताकि वो ऐसी हरकतें करने से पहले सौ बार सोचे।

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