प्रभात कुमार रॉय का लेख : यूक्रेन-रूस विवाद पर शांति की गंभीर पहल करे भारत

प्रभात कुमार रॉय
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने दक्षिण यूक्रेन के विद्रोही पृथकतावादी दो प्रांतों, क्रमशः दोनेत्सक और लुहांस्क को स्वायत्तशासी आजाद देशों के तौर पर बाकायदा मान्यता प्रदान कर दी है। उल्लेखनीय है कि यूक्रेन के इन दोनों प्रांतों में सशस्त्र विद्रोही 2014 से निरंतर यूक्रेन से अलग होने के लिए यूक्रेन की हुकूमत के विरुद्ध छापामार संग्राम करते रहे हैं। यूक्रेन के प्रांतों दोनेत्सक और लुहांस्क में रशियन मूल के नागरिक बड़ी तादाद में विद्यमान हैं और वे यूक्रेन से अलग होना चाहते हैं और रूस में शामिल होना चाहते हैं। राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन सरकार को बागियों के सैन्य ठिकानों पर हमला जारी रखने के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी है। राष्ट्रपति पुतिन ने रूसी फौज़ को दोनेत्सक और लुहांस्क में दाखिल होने का बाकायदा हुक्म भी दे दिया है और कहा है कि रूसी फौज इन नए निर्मित देशों में शांति स्थापना करेगी। रूसी सरकार के इस अप्रत्याशित कदम के तत्पश्चात भीषण सैन्य तनाव समाप्त करने के लिए जारी कूटनीतिक वार्ता का अंत हो सकता है और सैन्य तनाव एक विनाशकारी युद्ध में परिवर्तित हो सकता है। राष्ट्रपति पुतिन की इस आकस्मिक कार्यवाही के विरुद्ध अमेरिका, कनाडा, यूरोपियन यूनियन और ब्रिटेन ने रूस के विरुद्ध सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाने का ऐलान कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि यूक्रेन सैन्य संकट का आग़ाज उस वक्त शुरू हुआ, जबकि यूक्रेन द्वारा नॉटो सैन्य संगठन का सदस्य बनने की पेशकश की गई। अमेरिका की कयादत में नॉटो सैन्य संगठन ने यूक्रेन की इस पेशकश को स्वीकार भी कर लिया। नॉटो की इस मंजूरी के बाद ही रशियन हुकूमत द्वारा यूक्रेन की सरहद पर एक लाख से अधिक सैनिक तैनात कर दिए गए। राष्ट्रपति पुतिन ने बयान दिया कि यूक्रेन को नॉटो सैन्य संगठन का सदस्य बन जाने से नॉटो सैन्य संगठन तो रशिया के दरवाजे पर दस्तक देने लगेगा और रशिया को नॉटो से गंभीर सैन्य खतरा उत्पन्न हो जाएगा। रशियन हुकूमत इस बात से लगातार इनकार करती रही है, कि उसका इरादा यूक्रेन पर सैन्य आक्रमण अंजाम देने का है, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन की सरकारें अपनी खुफिया सूचनाओं को आधार पर दुनिया को रशिया द्वारा यूक्रेन पर सैन्य आक्रमण अंजाम देने की तारीख और वक्त का ऐलान करते रहे हैं, जोकि अभी तक गलत साबित हुए हैं। रशिया को लेकर नॉटो सैन्य संगठन के देशों के मध्य में भी गहन गंभीर अंतरविरोधी टकराव की स्थिति कायम रही है। जर्मनी और फ्रांस का कूटनीतिक नजरिया रशिया के विषय में अमेरिका और ब्रिटेन से एकदम अलग रहा है और दोनों देशों के राष्ट्रपति क्रमशः श्टाइनमायर और इमैनुअल मैक्रों यूक्रेन सैन्य संकट को खत्म करने के लिए अलग से राष्ट्रपति पुतिन से कूटनीतिक वार्ता करते रहे हैं। उल्लेखनीय है कि समस्त यूरोप अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए रशिया की प्राकृतिक गैस पर पचास फीसदी तक निर्भर बना रहा है। अमेरिका की स्थिति यूरोप से एकदम अलग है। अतः रशिया को लेकर यूरोप और अमेरिका के कूटनीतिक दृष्टिकोण में बुनियादी फर्क कायम रहा है।
रशियन-यूरोप गैस पाइप लाइन नार्ड स्ट्रीम प्रथम यूक्रेन से होकर गुजरती है और यूरोप को नेचुरल गैस उपलब्ध कराती है। गैस पाइप लाइन नार्ड स्ट्रीम द्वितीय को समुद्र मार्ग से रशिया से यूरोप लाने के लिए निर्मित किया जा रहा था और इसका तकरीबन 90 प्रतिशत निर्माण कार्य संपन्न हो चुका था कि 2014 में रशिया फौज़ ने यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रिमिया प्रांत पर हमला बोलकर कब्जा जमा लिया। इसके बाद रशिया को जी-8 ग्रुप से निष्कासित कर दिया गया और नॉटो संगठन के देशों द्वारा रशिया पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए। गैस पाइप लाइन नार्ड स्ट्रीम द्वितीय का निर्माण तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया। अभी हाल ही में नार्ड स्ट्रीम द्वितीय का निर्माण कार्य पुनः प्रारम्भ किया गया था, किंतु फिर से रशिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए तो यूरोप ऊर्जा संकट में बुरी तरह से फंस सकता है। रशिया आर्थिक प्रतिबंधों का कड़ा प्रतिउत्तर यूरोप को गैस सप्लाई रोक कर दे सकता है। नॉटो सैन्य संगठन में यूक्रेन के दाखिले को लेकर प्रारंभ हुआ वर्तमान सैन्य तनाव निरंतर गति से आगे बढ़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि यूक्रेन के अतिरिक्त पूर्वी यूरोप के तकरीबन तमाम पूर्व साम्यवादी देश 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद नॉटो संगठन से सदस्य देश बन चुके हैं। वर्ष 1999 के पश्चात हंगरी, पोलैंड, चैक रिपब्लिक, स्लोवाकिया, बुल्गारिया, रोमानिया, लैटविआ, लिथुआनिया, स्लोविनिया आदि अनेक देश नॉटो संगठन के सदस्य देश बन चुके हैं, तो फिर आखिरकार यूक्रेन को नॉटो में शामिल कर लेने को लेकर रशिया इतना सैन्य उत्पात क्यों मचा रहा है? इस प्रश्न के जवाब में रशिया के राष्ट्रपति पुतिन का कहना है कि यूक्रेन के शामिल होने के बाद तो नॉटो सैन्य शक्तियां की फौजें वस्तुतः रशिया की सरहद पर ही तैनात हो जाएगीं। अपने देश की सैन्य सुरक्षा को लेकर रशिया की चिंताएं स्वाभाविक हैं। अतः यूक्रेन को वस्तुतः रशिया नॉटो और अपने मध्य एक बफर स्टेट के तौर पर कायम रखना चाहता है। इस रणनीति को लेकर रशिया यकीनन नॉटो संगठन से युद्ध करने के लिए भी आमादा हो उठा है।
यूक्रेन सैन्य संकट को लेकर जो वैश्विक हालात निर्मित हो रहे हैं, उसके मध्य में भारत एक अत्यंत दुविधाजनक स्थिति में खड़ा है। भारत के लिए रूस परंपरागत अत्यंत निकट दोस्त देश और रणनीतिक तौर पर प्रबल सहयोगी रहा है। अभी तक कूटनीतिक तौर पर भारत ने यूक्रेन सैन्य संकट के दौर में रशिया का ही साथ दिया है और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर रशिया की चिंताओं को सहानुभूति के साथ सोचा समझा है, लेकिन अब हालात वर्ष 2014 से एकदम अलग हो चले हैं, क्रिमिया पर आधिपत्य कायम करने के विषय में भारत ने रशिया के विरुद्ध अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी। अब रशिया सैन्य तौर पर आक्रमक देश है और पड़ोसी देश यूक्रेन को खंडित करने पर आमादा हो रहा है, उधर नॉटो संगठन के देशों के साथ भी भारत के कूटनीतिक संबंध मधुर बने हुए हैं। भारत के लिए अपना कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए कड़ी परीक्षा की घड़ी है। वर्तमान में यूएन सुरक्षा परिषद का सदस्य देश होने के नाते भारत को यूक्रेन सैन्य संकट का निदान करने के लिए गंभीर पहल करनी चाहिए। एक ऐतिहासिक दौर में क्यूबा मिसाइल संकट का समुचित निदान करने में भारत ने एक बड़ा किरदार निभाया था और दुनिया को एक और विनाशकारी विश्वयुद्ध से बचाया था। अब फिर से विश्व की दो महाशक्तियों के मध्य ठन गई है। एक तरफ अमेरिका की कयादत में नॉटो महाशक्ति और दूसरी तरफ रशिया और चाइना की महाशक्ति। यदि युद्ध शुरू हो गया तो फिर अत्यंत विनाशकारी महायुद्ध सिद्ध होगा। अतः जंग टलती रहे तो बहुत बेहतर है और सारी दुनिया में जिंदगी की शमा जलती रहे तो बेहतर है।
( ये लेखक के अपने विचार हैं )
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