डॉ. निरंजन कुमार का लेख : यूक्रेन-रूस विवाद पर भारत चाहे शांतिपूर्ण समाधान

डॉ. निरंजन कुमार
वसुधैव कुटुंबकम यानी पूरा विश्व ही परिवार है। विश्व का कल्याण हो। भारतीय विदेश नीति अपने आरंभिक काल से इसी मूलमंत्र पर कार्य करती है। इसकी स्पष्ट झलक ताजा यूक्रेन-रूस विवाद में भी स्पष्ट तौर पर देखने को मिल रही है। दोनों ही देशों के साथ भारत के बेहतर संबंध हैं। ऐसे में पूरी दुनिया की निगाहें भारत की ओर भी लगी हैं कि आखिर भारत किसकी ओर है? दुनिया की नजरों में भारत के लिए असमंजस की स्थिति बनी हुई है। भारत के सामने सवाल ये खड़ा हो गया है कि आखिर रूस और नाटो के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत क्या करे? अब तक भारत ने अपनी नीति तटस्थता की रखी है। इस मामले में एेतिहासिक पृष्ठभूमि सहित तमाम पहलुओं को देखने के बाद कहा जा सकता है कि भारतीय तटस्थता के गहरे निहितार्थ हैं। ठीक कबीर के तटस्थता के संदेश की तरह। कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर।
इन सब घटनाक्रमों के बीच भारत ने अपने नागरिकों को यूक्रेन से निकलने की सलाह दी है। कीव में मौजूद भारतीय दूतावास ने खासतौर पर यूक्रेन में मौजूद भारतीय छात्रों को स्वदेश लौटने के लिए कहा है। यह सलाह यूक्रेन और रूस के बीच जारी तनाव के युद्ध में बदलने की आशंका के कारण दी गई है। दूतावास ने कहा है कि यूक्रेन के मौजूदा अनिश्चित माहौल को देखते हुए भारतीय नागरिकों, खासकर छात्रों को यूक्रेन छोड़कर अस्थायी तौर पर स्वदेश लौटने की सलाह दी जा रही है। इसमें कहा गया है कि भारतीय नागरिक बिना किसी जरूरी काम के यूक्रेन की यात्रा न करें और वहां मौजूद नागरिक भी अनावश्यक घर से बाहर न जाएं।
ऐतिहासिक पृष्ठिभूमि को देखें तो वैश्विक अशांति की मूल वजह देशों की तटस्थ नीति का नहीं रहना है। कई देश ढुलमुल रवैया अपनाते हैं। इससे अशांति बढ़ती जाती है। इतिहास गवाह है जब-जब छोटे राष्ट्रों को प्रभुता संपन्न राष्ट्रों ने दबाने की कोशिश की है, परिणाम अत्यंत विस्फोटक रहे हैं। खास तौर पर 20वीं शताब्दी इसकी गवाह रही है। प्रथम विश्व युद्ध व द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका इसका जीता जागता उदाहरण है। कुछ ऐसे ही हालात इन दिनों रूस व यूक्रेन की सीमा पर देखने को मिल रहे हैं। रूस इतना प्रभुत्व संपन्न है कि यूक्रेन को चुटिकयों में मसल दे, पर दुनिया के दूसरे शक्तिशाली देशों के समर्थन से वह रूस के सामने आंख से आंख मिलाकर डटा है। यह स्थिति अत्यंत विस्फोटक है। जाहिर है युद्ध जैसे हालात होने पर यह सिर्फ यूक्रेन बनाम रूस नहीं रहेगा। यह तीसरे विश्व युद्ध के आहट के संकेत हैं। ऐसे में यदि दुनिया के दूसरे देश भी भारत की तरह तटस्थता का भाव रखें तो यह स्थिति युद्ध के परिणति में तब्दील नहीं होगी।
हालांकि भारत के लिए तटस्थ रहना इतना आसान नहीं है। विदेश नीति में तटस्थता की अलग कीमत चुकानी पड़ती है। इस मामले में अमेरिका यूक्रेन की ओर से होकर भारत को अपने पाले में देखना चाहेगा, लेकिन भारत रणनीतिक तौर पर रूस का भी करीबी है। वह लंबे वक्त से रूसी रक्षा उपकरणों और हथियारों का खरीदार रहा है, इसलिए रूस पर उसकी निर्भरता बनी हुई है। इसके साथ ही उसे चीन के आक्रामक रुख का भी सामना करना पड़ता है, इस लिहाज से भी रूस का साथ जरूरी है। भारत के विदेश मामलों के जानकारों ने इस ओर संकेत दिया है कि भारत, अमेरिका और रूस दोनों देशों के करीब है, ऐसे में यूक्रेन को लेकर बना तनाव कम करने में भारत मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है। यूक्रेन के विदेश मंत्री दमयत्रो कुलेबा ने रूस के शांति की बहाली में भारत से मदद की गुहार लगाई है। यूक्रेन के विदेश मंत्री ने कहा कि 'इसका असर पड़ेगा।' इसके साथ ही भारत ने शांतिपूर्ण बातचीत के जरिये तनाव को तत्काल कम करने की अपील की। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने स्पष्ट किया, भारत का हित एक ऐसा समाधान खोजने में है, जो सभी देशों के वैध सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए तनाव को तत्काल कम कर सके और इसका उद्देश्य क्षेत्र और उससे बाहर दीर्घकालिक शांति और स्थिरता कायम करना है। वहीं यूक्रेन मामले में रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने की पश्चिमी देशों की धमकियों के बीच भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह रूस के खिलाफ किसी भी आर्थिक प्रतिबंध का पक्षकार नहीं बन सकता। भारतीय तटस्थता के परिणाम काफी दूरगामी हैं।
हम पिछले कुछ घटनाक्रम की समीक्षा करते हैं तो ये बातें सामने आती हैं कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के मामले में रूस ने अभी तक किसी का पक्ष नहीं लिया है। भारत को उम्मीद है कि आगे भी रूस इस मामले में निष्पक्ष बना रहेगा। जोकि वैश्विक शांति के लिए हितकर रहेगा। भारत अपनी सैन्य जरूरतों के लिए रूस पर बहुत ज्यादा निर्भर है। भारत अपने सैनिक साजो-सामान का 55 फीसदी भाग रूस से ही खरीदता है। भारत ने रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदा है, लेकिन अमेरिका ने इसे लेकर आपत्ति जताई है। अमेरिका भारत पर इस सौदे को रद करने का दबाव बनाता रहा है, लेकिन भारत का इस पर दो टूक कहना है कि उसकी विदेश नीति स्वतंत्र है और हथियारों की खरीद के मामले में वह राष्ट्रहित को तवज्जो देता है। उभरती तनावपूर्ण स्थिति भारत के द्विपक्षीय संबंधों को जटिल बना सकती है और रूस से हथियार आयात करने में मुश्किलें पैदा कर सकती है।
उपर्युक्त मामले को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत एक सकारात्मक कदम के साथ आगे बढ़ रहा है और संभवत: इसलिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन मुद्दे पर हुई वोटिंग से दूरी बनाए रखी। ऐसे में माना जा रहा है कि भारत इस मुद्दे पर किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं करना चाहता था। अगर भारत रूस के पक्ष में वोट देता तो इससे अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश नाराज हो सकते थे। वहीं, अगर भारत यूक्रेन का समर्थन करता तो इससे रूस के साथ रिश्तों पर गंभीर असर पड़ सकता था। इस लिहाज से देखें तो कहीं न कहीं भारतीय तटस्थता की नीति के गहरे निहितार्थ हैं। वैश्विक स्तर पर भी इसका अनुपालन आवश्यक है, क्योंकि यह यूक्रेन और रूस क्या पूरी दुनिया में अमन-चैन बहाल करने में बेहद कारगर भूमिका निभा सकता है।
लेखक मीडिया शिक्षाविद व अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार हैं। ये उनके अपने विचार हैं।
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