जयंती विशेष : साहस की प्रतीक इंदिरा गांधी

सुरेश पचौरी
भारतरत्न इंदिरा गांधी ऐसी विभूतियों में से एक हैं जिनका स्मरण हमें आलोकित करता है। प्रियदर्शिनी से प्रधानमंत्री तक की उनकी यात्रा देश के इतिहास का अविस्मरणीय हिस्सा है। उनकी प्रगतिशील विचारधारा और नेतृत्व शैली ने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी। उनके व्यक्तित्व में हिमालय सी दृढ़ता और समुद्र सी गंभीरता समाहित थी। इंदिरा कुशल प्रशासक एवं दूरदर्शी नेता थीं। उनके चिंतन में त्वरित निर्णय क्षमता जैसे नैसर्गिक गुण शामिल थे जिनकी वजह से उन्हें अपार लोकप्रियता हासिल हुई। हम 1971 की उस महान शौर्यगाथा को याद करते हैं जिसमें पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने विवश होकर आत्मसमर्पण किया था। यह इंदिरा की दूरदर्शिता और समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता थी, जिसके कारण दुनिया के मानचित्र पर बांग्लादेश के रूप में नए राष्ट्र का उदय हुआ। अगर इंदिरा गांधी नहीं होतीं, तो क्या बांग्लादेश बन सकता था? क्या सिक्किम का भारत में विलय हो सकता था? क्या श्रीलंका की हिंसक बगावत काबू में की जा सकती थी? क्या भारत दक्षिण एशिया की महाशक्ति बन सकता था? इंदिरा ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन, रंगभेद आंदोलन तथा भूमंडल की शांति के आंदोलन में बेजोड़ निपुणता तथा महान गरिमा के साथ अपनी महती भूमिका निभाई। एक कुशल शिल्पी की भांति इंदिरा गांधी ने समाजवाद के आदर्श को भारतीय नागरिकों के स्वभाव के अनुकूल ढाला। उन्होंने समाज में व्याप्त सामाजिक और आर्थिक असमानताएं दूर करने के लिए ऐसे कार्यक्रमों को सामने रखा जिनके क्रियान्वयन से उपेक्षित और पिछड़े हुए वर्गों के लोगों को सामाजिक न्याय दिलाया जा सका। श्रीमती गांधी ने जीवनभर भारत की जनता की समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष किया। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता और समानता पर आधारित लोकतंत्र की परंपराओं और सिद्धांतों का सही मायनों में पालन किया। बैंकों का राष्ट्रीयकरण, राजा-महाराजाओं के प्रिवी पर्स की समाप्ति, तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण, देश के संसाधनों का समान वितरण आदि उनके ऐसे प्रगतिशील कदम थे जिनमें समानता का सपना छिपा था।
इंदिरा का मानना था कि विकास के लिए गरीबी का सामना पूरी ताकत से किया जाना चाहिए। उनकी पहल पर छठी पंचवर्षीय योजना में नई आर्थिक नीतियां और कार्यक्रम तय किए गए जिनमें गरीबी उन्मूलन के व्यापक और दीर्घकालीन उपाय शामिल थे। उन्होंने गरीबी हटाओ तथा 20 सूत्रीय कार्यक्रम के माध्यम से देश के सामाजिक, आर्थिक ताने-बाने को मजबूत किया। 20 सूत्रीय सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम में भूमिहीनों, कामगारों, सीमांत किसानों, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों तथा गरीब व कमजोर वर्गों के जीवन स्तर में सुधार लाने के बड़े प्रयास किए गए। जिसके परिणाम स्वरूप देश में विकास का एक नया दौर शुरू हुआ। वे चाहती थीं कि हर भारतवासी आत्मसम्मान की जिंदगी जिए। उन्होंने समाज के शोषित वर्गों तथा सदियों से उपेक्षित व प्रताड़ित भारतीय नारियों को सशक्त बनाने की दिशा में अनेक कदम उठाए। उनके शासनकाल में महिलाओं को बराबरी का हक मिला, खेतिहर महिला मजदूरों को पुरूषों के बराबर मजदूरी का कानून बना।
इंदिरा देश की खाद्य सुरक्षा को दृढ़ता के साथ सुनिश्चित करना चाहती थीं। उन्हांेने कृषि के क्षेत्र में "हरितक्रांति" का सूत्रपात किया। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में किसानों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए अनेक परियोजनाएं शुरू की गईं। किसानों की बेहतर फसल के लिए नई टेक्नोलाॅजी, पानी, उर्वरक, उन्नत बीज एवं कृषि ऋण मुहैया कराया गया, जिससे देश कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सका। वे जानती थीं कि खेती की आय से किसानों की जिंदगी में खुशहाली लाना कठिन कार्य है इसलिए उन्होंने दुग्धक्रांति आपरेशन शुरू किया तथा नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड की स्थापना की। उन्होंने अखिल भारतीय ग्रामीण प्रबंधन संस्थान की स्थापना की जिससे दुग्ध क्रांति के साथ-साथ सोयाबीन क्रांति की शुरुआत हुई। उन्होंने अपने जीवन काल में देश के जनजातीय समुदाय की पीड़ा तथा उनकी आकांक्षाओं को बखूबी पहचाना और उनके विकास के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहीं। वे चाहती थीं कि जनजातीय समुदाय की समस्याओं का समाधान हो और उनकी जो सभ्यता, परम्परा है, वह सुरक्षित रहे। आज दुनिया पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, वन्य जीवन, वनों और वन्यप्राणियों की सुरक्षा की चर्चा कर रही है इन मुद्दों पर इंदिरा ने 1972 से ही काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने 1972 में प्रोजेक्ट टाईगर कार्यक्रम बनाया तथा शेरांे व बाघों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया। इंदिरा ने 1975 में पर्यावरण बचाने और पौधरोपण के काम में लाखों लोगों का उपयोग किया। 1972 के संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सुरक्षा सम्मेलन में उन्होंने महती भूमिका निभाई। उनका मध्यप्रदेश से विशेष लगाव था। उन्होंने मध्यप्रदेश के लगभग सभी अंचलों की यात्राएं की एवं विकास कार्यों की आधारषिला रखी। मसलन, ग्वालियर संभाग के शिवपुरी में सिंधु नदी परियोजना, विजयपुर में उर्वरक कारखाना, मालवा-निमाड़ में नर्मदा सागर वृहद सिंचाई परियोजना, खरगोन में नर्मदा पेयजल परियोजना, जैसी अनेक परियोजनाएं हैं जो इंदिरा के स्मृति चिह्न के रूप में हमारी धरोहर हैं। फिरकापरस्त ताकतों और साम्प्रदायिक हिंसा को समाप्त करने के लिए इंदिरा ने अथक संघर्ष किया और देश की एकता और अखंडता की मजबूती के लिए अपना बलिदान दिया।
अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी की परवरिश, संस्कार और आदर्शों को दिल में संजोए हुए राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं। आसमान छूती महंगाई और बेरोजगारी से आम लोग परेशान हैं। किसान और मजदूर कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं। दलितों, आदिवासियों, कमजोर वर्गो एवं पिछड़े वर्गों को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा हर गरीब, मेहनतकश, छोटे व्यापारी, कर्मचारी के सम्मान की आवाज है। युवाओं और महिलाओं के सपनों के उड़ान की आवाज है। हर भारतीय के अधिकार की आवाज है। मेलजोल व बराबरी के विचार की आवाज है। इस ऐतिहासिक आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए सभी वर्गों के लोग एक साथ आ रहे हैं। यह यात्रा भारत की एकता, अखंडता, सांस्कृतिक विविधता के लिए संजीवनी साबित हो रही है और यही इंदिरा गांधी का सपना भी था। आज इंदिरा गांधी हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके विचार और कार्य हमारे बीच में मौजूद हैं। हम उन्हें सादर नमन करते हुए उनकी जन्मतिथि पर देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने का संकल्प लेते हंै। आज हम उनके जीवन को एक विशिष्ट नेतृत्व, साहस और कुर्बानी के लिए याद करते हैं। इंदिरा गांधी ने जिन सपनों और आदर्शों के साथ जीते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया, वे हमारे लिए आदर्श व पथ-प्रदर्शक हैं और उनके अनुसार चलना हमारा कर्तव्य है।
( लेखक केंद्रीय मंत्री रहे हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )
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