डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख : महंगाई नियंत्रण अभी भी चुनौती

बेशक चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ डबल डिजिट यानी 13. 5 फीसदी दर्ज किया गया हो, लेकिन महंगाई अभी भी चुनौती बनी हुई है। केंद्र सरकार रिजर्व बैंक दोनों मिलकर महंगाई को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन स्थिति काबू में नहीं आ रही है, प्रतिशत अनुपात में राहत जरूर दिखाई देती है, पर वह आम जनता को राहत मिलने लायक नहीं है। यकीनन इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-ताइवान तनाव और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अवरोधों की वजह से अमेरिका, यूरोप और एशिया सहित पूरी दुनिया के लगभग सभी देशों में महंगाई की दर दो-तीन दशकों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच कर हाहाकार मचाते हुए दिखाई दे रही है। 28 अगस्त को यूरोपीय कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यूरोपीय देशों में महंगाई से लगातार असंतोष बढ़ रहा है। पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा विभिन्न एशियाई देशों में अनियंत्रित महंगाई के विरोध में लोग सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं। जर्मनी, फ्रांस और इटली सहित दुनिया के कई देशों में सरकार लोगों को रोजमर्रा की कई चीजों को रियायती दामों पर उपलब्ध कराने के लिए लगातार स्टोर्स खोल रही हैं और इन स्टोर्स पर भारी भीड़ दिखाई दे रही है। सचमुच महंगाई के ऐसे चिंताजनक वैश्विक हालात के बीच भारत में सरकार के रणनीतिक प्रयासों से महंगाई से राहत का परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है।
अगस्त 2022 में प्रकाशित महंगाई के आँकड़ों के मुताबिक देश में जुलाई 2022 में खुदरा महंगाई दर 6.71 फीसदी के स्तर पर है। यह जून माह में 7.01 प्रतिशत थी तथा मई माह में 7.04 फीसदी थी। इसी तरह थोक महंगाई दर भी घटकर 13.93 फीसदी के स्तर पर पहुँच गई है। जून में थोक महंगाई दर 15.18 फीसदी और मई में रिकॉर्ड 16.63 फीसदी की ऊँचाई पर थी। 23 अगस्त को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि इस समय देश में महंगाई में कमी लाने के रणनीतिक कदम उठाए जा रहे हैं। रिजर्व बैंक बाजार से चुपचाप तरलता खींच रहा है। इससे अब महंगाई में और कमी आएगी। इसी वर्ष 6 फीसदी तक महंगाई नियंत्रण के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास होगा और आगामी दो वर्षों में खुदरा महंगाई दर घटाते हुए चार फीसदी तक लाने का प्रयास होगा। यदि हम महंगाई की वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत में महंगाई के नियंत्रित होने के परिदृश्य को देखें तो इसके लिए चार प्रमुख रणनीतिक कदम उभरकर दिखाई दे रहे हैं। एक, सरकार के द्वारा रूस से कच्चे तेल का सस्ता आयात, दो, रिजर्व बैंक के महंगाई नियंत्रण के रणनीतिक उपाय। तीन, पर्याप्त खाद्यान्न भंडार एवं कमजोर वर्ग के लोगों तक खाद्यान्न की नि: शुल्क आपूर्ति। चार, पेट्रोल में एथनॉल का अधिक उपयोग। निसंदेह रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच पश्चिमी देशों में विशेषकर अमेरिका व यूरोपियन यूनियन के दबाव के बावजूद भारत ने किसी पक्ष का समर्थन नहीं किया और भारत ने जिस तरह तटस्थ रूख अपनाया, उसका एक बड़ा फायदा भारत को रूस से सस्ते कच्चे तेल के रूप में मिलते हुए दिखाई दे रहा है। केंद्र सरकार वर्तमान परिस्थितियों में देश को महंगाई से बचाने के लिए कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की खरीदी संबंधी बेहतरीन सौदा करने की नीति पर आगे बढ़ी है। खासतौर से रूस से रियायतों दरों पर कच्चा तेल प्राप्त किया जा रहा है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के आँकड़े के अनुसार रूस से जून 2022 में 3.02 अरब डॉलर मूल्य का कच्चा तेल आयात किया गया था। दुनिया में अधिकांश देशों से आर्थिक प्रतिबंध झेल रहे रूस से भारत ने जून 2022 में 4.23 अरब डॉलर के सामान का आयात किया। पिछले साल जून 2022 की तुलना में आयात करीब सात गुना बढ़ा है। इसमें प्रमुखतया कच्चे तेल का आयात शामिल है। खास बात यह है कि महंगी कीमतों के कारण वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही अप्रैल से जून के बीच तेल के कुल आयात में अमेरिका की हिस्सेदारी पिछले वर्ष की इसी अवधि के 9.2 फीसदी से घटकर 5.4 फीसदी रह गई है जबकि रूस की हिस्सेदारी पिछले वर्ष की इसी अवधि के 2.02 फीसदी से बढ़कर 12.9 फीसदी हो गई।
देश में महंगाई घटाने में आरबीआई की भी अहम भूमिका है। पिछले माह 5 अगस्त को रिजर्व बैंक ने एक बार फिर से रेपो रेट में 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी की। अब रेपो रेट 4.90 फीसदी से बढ़कर 5.40 फीसदी हो गई है। रिजर्व बैंक के द्वारा पिछले मई और जून माह में भी रेपो रेट में क्रमशः 40 और 50 आधार अंकों की वृद्धि की गई थी। महंगाई को अभी और नियंत्रित करने के मद्देनजर रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की सितंबर 2022 के आखिरी हफ्ते में होने वाली बैठक में रेपो रेट में 35-40 आधार अंकों की और बढ़ोतरी की जा सकती है। वस्तुतः महंगाई नियंत्रण के लिए रिजर्व बैंक नरम मौद्रिक नीति के फैसले से पीछे हटा है। आरबीआई एकदम ज्यादा रेपो रेट बढ़ाकर यानी फ्रंट लोडिंग के जरिए महंगाई में कमी लाने के प्रयासों के दौरान मंदी से बचने की रणनीति पर आगे बढ़ रहा है। रेपो रेट वह रेट है, जिस पर आरबीआई अपने अधीन बैंकों को कर्ज देता है। इससे बाजार में कैश फ्लो पर नियंत्रण रखा जाता है। आरबीआई ने बढ़ती महंगाई को काबू में लाने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि के साथ तेज विकास दर को बढ़ावा देने के बजाय महंगाई पर अधिक नियंत्रण की रणनीति को उपयुक्त माना है।
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि पेट्रोल और डीजल में एथनॉल का मिश्रण बढ़ाकर भी इनकी कीमतों में कमी लाने का सफल प्रयास हुआ है। वर्ष 2014 में पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण बमुश्किल 1.4 फीसदी था, जबकि इस वर्ष 2022 में 10.6 फीसदी मिश्रण किया जा रहा है, जो लक्ष्य से कहीं ज्यादा है। वर्ष 2025 तक पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण का लक्ष्य 20 फीसदी रखा गया है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि किसानों के समर्थन से एथनॉल उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। 8 वर्ष पहले देश में 40 करोड़ लीटर एथनॉल का उत्पादन होता था, अब करीब 400 करोड़ लीटर एथनॉल का उत्पादन हो रहा है। एथनॉल के उपयोग में तेल विपणन कंपनियों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है।
जहाँ महंगाई को घटाने के लिए कई वस्तुओं पर आयात शुल्क घटाने की रणनीति के साथ-साथ वैश्विक जिंस बाजार में भी कीमतों में आई कुछ नरमी अहम हैं, वहीं महंगाई को घटाने में देश में अच्छी कृषि पैदावार पर्याप्त खाद्यान्न भंडार और आम आदमी तक खाद्यान्न की निशुल्क आपूर्ति भी प्रभावी रही हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक फसल वर्ष 2021-22 के चौथे अग्रिम अनुमान के मुताबिक में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन करीब 31.57 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा है। साथ ही 1 जुलाई 2022 को देश के केंद्रीय पूल में 8.33 करोड़ टन खाद्यान्न (गेहूँ एवं चावल) का बफर और आवश्यक भंडार संचित पाया गया है।
निसंदेह महंगाई की वैश्विक चुनौती के बीच भारत में महंगाई में कमी राहतकारी है, लेकिन यह काफी नहीं है, अभी महंगाई में तत्परता से और अधिक कमी लाने की जरूरत है। यह सरकार के लिए चुनौती है।
(लेखक डॉ. जयंतीलाल भंडारी अर्थशास्त्री हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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