सतीश सिंह का लेख : अर्थव्यवस्था को गुलाबी बनाने की पहल

सतीश सिंह का लेख :  अर्थव्यवस्था को गुलाबी बनाने की पहल
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लगातार 2 द्विमासिक मौद्रिक समीक्षाओं में रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर यथावत रखा गया था। रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में बढ़ोतरी करना पिछले साल मई महीने में शुरू किया था, लेकिन इस साल अप्रैल और जून महीने की द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा के समय देश में खुदरा महंगाई की स्थिति बेकाबू नहीं थी, जिसके कारण रेपो दर को यथावत रखा गया था। 10 अगस्त को रेपो दर में बदलाव नहीं करने के पीछे रिजर्व बैंक का मकसद था कि कर्ज लेने की लागत स्थिर बनी रहे। रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर को यथावत रखना एक तात्कालिक कदम है। इसमें स्थायित्व तभी आएगा, जब खुदरा महंगाई कम होगी। फिर भी इस निर्णय को समीचीन कहा जा सकता है।

विकास की रफ्तार को कायम रखने के लिए जरूरी है कि रेपो दर में और बढ़ोतरी न की जाए इसलिए रिजर्व बैंक ने 10 अगस्त को मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर को लगातार तीसरी बार 6.5 प्रतिशत पर यथावत रखा है। इससे पहले इस साल अप्रैल और जून महीने में लगातार 2 द्विमासिक मौद्रिक समीक्षाओं में रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर यथावत रखा गया था। रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में बढ़ोतरी करना पिछले साल मई महीने में शुरू किया था, लेकिन इस साल अप्रैल और जून महीने की द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा के समय देश में खुदरा महंगाई की स्थिति बेकाबू नहीं थी, जिसके कारण रेपो दर को यथावत रखा गया था। 10 अगस्त को रेपो दर में बदलाव नहीं करने के पीछे रिजर्व बैंक का मकसद था कि कर्ज लेने की लागत स्थिर बनी रहे और विकास दर की तेजी भी बरक़रार रहे, लेकिन इस बार रिजर्व को महंगाई को लेकर सतर्क रहना होगा, क्योंकि यह उफान पर है।

दूसरी तरफ, रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर को यथावत रखने के बावजूद कुछ सरकारी और निजी बैंकों ने कर्ज दर में इजाफा कर दिया है, जिससे केंद्रीय बैंक का उद्देश्य विफल हो सकता है। हालांकि, बैंक भी कर्ज दर बढ़ाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि उनके लिए पूंजी की लागत बढ़ गई है और जमा और कर्ज दर के बीच का स्प्रेड कम हो गया है, जिससे उनका मुनाफा कम हो रहा है और उन्हें जमा आधार बढ़ाने के लिए रणनीति बनाकर अभियान चलाना पड़ रहा है। विगत 4 महीनों तक खुदरा महंगाई के लगातार घटने के बाद जून 2023 में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेज उछाल के चलते जून महीने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) या खुदरा महंगाई दर 4.81 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी, जो जुलाई में बढ़कर 7.44 प्रतिशत हो गई और रिजर्व बैंक की सहनशीलता स्तर 6 प्रतिशत से ऊपर चली गई। ग्रामीण मुद्रास्फीति 7.63 प्रतिशत रही, जबकि शहरी मुद्रास्फीति 7.20 प्रतिशत रही। इस वर्ष देश के कई राज्यों में तेज बारिश से खरीफ की फसल और सब्जियों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा है और आगामी महीनों में स्थिति और भी बदतर हो सकती है। अल नीनो का खतरा अभी भी बना हुआ है। ऐसे में आगामी महीनों में खुदरा महंगाई के और भी बढ़ने के आसार बने हुए हैं। सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जून महीने में उपभोक्ता खाद्य महंगाई दर (सीएफपीआई) या खाद्य महंगाई दर बढ़कर 4.49 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई, जो जुलाई महीने में बढ़कर 11.51 प्रतिशत हो गई। मई महीने में यह 2.96 प्रतिशत रही थी, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 7.75 रही थी। वहीं अप्रैल महीने में यह 3.84 प्रतिशत रही थी। टमाटर समेत लगभग सभी हरी सब्जियों की कीमत फिलवक्त आसमान छू रही हैं। उल्लेखनीय है कि सीपीआई बास्केट में आधी हिस्सेदारी खाद्य पदार्थों की होती है। रिजर्व बैंक मुख्य तौर पर रेपो दर में बढ़ोतरी करके महंगाई से लड़ने की कोशिश करता है। जब रेपो दर अधिक होती है तो बैंकों को रिजर्व बैंक से महंगी दर पर कर्ज मिलता है, जिसके कारण बैंक भी ग्राहकों को महंगी दर पर कर्ज देते हैं। ऐसा करने से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता कम हो जाती है और लोगों की जेब में पैसे नहीं होने की वजह से वस्तुओं की मांग में कमी आती है और वस्तुओं और उत्पादों की कीमत अधिक होने के कारण इनकी बिक्री में गिरावट आती है, जिससे महंगाई दर में नरमी देखी जाती है। इसी तरह अर्थव्यवस्था में नरमी रहने पर विकासात्मक कार्यों में तेजी लाने के लिए बाजार में मुद्रा की तरलता बढ़ाने की कोशिश की जाती है और इसके लिए रेपो दर में कटौती की जाती है, ताकि बैंकों को रिजर्व बैंक से सस्ती दर पर कर्ज मिले और सस्ती दर पर कर्ज मिलने के बाद बैंक भी ग्राहकों को सस्ती दर पर कर्ज दे सकें।

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार कोरोना महामारी, भू-राजनीतिक संकट, महंगाई, वैश्विक अर्थव्यवस्था में नरमी के बावजूद बैंकिंग और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान (एनबीएफसी) भारत में मजबूत बने हुए हैं। बैंकिंग क्षेत्र के वित्तीय प्रदर्शन में लगातार सुधार आ रहा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यानी अप्रैल-जून 2023 के दौरान 12 सरकारी बैंकों का मुनाफा बढ़कर 34,774 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जबकि भारतीय स्टेट बैंक का मुनाफा 178.24 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ 16,884.29 करोड़ रुपये रहा। वहीं, देश के औद्योगिक उत्पादन में जून के महीने में 12.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इसके मुकाबले जून 2021 में देश के औद्योगिक उत्पादन में 13.8 प्रतिशत की वृद्धि दर देखने को मिली थी। वित्त वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था, लेकिन यह 6.1 प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में बेहतरी आने से पूरे वित्त वर्ष की वृद्धि दर में सुधार दर्ज हुआ है। वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान एमपीसीने पहले जीडीपी के 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था, जो वास्तविकता में 7.2 प्रतिशत रही। अभी रिजर्व बैंक का लक्ष्य विकास की राह पर चलना है, ताकि अर्थव्यवस्था में मजबूती आए साथ ही साथ वह खुदरा महंगाई पर भी निगाह रखे हुए है, क्योंकि इसकी वजह से जीडीपी वृद्धि दर की रफ्तार धीमी पड़ जाती है। बीते सालों से खुदरा महंगाई लगातार उच्च स्तर पर बनी हुई थी, हालांकि, विगत कुछ महीनों के दौरान खुदरा महंगाई में आंशिक गिरावट आई थी, लेकिन अब फिर से खुदरा महंगाई उफान पर है।

लिहाजा, कयास लगाए जा रहे हैं कि लंबी अवधि में भारत विकास दर नरम रह सकती है, जिससे अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ सकती है और इससे कर संग्रह में भी कमी आ सकती है। वर्ष 2024 चुनावी साल है, इसलिए इस साल राजकोषीय घाटा कम होने की जगह बढ़ सकता है, क्योंकि सरकार आम जनता के लिए सरकारी व्यय में इजाफा कर सकती है। सरकार अभी पूंजीगत व्यय पर जोर दे रही है। यह जरूरी भी है, क्योंकि भारत को बुनियादी ढांचे में भारी भरकम निवेश की आवश्यकता है। इससे ही विकास की गाड़ी तेज गति से आगे बढ़ सकती है। ऐसे में सरकार को पूंजीगत व्यय और राजस्व संग्रह दोनों में तेजी लानी होगी और दोनों के बीच संतुलन बनाकर राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की दिशा में काम करना होगा, क्योंकि ज्यादा कर्ज लेकर आधारभूत संरचना को मजबूत करने के खतरे भी हैं।

ऐसे में कहा जा सकता है कि बढ़ती महंगाई की वजह से रिजर्व बैंक नीतिगत दरों को बढ़ाने के लिए आगामी मौद्रिक समीक्षाओं में मजबूर हो सकता है और तदुपरांत, बैंक कर्ज दर में इजाफा करेंगे और कर्ज महंगा होने से मांग में कमी आएगी। बढ़ती महंगाई की वजह से लोगों के खर्च करने की क्षमता भी कम हुई है, जिससे आधारभूत संरचना को मजबूत करने में निजी व्यय में कमी आ रही है। लिहाजा, रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर को यथावत रखना एक तात्कालिक कदम है। इसमें स्थायित्व तभी आएगा, जब खुदरा महंगाई कम होगी। फिर भी, रिजर्व बैंक के इस निर्णय को समीचीन कहा जा सकता है।

(लेखक- सतीश सिंह स्टेट र्बैंक में सहायक महाप्रबंधक हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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