विनोद कौशिक का लेख : चैंपियन बनने की जिद जरूरी

पूरे वर्ल्डकप में चैंपियनों की तरह खेलने वाली भारतीय क्रिकेट टीम फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के 'चक्रव्यूह' काे नहीं भेद पाई और कंगारुओं के हाथों करारी मात खा गई। इसे महज इत्तेफाक कहेंगे या टीम पर जीत का दबाव, जिसे भारतीय खिलाड़ी झेल नहीं पाए और खिताब जीतने का इंतजार लंबा हो गया। सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ जैसे धुरंधर जिस काम को अंजाम नहीं दे पाए, उसे अंजाम देने का मौका रोहित शर्मा के पास था, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने भारत के 140 करोड़ लोगों के दिल तोड़ते हुए एकतरफा मुकाबले में 6 विकेट से छठी बार फाइनल जीतकर इतिहास रच दिया। अपने ही देश में मिली इस करारी हार का दर्द भारतीय टीम को जिंदगीभर सालता रहेगा। विश्व कप ट्रॉफी रोहित शर्मा के लिए नहीं थी, लेकिन भारत के ‘निडर कप्तान' ने मैदान पर अपना सब कुछ झोंक दिया, जबकि मोहम्मद शमी ने टूर्नामेंट के इतिहास में सबसे अधिक बार पारी में पांच या इससे अधिक विकेट चटकाने का रिकॉर्ड बनाया। विराट कोहली ने एक टूर्नामेंट में 765 रन बनाकर इतिहास रचा और इस दौरान 50वां एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय शतक बनाकर महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के सर्वाधिक एकदिवसीय शतक के रिकॉर्ड को भी तोड़ा। उन्हें टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया।
भारत ने इस वर्ल्ड कप में लगातार 10 मैच जीते। इस वर्ल्डकप में टीम ने कुल 3160 रन बनाए, 100 विकेट लिए और सात शतक जमाए। जो एक बेहतरीन प्रदर्शन है, लेकिन फाइनल में आखिर ऐसा क्या हुआ कि बल्लेबाज और गेंदबाज दोनों ही शांत रहे। रोहित ने शानदार शुरुआत दिलाई, लेकिन एक गलत शॉट खेलकर आउट हो गए। विराट कोहली और केएल राहुल ने अर्धशतकीय पारी खेली। इनके अलावा कोई भी बल्लेबाज पिच पर टिक नहीं पाया। गेंदबाज भी विकेटाें के लिए तरसते नजर आए। भारत ने अपना पिछला वैश्विक खिताब 2013 में महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में चैम्पियंस ट्रॉफी में जीता था। टीम को इसके बाद आईसीसी के पांच फाइनल और चार सेमीफाइनल मुकाबलों में हार का सामना करना पड़ा। आईसीसी के खिताबी और नॉकआउट मैचों में लगातार लचर प्रदर्शन के बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह भारतीय टीम के लिए एक खराब दिन था या खिलाड़ी वाकई में ऐसे मुकाबलों में ‘चोक' कर रहे हैं। भारत पिछले 10 साल में पांच आईसीसी खिताब फाइनल में हारकर गंवा चुका है। हैरान करने वाली बात यह है कि टीम को इन सभी मुकाबलों में एकतरफा शिकस्त मिली है। ऑस्ट्रेलिया ने इस साल दो आईसीसी टूर्नामेंट के फाइनल में भारत को हराया। पहले वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप और अब वनडे वर्ल्ड कप। तीसरी बार खिताब जीतने की आस में अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में बल्लेबाजी करने उतरे भारत ने धमाकेदार शुरुआत की। हिटमैन रोहित शर्मा ने अपने स्वभाव के अनुरूप विस्फोटक शुरुआत दी। लगातार अटैक करते हुए तीन गगनचुंबी छक्कों और चार चौकों से तेज शुरुआत दिलाई, लेकिन 31 गेंद में 47 रन बनाने के बाद वह आउट हो गए। 10वें ओवर में रोहित का आउट होना भारत के लिए बड़ा झटका था। वर्ल्ड कप के शुरुआती मुकाबलों में भारत एक अलग कॉम्बिनेशन के साथ खेला। बल्लेबाजी सातवें नंबर तक थी, क्योंकि हार्दिक पांड्या उस नंबर पर बल्लेबाजी कर रहे थे। इस बीच हार्दिक पांड्या चोटिल हो गए। उन्हें बांग्लादेश के खिलाफ पुणे में खेले गए मुकाबले में गेंदबाजी करते समय चोटिल होकर टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा। इसके बाद प्लेइंग इलेवन में बॉलिंग ऑलराउंडर शार्दुल ठाकुर को टीम में शामिल किया गया, लेकिन एक मैच के बाद उन्हें बिठा दिया गया। फिर तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी की एंट्री हुई और टीम इंडिया का बैटिंग ऑर्डर छठे नंबर तक सिमट गया। हार्दिक पांड्या के चोटिल होने के बाद कप्तान रोहित शर्मा और कोच राहुल द्रविड़ ने टीम को प्लान ए से प्लान बी पर शिफ्ट किया। जिस वक्त तक हार्दिक पांड्या खेल रहे थे तब विराट कोहली बड़े-बड़े हिट लगा रहे थे। हार्दिक पांड्या के टीम में रहने तक कोहली ने 4 मैच में 90.24 के स्ट्राइक रेट के साथ 259 बनाए थे, जिसमें दो अर्धशतक और एक शतक शामिल थे। हार्दिक पांड्या के बाहर होते ही कोहली एंकर की भूमिका में आ गए। टीम इंडिया की बल्लेबाजी उनके इर्द-गिर्द घूमने लगी। हार्दिक पांड्या के टूर्नामेंट से बाहर होने के बाद कोहली ने 7 मैच में 90.35 के स्ट्राइक रेट के साथ 506 रन बनाए, जिसमें उनके 4 अर्धशतक और 2 शतक शामिल थे। पूरे वर्ल्ड कप के 11 मैच में विराट ने 90.31 के स्ट्राइक रेट से 765 रन बनाए। जिसमें उन्होंने 6 अर्धशतक और 3 शतक लगाए। उन्हें इस विश्व कप का 'मैन ऑफ द टूर्नामेंट' चुना गया।
भारतीय टीम ने कितनी आसानी से प्लान ए को प्लान बी की तरफ शिफ्ट किया। किसी को इसका एहसास तक नहीं हो सका। टीम इंडिया के इस मूव पर पाकिस्तान के पूर्व बल्लेबाज मोहम्मद यूसुफ और पूर्व स्पिन गेंदबाज मुश्ताक अहमद ने एक टीवी शो में कहा कि भारतीय टीम ने बड़ी ही खूबसूरती के साथ अपना प्लान बदला। हार्दिक के रहने से विराट खुलकर बल्लेबाजी कर रहे थे, लेकिन उसके बाहर जाने के बाद कोहली ने अपना रोल बदला और पूरी टीम उनके आसपास बल्लेबाजी करने लगी। वहीं, कप्तान रोहित शर्मा की बात करें तो वो पहली ही गेंद से शुरू हो जाते हैं। वो फ्रंट से लीड करते हैं और किसी युवा खिलाड़ी पर नए गेंद से खेलने का दबाव नहीं बनाते। ये लीडरशिप क्वालिटी जो उन्हें दूसरे कप्तानों से अलग करती है। यही छोटी-छोटी बातें टीम को मजबूती से खड़ा करने में मदद करती हैं। सीनियर खिलाड़ियों का सबसे बड़ा रोल बड़ा स्कोर बनाना नहीं, बल्कि चैलेंज को सामने आकर स्वीकार करना होता है। जो इस समय कप्तान रोहित शर्मा निभा रहे हैं, लेकिन इन सबके बावजूद ऑस्ट्रेलिया ने दो आईसीसी टूर्नामेंट के फाइनल में भारत को हराया है तो कोई वजह तो होगी ही। बड़े खिताबी मुकाबलों में एकतरफा हार के बाद यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्रिकेट का सुपर पावर माने जाने वाले देश के लिए एक आईसीसी ट्रॉफी को जीतने के लिए 10 साल नहीं लगते। भारतीय खिलाड़ी एक टीम के तौर पर प्रदर्शन भी अच्छा कर रहे थे। अचानक से एक खराब खेल के चलते टीम फाइनल हार गई। यह बुरा दिन क्यों आया। क्या खिलाड़ी फाइनल के दबाव में आ जाते हैं, अपनी ताकत को भूलकर दूसरों की कमजोरी ढूंढ़ने लगते हैं या स्वाभाविक खेल न दिखाकर बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं। ऐसे सवालों के जवाब ढूंढ़ने होंगे। चूंकि भारत को अभी कई टूर्नामेंट खेलने हैं। इन सवालों से हम पार पा लेंगे तभी चैंपियन बन सकेंगे। चैंपियन बनने की जिद जरूरी है।
(लेखक- विनोद कौशिक खेल पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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