योगेश कुमार सोनी का लेख : नर्सिंग क्षेत्र पर हो फोकस

योगेश कुमार सोनी
हर वर्ष 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत सन 1965 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज द्वारा की गई की थी व 1974 में 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के तौर पर मनाने का फैसला लिया गया था। नर्स दिवस, अंतरराष्ट्रीय नोबेल सर्विस देने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। दो वर्ष पूर्व इंटरनेशनल नर्स डे 2020 की थीम को 'नर्सिंग द वर्ल्ड टू हेल्थ' जो विश्व स्तर पर नर्सों की भूमिका को मद्देनजर रखते हुए बनाई गई थी। पूरी दुनिया के नर्सिंग स्टाफ में फिलहाल 92 प्रतिशत महिला व आठ प्रतिशत पुरुष है। नर्सों का योगदान हमेशा से सराहनीय रहा है, लेकिन कोरोना काल में दुनिया ने इस पेशे की ताकत, हौसले व मेहनत को बखूबी पहचाना। मेडिकल क्षेत्र में डॉक्टरों की भूमिका नायक की तरह मानी जाती है, लेकिन धरातल पर उतर मरीजों की सेवा करने का श्रेय नर्सिंग स्टाफ को जाता है। उपचार के दौरान मरीजों के पास ज्यादा समय नर्सिंग स्टाफ ही रहता है और बीते कोरोना कालखंडों से लेकर अब तक यह लोग अपनी जान पर खेलकर जनता की सेवा कर रहे हैं। यहां सेवा शब्द से तात्पर्य है कि बशर्ते इनको अपने काम का मेहनताना मिलता है, लेकिन जब यह पता चल जाए कि जिस काम में जान का जोखिम बहुत ज्यादा है और बावजूद इसके आप मुस्कुराते हुए अपने काम को अंजाम दे रहे हो तो वह प्रशंसनीय माना जाता है। कुछ जगह यह देखा गया कि डॉक्टर वीडियो कॉल पर स्थिति अनुसार मरीजों का दवा बताकर इलाज कर रहे हैं, लेकिन नर्सिंग स्टाफ का ऐसे काम नहीं चलता वो हर परिस्थिति में अपना किरदार बखूबी निभा रहे हैं।
भारत समेत एशियाई देशों में महिला नर्स को सिस्टर व पुरुष को ब्रदर भी बोलते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार दक्षिण भारत की महिलाएं इस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाती हैं। इस बात को पूरी दुनिया ने माना है कि समर्पण, होशियारी, अच्छा व्यवहार व इसके अलावा समय की पाबंदी केवल यहां की महिलाओं में ही देखी जाती है। दक्षिण भारत में यदि केरल की बात की जाए तो यहां नर्सिंग की पढ़ाई को बहुत महत्व दिया जाता है। केरल में नर्सिंग की पढ़ाई बहुत आम है और इसको बहुत पसंद किया जाता है। नर्सों की शिक्षा के आधार पर केरल सर्वाधिक साक्षरता वाला राज्य भी माना जाता है। यहां की नर्सों की वजह से हमारे देश को सम्मान मिलता है। बहुत कम लोगों को यह पता होता है कि नर्सिंग स्टाफ की सैलरी बहुत कम होती है, लेकिन किसी भी स्थिति में उनके चेहरे पर शिकन देखने को नहीं मिलती। यह लोग मरीज से लेकर उनके तीमारदार तक अपना व्यवहार ऐसा रखते हैं मानो वह उनकी घर के सदस्य ही हों। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चला था कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन, इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स, और नर्सिंग नाउ की सयुंक्त रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व में केवल लगभग दो करोड़ अस्सी लाख नर्स ही हैं। 2013 और 2019 के बीच नर्सिंग की संख्या में 41 लाख की वृद्धि हुई, लेकिन दुनिया अभी लगभग 52 लाख नर्सिंग स्टॉफ की कमी से जूझ रहा है। अफ्रीका, बेल्जियम, ब्रितानी, जर्मन व दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी भूमध्य क्षेत्र के साथ-साथ लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्से नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी से अपना यहां की स्वास्थ्य सेवा को बेहतर नही कर पा रहे हैं। यहां नर्सों को एक शिफ्ट 12 घटों से भी अधिक होती है।
आंकड़ों के अनुसार दुनिया की 78 प्रतिशत से अधिक नर्सें उन देशों में काम करती हैं, जिनमें दुनिया की आधी आबादी रहती है इसके अलावा हर आठ नर्सों में से एक नर्स देश के अलावा किसी उस देश में काम कर रही है, जहां वह रहने वाली है या जहां उसने नर्सिंग की शिक्षा प्राप्त की है। मौजूदा नर्सों की संख्या के आधार पर यह दिख रहा है कि अगले कुछ वर्षों में दुनिया की छह में से एक नर्स के अगले दशकभर में रिटायर होने वाली है। इस आंकड़े के अनुसार जिन देशों में इस समय नर्सों कमी हैं उन देशों को प्रति वर्ष औसतन 8 प्रतिशत नर्सों की संख्या बढ़ानी होगी, इससे प्रति वर्ष लगभग भारतीय करेंसी के हिसाब से 734 रुपये प्रति व्यक्ति ही खर्च होगा। दुनियाभर की सरकारें नर्सिंग के क्षेत्र को आगे बढ़ाए रखने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, लेकिन इनके लिए उतना काम नहींे किया जाता जितना होना चाहिए। हमें इस बात को समझना होगा कि नर्सिंग की ओर अग्रसर होना कोई निवेश नहीं है, यह तो सामाजिक भलाई का सबसे बड़ा सजीव उदाहरण है। पूरी दुनिया को यह समझना होगा कि इस शानदार पेशे को बढ़ाने के लिए इसे बेहतर बनाने की जरूरत है। अच्छी सैलरी व तमाम सरकारी सुविधाएं देने की जरूरत है। नर्सों को सरकारी सुविधा के नाम पर कुछ नहीं मिलता और प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली नर्सों को तो किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। हमारे देश में सरकारी अस्पतालों की नर्सों की सैलरी फिर भी सम्मानजनक है, लेकिन प्राइवेट अस्पतालों में काम करने वाले नर्सिंग स्टाफ को बहुत कम पैसा मिलता है। अधिक संस्थानों में दस हजार से बीस हजार रुपये तक ही वेतन मिलता है। यदि महानगरों की बात करें तो यह लोग कठिनाइयों के साथ जीवन-यापन करते हैं। संघर्ष, तपस्या, मेहनत व ईमानदारी का पर्याय यह पेशा भगवान के रूप से कम नही।
बहुत कम लोगों के पास यह जानकारी होगी कि कोरोना काल में मेडिकल के क्षेत्र में अब तक जितनी मौतें हुई हैं उसमें आधी के लगभग नर्सिंग स्टाफ भी शामिल हैं। कोरोना की दूसरी लहर में स्थिति कितनी भयावह थी फिर भी यह लोग अपने काम को ही पूजा मानकर करते रहे, लेकिन कुछ निजी अस्पतालों में इनके प्रति अमानवीय व्यवहार देखा गया। बीते वर्ष एक नर्स को कोरोना हो गया था और वह जिस अस्पताल में काम कर रही थी, उपचार के दौरान उसकी वहीं मौत हो गई और अस्पताल ने उसके परिजनों से पूरा पैसा वसूल करके तब उसकी बॉडी को सौंपा था। इस घटना को देखकर लगा कि मानव की संवेदनहीनता का यह सबसे अंतिम चरण है। ऐसी ही घटनाओं को मद्देनजर रखते हुए जरूरत है कि नर्सिंग स्टाफ को एक ऐसी गारंटी देने की जिससे इस पेशे से प्रभावित होकर आने वाले पीढ़ियां इस ओर रुचि लें। यदि कमेटी करके इनके लिए कोई ऐसी रणनीति बन गई तो निश्चित तौर पर दुनियाभर में नर्सों की कमी खत्म होगी व स्वास्थ्य सेवाएं भी सुदृढ़ होंगी। समय के रहते यदि चीजों की गंभीरता समझी जाए तो बेहतर होता है और इस समय नर्सिंग स्टाफ को लेकर भी ऐसी स्थिति है, चूंकि जिस तरह कोरोना ने पूरी दुनिया को अपनी जद में ले लिया तो इस आधार पर कठिन समय के लिए तैयार रहना होगा। यहां केन्द्र सरकार को बेहद संजीदा होने की जरूरत है चूंकि कोरोना काल ने हमें यह बता दिया कि नर्सें हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र की रीढ़ हैं। सरकारी हो या प्राइवेट अस्पताल में सभी नर्सों को इस तरह की मिनिमम ऐसी गारंटी मिले जिससे लोग इस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने में संकोच महसूस न करें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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