डॉ. एके अरुण का लेख : तन-मन को खोखला बनाता है नशा

डॉ. एके अरुण का लेख : तन-मन को खोखला बनाता है नशा
X
नेशनल इन्स्टीच्यूट ऑन ड्रग एब्यूज (एनआईडीए) की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग हर तरह के नशे से दिमाग के ब्रेन स्टेम, सेरेबल कार्टेक्स आदि प्रभावित होते है। ब्रेन स्टेम हमारे जीवन के कार्यों को नियंत्रित करता है। इसमें नींद, श्वास और हृदय की गति शामिल है।

डॉ. एके अरुण

शाहरुख खान के पुत्र आर्यन खान की नशा के मामले में गिरफ्तारी के बाद से देश में ड्रग्स का काला कारोबार चर्चा में है। आज देश में 'खास' लोग खासकर युवा बड़े पैमाने पर नशे की गिरफ्त में हैं। ड्रग्स का सेवन व्यक्ति को अन्दर से खोखला बना देता है। नशे की वजह से युवा शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर बीमार बन रहे हैं। नशे की ओवरडोज तो व्यक्ति की मौत का कारण बनती है। नशा हमारी सेहत को धीरे धीरे बरबाद कर देता है। नशीली दवाओं के सेवन से दिमाग काम करना बन्द कर देता है। नेशनल इन्स्टीच्यूट आॅन ड्रग एब्यूज (एनआईडीए) की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग हर तरह के नशे से दिमाग के ब्रेन स्टेम, सेरेबल कार्टेक्स आदि प्रभावित होते है। ब्रेन स्टेम हमारे जीवन के कार्यों को नियंत्रित करता है। इसमें नींद, श्वास और हृदय की गति शामिल है। हमारे मस्तिष्क का लिम्बिक तंत्र शरीर से इमोशन को नियंत्रित करता है। नशे की हालत में ड्रग्स की ज्यादा खुराक ब्रेन स्टेम एवं लिम्बिक सिस्टम को पंगु बना देता है और इसकी वजह से व्यक्ति बीमार रहने लगता है। एक तरह से यह आदत बन जाती है और व्यक्ति इसका आदी हो जाता है।

नर्वस सिस्टम पर असर

हमारे शरीर के मस्तिष्क में न्यूरो ट्रान्समीटर होते हैं जो व्यक्ति के मूड को नियंत्रित करते हैं। जब भी कोई व्यक्ति नशा करता है और खास कर जब उसका आदि बन जाता है तब वह ज्यादा नशा की वजह से अनिद्रा का शिकार हो जाता है। इस अवस्था में व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, उदासी घर कर जाती है और धीरे धीरे वह डिप्रेशन में चला जाता है। हमारे शरीर में तंत्रिका तंत्र के अलावे अंतःस्त्रावी तंत्र एक महत्वपूर्ण तंत्र है। यह शरीर के विभिन्न गतिविधियों को नियंत्रित करता है। ये न्यूरो ट्रान्समीटर या हार्मोन के रूप में विशेष रसायन शरीर में छोड़ते रहते हैं। जैसे अमीनो एसिड डेरिवेटिव, नारपेनाफ्रिन इत्यादि। दरअसल न्यूरो ट्रान्समीटर नर्वस सिस्टम में पाए जानेवाले रासायनिक दूत की तरह होते हैं जो शरीर में उत्तेजना पैदा करते हैं। डोपामाइन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो मस्तिष्क और शरीर में कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।नशे की लत वाली ड्रग्स शरीर में डोपामाइन की मात्रा को बढ़ा देते हैं। मसलन इससे व्यक्ति में अत्यधिक उत्तेजना और सक्रियता बढ़ जाती है। इसके आदी लोग ''गम भुलाने'' के नाम पर नशा करते करते हैं।

स्टेटस सिम्बल का बुखार

बड़े परिवारों में नशा एक ''स्टेटस सिम्बल'' के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। देखा देखी निमन मध्यम वर्ग के लड़के भी इसके आदी हो रहे हैं। एकल परिवार, हताशा, उम्मीदें पूरी न होना, बढ़ी चाहत आदि मामलों में युवा नशे की गिरफ्त में फंस रहे हें गलोबल बर्डेन आॅफ डिजिस 2020 के आंकड़े के अनुसार विगत तीन वर्षों में नशे का कारोबार 455 फीसद बढ़ा है। आंकड़े के अनुसार 2020 तक नशा से जुड़े कारोबार के कारण अपराधों में 81.6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज है। इसमें 44 फीसद नशे के आदि लोग नशा छोड़ना चाहते हैं लेकिन उन्हें समुचित इलाज नहीं मिल पाता। आंकड़ा बताता है कि देश में लगभग 1 करोड़ 3 लाख लोग गांजा या चरस का सेवन करते हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक नशे की लत से आत्महत्या करने वाले युवाओं में सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल से हैं। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार रोजाना भारत में शराब या नशा से 10 मौतें हो रही है।

सरकार की सुस्ती

युवाओं में बढ़ते नशे की वजह से यहां की सरकारें परेशान नहीं दिखती। सरकार की कोई भी ऐसी पहल भी नहीं दिखती जिससे समझा जा सके कि वह नशा रोकने के लिए कटिबद्ध है। गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर तीन बार नशे की बहुत बड़ी खपत आई लेकिन कोई ठोस कार्रवाई अब तक नहीं हुई है। जाहिर है यह खेप भारत के नौजवानों में नशा फैलाने के लिये मंगाई जा रही है और दूसरा मालिक देश का खतरनाक दुश्मन होते हुए भी खुला घूम रहा है। देश के युवाओं में फैली बेरोजगारी तथा उनमें रचनात्मकता का अभाव नशे के प्रसार के लिये उर्वरक जमीन तैयार करते हैं। विगत कुछ वर्षों में बेरोजगारी और अंतरधार्मिक, अंतरजातीय कट्टरता ने भी नशे के प्रचलन को बढ़ाया है। भारतीय निर्वाचन आयोग के एक विज्ञप्ति के अनुसार तमाम पहल के बावजूद चुनाव में उम्मीदवारों द्वारा नशा के वितरण के मामले चिन्ताजनक हैं।

प्रशासन गंभीर नहीं

बहरहाल देश में विकास का नारा देनेवाली सरकार यदि नशा, बेरोजगारी, महंगाई, जातीय-धार्मिक हिंसा, असहिष्णुता आदि पर रोक नहीं लगाती तो देश का पतन निश्चित है। हाल के दिनों में नशे के अपराध इस बात के गवाह हैं कि सरकारें नशा रोकने के लिये बहुत गम्भीर नहीं हैं। कोरोना काल में देखा गया है कि लम्बे लाॅकडाउन के दौरान जब स्कूल, काॅलेज व दुकानें बन्द थे तब कई राज्य सरकारें नशा (शराब) की होम डिलीवरी करवा रही थी। नशा का प्रचलन वहां भी ज्यादा बढ़ा है जिन राज्यों में शराबबंदी लागू है। गुजरात और बिहार जैसे प्रदेश शराबबन्दी वाले घोषित राज्य हैं, लेकिन यहां अवैध शराब और नशे के सेवन के आंकड़े चैंकाने वाले हैं। इन्हीं प्रदेशों से जहरीली शराब पीकर मरने वाले लोगों की खबरें भी आ रही हैं।

युवाओं को बचाना जरूरी

आज देश में युवाओं को नशे से बचाना बहुत जरूरी है वर्ना देश को बरबाद होने से कोई नहीं बचा सकता। आर्यन खान या रिया कोई भी सेलेब्रेटी यदि नशा करता है तो उनके पास इतने संसाधन हैं कि वे इससे उत्पन्न किसी भी स्थिति का मुकाबला कर सकते हैं लेकिन यदि निम्न मध्यवर्ग का युवा इसकी गिरफ्त में फंसता है तो वह और उसका परिवार तबाह होगा ही। इस लेख के माध्यम से मैं देश के युवाओं को आगाह करता हूं कि वे नशे से बचें ओर अपनी सेहत सम्हालें। उनका शरीर नशे नहीं बल्कि देश सेवा के लिए है।

Tags

Next Story