अरविंद जयतिलक का लेख : हमास से बढ़ेगा इजराइल का संघर्ष

अरविंद जयतिलक का लेख : हमास से बढ़ेगा इजराइल का संघर्ष
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गत वर्ष पहले अल-अक्सा मस्जिद कंपाउंड में इजरायली पुलिस और फिलीस्तीनियों के बीच जमकर झड़प हुई थी। उस झड़प में एक सौ से अधिक लोगों की जान गई और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हुई। चरमपंथी संगठन हमास ने रेगिस्तान के बीच बसे शहर बीर-शिवा और एश्कलोन को निशाना बनाया और जवाब में इजरायल ने गाजा पट्टी स्थित कई महत्वपूर्ण इमारतों के साथ अल जजीरा की कई महत्वपूर्ण इमारतों को ध्वस्त कर दिया। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस सरीखे देश खुलकर इजरायल के साथ हैं वहीं तुर्की, सीरिया, ईरान, सऊदी अरब और लेबनान जैसे देश हमास का समर्थन कर रहे हैं। भारत ने इजरायल पर हुए हमले की निंदा की है।

पश्चिम एशिया (मध्य-पूर्व) एक बार फिर जंग के मैदान में है। गाजा पट्टी पर काबिज आतंकी संगठन हमास ने जल-थल-नभ तीनों ओर से हमला बोलकर इजरायल को दहला दिया है। उसने इजरायल के दक्षिणी शहरों में तकरीबन सात हजार राकेट दागे हैं, जिसमें इजरायल के तीन सौ से अधिक लोगों की जान गई है। तकरीबन दो हजार से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए हैं। प्रतिकार में इजरायल ने भी हमास के ठिकानों पर बम बरसाकर कई सौ लोगों की जान ली है। दोनों के बीच अभी भी जंग जारी है। हमास ने इजरायल के कुछ सैनिकों और नागरिकों को बंधक भी बना रखा है। उसने दावा किया है कि इजरायल द्वारा अल-अक्सा मस्जिद को अपवित्र करने का बदला ले लिया है।

याद होगा गत वर्ष पहले अल-अक्सा मस्जिद कंपाउंड में इजरायली पुलिस और फिलीस्तीनियों के बीच जमकर झड़प हुई थी। उस झड़प में एक सौ से अधिक लोगों की जान गई और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हुई। चरमपंथी संगठन हमास ने रेगिस्तान के बीच बसे शहर बीर-शिवा और एश्कलोन को निशाना बनाया और जवाब में इजरायल ने गाजा पट्टी स्थित कई महत्वपूर्ण इमारतों के साथ एसोसिएट प्रेस और अल जजीरा की कई महत्वपूर्ण इमारतों को ध्वस्त कर दिया। उस हमले में गाजा के सिटी कमांडर बसीम इस्सा मारे गए थे। इजरायल-हमास संघर्ष ने दुनिया को दो खेमों में बांट दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस सरीखे देश खुलकर इजरायल के साथ हैं वहीं तुर्की, सीरिया, ईरान, सऊदी अरब और लेबनान जैसे देश हमास का समर्थन कर रहे हैं। भारत ने इजरायल पर हुए हमले की निंदा की है और कहा है कि इस कठिन समय में वह इजरायल के साथ है। अगर यह जंग थमी नहीं तो दुनिया कि शांति भंग हो सकती है, इसलिए और भी कि रूस और यूक्रेन पहले से ही युद्धरत हैं। दूसरी ओर अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बिगड़ते हालात ने अलग ही संकट खड़ा कर दिया है। उधर, चीन ताइवान को लगातार परेशान कर रहा है। चूंकि इजरायल ने हमास के हमले को चुनौती के तौर पर लिया है ऐसे में उसे कड़ा सबक सिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। मतलब साफ है कि यह जंग आसानी से थमने वाली नहीं है। अगर दोनों देशों के हालिया विवाद पर नजर दौड़ाएं तो हालात उस वक्त खराब हुए जब इजरायली सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वी यरुशलम के शेख जर्रा नामक स्थान से फिलीस्तीनियों के सात परिवारों को निकाले जाने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उन घरों को खाली करने का आदेश दिया जो 1948 में इजरायल के गठन से पहले यहूदी रिलीजन एसोसिएशन के अधीन थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फिलीस्तीनियों को निकालकर यहूदियों को बसाने की तैयारी हो रही थी। इससे फिलीस्तीनी भड़क गए। नतीजतन इजरायल के कई शहर और कस्बे दंगे की चपेट में आ गए। इन शहरों और कस्बों में अरब और यहूदियों के बीच मारकाट हुई। लोद शहर जो कि अरब और यहूदियों की मिलीजुली आबादी वाला शहर है, वहां स्थिति सबसे अधिक खराब हुई। हिंसा की वजह से इमरजेंसी लगा दी गई। फिलहाल इजरायल ने अपना मिलिट्री आॅपरेशन तेज करने और गाजा बाॅर्डर पर सैनिकों की संख्या बढ़ाने का एेलान कर दिया है। इजरायल ने कहा है कि हमारी सेना के गाजा पट्टी और फिलीस्तीन में हमले तब तक बंद नहीं होंगे, जब तक दुश्मन पूरी तरह शांत नहीं हो जाते हैं। गौर करें तो इजरायल और हमास के बीच मौजूदा जंग वर्ष 2014 की गर्मियों में 50 दिन तक चले युद्ध के बाद अब तक का यह सबसे बड़ी जंग है।

अच्छी बात है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय दोनों पक्षों से तनाव कम करने की अपील करनी शुरू कर दी है, लेकिन हालात सुधरेंगे इसमें संदेह है। ऐसा इसलिए कि दोनों पक्ष एक दूसरे का इतिहास-भूगोल बदलने पर आमादा है। दोनों के पीछे अंतरराष्ट्रीय गोलबंदी की सच्चाई भी किसी से छिपी नहीं है। इजरायल को अमेरिका का खुला समर्थन हासिल है वहीं फिलीस्तीन के कट्टरपंथी संगठन हमास को सीरिया और ईरान का समर्थन हासिल है। ईरान इजरायल के खिलाफ हमास की खुलकर मदद करता है। हमास की अन्य आतंकी संगठनों से भी मिलीभगत है। उसकी मंशा विश्व में इस्लाम का परचम लहराना और इजरायल को नेस्तनाबूद करना है। अमेरिका ईरान के यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम और मौजूदा तनाव को लेकर पहले से ही भड़का हुआ है। ऐसे में वह नहीं चाहता है कि हमास फिलीस्तीन में मजबूत और इजरायल कमजोर हो। गौरतलब है कि हमास फिलीस्तीनी सुन्नी मुसलमानों की एक सशस्त्र संस्था है जो फिलीस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण की मुख्य पार्टी है। इसका गठन 1987 में मिस्र और फिलीस्तीन के मुसलमानों ने किया था। इसके सशस्त्र विभाग का गठन 1992 में हुआ। इसका उद्देश्य इजरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करना है। गाजा पट्टी क्षेत्र में इसका विशेष प्रभाव है। गाजा पट्टी इजरायल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित तकरीबन 6-10 किलोमीटर चौड़ा और 45 किमी लंबा क्षेत्र है। इसके तीन ओर इजरायल का नियंत्रण है और दक्षिण में मिस्र है। पश्चिम एशिया में स्थित इजरायल तीन ओर से अरब राज्यों से घिरा हुआ है। इजरायल का क्षेत्रफल तकरीबन 21946 वर्ग किमी तथा आबादी करीब 70 लाख के आसपास है। फिलीस्तीन पर नजर डालें तो यह भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित ऐतिहासिक राज्य था जिसकी राजधानी यरुशलम थी। यह विश्व के महान ऐतिहासिक स्थलों में से एक और यहूदी तथा ईसाई धर्मों का जन्म स्थान है। 1930 के दशक में जर्मनी में नाजी अत्याचारों के कारण भारी संख्या में यहूदी शरणार्थी यहां आकर बसे। इससे यहूदियों और अरबों में शत्रुता बढ़ गई। वह शत्रुता अब विकराल रूप धारण कर चुकी है।

अरब जगत इजरायल को एक खंजर की तरह मानता है जिसने अरब जगत को काटकर टुकड़ों में विभक्त कर दिया है। 1948 में इजरायल में बसे अरबों के लिए अर्मिस्टाइस रेखा का निर्धारण हुआ जिसके तहत गाजा पट्टी में अरब जो सुन्नी मुस्लिम हैं, रहना सुनिश्चित हुआ, लेकिन 1948 से लेकर 1967 तक इस पर मिस्र का अधिकार रहा। 1967 की छह दिन की लड़ाई में इजरायल ने अरबों को निर्णायक रूप से पराजित कर इस पट्टी पर अपना अधिकार जमा लिया, किंतु 38 वर्ष बाद 2005 में इजरायल ने फिलीस्तीनी स्वतंत्रता संस्था के साथ हुए समझौते के तहत गाजा पट्टी से बाहर हटने का निर्णय लिया और साथ ही उसने गाजा पट्टी और पश्चिमी तट पर स्थित यहूदी बस्तियों को हटाने का भी फैसला लिया, लेकिन स्थिति तब बिगड़ गई जब चरमपंथी संगठन हमास ने 2006 में फिलीस्तीनी संसद के चुनावों में कुल 132 सीटों में 76 सीटें कब्जा ली और इजरायल को मान्यता देने से इनकार कर दिया। उसने 2008 में संघर्ष विराम के बाद भी गाजा पट्टी से इजरायल के दक्षिणी हिस्से पर हमला बोलना शुरू कर दिया। दरअसल हमास का मकसद इजरायल को समाप्त करना है।

(लेखक- अरविंद जयतिलक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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