विश्लेषण : घाटी की गर्माहट होगी कम, फिर स्वर्ग बनेगा कश्मीर

करीब एक पखवाड़े से जम्मू-कश्मीर में जारी गहमागहमी और सैन्य हलचल के बीच देशभर में जम्मू कश्मीर को लेकर बनी असमंजस की स्थिति उस वक्त खत्म हो गई, जब केन्द्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का ऐलान करते हुए पुनर्गठन बिल राज्यसभा में पास भी करा दिया गया। कश्मीर को धरती का स्वर्ग बनाए रखने के लिए इस कठोर व साहसी कदम की जरूरत लंबे अरसे से महसूस की जा रही थी। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त रहा है, जिसकी वजह से संसद से पारित कई कानून भी इस राज्य में लागू नहीं हो पाते थे और केन्द्र सरकार भी रक्षा, विदेश मामलों और संचार जैसे अहम विषयों के अलावा इस राज्य के अन्य किसी भी मामले में दखल नहीं दे सकती थी। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते थे।
देश की आजादी के बाद गोपाल स्वामी आयंगर ने संसद में धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया था, जो बाद में धारा 370 बनी। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार दिए गए। 27 अक्तूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने विलय संधि पर दस्तखत किए थे। उसी समय अनुच्छेद 370 की नींव पड़ गई थी, जब समझौते के तहत केन्द्र को सिर्फ विदेश, रक्षा और संचार मामलों में दखल का अधिकार मिला था।
17 अक्तूबर 1949 को अनुच्छेद 370 को पहली बार भारतीय संविधान में जोड़ा गया और महाराजा हरि सिंह ने 'जम्मू-कश्मीर इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' पर 27 अक्तूबर 1947 को दस्तखत किए, उसी के साथ धारा 370 अस्तित्व में आया।
370 के लागू रहते जम्मू कश्मीर के नागरिकों द्वारा भारत की आन-बान-शान के प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का सम्मान करना अनिवार्य नहीं था, वहां का अपना अलग झंडा होता था। 370 के चलते ही वहां के लोग सरेआम तिरंगे सहित अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करते थे, जगह-जगह पाकिस्तानी झंडे लहराए जाते थे।
अब इन हरकतों पर आसानी से लगाम लगाई जा सकेगी। गृहमंत्री अमित शाह ने दो टूक शब्दों में बिल्कुल सही कहा कि धारा 370 से सात दशकों में जम्मू कश्मीर में अगर किसी को फायदा हुआ तो सिर्फ नेताओं को। उनका कहना है कि धारा 370 आतंकवाद की जड़ है, जिससे राज्य को बहुत नुकसान हुआ है।
इसी के चलते भ्रष्टाचार और गरीबी बढ़ी लेकिन लोकतंत्र मजबूत नहीं हुआ। इसी के चलते राज्य में 70 सालों से सरपंचों के अधिकार छीने गए। अमित शाह ने अगर जम्मू-कश्मीर में गरीबी के लिए धारा 370 को जिम्मेदार ठहराया है तो इसके कारण भी स्पष्ट बताए हैं।
उनके अनुसार 2004 से 2019 तक 2 लाख 77 हजार करोड़ रुपया प्रदेश को भेजा गया लेकिन जमीन पर कुछ काम नहीं दिखा। 2011-12 में ही वहां 3687 करोड़ रुपया भेजा गया अर्थात्ा वहां के हर नागरिक के लिए 14 हजार रुपये की राशि थी, लेकिन लोगों तक कुछ नहीं पहुंचा।
2017-18 में भी 27 हजार रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिया गया लेकिन न जाने वह पैसा कहां चला गया। केन्द्र से जम्मू कश्मीर के विकास के लिए भेजी जाती रही भारी-भरकम धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रही।
धारा 370 के चलते ही घाटी में पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिला क्योंकि तमाम बड़ी पर्यटन कम्पनी वहां का रूख करने से घबराती थी क्योंकि न वे वहां जमीन खरीद सकती थी और न ही वहां खुद को सुरक्षित मानती थी।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर दिल्ली की तरह विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश होगा। सीमा पार आतंकवाद के लगातार बढ़ते खतरों के मद्देनजर दशकों से देशभर में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने की मांग प्रबल रही है किन्तु राजनीतिक इच्छाशक्ति न होने के कारण कोई भी सरकार यह कड़ा फैसला लेने में सफल नहीं हुई,
जिसकी सजा न केवल जम्मू कश्मीर बल्कि पूरा देश अब तक भुगतता रहा है। गृहमंत्री के अनुसार 1989 से 2018 तक राज्य में आतंकी घटनाओं के चलते 41849 लोगों की जान चली गई, अगर अनुच्छेद 370 नहीं होता तो इतने लोगों की जानें नहीं जाती। अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर में अब बहुत से बदलाव नजर आएंगे।
बहरहाल, जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा देने और धारा 370 को खत्म करने का मोदी सरकार का साहसिक कदम फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती जैसे घाटी में पल रहे 400-500 आतंकियों के दम पर भारत की सरजमीं पर ऐश करते उन पाकिस्तान परस्त नेताओं के गाल पर करारा तमाचा है, जो केन्द्र सरकार को खुली धमकी दिया करते थे कि अगर सरकार ने धारा 370 या 35ए को छूने की कोशिश भी की तो जिस्म जलकर राख हो जाएगा।
जम्मू कश्मीर में दहशतगर्दी को बढ़ावा देते रहे ये नेता किस कश्मीरियत की बात करते रहे हैं, वही कश्मीरियत, जिसके नाम पर पिछले काफी समय से भारत के सरताज कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने का खेल खेला जा रहा था। शायद ये लोग 1990 के उन लम्हों को भूल गए, जब वहां फारूक अब्दुल्ला की सरकार हुआ करती थी और मस्जिदों से घोषणाएं की गई थी कि सभी हिन्दुओं को आगाह किया जाता है कि वे अपनी तमाम सम्पत्ति और महिलाएं हमारे सुपुर्द करके आज ही कश्मीर छोड़ दें वरना अपने अंजाम के वे स्वयं जिम्मेदार होंगे।
तब कहां मर गई थी फारूक अब्दुल्ला की कश्मीरियत? क्या भारत के ही अभिन्न अंग कश्मीर के स्थायी निवासी के रूप में वहां रह रहे हिन्दू कश्मीरी नहीं थे? तब कश्मीर में वहशी दरिंदे हिन्दुओं की सम्पत्ति लूटकर उन्हें खदेड़ रहे थे और उनकी बहू-बेटियों की अस्मत लूटने के लिए उन्हें जबरन उठा ले गए थे, उस समय फारूक का जमीर क्यों मर गया था? सही मायनों में जम्मू कश्मीर से धारा 370 और धारा 35 ए तो 1990 के उस दौर में तुरंत प्रभाव से खत्म कर दी जानी चाहिए थी,
लेकिन ऐसी प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रभाव पिछली तमाम सरकारों में स्पष्ट झलकता रहा। आज अगर केन्द्र सरकार ने घाटी के अलगावादियों की तमाम धमकियों को रौंदते हुए बरसों से जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा और अलग संविधान देती रही धारा 370 को खत्म करने का साहस दिखाया है तो इसके लिए सरकार की जितनी भी सराहना की जाए, कम है।
निश्चित रूप से जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म करने और इसे एक अलग केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा देते हुए लद्दाख को इससे अलग करने के अति महत्वपूर्ण कदम से अलगाववादी नेताओं की घृणित राजनीति पर लगाम लगेगी और आने वाले दिनों में जम्मू कश्मीर की स्थिति में बड़ा सुधार देखने को मिलेगा।
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