सुशील राजेश का लेख : चौंकाने वाले होंगे जनादेश भी

सुशील राजेश का लेख : चौंकाने वाले होंगे जनादेश भी
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एग्जिट पोल बेशक राजनीतिक दलों के अपने आंतरिक सर्वे होते रहते हैं और वे अपेक्षाकृत ज्यादा मौलिक होते हैं, क्योंकि उनके सर्वे का क्षेत्र और सैंपल ज्यादा व्यापक होता है। मसलन भाजपा के लिए आरएसएस भी अनौपचारिक सर्वे करता है। उसके अलावा, बूथ-दर-बूथ पन्ना प्रमुख और बूथ प्रभारी होते हैं। वे व्यक्तिगत तौर पर जानते हैं कि कौन उनका मतदाता है और किसने मतदान कर लिया है। वे अपनी रपट जिला स्तर पर देते हैं। वे रपटें शीर्ष स्तर तक पहुंचती हैं, इसीलिए भाजपा राजस्थान में भी बहुमत की सरकार का दावा कर रही है। कांग्रेस में भी अंदरूनी सर्वे किए जाते रहे हैं, लेकिन वे इतने मतदाता-केंद्रित नहीं होते। वैसे भी एग्जिट पोल में अनुमान भाजपा और कांग्रेस के पक्ष में बराबर दिखाए गए हैं।

पांच राज्यों-मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और विधानसभा चुनावों के परिणाम 3 दिसंबर को और मिज़ोरम के नतीजे 4 को आएंगे,जो चौंकाने वाले होंगे! मतदान के बाद एग्जिट पोल के अनुमान भी चौंका देने वाले हैं। हालांकि विभिन्न अनुमानों में विरोधाभास हैं। निष्कर्ष भी विभाजित हैं, लेकिन एक चुनावी रुझान स्पष्ट हो रहा है। एग्जिट पोल की परंपरा भारत में नहीं थी। यह चुनावी मूल्यांकन की पश्चिमी पद्धति है, लेकिन वहां काफी सटीक साबित होती रही है। हमारे देश में भी कुछ चुनावी अनुमान 65 फीसदी से 95 फीसदी तक सही रहे हैं, लिहाजा एग्जिट पोल को नकारा नहीं जा सकता। बेशक राजनीतिक दलों के अपने आंतरिक सर्वे होते रहते हैं और वे अपेक्षाकृत ज्यादा मौलिक होते हैं, क्योंकि उनके सर्वे का क्षेत्र और सैंपल ज्यादा व्यापक होता है। मसलन भाजपा के लिए आरएसएस भी अनौपचारिक सर्वे करता है। उसके अलावा, बूथ-दर-बूथ पन्ना प्रमुख और बूथ प्रभारी होते हैं। वे व्यक्तिगत तौर पर जानते हैं कि कौन उनका मतदाता है और किसने मतदान कर लिया है। वे अपनी रपट जिला स्तर पर देते हैं। वे रपटें शीर्ष स्तर तक पहुंचती हैं, इसीलिए भाजपा राजस्थान में भी बहुमत की सरकार का दावा कर रही है। कांग्रेस में भी अंदरूनी सर्वे किए जाते रहे हैं, लेकिन वे इतने मतदाता-केंद्रित नहीं होते। वैसे भी एग्जिट पोल में अनुमान भाजपा और कांग्रेस के पक्ष में बराबर दिखाए गए हैं।

बहरहाल सबसे चाैंकाऊ अनुमान तेलंगाना के हैं, जहां बीते 10 साल से सत्तारूढ़ रहे चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी बीआरएस की विदाई का वक़्त आ गया लगता है। एग्जिट पोल में वे पिछड़ते लग रहे हैं और कांग्रेस की बहुमत वाली सरकार बनने की संभावनाएं सर्वाधिक हैं। यदि ऐसा होता है, तो कांग्रेस के पुनरोत्थान का अध्याय यहीं से शुरू हो सकता है। तेलंगाना का ‘सहोदर राज्य’ आंध्र प्रदेश है, जहां आज भी कांग्रेस का काडर शेष है। पड़ोसी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस सत्तारूढ़ है और तमिलनाडु में सरकार का एक घटक है। केरल में प्रमुख विपक्षी दलहै, जिसके लोकसभा सांसद सर्वाधिक हैं। यदि कांग्रेस नेतृत्व ने गंभीर प्रयास किए, तो पार्टी दक्षिण भारत से ‘चुनावी ताकत’ बनकर उभर सकती है। मेरा मानना है कि यदि इन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की दो सरकारें भी बनती हैं, तो उसे 2024 के आम चुनाव के बाद ‘नेता प्रतिपक्ष’ के लिए तरसना नहीं पड़ेगा। वह लोकसभा में 100 सीट तक पहुंच सकती है। यकीनन यह भाजपा के लिए प्रत्यक्ष चुनौती होगी। बहरहाल दूसरा चौंका देने वाला अनुमान राजस्थान के संदर्भ में सामने आया है। हालांकि एग्जिट पोल के आंकड़े विभाजित और विभिन्न हैं, लेकिन अनुमान ऐसे हैं कि उस राज्य में कांग्रेस ‘सत्ता का रिवाज़’ बदलती लग रही है। कांग्रेस की गारंटियां कारगर और सार्थक होती लग रही हैं। कुछ पोल भाजपा के बहुमत के प्रति आश्वस्त लग रहे हैं, लेकिन कुल मिलाकर कांग्रेस और भाजपा के बीच बेहद कड़ी टक्कर लगती है, लेकिन ज्यादा फायदा कांग्रेस के पक्ष में झुक रहा है। यदि कांग्रेस को ही जनादेश मिलता है, तो बीते 30 सालों का रिवाज़ बदल जाएगा। राजस्थान में 1993 से हर पांच साल के बाद सत्ता बदलती रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान में 15-16 जनसभाओं को संबोधित किया था और राजधानी जयपुर में बड़ा लंबा और जनसमर्थन वाला रोड शो भी किया था, लिहाजा रिवाज़ बदलता है, तो यह लोकसभा चुनाव के लिए भी सुखद संकेत नहीं है। 2019 के आम चुनाव में राज्य की सभी 25 संसदीय सीटों पर भाजपा उम्मीदवार जीते थे। कमोबेश अब कांग्रेस उस ‘शून्य’ वाली स्थिति से उबरती लगती है।

बहरहाल तीसरा आश्चर्य मध्य प्रदेश के संदर्भ में सामने आया है। वहां के अनुमान हैं कि करीब 18 साल की सत्ता के बावजूद भाजपा दो-तिहाई बहुमत के साथ सत्ता बरकरार रख सकती है। यह भाजपा की 2003 के बाद 5वीं सरकार होगी। बीच में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार 15 माह के लिए बनी थी। अलबत्ता भाजपा की ही निरंतर सत्ता रही है राजस्थान और मप्र में मुख्यमंत्री वही राजनेता रहेंगे अथवा चेहरे बदले जाएंगे, एग्जिट पोल में इनका उल्लेख नहीं है, लेकिन मेरा आकलन है कि मप्र में सरकार बनाने का बुनियादी श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को जाना चाहिए। उन्होंने ‘लाडली बहना’ योजना के जरिये करीब 1.31 करोड़ महिलाओं को लामबंद किया। मप्र में औसतन हर 10 महिलाओं में से 5 महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में वोट किया। वैसे भी महिलाओं ने सबसे ज्यादा वोट, हर राज्य में, भाजपा को दिए हैं, यह एग्जिट पोल से भी स्पष्ट है। यदि मप्र में शहरी, सवर्ण, 56 फीसदी ओबीसी, राजपूत, दलित महिलाओं आदि के वोट भाजपा को मिलते लग रहे हैं, तो इसका श्रेय भी शिवराज सिंह को जाएगा। पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा तय नहीं किया, लेकिन वह लगातार जनता में सक्रिय रहे। इसी कारण मप्र में भाजपा को कांग्रेस से 6-7 फीसदी वोट अधिक मिलते लग रहे हैं। मप्र के ‘सहोदर राज्य’ छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार यथावत रहेगी। यदि वहां भाजपा 15 सीट से 30-35 सीट तक पहुंचती है, तो वह भाजपा की जीत होगी, क्योंकि उसी अनुपात में कांग्रेस घटेगी।

पूर्वोत्तर में मिज़ोरम का जनादेश ‘त्रिशंकु’ रह सकता है। चौंकाऊ परिणाम इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि वहां पूर्व आईपीएस अफसर लाल दुहोमा की पार्टी ‘ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट’ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है। सत्तारूढ़ मिज़ोनेशनल फ्रंट ज्यादातर अनुमानों में पिछड़ रही है। उसने भाजपा से गठबंधन भी तोड़ दिया था, लिहाजा मिज़ोरम में भाजपा को 1-2 सीट ही नसीब हो सकती हैं, जबकि कांग्रेस को 2-8 सीटें मिलने के अनुमान लगाए गए हैं। यदि सरकार बनाने में ज़ेडपीएम को कुछ दिक्कत हुई, तो वह कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है। मिज़ोरम के जनादेश का राष्ट्रीय स्तरपर इतना ही महत्व हो सकता है कि भाजपा सरकारों की संख्या कम होगी और कांग्रेस का विस्तार होगा। एग्जिट पोल के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की राजनीति की तुलना नहीं की जा सकती। असली जनादेश भी 2024 के आम चुनाव के निर्णायक संकेतक नहीं होंगे। बेशक राहुल गांधी किसी भी मुद्दे के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी को ही निशाना बनाते हैं। बल्कि उनकी राजनीति प्रधानमंत्री के प्रति नफरत की हद तक रही है। एग्जिट पोल के आंकड़े जो भी हैं, लेकिन प्रधानमंत्री के जन-संबोधनों का असर कहीं 20 फीसदी के करीब हुआ है, तो किसी राज्य में 5 फीसदी का अनुमान लगाया गया है। प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे और संबोधन से भाजपा को अब भी वोट मिलते हैं, यह निश्चित है। राहुल गांधी देशभर में कांग्रेस को वोट नहीं दिला सकते। कांग्रेस विकल्प के तौर पर चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर रही है, वह ज्यादातर इसलिए है, क्योंकि मुसलमानों के लिए वह ‘प्राथमिकता की पार्टी’ बन गई है। यह तेलंगाना में भी देखा गया है, जहां मौजूदा सरकार ने मुस्लिम केंद्रित योजनाएं बनाईं और आरक्षण तक दिया, 83 फीसदी मुसलमानों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने महिला, युवा, आम आदमी, किसान, ओबीसी और दलित महिलाओं का एक ऐसा ‘लाभार्थी समूह’ तैयार किया है, जिसने भाजपा के पक्ष में लबालब मतदान किया है। उनके कार्यकाल में ही प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई ने ‘भगोड़े व्यापारियों’ से करीब 6.5 लाख करोड़ रुपये वसूल किए हैं। अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.4 फीसदी तक पहुंची है और मार्केट कैप पहली बार 4 लाख करोड़ डाॅलर के पार गया है। जिन महत्वपूर्ण योजनाओं पर मोदी सरकार निरंतर काम कर रही है, उनकी हकीकत पूरा देश जानता है, लिहाजा मैं क्या टिप्पणी करूं। प्रधानमंत्री ने ‘मुफ्त अनाज’ मुहैया कराने की योजना को पांच और साल बढ़ाया है। हालांकि इससे 2 लाख करोड़ रुपये सालाना का अतिरिक्त बोझ देश के खजाने पर पड़ेगा, फिर भी प्रधानमंत्री का संकल्प 100 फीसदी खाद्य सुरक्षा का है। मैंने यह विश्लेषण इसलिए किया है, क्योंकि चार राज्यों का चुनाव (मिज़ोरम को छोड़ कर) कल्याणकारी योजनाओं पर ही हुआ है। यह इतने व्यापक स्तर पर पहली बार चुनाव हुआ है कि ‘मुफ्त रेवड़ियां’ भी जनता का सरोकार रहीं। इसमें दोनों प्रमुख दल शामिल हैं। यदि राजस्थान में कांग्रेस को बहुमत मिलता है, तो उसमें 50 लाख रुपये तक की ‘चिरंजीवी’ योजना का अहम योगदान रहेगा। बहरहाल अब वास्तविक जनादेश की प्रतीक्षा है, जो चौंका देने वाले हो सकते हैं, क्योंकि पोल में भी बुनियादी फासले बहुत कम सामने आए हैं। चौंकने का अंदेशा है, तो कांग्रेस ने अभी से अपने संभावित विधायकों, निर्दलियों और बागियों की बाड़ेबंदी शुरू कर दी है।

(लेखक- सुशील राजेश,वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)


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