मोदी के मंत्रिमंडल में हमेशा खलेगी इन चहरों की कमी

मोदी के मंत्रिमंडल में हमेशा खलेगी इन चहरों की कमी
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असल में किसको मंत्री बनाना है किसको नहीं यह सब पूरी तरह प्रधानमन्त्री के अधिकार क्षेत्र में आता है। पीएम को मंत्री बनाते हुए राज्यों के अनुसार क्षेत्रीय संतुलन भी बनाना होता है और उसकी योग्यताएं-क्षमताओं को भी देखना होता है। फिर नरेन्द्र मोदी तो ऐसे प्रधानमन्त्री हैं जो सभी सांसदों और सभी मंत्रियों का पिछला रिपोर्ट कार्ड भी देखते हैं।

मोदी सरकार की दूसरी पारी का मंत्रिमंडल भी आखिर बन ही गया। जिसमें कुछ पुराने मंत्रियों को फिर से मंत्रिमंडल में जगह मिल गयी, कुछ नए चेहरों को भी प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्री पद प्रदान किया। साथ ही करीब 30 ऐसे पुराने मंत्री भी रहे जो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तो मंत्री थे। लेकिन इस बार वे मंत्री नहीं बन सके। असल में किसको मंत्री बनाना है किसको नहीं यह सब पूरी तरह प्रधानमन्त्री के अधिकार क्षेत्र में आता है। पीएम को मंत्री बनाते हुए राज्यों के अनुसार क्षेत्रीय संतुलन भी बनाना होता है और उसकी योग्यताएं-क्षमताओं को भी देखना होता है। फिर नरेन्द्र मोदी तो ऐसे प्रधानमन्त्री हैं जो सभी सांसदों और सभी मंत्रियों का पिछला रिपोर्ट कार्ड भी देखते हैं।

पीएम मोदी इस बार भी प्रचंड बहुमत से आये हैं,इसलिए उन पर कोई सांसद या एनडीए गठबंधन का कोई भी नेता किसी तरह का दबाव भी नहीं बना सकता। इसलिए पीएम ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ सलाह मशवरा करके,अपने विवेक से ही मंत्री चुने हैं।ऐसे ही जिसको उन्होंने नहीं लेना चाह उसे नहीं लिया। फिर भी इस बार मोदी मंत्रिमंडल में शामिल न होने वाले कुछ चेहरे ऐसे भी हैं, जिनकी कमी खलेगी। ऐसे पूर्व मंत्रियों में अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, सुरेश प्रभु,मेनका गांधी,उमा भारती, मनोज सिन्हा और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे सात चेहरे तो बार बार याद आयेंगे।

अरुण जेटली और सुषमा स्वराज भाजपा के दो ऐसे बड़े चेहरे हैं जो भाजपा की पहचान हैं। पिछले कई बरसों से भाजपा को बुलंद करने में इनका बड़ा योगदान है। इन दोनों ने ही अपने छात्र जीवन से करीब करीब एक ही समय में एबीवीपी से जुड़कर अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की थी। यहाँ तक जब अरुण जेटली ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव लड़ा था तब सुषमा स्वराज ने भी उनके लिए प्रचार किया था। दोनों वाजपेयी सरकार के दिनों से ही केंद्र में मंत्री बन गए थे। पहली मोदी सरकार में भी ये दोनों पीएम के विश्वसनीय मंत्री रहे। साथ ही दोनों की गिनती मोदी के नवरत्न और लोकप्रिय मंत्रियों के रूप में भी होती रही है। जेटली तो अमित शाह के बाद नरेन्द्र मोदी के दूसरे सबसे बड़े वफादार भी रहे हैं।

यूँ इन दोनों ने चुनाव पूर्व ही अपने ख़राब स्वास्थ्य के चलते चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी थी। लेकिन पिछली बार जेटली के अमृतसर से चुनाव हारने के बाद भी उन्हें वित्त मंत्री तक बनाया गया। लेकिन हाल ही में जब जेटली ने खुद पीएम को पत्र लिखकर खुद को मंत्री न बनाए जाने की अपील की। तब मोदी ने स्वयं जेटली से मिलकर इस बारे में बात की और उनकी स्वास्थ सम्बन्धी दिक्कतों को समझा। इसके बाद जेटली को उन्होंने मंत्रिमंडल में नहीं लिया। उम्मीद की जा रही है जब अरुण जेटली के स्वास्थ्य में सुधार होगा तब उन्हें फिर से मंत्री बनाया जाएगा। इस बार का बजट भी नयी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन पेश करेंगी।

हालांकि जेटली पिछले काफी दिनों से इस बजट को लेकर काम कर रहे थे। पिछले सप्ताह भी इस बजट को लेकर जेटली ने अपने आवास पर अधिकारियों संग मीटिंग ली थी। इससे पहले भी बात चाहे नोटबंदी के दिनों की हो या फिर जीएसटी लागू करने की या फिर एक साथ करोड़ों जनधन खाते खुलवाने की, जेटली ने हर मुश्किल काम को बखूबी संभाला। उधर सुषमा स्वराज भी मोदी मंत्रिमंडल की योग्य और लोकप्रिय मंत्री रही हैं। सिर्फ ट्विटर से आई शिकायतों पर भी उन्होंने जिस प्रकार तुरंत संज्ञान लेते हुए लोगों की मुश्किलें हल कीं, वह सब बेमिसाल रहा। सुषमा स्वराज अच्छी मंत्री होने के साथ शानदार वक्ता भी रही हैं।

संसद से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनके भाषणों को खूब सराहना मिली है। हालांकि सुषमा की ओर से कोई ऐसा बयान तो सामने नहीं आया जिसमें उन्होंने मंत्री बनने में अनिच्छा प्रकट की हो। हो सकता है प्रधानमन्त्री उनकी सेवाएँ कहीं और लेना चाह रहे हों। लेकिन फिलहाल उनका मंत्रिमंडल में न होना भी कुछ अटपटा सा लग रहा है। ऐसे ही सुरेश प्रभु, मेनका गांधी और उमा भारती भी वाजपेयी सरकार के दिनों से मंत्री रहे हैं। सुरेश प्रभु को तो मोदी ने पिछली बार शिव सेना के इनकार के बाद भाजपा के अपने कोटे से मंत्री बनाया। प्रभु ने पहले रेल मंत्री और फिर नागरिक विमानन तथा उद्योग और वाणिज्य मंत्री के रूप में अपने कई बेहतरीन कार्यों से खूब वाह वाह बटोरी।

प्रभु ने भी रेल मंत्री रहते हुए जिस तरह ट्विटर पर भी आई रेल यात्रियों की शिकायतों को सुना वह सब अविश्वसनीय सा लगता था कि आप रेल में सफ़र करते हुए ट्विटर पर रेल मंत्री को लिखें कि कम्पार्टमेंट में सफाई नहीं है तो अगले स्टेशन पर सफाई कर्मचारी आपके पास हाज़िर हो जाए। या फिर कोई यात्री अपनी तबियत ख़राब होने की बात कहे तो अगले स्टेशन पर डॉक्टर पहुँच जाए। इसलिए सुरेश प्रभु का मंत्री न बनना भी मन को व्यथित करता है। यदि उमा भारती की बात करें तो वह भाजपा का फायर ब्रांड चेहरा रही हैं। यूँ उमा ने भी चुनाव लड़ने से मना कर दिया था और कहा था कि चुनाव बाद वह गंगा यात्रा पर निकला जायेंगी।

जो यह दर्शाता है कि वह मंत्री नहीं बनना चाहतीं। फिर प्रधानमन्त्री के लिए यह भी मुश्किल है कि नेता लोकसभा का चुनाव तो न लड़ें पर उन्हें मंत्री बना दिया जाए। क्योंकि राज्यसभा से सदस्य बनाने की भी सीमित सीमायें होती हैं। उधर मेनका गांधी नेहरु-गांधी परिवार से होने के बावजूद बरसों से भाजपा के साथ ही रही हैं। वाजपेयी जी ने भी मेनका को अपने मंत्रिमंडल में लिया था। पिछली बार मोदी ने मेनका को महिला और बाल विकास मंत्री बनाया था। अब यह जिम्मेदारी स्मृति ईरानी को मिली है। लेकिन 8 बार से सांसद रही मेनका इस बार मंत्री नहीं हैं। हालांकि उन्हें लोकसभा स्पीकर बनाने की भी चर्चा है।

इनके अलावा मनोज सिन्हा और राज्यवर्धन सिंह राठोड़ ने अपने संसदीय क्षेत्र के साथ मंत्री के रूप में भी अच्छा काम किया। लेकिन मनोज सिन्हा इसके बावजूद गाजीपुर से चुनाव हार गए और वह अब लोकसभा सदस्य भी नहीं रहे। लेकिन राज्यवर्धन सिंह राठोड़ तो जयपुर ग्रामीण से अच्छे से चुनाव भी जीते। साथ ही सूचना प्रसारण के साथ खेल मंत्री के रूप में भी उनका काम इतना पसंद किया गया कि वह युवाओं की बड़ी पसंद बन गए हैं। इसलिए उनका भी इस बार मंत्रिमंडल में न होना बेहद खलेगा। मनोज सिन्हा और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे काबिल नेताओं की सेवाएँ आगे कहाँ ली जायेंगी, यह देखना दिलचस्प रहेगा।

वरिष्ठ पत्रकार / लेखक - प्रदीप सरदाना

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