चमकी पर कब जागेगी सरकार, गरीबों को भुगतना पड़ रहा खामियाजा

चमकी पर कब जागेगी सरकार, गरीबों को भुगतना पड़ रहा खामियाजा
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने जब मुजफ्फरपुर अस्पताल का दौरा किया, तो वहां अस्पताल में बदइंतजामी की पोल खुली। बेड से लेकर डॉक्टर, दवाएं आदि नहीं हैं। उनके सामने भी दो बच्चों की मौत हो गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करीब 14 साल से बिहार की सत्ता में हैं, उनकी सरकार ने अगर स्वास्थ्य सेवाओं पर अपेक्षित ध्यान दिया होता तो आज चमकी बुखार, मस्तिष्क ज्वर आदि से बच्चों को बचाया जा सकता था।

राज्यों में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत वर्षों से खराब है। सरकारें दर सरकारें बदलती रहीं, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ। करीब दो दशक से लग रहा है कि राज्य सरकारों की प्राथमिकताएं स्वास्थ्य सेवा नहीं हैं। सरकारी अस्पतालों की खराब हालत का सबसे अधिक खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है। खास बात है कि सभी दल खुद को गरीबों की हितैषी बताते नहीं थकते हैं, लेकिन उनकी सरकारें सरकारी अस्पतालों की दशा सुधारने के प्रति उदासीन बनी रहती हैं।

दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार के सरकारी अस्पतालों की हालत देश के अन्य राज्यों की तुलना में दयनीय है। बिहार के जिस क्षेत्र में अभी चमकी बुखार से महज 15 दिनों में 100 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है, उस क्षेत्र में करीब एक दशक से मस्तिष्क ज्वर की समस्या है। चमकी बुखार के लक्षण भी मस्तिष्क ज्वर जैसे ही हैं। इससे लगता हुआ यूपी के गोरखपुर रीजन में भी मस्तिष्क ज्वर जिसे जापानी इन्सेफ्लाइटिस भी कहते हैं, के मरीज बहुतायत में हैं।


दो साल पहले गोरखपुर मेडिकल कॉलेज सह सरकारी अस्पताल में 60 बच्चों की मौत जापानी बुखार से हो गई थी। 1978 से अब तक केवल गोरखपुर अस्पताल के रिकार्ड के मुताबिक करीब दस हजार बच्चों की मौत दिमागी बुखार से हुई। बिहार में भी हजारों बच्चों की मौत इसी रोग से हो चुकी है। यूपी के गोरखपुर से बिहार के मुजफ्फरपुर तक के क्षेत्र में मस्तिष्क ज्वर की समस्या करीब चार दशक से है।

इतने सालों में सरकारों ने इस बुखार पर विजय हासिल करने के लिए न शोध पर ध्यान दिया, न टीका विकसित किया, न पर्याप्त दवाएं उपलब्ध करा सकीं, न ही सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया, न अस्पतालों के इन्फ्रास्ट्रक्चर को ठीक किया। सबसे बड़ी बात सरकारों ने उस क्षेत्र में बुखार से बचने के लिए पर्याप्त सेनिटेशन व जागरूकता स्कीम भी नहीं चलाई, जबकि जापान, चीन इन बुखारों पर विजय हासिल कर चुके हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने जब मुजफ्फरपुर अस्पताल का दौरा किया, तो वहां अस्पताल में बदइंतजामी की पोल खुली। बेड से लेकर डॉक्टर, दवाएं आदि नहीं हैं। उनके सामने भी दो बच्चों की मौत हो गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करीब 14 साल से बिहार की सत्ता में हैं, उनकी सरकार ने अगर स्वास्थ्य सेवाओं पर अपेक्षित ध्यान दिया होता तो आज चमकी बुखार, मस्तिष्क ज्वर आदि से बच्चों को बचाया जा सकता था।


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रतीकों की राजनीति के बजाय बिहार में स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल आपूर्ति और बुनियादी ढांचा सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। केंद्र सरकार को भी समूचे देश में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए राज्य सरकारों पर दबाव देना चाहिए, स्वास्थ्य बजट में इजाफा किया जाना चाहिए, बीमारियां फैलाने वाले खराब खान-पान की बिक्री पर रोक लगानी चाहिए। अब स्वस्थ भारत जैसे अभियान केंद्र सरकार की तरफ से चलाया जाना चाहिए।

स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ने से देश की जीडीपी भी बढ़ेगी। बिहार में निजी स्वास्थ्य सेवाओं को भी रेगुलेट करने की आवश्यकता है। इस सेक्शन में भी व्यापक अराजकताएं हैं। कमोबेश देशभर में निजी स्वास्थ्य सेवाओं में अराजकताएं हैं, जहां मरीजों का आर्थिक शोषण होता है।

हालांकि विश्व के दूसरे देशों की अपेक्षा भारत में स्वास्थ्य सेवाएं सस्ती मानी जाती हैं और विदेशों से लोग मेडिकल टूरिज्म के लिए यहां आते हैं, लेकिन कड़वी सच्चाई यह भी है देश के करोड़ों गरीब सामान्य चिकित्सा सेवा से महरूम हैं। बहरहाल, केंद्र व राज्य सरकारों को चमकी बुखार को नियंत्रित करने के लिए हरसंभव कदम तत्काल उठाना चाहिए, ताकि और बच्चों की मौत न हो।

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