नरेंद्र सिंह तोमर का लेख : हर थाली में हो पोषणयुक्त अनाज

साठ के दशक से पहले पोषक अनाज यानी मिलेट्स हर आम हिंदुस्तानी का मुख्य आहार हुआ करते थे। तब ज्वार, बाजरा और रागी की रोटी हर थाली में नजर आती थी और गेहूं-चावल कम ही खाया जाता था। तत्कालीन हालात, खाद्यान्न की तंगी और उस समय की सरकार की नीतियों के चलते कृषि उत्पादन में देशभर में आए बदलाव ने क्रमशः गेहूं-चावल को हमारा प्रमुख खाद्यान्न बना दिया और मोटे अनाज की खेती कम होती गई। बंपर उत्पादन के मोह में प्रचुरता से रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग भी किया गया। इससे उत्पादन को बहुत बढ़ा, लेकिन समय के साथ कई प्रतिकूलताएं भी सामने आई हैं। इस परिवर्तन के दीर्घकालीन परिणाम पोषण की कमी, डायबिटीज, बीपी, मोटापा, हाइपरटेंशन, कैंसर जैसी कई बीमारियों के रूप में सामने आए हैं। देश की बड़ी आबादी तक खाद्यान्न की कमी को पूरा करना आज से पांच दशक पहले की हमारी पहली प्राथमिकता रही होगी, किंतु आज हम खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हैं। खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य सिर्फ लोगों की भूख मिटाना ही नहीं है, अपितु उन्हें पर्याप्त पोषण भी उपलब्ध करना है।
जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी हमारी दूसरी चुनौतियां हैं। हमें हमारे भविष्य का आहार ऐसा तय करना है, जिसमें पोषण की गुणवत्ता तो हो ही, साथ ही वह बदलती जलवायु में भी बेहतर उत्पादन के साथ ही कम से कम पानी में उन्हें पैदा किया जा सके। यह चिंता सिर्फ हमारे देश की ही नहीं है, अपितु वैश्विक है। भारत ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित करने का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव का समर्थन दुनिया के 72 देशों ने किया और संयुक्त राष्ट्र की महासभा (यूएनजीए) ने वर्तमान वर्ष यानी 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया। भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023 को एक जनआंदोलन का स्वरूप दे रही है, ताकि भारतीय मिलेट्स, व्यंजनों और उसके मूल्यवर्धित उत्पादों को वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता मिले। इससे पहले वर्ष 2018 को भारत सरकार द्वारा गेहूं व चावल जैसे प्रचलित भोजन की तुलना में मिलेट्स को उनकी पोषण संबंधी श्रेष्ठता के कारण पोषक-अनाज के रूप में अधिसूचित किया गया था। पोषक-अनाज को बढ़ावा देने व मांग सृजन के लिए 2018 को राष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष के रूप में मनाया गया था। अब मिलेट्स के स्वास्थ्य लाभों को देखते हुए हमारा उद्देश्य मिलेट्स की घरेलू और वैश्विक मांग बनाने के साथ ही जलवायु अनुकूल पोषक अनाज के उत्पादन, खपत, निर्यात, ब्रांडिंग आदि को बढ़ाने के लिए एक्शन प्लान लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना है। वस्तुतः देखा जाए तो मिलेट्स एक स्वदेशी सुपरफूड है, जो आज के समय की अपरिहार्य आवश्यकता है। प्रमुख मिलेट्स में बाजरा, ज्वार और फिंगर मिलेट, छोटे मिलेट या मामूली मिलेट्स जैसे, फॉक्सटेल मिलेट (कंगनी/काकुन), प्रोसो मिलेट (चीना), कोदो मिलेट (कोदो), बार्नयाड मिलेट (सनवा/झंगोरा), लिटिल मिलेट (कुटकी) और स्यूडो मिलेट (बक गेहूं-कुट्टू, अमरंथस-चैलाई) को शामिल किया गया है। इनकी पोषण संबंधी श्रेष्ठताएं आश्चर्यचकित करने वाली है। मिलेट्स में पाचन फाइबर की बहुतायतता के साथ ही प्रोटीन, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, आवश्यक अमीनो एसिड, फोलिक एसिड और विटामिन ई, खनिज जैसे आयरन, मैग्नीशियम, कॉपर, फॉस्फोरस, जिंक, कैल्शियम और पोटैशियम की अधिकता होती है। ग्लूटन-फ्री होने के कारण यह सीलिएक रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी है, इसके साथ ही मिलेट्स से मोटापे की समस्या पर नियंत्रण किया जा सकता है। टाइप 2 डायबिटीज के प्रबंधन में मिलेट्स मदद करते हैं, कार्डियक समस्याओं एवं काॅलेस्ट्राल पर नियंत्रण, हार्ट अटैक की आशंका कम करना, हड्डियों को स्वस्थ रखने में मदद करना तथा दाहक रोधी गुणों से युक्त होते हैं। मिलेटस से प्राप्त फाइबर आहार में प्रीबायोटिक प्रभाव होता है, स्तन केंसर और विशिष्ट प्रकार के कैंसर को बढ़ने से रोकने में मिलेट्स का सेवन कारगर है।
हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के तहत विभिन्न संस्थानों के शोधकर्ताओं ने पाया कि भारत में चावल और गेहूं की खेती में जस्ता और लोहे के अनाज घनत्व में कमी आई है। कृषि एवं पोषण विज्ञानियों का इस विषय में सुझाव रहा है कि भारतीय आबादी में जस्ता और लौह कुपोषण को कम करने के लिए चावल और गेहूं की नई (1990 और बाद में) किस्में उगाना एक स्थायी विकल्प नहीं हो सकता है। इसके लिए मिलेट्स के उत्पादन को प्राथमिकता देना एक मुख्य विकल्प है। भारत मिलेट्स के उत्पादन और क्षेत्र कवरेज दोनों में विश्व में प्रथम स्थान पर है। संयुक्त राज्य अमेरिका, नाइजीरिया और सूडान हमारे बाद क्रमशः दूसरे तीसरे स्थानों पर है। दुनिया का 18 प्रतिशत मिलेट्स उत्पादन भारत में होता है। भारत में, मिलेट 132.79 लाख हेक्टेयर के औसत क्षेत्र में उगाया जाता है, जिसमें 162.70 लाख टन का उत्पादन होता है और उपज 1225 किलोग्रामध्हेक्टेयर होती है। राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में 80 से अधिक मिलेट का उत्पादन होता है। पौष्टिक अनाजों के अंतर्गत 314 लाख हेक्टयर क्षेत्र के साथ उत्पादन 112.69 लाख टन और उत्पादकता 359 किलोग्राम हेक्टेयर वर्ष 1950-51 दर्ज की गई, जो वर्ष 2021-22 में बदलकर 121.44 लाख हेक्टेयर क्षेत्र, 159.21 लाख टन उत्पादन एवं 1311 किलोग्राम हेक्टयेर उत्पादकता हुई। यद्यपि अधिक उपज देने वाली फसलों के लिए क्षेत्र को बदलने के कारण क्षेत्र कम हो गया है, लेकिन उत्पादकता वर्ष 1950-51 की तुलना में 3 गुना से अधिक बढ़ गई है।
भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान हैदराबाद, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार और कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु अपने उत्कृष्टता केंद्रों के माध्यम से मूल्यवर्धित उत्पादों से बेहतर आय प्राप्त करने और मिलेट उत्पादकों को सहायता प्रदान करने के लिए मिलेट्स की अधिक मांग सुनिश्चित करने हेतु मूल्यवर्धन की दिशा में काम कर रहे हैं। मिलेट्स का उपयोग माल्टिंग, काढ़ा, गुड़ जैसे औद्योगिक उद्देश्य, मधुमेह रोगियों, पोल्ट्री और पशु चारा आदि के लिए मूल्य वर्धित उत्पाद के लिए उपयोग के अलावा पिज्जा, रागी बिस्कुट, ज्वार केक, स्नैक्स/भुना हुआ ज्वार, स्नैक/भुना हुआ मिक्स अनाज, पास्ता, नूडल्स, माल्ट फूड और यहां तक कि बेकरी उत्पादों जैसे कई मूल्यवर्धित उत्पादों को तैयार करने में किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अमृतकाल में विजन 2047 की नई दृष्टि दी है। हर भारतीय की थाली में पोषणयुक्त आहार की समुचित उपलब्धता विजन का एक हिस्सा है। मिलेट्स का उत्पादन बढ़ाना और इसका अधिकाधिक उपयोग इस दिशा में एक ठोस और कारगर कदम है।
(लेखक केंद्रीय कृषि मंत्री हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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