रवि शंकर का लेख : युवाओं के उत्थान से राष्ट्र निर्माण

रवि शंकर
युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं और युवा ही देश का वर्तमान, भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं। यह देखा जा सकता है कि हमारे राष्ट्र के लिए कई परिवर्तन, विकास, समृद्धि और सम्मान लाने में युवा सक्रिय रूप से शामिल हुए हैं। इतना ही नहीं समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है। इतिहास गवाह है कि आज तक दुनिया में जितने भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए, चाहे वे सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक या वैज्ञानिक रहे हों, उनके मुख्य आधार युवा ही रहे हैं। भारत में भी युवाओं का एक समृद्ध इतिहास है। प्राचीनकाल में आदिगुरु शंकराचार्य से लेकर गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी ने अपनी युवावस्था में ही धर्म एवं समाज सुधार का बीड़ा उठाया था। पुनर्जागरण काल में राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ विवेकानंद जैसे युवा विचारक ने धर्म एवं समाज सुधार आंदोलन का नेतृत्व किया।
यदि वर्तमान भारत की बात की जाए तो यह दुनिया का सबसे युवा देश है। जनसंख्या के आंकड़ों के मुताबिक भारत में पच्चीस वर्ष तक की आयु वाले लोग कुल जनसंख्या का पचास फीसदी हैं, वहीं पैंतीस वर्ष तक वाले कुल जनसंख्या का पैंसठ फीसदी हैं। यही कारण है कि इसे दुनियाभर में उम्मीद की नजरों से देखा जा रहा है और इक्कीसवीं सदी की महाशक्ति होने की भविष्यवाणी की जा रही है। युवा आबादी ही देश की तरक्की को रफ्तार प्रदान कर सकती है। जैसा कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि हमारे पास युवा संसाधन के रूप में अपार संपदा है और यदि समाज के इस वर्ग को सशक्त बनाया जाए तो हम बहुत जल्द महाशक्ति बनने के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। वहीं दुनिया की लगभग 25 प्रतिशत आबादी युवा है। जनसंख्या का इतना बड़ा हिस्सा राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि युवा शक्ति वरदान है या चुनौती? महत्वपूर्ण इसलिए भी यदि युवा शक्ति का सही दिशा में उपयोग न किया जाए तो इनका जरा सा भटकाव राष्ट्र के भविष्य को अनिश्चित कर सकता है। आज बहुत से ऐसे विकसित और विकासशील राष्ट्र हैं, जहां नौजवान ऊर्जा व्यर्थ हो रही है। कई देशों में शिक्षा के लिए जरूरी आधारभूत संरचना की कमी है तो कहीं प्रछन्न बेरोजगारी जैसे हालात हैं। इन स्थितियों के बावजूद युवाओें को एक उन्नत एवं आदर्श जीवन की ओर अग्रसर करना वर्तमान की सबसे बड़ी जरूरत है। यह सच है कि जितना योगदान देश की प्रगति में कल-कारखानों, कृषि, विज्ञान और तकनीक का है, उससे बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान स्वस्थ और शक्तिशाली युवाओं का होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ युवाओं से ही राष्ट्र को मजबूती मिलती है। ऐसे में देश के युवाओं को शिक्षित करने, रोजगार प्रदान करवाने के साथ-साथ संस्कारित करना भी जरूरी है, क्योंकि देश के नवनिर्माण में युवाओं का अमूल्य योगदान होता है। भले आज युवा पीढ़ी शायद इन बातों से अनजान है। शायद आज की युवा पीढ़ी को अपनी इस शक्ति का अंदाजा नहीं है। देश की युवा शक्ति ही समाज और देश को नई दिशा देने का सबसे बड़ा औजार है। वह अगर चाहे तो इस देश की सारी रूप-रेखा बदल सकती है। अपने हौसले और जज्बे से समाज में फैली विसंगतियों, असमानता, अशिक्षा, अपराध आदि बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंक सकती है। अर्नाल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक 'सरवाइविंग द फ्यूचर' में नौजवानों को सलाह देते हुए लिखा है 'मरते दम तक जवानी के जोश को कायम रखना, इसलिए नया भारत निर्मित करते हुए हमें अब युवा पीढ़ी के सपनों को टूटते-बिखरते हुए नहीं रहने देना है, बल्कि देश निर्माण में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
मूल प्रश्न है कि क्या हमारे आज के नौजवान भारत को एक सक्षम देश बनाने का स्वप्न देखते हैं? या कि हमारी वर्तमान युवा पीढ़ी केवल उपभोक्तावादी संस्कृति से जन्मी आत्मकेंद्रित पीढ़ी है? दोनों में से सच क्या है? दरअसल हमारी युवा पीढ़ी महज स्वप्न जीवी पीढ़ी नहीं है, वह रोज यथार्थ से जूझती है, उसके सामने भ्रष्टाचार, आरक्षण का बिगड़ता स्वरूप, महंगी होती शिक्षा, करियर की चुनौती और उनकी नैसर्गिक प्रतिभा को कुचलने की राजनीतिक विसंगतियांे जैसी तमाम विषमताओं और अवरोधों की अनेक समस्याएं भी हैं। उनके पास कोरे स्वप्न ही नहीं, बल्कि आंखों में किरकिराता सच भी है। इन जटिल स्थितियों से लोहा लेने की ताकत युवक में ही है, क्योंकि युवक शब्द क्रांति का प्रतीक है, इसलिए युवा पीढ़ी पर यह दायित्व है कि वह युवा दिवस पर कोई ऐसी क्रांति करे, जिससे युवकों की जीवनशैली में रचनात्मक परिवर्तन आ सके, हिंसा-आतंक और नशे की राह को छोड़कर वे निर्माण की नई पगडंडियों पर अग्रसर हो सकें। युवा अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगे हैं, कुछ युवा अपवाद हो सकते हैं, लेकिन उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। केवल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाकर स्वामी विवेकानन्द के स्वप्न को साकार नहीं किया किया जा सकता और न ही युवाओं के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में इसका प्रारंभ वर्ष 1985 से हुआ, जब सरकार ने स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस पर अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। गौरतलब है कि स्वामी विवेकानंद अपने विचारों, आदर्शों और लक्ष्यों की वजह से आज भी बहुत प्रासंगिक हैं। उन्होंने युवाओं को शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक संधान के माध्यम से इन्हें प्राप्त करने का तरीका बताया। आज का युवा इनमें से किसी एक भी मार्ग पर चलकर शांति, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति कर सकता है।
नि:संदेह, युवा देश के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। युवाओं को देश के विकास के लिए अपना सक्रिय योगदान प्रदान करना चाहिए। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र निर्माण के कार्यों में युवाओं को सक्रिय रूप से सम्मिलित करना अति महत्वपूर्ण है तथा इसे यथाशीघ्र एवं व्यापक स्तर पर किया जाना चाहिए। इससे एक ओर तो वे अपनी सेवाएं देश को दे पाएंगे, दूसरी ओर इससे उनका अपना भी उत्थान होगा, तभी भारत दुनिया का सिरमौर बन सकेगा। तभी हम सच्चे अर्थों में आजादी का आनंद ले पाएंगे और युवा दिवस मनाना पूरी तरह से सार्थक हाे पाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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