रंजना मिश्रा का लेख : कारगिल शहीदों को राष्ट्र का नमन

रंजना मिश्रा
26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की। इस दिन को हर साल कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है। करीब 2 महीने तक चले कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और शौर्य का ऐसा उदाहरण है, जिस पर हर देशवासी को गर्व है। लगभग 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ी गई कारगिल की इस जंग में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी फौज को हराकर वीरता की मिसाल कायम की। कारगिल युद्ध का जब भी जिक्र आता है तो हमें याद आते हैं वो जांबाज और दिलेर जवान, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर देश के दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। कारगिल गवाह है इन जवानों के हौसले और देश पर मर मिटने के अदम्य साहस का।
90 के दशक का ये वो दौर था, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे और भारत के प्रधानमंत्री थे अटल बिहारी वाजपेई। वाजपेई जी तमाम गिले-शिकवे भुलाकर, पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध स्थापित करने की चाहत में पाकिस्तान से आपसी सौहार्द बनाना चाहते थे। 1999 में वे पीएम के रूप में अमन और भाईचारे की बस लेकर लाहौर रवाना हुए, लेकिन पाकिस्तान तो कारगिल जंग की तैयारी पूरी कर रहा था। आतंकवादियों के भेष में पाकिस्तानी सेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल के पास कारगिल सेक्टर में कई भारतीय चोटियों पर कब्जा कर लिया। लेकिन इसकी भनक पड़ते ही हमारी सेना के वीर जवान पाकिस्तान को एक बार फिर से मुंहतोड़ जवाब दिया।
कारगिल एक निर्जन पहाड़ी इलाका है, जहां की आबादी शून्य के बराबर है। ये 6 महीने बर्फ से पूरी तरह ढका होता है और केवल 6 महीने ही आवागमन संभव होता है। लेकिन इतना जटिल क्षेत्र होने के बावजूद सामरिक नजरिए से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि श्रीनगर से लेह को जोड़ने वाला श्रीनगर-लेह राजमार्ग-1ए वहां से गुजरता है। अगर कोई दुश्मन इन चोटियों पर कब्जा कर लेता है तो राजमार्ग 1ए बुरी तरह प्रभावित होता है और देश का संपर्क लेह से कट सकता है। इसके अलावा कारगिल ऐसे स्थान पर स्थित है, जो चार घाटियों का प्रवेश द्वार है। इसी के चलते पाकिस्तानी सेना लद्दाख में घुसने के लिए सबसे पहले कारगिल को अपना निशाना बनाती है। 1999 से पहले 1948, 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने इस क्षेत्र पर कब्जा जमाने का असफल प्रयास किया था। सामरिक नजरिए से कारगिल कश्मीर घाटी, लद्दाख और सियाचिन ग्लेशियर पर हमारी सैन्य सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। 1999 में इस क्षेत्र में पाकिस्तान ने एक सुनिश्चित योजना के तहत घुसपैठ की। दरअसल पाकिस्तान की कोशिश थी कि लेह को श्रीनगर से जोड़ने वाली सड़क पर कब्जा कर इसे बंद कर दिया जाए, ताकि सर्दियों के दौरान लद्दाख में जरूरी सामान की आपूर्ति रुक जाए। साथ ही द्रास और कारगिल पर कब्जा कर नियंत्रण रेखा खुलवाई जा सके। इसके अलावा चुघ घाटी, बाल्टिक और तुतुर्क क्षेत्रों की पहाड़ियों पर कब्जा कर भारत को सियाचिन से पीछे हटने को मजबूर किया जा सके। दरअसल पाकिस्तान सबसे बढ़कर नियंत्रण रेखा में बदलाव करना, शिमला समझौते को खत्म करना और कश्मीर को फिर से अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहता था। पाकिस्तान ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर जम्मू-कश्मीर पर कब्जा जमाने के अपने इस अभियान को ऑपरेशन बद्र नाम दिया। पाक ने अपनी इस घुसपैठ की योजना अक्टूबर 1998 में ही बना ली थी और इसी के तहत अक्टूबर 1998 में तत्कालीन पाक सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने पीओके के उत्तरी इलाकों का दौरा किया था। इस योजना के तहत पाक समर्थित घुसपैठिए और सैनिक 1999 के अप्रैल और मई के महीने के पहले सप्ताह तक, कारगिल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय क्षेत्र में दाखिल हो चुके थे। सबसे पहले भारतीय सेना की एक गस्ती टुकड़ी की नजर उन पर पड़ी। इसके बाद सेना ने घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए अपना एक गश्ती दल भेजा, लेकिन उसे काफी क्षति उठानी पड़ी। घुसपैठियों ने पाकिस्तानी सेना के सहयोग से 9 मई 1999 को कारगिल शहर के बाहर सेना के मुख्य आयुध भंडार को नष्ट कर दिया। पाकिस्तानी सेना ने भारतीय चौकियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। ये घुसपैठियों को आगे बढ़ाने और प्रोत्साहित करने की रणनीति का हिस्सा था। घुसपैठियों की संख्या और फैलाव को देखते हुए भारतीय सेना ने 14 मई 1999 को ऑपरेशन फ्लैशऑउट शुरू किया। हालात की गंभीरता को देखते हुए भारतीय वायु सेना भी इस अभियान में शामिल हुई। उत्तर भारतीय नेवी ने पाकिस्तान के खिलाफ अपने युद्धपोत अरब सागर में तैनात कर दिए। जिसके चलते पाकिस्तानी नेवी और कराची में पाकिस्तानी जहाज सक्रिय नहीं हो पाए। इस युद्ध के दौरान भारतीय थल सेना ने अपने अभियान को ऑपरेशन विजय, जल सेना ने ऑपरेशन सफेद सागर और वायु सेना ने ऑपरेशन तलवार का नाम दिया। करीब 2 महीने तक ये युद्ध चला और जुलाई के अंतिम सप्ताह में जाकर खत्म हुआ। पाक ने इस लड़ाई में आतंकवादियों का खूब इस्तेमाल भी किया। भारत ने पाकिस्तान को युद्ध के दौरान ही कड़ा संदेश दे दिया था कि जब तक वो जम्मू-कश्मीर की नियंत्रण रेखा से अपनी सेना पूरी तरह वापस नहीं बुलाता, तब तक उससे कोई बातचीत नहीं होगी। पाकिस्तान पर उसकी इस नापाक हरकत के लिए अमेरिका समेत दुनिया के दूसरे देशों का दबाव भी बढ़ने लगा। अमेरिका ने पाकिस्तान को इस दौरान साफ संकेत दे दिया कि अगर वो युद्ध को और बढ़ाता है और अपनी सेना पीछे नहीं हटाता तो वह भारत को सीधे समर्थन दे सकता है। पाक के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें कहीं से भी कोई समर्थन नहीं मिला। इस बीच भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस और वीरता दिखाते हुए 5 जुलाई को टाइगर हिल्स के पश्चिम के पॉइंट 4875 पर कब्जा कर लिया। इसके बाद भारतीय सेना ने बाल्टिक क्षेत्र पर भी अपना कब्जा जमा लिया। भारतीय सेना के साहस के आगे पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए और 10 जुलाई 1999 से पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा से पीछे हटने लगी। 14 जुलाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने ऑपरेशन विजय की जीत की घोषणा की। 26 जुलाई 1999 तक भारतीय सेना ने सभी पाकिस्तानी घुसपैठियों और सैनिकों को भारतीय सीमा से बाहर खदेड़ दिया। अटल जी ने इस दिन को विजय दिवस के तौर पर मनाने का आह्वान किया।
ऑपरेशन विजय के दौरान थल सेना के 519 जवान और वायु सेना के 5 सैनिक शहीद हुए, जबकि 1365 सैनिक घायल हुए और एक सैनिक लापता हुआ। कारगिल युद्ध में भारत की जीत ने साबित कर दिया कि हमारे सैनिक देश की सुरक्षा के लिए जान की बाजी लगाने का जज्बा रखते हैं और भारत की ओर उठने वाली हर बुरी नजर का मुंह तोड़ जवाब दे सकते हैं। आज राष्ट्र अपने कारगिल शहीदों को नमन कर रहा है।
(लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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