विनोद पाठक का लेख : क्रिप्टो मार्केट पर नियंत्रण जरूरी

आधुनिक युग में नवीनतम तकनीकों के साथ यदि किसी निवेश को सबसे अधिक पसंद किया जा रहा है तो वह क्रिप्टो निवेश ही है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में बिटकॉइन, इथेरियम और बाइनेन्स जैसी क्रिप्टोकरेंसी में भारी गिरावट देखने को मिली। इसका असर यह हुआ कि जिस क्रिप्टोकरेंसी मार्केट की लोकप्रियता दुनियाभर में तेजी बढ़ी थी, अब उसको लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। अगर आप इससे जुड़े आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि अक्टूबर 2021 से सितंबर 2022 के बीच कराए गए सर्वे के मुताबिक वर्ष 2018-19 के दौरान भारत में जहां सिर्फ 8 प्रतिशत लोगों ने क्रिप्टोकरेंसी में निवेश किया था, वहीं वर्ष 2021-22 में ऐसे लोगों की तादाद 27 प्रतिशत तक पहुंच गई। इस बीच, दक्षिण अफ्रीका और स्पेन में भी क्रिप्टो यूजर्स की संख्या बढ़ी। हालांकि भारत जैसी उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्था में क्रिप्टो परिसंपत्ति का विनियमन अभी नवजात अवस्था में है। ऐसे में क्रिप्टोकरेंसी के प्रवाह को विनियमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग अत्यंत आवश्यक है।
क्रिप्टोकरेंसी के भविष्य का सही आकलन कर पाना बेहद मुश्किल है, लेकिन जो लोग इसके विशेषज्ञ हैं, उनका मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी भविष्य में नियमित रूप से चलने वाली करेंसी की जगह ले ले तो आश्चर्य नहीं होगा। क्रिप्टो के निवेशक इस वजह से भी बढ़ रहे हैं, क्योंकि लोग बड़े पैमाने पर निवेश के दूसरे विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। वर्ष 2021 में क्रिप्टोकरेंसी के बाजार में वर्ष 2020 की तुलना में साढ़े 15 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली थी। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में जहां भारतीय निवेशकों ने क्रिप्टोकरेंसी में महज 28.10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था, वहीं वर्ष 2021 में यह बढ़कर लगभग 438.18 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था। इस वर्ष के बीते छह महीनों में क्रिप्टोकरेंसी में लगभग 139.9 मिलियन डॉलर का निवेश देखने को मिला। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में क्रिप्टोकरेंसी सेक्टर में कुल मार्केट कैपिटलाइजेशन में 187.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली थी। पूरे क्रिप्टो बाजार में सिर्फ बिटकॉइन ने ही 59.8 प्रतिशत रिटर्न दिया था।
हालांकि हाल में क्रिप्टोकरेंसी में आई बड़ी गिरावट से चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल है। बाजार में क्रिप्टोकरेंसी के कमजोर होने से बड़े पैमाने पर भारतीय निवेशक भी इससे पैसा बाहर निकालते दिख रहे हैं। इससे बाजार में इस बात पर अब बहस शुरू हो गई है कि क्या क्रिप्टोकरेंसी के दिन ढल गए या एक बार फिर रंगत लौटेगी। भारत सरकार के बजट 2022-23 में डिजिटल करेंसी को लेकर जो घोषणाएं की गई हैं, उससे भारत में आने वाले दिनों में डिजिटल करेंसी का बाजार बढ़ने की उम्मीदें जगी हैं।
क्रिप्टो के जानकारों का कहना है कि भारत के स्टार्टअप पारितंत्र को क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन टेक्नोलाजी द्वारा नई ऊर्जा प्रदान की जा सकती है। इससे रोजगार के कई अवसर सृजित किए जा सकते हैं। ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि भले ही वर्तमान में ग्लोबल बाजारों की अस्थिरता के कारण निवेशक डर रहे हैं, लेकिन बाजार जैसे ही संभला इसमें दोबारा रंगत लौटने की उम्मीद बनी हुई है। क्रिप्टो के निवेशकों को उम्मीद इसलिए भी है क्योंकि समूचा विश्व जब कोविड-19 महामारी से जूझ रहा था उसी दौरान क्रिप्टोकरेंसी का चलन तेजी से बढ़ा। क्रिप्टो के जानकारों का कहना है कि भारत के स्टार्टअप पारितंत्र को क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन टेक्नोलाजी द्वारा नई ऊर्जा प्रदान की जा सकती है। इससे रोजगार के कई अवसर सृजित किए जा सकते हैं। ऐसे में भारत में इसके रेगुलेशन को लेकर ध्यान देने की जरूरत है।
क्रिप्टोकरेंसी के रेगुलेशन को लेकर विभिन्न देशों में अलग-अलग विचार देखने को मिलते हैं। हर देश अपने हित के हिसाब से क्रिप्टोकरेंसी पर विचार कर रहा है। जानकारों का कहना है कि अमेरिका क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध के लिए राजी नहीं है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में इससे डॉलर को और मजबूती मिलने की उम्मीद है। वहीं, दूसरी तरफ क्रिप्टोकरेंसी में लगातार गिरावट के बीच भारत सरकार इसके रेगुलेशन पर बड़ा फैसला करना चाहती है। सरकार क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने के विकल्पों पर पहले से विचार कर रही है। सरकार इस मसले का कोई सार्थक समाधान चाहती है। भले ही सरकार ने क्रिप्टोकरेंसी को लेकर फिलहाल कोई कानून नहीं बनाया हो, लेकिन आयकर विभाग क्रिप्टो निवेश पर होने वाली इनकम पर टैक्स लेता है। साफ है कि अगर किसी निवेश पर टैक्स लिया जा रहा है तो इसका मतलब है कि सरकार उसे आय का स्रोत मान रही है। इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि भारत को लेकर कंपनियां आश्वस्त हैं कि यहां चीन की तरह क्रिप्टो पर बैन लगाकर तानाशाही रवैया नहीं चलेगा। ऐसे में भारत सरकार को क्रिप्टोकरेंसी पर व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। अभी हाल में अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी जेनेट येलेन ने भी बयान दिया था कि क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने के लिए संयुक्त पहल की जरूरत है। कई देश ऐसी मान्यता लेकर चल रहे हैं कि क्रिप्टोकरेंसी को बैन करने से कुछ हासिल नहीं होगा। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि क्रिप्टो को बैन करने के लिए कोई भी फूल-प्रूफ मेकेनिज्म संभव नहीं है। इसके अलावा एक सच यह भी है कि मौजूदा समय में वर्चुअल करेंसी से पूरी तरह से छुटकारा पाना आसान नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की व्यापार एवं विकास संस्था यूएनसीटीएडी के अनुसार वर्ष 2021 में क्रिप्टोकरेंसी रखने वाली आबादी की हिस्सेदारी के लिहाज से 20 शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से 15 विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं थीं।
इस मार्केट से जुड़े लोग जानते हैं कि क्रिप्टो मार्केट बहुत ज्यादा संवेदनशील और अस्थिर है। यानी इसमें उतार-चढ़ाव बहुत ज्यादा होता है। सिर्फ अमेरिकी शेयर बाजार ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के शेयर बाजार इस साल गिरे। कहने का मतलब यह है कि संस्थागत निवेशकों को लगता है कि दुनियाभर में अर्थव्यस्था के मोर्चे पर अस्थिरता है, इसलिए निवेशक उस जगह से पैसा निकाल रहे हैं, जहां से उन्हें रिटर्न की गारंटी नहीं है। फिर चाहे वो शेयर बाजार हो या क्रिप्टो मार्केट। क्रिप्टोकरेंसी में जिस तकनीक ब्लॉकचेन का इस्तेमाल होता है, उससे उस क्रिप्टोकरेंसी पर किसी एक व्यक्ति या संस्था का नियंत्रण नहीं रहता, बल्कि डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी के जरिये उसे अलग-अलग लोकेशन से संभाला जाता है। तकनीक जितनी मजबूत होगी करेंसी उतनी सुरक्षित होगी। क्रिप्टोकरेंसी पर बारीक नजर रखने वाली वेबसाइट कॉइनमार्केटकैप.कॉम के मुताबिक दुनियाभर में 10 हजार से ज्यादा क्रिप्टोकरेंसी व्यापार के लिए उपलब्ध हैं। इस तरह हम देख रहे हैं कि एक तरफ आज क्रिप्टो मार्केट में अनिश्चितता की स्थिति भी बनी हुई है तो आने वाले समय में इसको लेकर निवेशकों के मन में उम्मीदें भी जगी हैं। जरूरत है कानून बनाकर इस पर प्रभावी नियत्रंण की।
(ये लेखक विनोद पाठक के अपने विचार हैं।)
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