योगेश कुमार सोनी का लेख : महंगाई पर अंकुश की जरूरत

योगेश कुमार सोनी
महंगाई शब्द मानव जीवन से हमेशा जुड़ा रहा है। हमारे देश में इस शब्द का अर्थ हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि आज भी हमारे देश में मध्यम व गरीब वर्ग की जनसंख्या बहुत अधिक है इसलिए यह वर्ग प्रभावित होने का अर्थ देश का प्रभावित होना माना जाता है। हाल में महंगाई की वजह से जनता परेशान हैं और इस बार लगातार बढ़ते दामों और गिरती आय का डबल डोज एक साथ लग रहा है।
कोरोना के संकट से हमारे सिस्टम या सिस्टम संचालनकर्ताओं यानि नेताओं को शायद ही कोई फर्क पड़ा हो या न पड़ा हो लेकिन जनता की कमर टूट चुकी है। जैसा कि कोरोना के पहले कालखंड के बाद ही छोटी-बड़ी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की तनख्वाह आधी या उससे भी कम कर दी थी जो अब तक भी पूरी नहीं हुई, चूंकि उसके बाद जैसे ही बाजार उठ रहा था, वैसे ही दूसरी लहर ने सब बर्बाद कर दिया था और अब हम तीसरी लहर में प्रवेश कर चुके हैं और स्थिति वैसी ही है। और यदि अब व्यापारी वर्ग की बात करें तो व्यापार की हालात भी पहले से बहुत नाजुक बनी हुई हैं। बाजार में काम इतने कम हो चुके हैं कि कंपनी के खर्च भी निकल नहीं पा रहे और कई व्यापारी ने अपने धंधे तक बंद कर दिए। वे अब बेरोजगारों की श्रेणी में आ चुके हैं।
हाल ही में दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू लगा हुआ है जिसमें शनिवार और रविवार दिल्ली बिल्कुल बंद रहती है और ऐसी स्थिति में एक व्यापारी ने बताया कि बीते दो वर्षों से काम-धंधों में बहुत मंदी चल रही है और ऐसे में वीकेंड कर्फ्यू लगने से बहुत नुकसान हो रहा है। व्यापारी ने बताया कि मेरी फैक्ट्री में करीब चालीस लेबर काम करती हैं और उन सबका प्रतिदिन का भुगतान तीस हजार रुपये होता है और महीने में आठ छुट्टी का के हिसाब से करीब ढाई लाख रुपये का नुकसान होगा। कोरोना की वजह से उधार बंद हैं, वहीं दूसरी ओर महंगाई से कमर टूटी हुई है। हालात ऐसे हैं कि फैक्ट्री बंद करने की नौबत है चूंकि जब काम न चले तो खर्चा नहीं निकलता। यह स्थित कमोबेस सभी छोटे व्यापारियों की है।
इसके अलावा एक फील्ड ब्वॉय ने बताया मुझे तनख्वाह के अलावा कंपनी से दो रुपये लीटर प्रति किलोमीटर के हिसाब से पेट्रोल खर्च मिलता है, लेकिन जब से लेकर अब तक पेट्रोल का भाव तीस रुपये लीटर बढ़ चुका लेकिन कंपनी अधिक पैसे बढ़ाने को तैयार नही हैं और जो कंपनी के काम से बाहर जाता हूं उस वजह से मेरी तनख्वाह से पेट्रोल लग जाता है। इस कारण मेरी जीवन संचालन प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। यह स्थिति अनेक फील्ड ब्वाय की है।
ईंधन के दाम बढ़ने से सबसे ज्यादा महंगाई बढ़ती है यदि इसे सरल भाषा में एक उदाहरण के रूप में समझें तो हिमाचल से दिल्ली किसी सब्जी के ट्रक का किराया पच्चीस हजार हैं और डीजल के दाम बढ़ने से वह किराया तीस हजार रुपये हो जाता है तो जो सब्जी 50 रुपये किलो थी वह सीधा 60 रुपये किलो हो गई। एक चीज से ही बहुत सारी चीजें प्रभावित होती हैं। ईंधन का दो बढ़ने से खने पीने की आपूर्ति का खर्च बढ़ता है जिससे अल्टीमेटली महंगाई बढ़ती है।
हाल ही में बेंट क्रूड का भाव कम है जिसकी वजह से पेट्रोल-डीजल के मौजूदा रेटों में लगभग 8 से 10 रुपये तक का भाव कम हो सकता है लेकिन इस ओर सरकार न जाने किस वजह से ध्यान नही दे पा रही। बता दें कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें तय करने में अहम भूमिका इंटरनेशनल मार्केट में बेंट क्रूड के भाव के आधार पर तय होती है। यदि इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड के दाम कम हो जाते हैं तो पेट्रोल-डीजल के दाम पर भी गिर जाते हैं। हालांकि बेंट क्रूड की कीमतों कम होने का बाद उस देश की मर्जी पर भी तय होता है कि वह दाम कम करें या न करें। हमारे देश में केंद्र के बाद राज्य सरकारें भी अपना टैक्स लगाते हुए रेट में बदलाव कर सकती हैं। इस ही वजह से हमारे देश में हर राज्य में पेट्रोल व डीजल का रेट अलग-अलग होता है। सरकार को त्वरित प्रभाव से पेट्रोल व डीजल के दामों में कटौती करनी चाहिए।
जिन देशों में पेट्रोल सबसे महंगा है, उन देशों की सूची में हमारा देश 58वें नंबर पर आता है हालांकि कभी-कभी एक-दो पायदान ऊपर नीचे होता रहता है। बीते वर्ष मई तक भारत में पेट्रोल की कीमत 1.31 डॉलर प्रति लीटर पहुंच गई थी जिससे कई शहरों में सौ रुपये प्रति लीटर तक रेट पहुंच गया था। यदि हम अपने पडोसी देशों पाकिस्तान,नेपाल और भूटान में पेट्रोल हमारे यहां से सस्ता बिकता है। भारत सरकार इस पर गौर करे।
बीते दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टेक्सटाइल पर जीएसटी 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने की घोषणा की थी लेकिन बाद में कई राज्यों और इंडस्ट्री के आग्रह करने के बाद फैसला वापस लेना पड़ा। चूंकि क्लोदिंग आवश्यक वस्तु में शामिल है और इस पर होजरी मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन ने जीएसटी बढ़ाने के फैसले पर चिंता जताई थी। होजरी मैन्युफैक्चरर अनुसार कपड़ों पर जीएसटी बढ़ने आम आदमी प्रभावित होता और एमएसएमई सेक्टर को भी इससे नुकसान होता चूंकि देश के कपड़ा उत्पादन में असंगठित क्षेत्र का 80 प्रतिशत से ज्यादा का योगदान है। इससे बुनकर सबसे ज्यादा प्रभावित होत सकते थे। पहले से ही कोरोना की वजह से बीते दो वर्षों में बहुत नुकसान हुआ है। हालांकि इसके अलावा तमाम चीजों के रेटों में इजाफा हुआ है। हालांकि केंद्र सरकार ने इस मामले पर अपना पक्ष रखते हुए यह कहा है कि बढ़ते खर्च और कोरोना की दूसरी लहर सरकार का खजाना बडे स्तर पर प्रभावित हुआ है और सरकार आर्थिक चुनौतियों की वजह से कम राजस्व से अपनी संचालन प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करने में समस्या महसूस कर रही है। दलील में यह भी कहा था कि सरकार ने बीते दिनों पेट्रोल और डीजल की एक्साइज ड्यूटी भी कम की थी।
बहरहाल, अभी अगले महीने फरवरी में आम बजट पेश होगा। इस बार सरकार को बेहद मंथन व चिंतन करने के बाद बजट पेश करना होगा। चूंकि इस बात को ध्यान में रखना होगा कि कोरोना की वजह से आम से लेकर खास बहुत परेशान हैं। देश में आर्थिक तौर सुस्ती जारी है, जिससे हर कोई विचलित है। हाल ही की स्थिति के हिसाब से उस तरह का बजट बनाया जाए जिससे लोगों में सरकार व अपने तंत्र के प्रति विश्वास कम न हों। बीते दिनों काम-धंधे न होने व नौकरी जाने पर कई युवाओं अपराध का रास्ता चुना था। पुलिस रिकार्ड के अनुसार अधिकतर छिनैत व चोर अच्छे परिवार और शिक्षित थे। यह मामला जब मीडिया में आया तो तमाम लोगों ने इस पर निंदा करते हुए चिंता जताई। ज्यादा महंगाई के चलते बेरोजगारी बढ़ने पर कहीं गृह युद्ध जैसा माहौल न हो जाए। सरकार को आर्थिक विशेषज्ञों के पैनल के साथ इस बार गरीब व मध्यम वर्ग की सुध लेते हुए बजट बनाना होगा। महंगाई के नियंत्रित रखने के उपाय बजट में करने होंगे, साथ ही सरकारी खर्च बढ़ाना होगा ताकि नए रोजगार का सृजन हो सके। बेलगाम महंगाई गरीबों को गहरे तौर पर प्रभावित कर रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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