योगेश कुमार सोनी का लेख : सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्ति जरूरी

योगेश कुमार सोनी
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत देशभर में एक जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग करने वाले 19 उत्पादों पर बैन लगाया जा रहा है। इन प्रोडक्ट को एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है लेकिन इसको फेंकने के बाद यह कभी नष्ट नहीं होते और इनके पुन: प्रयोग की भी कोई व्यवस्था नहीं है। हमारे देश में मौजूदा वक्त में सिंगल यूज प्लास्टिक सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। विशेषज्ञों के अनुसार यह समस्या आगामी हजारों वर्षों तक पृथ्वी को प्रदूषित कर सकती है। संबंधित विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि प्लास्टिक बैन का नियम न मानने वाले निर्माताओं, सप्लायर, डिस्ट्रीब्यूटर व रिटेलर्स पर कड़ी कार्रवाई होगी जिसके लिए सभी संबंधित पक्षों को सख्त निर्देश दे दिए गए हैं। हालांकि इस तरह के आदेश पहले भी कई बार निकाले जा चुके हैं लेकिन इसका असर मात्र कुछ दिनों ही दिखा उसके बाद ढाक के तीन पात की मिसाल के तर्ज पर स्थिति आ जाती हैं। करीब चार वर्ष पूर्व भी दिल्ली सरकार ने एलडी,पीपी,एचएम व बबल वाली पॉलिथीन को पूर्णत: प्रतिबंध कर दिया गया था लेकिन वह आज भी वह धड़ल्ले से बिक रही हैं। इस खेल में आश्चर्य की बात यह है कि इसकी फैक्ट्रियां आज भी खुलेआम माल बना रही हैं और किसी भी फैक्ट्री पर कोई कार्यवाही नहीं हुई।
इस मामले पर दिल्ली के एक व्यापारी ने कहा कि यह मामला पहले की तरह फिर कुछ दिनों के लिए गर्माएगा उसके बाद संबंधित विभाग अपनी रिश्वत में बढ़ोतरी करके काम शुरू करवा देंगे। इसमें बतौर रिश्वत सबसे ज्यादा पैसा एसडीएम व दिल्ली नगर निगम विभाग के अधिकारी लेते हैं। कुछ समय पूर्व सरकार ने 50 माइक्रोन से ऊपर डेली यूज प्लास्टिक के लिए आदेश जारी किए थे लेकिन अब इसमें बदलाव कर 75 माइक्रोन कर दिया। लेकिन इस खेल में सबसे अहम बात यह है कि ग्राहक यह लेने को तैयार नहीं है चूंकि उनको ज्यादा माइक्रोन की पॉलीथिन महंगी पड़ती है जिससे उनका मुनाफा घट जाता है। इन सभी बातों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सभी जरूरत और लालच के आधार पर यह सारा खेल चल रहा है।
सरकार को यदि वाकई प्लास्टिक पर बैन लगाना है तो बडे एक्शन ऑफ प्लान की जरूरत है चूंकि जैसा पहले से वो करते आ रहे हैं वैसे तो आज तक सफलता हाथ नहीं लगी। हमारे देश में लोग किसी भी बात को प्यार से कहां समझते हैं। जिस तरह कोरोना में मास्क लगाने के लिए चप्पे-चप्पे पर वॉलिंटियर खड़े कर दिये थे जिसका असर यह हुआ था कि कोई बिना मास्क के नहीं दिखता था। हालात यहां तक थे कि मास्क जरा सा नीचे दिखने पर भी चालान काट दिया जाता था। कुछ इस मामले में भी इस ही तरह की रणनीति बनानी होगी। जरा सी लापरवाही व गलती पर बड़ा एक्शन ले लिया जाए जिससे गलत काम करने वालों के अन्दर इतना भय पैदा हो जाए कि वह गलत करने से पहले कई बार सोचें। दरअसल सरकारें अपनी ओर से अथक प्रयास करती हैं लेकिन विभागीय अधिकारी पैसों के लालच में लोगों की मौत का सौदा कर लेते हैं। ऐसे भ्रष्ट लोगों को यह लगता है कि हम थोड़ा सा कुछ गलत करके पैसा कमा रहे हैं तो उससे क्या फर्क पड़ता है लेकिन उनको यह समझना होगा उनके इस कृत्य से मानव जीवन पर प्रहार हो रहा है। शहरों में यदि किसी की सत्तर वर्ष में मृत्यु हो जाए तो लोग कहते हैं कि सही उम्र तक जी कर गये हैं।
इस तरह की बातों से ऐसा लगता है कि महानगर वासियों ने स्वयं भी यह ही ठान और मान लिया कि वह साठ व सत्तर के वर्ष ही जीना चाहते हैं। मात्र इतने ही वर्ष जीना है यह तो उनको पता चल गया लेकिन वो इस सुधार की ओर नहीं जाना चाहते कि वह अपनी संचालन प्रक्रिया में थोड़ा सा बदलाव कर मानव जीवन को सुरक्षित करें। कम आयु में हार्ट अटैक,मधुमेह व ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से हमारा भविष्य दांव पर लग रहा है। हर रोज न जाने कितने परिवार बर्बाद हो जाते हैं। किसी के सर से साया तो किसी के हमसफर के रूप में मानव की क्षति हो रही हैं। वैश्विक सरकारों के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरूकता और प्रकृति और पृथ्वी के संरक्षण के लिए तमाम कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हमारे देश में भी इसको बेहद गंभीर मुद्दा माना जा रहा है लेकिन कुछ देर ही जागरूक होकर फिर पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं जिससे हम सही दिशा पर नहीं आ पा रहे हैं। इस बात में कोई दो राय नही हैं कि सरकार ऐसे मामलों में एक बड़ा बजट पारित है करती है व इसके प्रति गंभीर भी रहती हैं। इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकारें संजीदा भी हैं लेकिन हम उतनी संजीदगी से इस बात की गंभीरता नहीं समझ पा रहे जितने की जरूरत है। यदि हम आज भी छोटी-छोटी चीजों को समझ कर उस पर अमल करना शुरू कर दें तो निश्चित तौर पर हम अपनी आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ जीवन दे सकते है लेकिन यह संभव तभी माना जाएगा जब हम सब एक साथ मिलकर गंभीरता दिखाएं।
बीते दिनों केन्द्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन में कहा था कि एक व्यक्ति एक साल में करीब 8 किलो प्लास्टिक कचरा फेंकता है और महानगरों में इसकी संख्या चौगुनी है। इस प्लास्टिक कचरे से नालियां बंद हो जाती है, धरती की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाती है, भूगर्भ का जल पीने योग्य नहीं रह जाता, रंगीन प्लास्टिक बैग से कैंसर रोग हो जाते हैं। महानगर वासी तो पहले से ही प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। पानी तक पीने योग्य तक बनाने के लिए आरो वाटर पंप लगाते हैं। महानगरों में शायद ही ऐसा कोई घर हो जहां यह सिस्टम न लगा हो। पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार प्लास्टिक के 20 माइक्रोन या इनसे पतले उत्पाद को पर्यावरण के लिए बहुत घातक है। इन थैलियां से मिट्टी में दबने से फसलों के लिए उपयोगी कीटाणु मर जाते हैं। इन थैलियों के प्लास्टिक में पॉलीविनाइल क्लोराइड होता है जो मिट्टी में दबे रहने पर भूजल को जहरीला बना देता है। इसके कई बार तमाम उदाहरण देखे जा चुके हैं लेकिन फिर ऐसी घटनाओं को हल्के में लिया जाता रहा है। यह भी कहा जाता है कि बारिश में प्लास्टिक के कचरे से होने वाली दुर्गन्ध से नदी-नाले अवरुद्ध की स्थिति में जाते हैं जिससे बाढ़ आ जाती है। इसके अलावा हवा में प्रदूषण फैलने कई तरह के रोग फैलते हैं। प्लास्टिक कचरा खाने से आवारा पशुओं मर जाते हैं। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक के प्रभाव से हर साल पूरी दुनिया में दस करोड़ जीव-जंतु मर जाते हैं। दुनिया में कई देश ऐसे जो समुद्री जीव का भोजन करते हैं चूंकि उनके पास खाने के अन्य विकल्प नहीं होते। ऐसे देशों में रहे लोगों को कैंसर के पेशेंट की संख्या बहुत ज्यादा है। ऐसे तमाम उदाहरण हैं बताने के लिए लेकिन सवाल यही है कि इस पर नियंत्रण कैसे पाया जाए? चूंकि यदि इस मामले पर ईमानदारी से काम नहीं हुआ तो हम आने वाली पीढ़ी को विरासत में खतरनाक बीमारियां दे जाएंगे। सरकार समय समय पर जांच-पड़ताल करते रहे, जिससे भ्रष्ट अफसरों में डर बना रहे। हमें भी सुधरने की जरूरत है कि हम सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग ही ना करें। सब मिल कर देश को सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त बना सकते हैं।
(लेखिक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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