अलका आर्य का लेख : बाल टीकाकरण में तेजी जरूरी

कोविड-19 महामारी अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। अभी हाल ही में जापान ने एेलान किया कि वहां कोरोना की सातवीं लहर आ चुकी है और इस तरह जापान दुनिया का ऐसा पहला मुल्क बन गया है जहां कोरोना संक्रमण की रिकाॅर्ड सातवीं लहर आ चुकी है। कोविड-19 महामारी ने विश्व की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया, लोगों की मानसिक सेहत को भी निशाना बनाया। यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन व यूनिसेफ के हाल ही में जारी एक अध्ययन में बताया गया है कि कोविड-19 महामारी ने बाल टीकाकरण पर भी अपनी छाप छोड़ी और वर्ष 2021 में दुनियाभर में 2.5 करोड़ नवजातों को जीवनरक्षक टीके नहीं लग पाए। ये आंकड़े करीब 30 सालों में बाल टीकाकरण में लगातार सबसे बड़ी गिरावट को दर्शाते हैं। बच्चों का मूलभूत टीकाकरण से छूटना एक बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि दुनियाभर में बच्चों की जिंदगी और उनके भविष्य को बचाने, स्वस्थ और सुरक्षित समुदायों के निर्माण के वास्ते टीकाकरण प्रभावी व किफायती तरीकों में से एक है। स्वस्थ बच्चे बड़े होकर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर बोझ नहीं बल्कि उसकी आर्थिक व सामाजिक प्रगति में योगदान देते हैं।
गौरतलब है कि इन दो अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा जारी आंकड़े अगाह करते हैं कि बाल टीकाकरण में जारी गिरावट को उलटने के लिए राष्ट्रीय प्रयासों के साथ-साथ सामूहिक वैश्विकरण नीतियों को अपनाने की दरकार है। जिन बच्चों ने डिप्थीरिया, टिटनेस और काली खांसी (डीटीपी) की तीनों खुराक ली-जोकि मुल्क के भीतर व दुनियाभर में टीकाकरण कवरेज का सूचकांक है, उसके प्रतिशत में गिरावट आई है। पांच प्रतिशत प्वांइट की गिरावट वर्ष 2019 व 2021 के दरम्यान की है।और यह 81 प्रतिशत रह गई है। परिणामस्वरूप अकेले वर्ष 2021 में ही 2.5 करोड़ बच्चों ने नियमित टीकाकरण के जरिए दी जाने वाली डीटीपी की एक या इससे अधिक खुराक नहीं ली। यह संख्या वर्ष 2020 में जिन बच्चों ने यह खुराक नहीं ली थी, उनसे 20 लाख अधिक है और वर्ष 2019 के ऐसे बच्चों से 60 लाख अधिक है, ये आंकड़ें ऐसे बच्चों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं, जिनकी जान जोखिम में है और उन्हें रोकथाम वाले रोगों से बचाया जा सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह गिरावट कई कारकों के कारण जारी है लेकिन कोविड-19 महामारी ने इसे अधिक बाधित किया। कारक मसलन-संघर्षरत इलाकों में बच्चों की तादाद का बढ़ना, नाजुक बस्तियों में जहां टीकाकरण तक पहुंच चुनौतीपूर्ण होती है, गलत सूचनाओं का विस्तार और कोविड-19 संबधित मुद्दे जैसा कि सेवा व सप्लाई श्रृंखला का बाधित होना, रिस्पांस प्रयासों की ओर संसाधनों को मोड़ना और नियंत्रित करने वाले कदम जिन्होंने टीकाकरण तक पहुंच व उपलब्धता को सीमित कर दिया आदि।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल का इस बारे में कहना है कि यह बाल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक स्थिति है। इसके नतीजे जिंदगियों में नापे जाएंगे। कोविड-19 की बाधाओं व लाॅकडाउन के परिणामस्वरूप बीते साल महामारी के बुरे नतीजे अपेक्षित थे। जैसा कि हम सब देख रहे हैं-वह है लगातार गिरावट। कोविड-19 कोई बहाना नहीं है। हमें टीकाकरण कैच-अप यानी जो बच्चे टीके लगवाने से छूट गए हैं, उन तक पहुंचने की जरूरत है। अन्यथा हमें अधिक अपरिहार्य प्रकोप अधिक बीमार बच्चे और पहले से ही दबाव के बोझ तले दबे स्वास्थ्य प्रण्ााली पर और अधिक दबाव के गवाह बनेंगे।' वर्ष 2021 में 2.5 करोड़ बच्चों में से 1.8 करोड़ बच्चों ने डीटीपी की एक भी खुराक नहीं ली, गौर करने वाली बात यह है कि इनमें से अधिकतर बच्चे निम्न व मध्य आय वाले मुल्कों में रहते हैं, इसमें भारत, नाइजीरिया, इंडोनेशिया, इथियोपिया, और फिलीपींस में संख्या सबसे अधिक है। उम्मीद थी कि वर्ष 2021 स्वास्थ्य लाभ का वर्ष होगा और जो बच्चे वर्ष 2020 में टीके लगाने से छूट गए थे, उन्हें टीके लगाए जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इसके बजाय डीटीपी 3 कवरेज का वर्ष 2008 वाला स्तर अपने निम्न स्तर पर पहुंच गया। साथ ही अन्य बुनियादी अीकों की कवरेज में भ ी गिरावट आई और दुनिया वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने रास्ते से दूर हो गई। बीते 20 सालों में एक अरब से अधिक बच्चों की टीकाकरण हुआ है। संयुक्त राष्ट्र का बाल अधिकार सम्मेलन भी इस बात की वकालत करता है कि सभी बच्चों की पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं तक एक समान पहुंच होनी चाहिए। यह भी गौर करने लायक है कि टीकाकरण की दर का एेतिहासिक रूप से पीछे जाना गंभीर कुपोषण की दर में तेजी से बढ़ोतरी की पृष्ठभूमि में हो रहा है। इसके परिणाम और घातक हो सकते हैं क्योंकि एक कुपोषित बच्चे की रोग-प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कमजोर होती है और टीके लगवाने के सुअवसरों को खोने का मतलब बाल्यावस्था के रोग जल्दी से उनके लिए घातक हो सकते हैं। भूख संकट का बढ़ना और टीकाकरण के फासले में वृद्वि बच्चे के जिंदा रहने को जोखिम में डाल सकता है। दरअसल वैक्सीन कवरेज में गिरावट हर क्षेत्र में आई है। पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र में डीटीपी 3 कवरेज में तेजी से उलट बदलाव पाया गया, महज दो सालों के अंदर ही नौ प्रतिशत प्वांइटस की गिरावट दर्ज की गई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महासचिव डा. टेड्रोस घेब्रेयसस का कहना है' कोविड-19 की योजना व इससे निपटने के साथ ही जानलेवा रोगों जैसे खसरा, निमोनिया और डायरिया के लिए टीकाकरण भी जारी रहना चाहिए। यह दोनों में से एक का सवाल नहीं है, दोनों करना संभव है।' इसके साथ-साथ इसका जिक्र करना भी जरूरी है कि भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान टीकाकरण में पूर्व कोविड कवरेज के स्तर पर लौट आया है और यह उच्चस्तरीय सरकारी प्रतिबद्वता के कारण संभव हो पाया। जहां तक भारत का सवाल है, कोविड-19 महामारी ने इस मुल्क में एक भी डोज नहीं लेने वाले बच्चों की संख्या में हुई प्रगति को प्रभावित किया और ऐसा अनुमान है कि यहां डीटीपी की पहली खुराक नहीं लेने वाले बच्चों की संख्या वर्ष 2019 में 14 लाख से बढ़कर वर्ष 2020 में करीब 30 लाख तक हो गई, लेकिन भारत ने और आगे होने वाली गिरावट को रोकने के लिए प्रयास तेज कर दिए। सघन मिशन इंद्रधनुष-3 व 4 चलाए गए और 2021 में ऐसे बच्चों की संख्या घटकर 27 लाख रह गई। यूनिसेफ इंडिया में स्वास्थ्य विशेषज्ञ डा. मणिक चटर्जी का मानना है कि कोविड-19 टीकाकरण पर बराबर फोकस सुनिश्चित करते हुए भारत को कवेरज में गिरावट को रोकने में कामयाबी मिली। नियमित टीकाकरण सेवाओं को तेजी से फिर शुरू किया गया और कैच अप अभियान ने भारत को नियमित टीकाकरण कवरेज में गिरावट को रोकने में सक्षम बनाया। विश्व में सबसे अधिक बच्चे भारत में पैदा होते हैं, करीब हर साल 2.7 करोड़। 2.7 करोड़ बच्चों को हर साल सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत टीके लगाए जाते हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी टीकाकरण मुहिम है।
(लेखिका अलका आर्य स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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