डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख : डिजिटलीकरण का नया अध्याय

एक नवंबर से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने देश में डिजिटल रुपये के नए दौर की शुरुआत की है। प्रायोगिक तौर पर सिर्फ सरकारी प्रतिभूतियों के थोक लेन-देन में ही डिजिटल रुपये के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है। आरबीआई ने नौ सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों में लेन-देन के लिए डिजिटल करेंसी के इस्तेमाल की अनुमति दी है। इन बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, यस बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और एचएसबीसी शामिल है। आरबीआई की डिजिटल मुद्रा में सौदों का निपटान करने से निपटान लागत में कमी आने की संभावना है।
गौरतलब है कि अगर यह पायलट प्राेजेक्ट सफल रहता है तो दूसरे क्षेत्रों में प्रायोगिक तौर पर डिजिटल मुद्रा की शुरुआत की जाएगी। आरबीआई ने सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी के बारे में पेश अपनी संकल्पना रिपोर्ट में कहा था कि यह डिजिटल मुद्रा लाने का मकसद मुद्रा के मौजूदा स्वरूपों का पूरक तैयार करना है। इससे उपयोगकर्ताओं को मौजूदा भुगतान प्रणालियों के साथ अतिरिक्त भुगतान विकल्प मिल पाएंगे। सीबीडीसी किसी केंद्रीय बैंक की तरफ से जारी होने वाले मौद्रिक नोटों का डिजिटल स्वरूप है। दुनियाभर के केंद्रीय बैंक सीबीडीसी लाने की संभावनाओं को टटोल रहे हैं। सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में डिजिटल रुपया लाने की घोषणा की थी। निस्संदेह देश में डिजिटलीकरण तेजी से आगे बढ़ रहा है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के 75 जिलों में डिजिटल बैंकिंग यूनिटों (डीबीयू) की वर्चुअल शुरुआत करते हुए कहा कि भारत दुनिया का ऐसा देश बन गया है जहां सबसे तेजी से डिजिटलीकरण हो रहा है और इससे आम आदमी और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र लाभान्वित होते दिखाई दे रहे हैं। साथ ही डिजिटल अर्थव्यवस्था में नए कौशल और नई तकनीकों से सुसज्जित नई पीढ़ी के लिए रोजगार के मौके भी तेजी से बढ़ रहे हैं।
निश्चित रूप से इन दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक सहित विभिन्न वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय संगठनों के द्वारा प्रकाशित की जा रही रिपोर्टों में वैश्विक मंदी के बीच भारत की स्थिति तुलनात्मक रूप से संतोषप्रद होने का एक प्रमुख कारण भारत में डिजिटलीकरण की बढ़ी हुई ऊंचाई बताया जा रहा है। 13 अक्टूबर को आईएमएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आमजन के सशक्तिकरण के मद्देनजर भारत में वर्ष 2014 से लागू की गई डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना एक चमत्कार की तरह है। इससे सरकारी योजनाओं का फायदा सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंचाने में बड़ी कामयाबी मिली है। साथ ही डिजिटलीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था में गेमचेंजर बन गया है और भारत में 80 करोड़ गरीब लोगों के लिए कोरोना काल से अब तक खाद्य सुरक्षा का बेमिसाल अभियान दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि डीबीटी का लक्ष्य विभिन्न समाज कल्याण योजनाओं के लाभ एवं सब्सिडी को पात्र लोगों के खाते में समय पर और सीधे भेजना है जिससे प्रभावशीलता, पारदर्शिता बढ़ती है तथा मध्यस्थों की भूमिका कम होती है। भारत में करीब 450 से अधिक स्कीम के तहत गरीबों को लाभ देने के लिए डीबीटी का इस्तेमाल किया जा रहा है। आंकड़ों के मुताबिक, 2013-14 से अब तक डीबीटी के जरिये करीब 24.8 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि लाभान्वितों तक पहुंचाई गई है, जिसमें से 6.3 लाख करोड़ रुपये के लाभ सिर्फ 2021-22 में ही पहुंचाए गए हैं। 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार औसतन 90 लाख से अधिक डीबीटी भुगतान प्रतिदिन होते हैं।
निस्संदेह इस समय देश में 46 करोड़ से अधिक जनधन खातों, (जे) 134 करोड़ से अधिक आधार कार्ड (ए) और 118 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं (एम) के तीन आयामी जैम से आम आदमी डिजिटल दुनिया से जुड़ गया है। जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) के तहत बैंकिंग सेवा से वंचित देश के प्रत्येक व्यक्ति को बैंकिंग दायरे में लाने के लिए शून्य बैलेंस के साथ कई वित्तीय सुविधाओं वाला बैंक अकाउंट खुलवाने की सुविधा दी गई है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि देश में सौ से अधिक सरकारी सेवाएं आनलाइन उपलब्ध हैं। पहले बैंक, गैस, स्कूल, टोल, राशन हर जगह कतारें होती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। सरकार द्वारा आम आदमी को लाभांवित करने के लिए शुरू की गई कई डिजिटल योजनाएं अच्छे परिणाम दे रही हैं। यूपीआई, कोविन और डिजीलॉकर जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों से आम आदमी के जीवन से संबंधित सेवाएं आसान हुई हैं। किसानों के समावेशी विकास में भी डीबीटी की अहम भूमिका है। इस समय डिजिटलीकृत ग्रामीण स्वामित्व योजना भी छोटे किसानों की आमदनी बढ़ाने और उनके सशक्तिकरण के साथ ग्रामीण विकास में मील का पत्थर बनती दिखाई दे रही है। ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश के वर्तमान कृषि मंत्री कमल पटेल के द्वारा अक्टूबर 2008 में उनके राजस्व मंत्री रहते लागू की गई स्वामित्व योजना जैसी ही मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास अधिकार योजना के तहत हरदा के जिन दो गांवों के किसानों को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में भूखंडों के मालिकाना हक के पट्टे सौंपे गए थे। पिछले 14 वर्षों में इन दोनों गांवों का आर्थिक कायाकल्प हो गया है। अब पूरे देश के गांवों में डिजिटलीकृत ग्रामीण स्वामित्व योजना के विस्तार से गांवों के विकास और किसानों की अधिक आमदनी का नया अध्याय लिखा जा रहा है, लेकिन इस समय डिजिटल इंडिया के तहत स्टार्टअप, डिजिटल शिक्षा, डिजिटल बैंकिंग, भुगतान समाधान, स्वास्थ्य तकनीक, एग्रीटेक आदि की डगर पर जो चुनौतियां दिखाई दे रही हैं, उनके समाधान हेतु तत्परतापूर्वक कदम उठाए जाने जरूरी हैं।
हम उम्मीद करें कि सरकार द्वारा 1 नवंबर से डिजिटल रुपये की प्रायोगिक शुरुआत के बाद अब डिजिटल रुपये का इस्तेमाल अन्य क्षेत्रों में भी तेजी से बढ़ेगा। आईएमएफ के द्वारा डीबीटी के लाभों को बताने वाली रिपोर्ट से उत्साहित होकर डीबीटी से और अधिक लाभ देने के लिए आगे बढ़ेंगी और भारत में डिजिटलीकरण अधिक गतिशील बनाने के लिए स्किल्ड युवाओं की जरूरत को पूरा करने के मद्देनजर नई पीढ़ी को आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस, ऑटोमेशन, क्लाउड कम्प्यूटिंग, मशीन लर्निंग, डेटा साइंस जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों से शिक्षित प्रशिक्षित करने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। इससे देश में आर्थिक और सामाजिक कल्याण के और अधिक लाभ देश के कमजोर वर्ग के करोड़ों लोगों की मुठ्ठियों में आएंगे।
(ये लेखक डॉ. जयंतीलाल भंडारी के अपने विचार हैं।)
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