नीलम महाजन सिंह का लेख : पंजाब में नेतृत्व के नए समीकरण

नीलम महाजन सिंह
बहुत जल्द साबित हो गया कि पंजाब में कांग्रेस का फैसला आत्मघाती था। कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर नवजोत सिंह सिद्धू पर भरोसा जताना कांग्रेस का अदूरदर्शी फैसला था। राजनीति की मामूली समझ रखने वाले भी कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे अनुभवी, भरोसेमंद लीडरशिप की अनदेखी नहीं करते। कांग्रेस नेतृत्व ने पंजाब के मामले में दिखाया कि उसे जीती बाजी हारना भलीभांति आता है। पार्टी में युवा को आगे लाने का मतलब यह नहीं है कि जड़ ही काट दें। देश में पचास साल से अधिक समय तक राज करने वाली पार्टी अपने नेता की पहचान करने में इतनी कच्ची होगी, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस के प्रति वफादारी को परखे बिना पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान देना कांग्रेस आलाकमान की राजनीतिक नासमझी ही थी। कांग्रेस को पहले ही समझ लेना चाहिए था, जब सिद्धू कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ बगावत कर रहे थे। अमरिंदर के अलावा पंजाब कांग्रेस में कई परखे हुए सीनियर नेता थे, जिन्हें कांग्रेस आगे ला सकती थी। सिद्धू को पार्टी की कमान देने व पंजाब कांग्रेस में दलित चेहरा चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाने से भी कांग्रेस का संकट दूर नहीं हुआ, 72 दिन में ही सिद्धू रणछोड़ साबित हुए।
सिद्धू ने पंजाब में कांग्रेस की अच्छी खासी किरकिरी करा दी। आज फिर कांग्रेस पंजाब में संकट में है। खैर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के अंदर फैसले के अलग-अलग केंद्र होने से पार्टी को इस तरह का नुकसान निकट भविष्य में होता रहेगा। पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस की संगठनात्मक नकारात्मकता का प्रमाण पंजाब में देखने को मिला। आखिर क्या चाहते हैं नवजोत सिंह सिद्धू? कांग्रेस उन्हें अब तक क्यों झेल रही है? सिद्धू ने तो कांग्रेस को ही क्रैश करा दिया है। 'ठोको यार ठोको' से राजनीति तो नहीं चलती है। अस्थिर व्यक्तित्व की भारतीय राजनीति में कोई जगह नहीं है। सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर न केवल अपने नौसिखिएपन का परिचय दिया है, बल्कि अपने राजनीतिक भविष्य पर भी विराम लगाया है। बिना जनाधार वाले नेता को जमीनी हकीकत का पता नहीं होता है, शायद इसलिए अपने सिक्सर से वे खुद ही आउट हो गए। योद्धा कभी भी हार के डर से रण नहीं छोड़ता है। सिद्धू ने साबित किया कि वे योद्धा नहीं हैं, राजनीति उन्हें नहीं आती है। कांग्रेस में अब सिद्धू के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। अब पंजाब की राजनीति में नए समीकरण बनेंगे। इसमें कांग्रेस के लिए भविष्य न के बराबर है। आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल-बसपा के गठबंधन के अलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह व भाजपा पर पंजाब के सियासी समीकरण निर्भर करेंगे।
कैप्टन की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात पंजाब की राजनीति में नया भूचाल आया है। दो दिन की यात्रा पर दिल्ली आए कैप्टन ने पहले दिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से मिलने की खबरों का खंडन कर दिया था, पर दूसरे दिन वे शाह से मिले, 45 मिनट मुलाकात चली, उसमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के भी मौजूद रहने की खबर है। इस मुलाकात को अब अमरिंदर के बड़े फैसले के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा ने पहले ही यह कहकर अपना दरवाजा खोल दिया था कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी राष्ट्रवादी भावनाओं के लिए जाने जाते हैं। अमरिंदर की राजनीति को करीब से जानने वाले समझते हैं कि कैप्टन जल्द ही औपचारिक रूप से कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लेंगे। अब यह तय माना जा रहा है कि पंजाब में भाजपा कैप्टन अमरिंदर के साथ मैदान में उतरेगी। भाजपा कैप्टन को राज्यसभा के जरिये केंद्र में ला सकती है और केंद्रीय कृषि मंत्री बनाकर किसान आंदोलन को खत्म कराने में मदद ले सकती है। आने वाले वक्त में कैप्टन व भाजपा की जुगलबंदी की दिलचस्प राजनीति देखने को मिलेगी। 'आई एम सॉरी अमरिंदर' कहने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए इस वक्त वाकई में सॉरी फील करने का समय है।
कांग्रेस नेतृत्व को पंजाब में राजनीतिक रायता बनाने वाले प्रभारी हरीश रावत को तुरंत निष्कासित कर देना चाहिए। वैसे तो कांग्रेस हाईकमान असमर्थ हो चुका है। यदि कांग्रेस पार्टी का पंजाब में राजनीतिक पतन होने के कारणों को समझें तो उसमें व्यक्तिगत आकांक्षाएं पार्टी के लिए भारी पड़ीं। वैसे तो नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस का दामन 2017 में ही पकड़ा था। 52 वर्ष से राजनीति में सेवा कर रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को सत्ता से हटाकर स्वयं मुख्यमंत्री बनने के स्वप्न देखने वाले सिद्धू की हालत, ना घर का ना घाट का, वाली हो गई है। जिस प्रकार से कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ एक साज़िश रची गई कि प्रजातांत्रिक रूप से चुने हुए 'जनता के कैप्टन' को एक षड्यंत्र द्वारा हटाकर राजनीतिक रूप से नवजात-नवजोत सिद्धू को पंजाब में थोपना, कांग्रेस की भारी भूल थी। 2017 में जब अधिकतर राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ था, तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगम्य मेहनत और हर क्षेत्र में जाकर 'वन टू वन' व्यक्तिगत प्रचार करने से कांग्रेस को बहुमत प्राप्त हुआ था, लेकिन सिद्धू कांग्रेस के लिए ऐसा विष साबित हुए जिसने कांग्रेस को राजनीतिक अपाहिज बना दिया है। यह पहली बार है कि सिद्धू को खुश करने के लिए पंजाब में पांच प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्षों का चयन किया गया। यह स्पष्ट हो गया था कि पंजाब कांग्रेस में गहरी फूट है। यह साज़िशन कैप्टन अमरिंदर को हटाने के लिए किया गया था।
सिद्धू तो शेक्सपियर के नाटक जूलियस-सीज़र के ब्रूटस साबित हो चुके हैं। साथ ही कांग्रेस की राजनीतिक नैया को भी डूबाे दिया है। कैप्टन ने यह घोषित कर दिया है कि वे सिद्धू को किसी भी हालत में पंजाब की राजनीति में टिकने नहीं देगे। वे अपने अपमान का बदला लेंगे। अमित शाह से मिलने के बाद साफ हो गया है कि पंजाब का कैप्टन बनने की जंग तेज होने वाली है। चरणजीत सिंह चन्नी को दलित जाति के नाम पर बार-बार प्रयोग करके डम्मी मुख्यमंत्री बनाने की सिद्धू की चेष्टा को दलित समाज ने अन्यथा लिया है। चन्नी स्वयं भी कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री थे। उन्हें सिद्धू के जाल में नहीं फंसना चाहिए था। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में पंजाब के नए राजनीतिक समीकरण क्या करवट लेंगे, चार महीने बाद 2022 के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव में जनता किसे चुनती है। अगले चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह की भूमिका अहम होगी। यदि वे किसान आंदोलन को खत्म कराने में सफल होते हैं तो निश्चित रूप से केंद्र से लेकर पंजाब तक वे राजनीति के नए स्टार होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मांदी से कैप्टन अमरिंदर की दोस्ती जगजाहिर है, अब यह राजनीति में नए मुहावरा लिखेंगे। कांग्रेस की राजनीतिक आत्महत्या से अन्य दलों को लाभ पहुंचेगा। विपक्ष में बैठी आम आदमी पार्टी भी इस राजनीतिक परिस्थिति का लाभ अवश्य उठा सकती है। कैप्टन ने कहा है कि 'मैं फौजी हूं और फौजी हार नहीं मानता। मैं स्वाभिमान के लिए राजनीतिक लड़ाई अवश्य लडूंगा।' भाजपा के साथ पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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