अरविंद जयतिलक का लेख : भारत-वियतनाम संबंधों में नई ऊंचाई

अरविंद जयतिलक
चीन के साथ जारी तनाव के बीच भारत और वियतनाम के बीच व्यापक रणनीतिक-सामरिक साझेदारी दोनों देशों के रिश्ते को ऊर्जा से भर दिया है। दोनों देशों ने 2030 तक रक्षा संबंधों को व्यापाक आयाम देने के लिए सैन्य 'लाजिस्टिक सपोर्ट' के जरिए दक्षिणी चीनसागर में चीन की बढ़ती दादगीरी पर नकेल कसने की ठान ली है। यह समझौता इस मायने में महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों की सेना अब एक दूसरे के प्रतिष्ठानों का इस्तेमाल मरम्मत और आपूर्ति संबंधी कार्यों के लिए कर पाएगी।
उल्लेखनीय है कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तीन दिवसीय यात्रा पर वियतनाम गए थे और उन्होंने दोनों देशों के बीच हुए इस समझौते को हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के लिए अहम बताया। अभी गत वर्ष ही दोनों देशों के बीच संपन्न हुए वर्चुअल सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वियतनाम को भारत की एक्ट ईजी पाॅलिसी का महत्वपूर्ण स्तंभ कहा था। तब दोनों देशों ने एक संयुक्त विजन डाॅक्यूमेंट 2021-23 लागू करने पर सहमति जताते हुए वैज्ञानिक शोध, न्यूक्लियर, नवीनीकृत ऊर्जा, पेट्रो केमिकल्स, डिफेंस और कैंसर समेत सात अहम समझौते पर दस्तखत किए थे। वर्ष 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वियतनाम यात्रा के दौरान भी दोनों देशों के बीच रक्षा, अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा तथा ऊर्जा समेत कई अहम समझौते पर हस्ताक्षर हुए और दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी पर संधि हुई। यह संधि अब तक वियतनाम ने सिर्फ रूस और चीन के साथ की है। दोनों देशों के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोनों देशों ने वर्ष 2017 को 'मित्रता वर्ष' के रूप में मनाया। अतीत में जाएं तो ऐतिहासिक काल से दोनों देशों के बीच उत्कृष्ट द्विपक्षीय संबंध रहा है। दोनों देश लंबे समय से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व सामरिक संबंधों के डोर से बंधे हुए हैं। दोनों देशों ने औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया और दोनों ही 'नाम' के सदस्य हैं। जिस समय वियतनाम फ्रांसीसी उपनिवेश के विरुद्ध संघर्ष कर रहा था उस समय भारत ने उसका भरपूर सहयोग किया। कंबोडिया के ख्ामेर राॅग शासन के विरुद्ध भी भारत ने वियतनाम का समर्थन किया।
भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में वियतनाम की यात्रा की तथा वियतनामी प्रमुख हो-चि-मिन्ह 1958 में भारत आए। जहां तक आर्थिक-कारोबार का संबंध है तो द्विपक्षीय सहयोग के लिए संस्थागत प्रक्रिया के रूप में दोनों देश एक आर्थिक, वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी सहयोग के लिए वर्षों पहले संयुक्त आयोग की स्थापना कर चुके हैं। उसी का नतीजा है कि आज भारत-वियतनाम द्विपक्षीय व्यापार विगत वर्षों में तेजी से प्रगति कर रहा है। बता दें कि इसके क्रियान्वयन के लिए कार्यवाही योजना पर 2004 में हस्ताक्षर किए गए थे। दोनों देशों द्वारा 2003 के समझौते में अंतरराष्ट्रीय मामलों पर एक दूसरे के हितों के संरक्षण में सहायता देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक दूसरे का मदद का भरोसा दिया गया। अच्छी बात यह है कि दोनों एक दूसरे की कसौटी पर खरा उतर रहे हैं। वियतनाम लगातार भारत के नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोग के रुख का समर्थन किया है और साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थक भी है।
भारत भी विश्व व्यापार संगठन में वियतनाम के प्रवेश का समर्थन कर चुका है। दोनों देश गंगा-मेकांग सहयोग में भी शामिल हैं तथा निवेश में रुचि दिखा रहे हैं जिससे आज आसियान में वियतनाम भारतीय विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का सर्वाधिक प्राप्तकर्ताओं वाले देशों में शुमार हो गया है। दोनों देश ऊर्जा के क्षेत्र में भी बढ़-चढ़कर एकदूसरे का सहयोग कर रहे हैं। वियतनाम ऊर्जा समृद्ध देश है वहीं भारत को ऊर्जा की अधिक आवश्यकता है। ऐसे में दोनों देश ऊर्जा क्षेत्र में एक दूसरे का सहयोग कर लाभान्वित हो सकते हैं। तेल और गैस के उत्पादन में वियनताम एक अग्रणी देश है और उसके समर्थन-सहयोग से भारत की ओएनजीसी कंपनी वहां तेल व गैस की खोज में लगी हुई है। ओएनजीसी और पेट्रोवियतनाम पेट्रोलियम भागीदारी समझौता कर चुके हैं। वियतनाम भारत की तीन परियोजनाओं में 26 मिलियन डाॅलर का निवेश कर रखा है। इसमें ओएनजीसी, एनआईवीएल, नगोन काॅफी, टेक महिंद्रा एवं सीसीएल शामिल हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी दोनों देश एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। भारत सरकार प्रत्येक वर्ष वियतनामी छात्रों और शोधकर्ताओं को भारतीय संस्थाओं में अध्ययन के लिए हजारों हजारों छात्रवृत्तियां प्रदान कर रही हैं। इसके अतिरिक्त भारत वियतनाम के आईटी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने में सहायता कर रहा है। मौजूदा समय में भारत तेजी से ज्ञान अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है और यह ज्ञान क्षेत्र में वियतनाम के मानव संसाधन क्षेत्र को प्रशिक्षित कर सकता है। गौर करें तो 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वियतनाम यात्रा और उसके बाद वियतनामी राष्ट्रपति त्रान की भारत यात्रा शक्ति संतुलन साधने की दिशा में एक परिणामकारी कदम रहा।
गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। दोनों देश एकदूसरे की मदद से समुद्री मार्गों को सुरक्षित कर सकते हैं और साथ ही समुद्री डकैतियों को रोक सकते हैं। वियतनाम अपने 'काॅन-रैन्थ-हार्बर' में सैनिक अड्डा स्थापित करने के लिए भारत को आमंत्रित कर चुका है। यह अड्डा पहले सोवियत अड्डा था। अगर भारत इसमें रुचि दिखाता है तो निःसंदेह दक्षिण चीन सागर में चीनी गतिविधियों पर नजर रखने में मदद मिलेगी। तथ्य यह भी कि भारत और वियतनाम दोनों दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं। दक्षिण चीन सागर के कुछ द्वीपों को लेकर भी चीन व वियतनाम के बीच तनातनी बनी हुई है। सच कहें तो आज की तारीख में दक्षिण चीन सागर में चीन के विस्तार के कारण वियतनाम दबाव में है। देखा भी गया कि उसने दक्षिण चीन सागर मसले पर अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले को मानने से इंकार कर दिया।
चीन की हठधर्मिता को देखते हुए वियतनाम का चिंतित होना लाजिमी है। ऐसे में अगर वह भारत के पाले में खड़ा होता है तो यह भारत की चीन के खिलाफ सामरिक रणनीति के अनुकूल है। वियतनाम चीन के दबाव से बचने के लिए 2011 से ही भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने को आतुर है। चूंकि भारत अब एमटीसीआर का पूर्णकालिक सदस्य बन चुका है ऐसे में वह वियतनाम से ब्रह्मोस मिसाइल का सौदा कर सकता है। फिलहाल भारत-वियतनाम की निकटता चीन के लिए एक कड़ा संदेश है। भारत और वियतनाम की बढ़ती निकटता से उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में दोनों देश कूटनीतिक, व्यापारिक व सामरिक साझेदारी का एक नया अध्याय लिखने में कामयाब होंगे और दक्षिणी चीन सागर में चीन की मनमानी पर अंकुश लगेगा।
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