संपादकीय लेख : अब किसान आंदोलन जारी रखनेे का नैतिक औचित्य नहीं

Haribhoomi Editorial : संसद के शीत सत्र के पहले दिन ही तीनों कृषि कानूनों की वापसी बिल को दोनों सदनों में मंजूरी दिलाकर कर सरकार ने आंदोलनरत किसानों को भरोसा दिया है कि वह अपने वादे पूरी कर रही है। आम तौर पर किसी भी सत्र के पहले दिन सदन में औपचारिक शुरूआत ही होती है, श्रद्धांजलि आदि देकर सदन का अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दिया जाता है, लेकिन शीतकालीन सत्र में ऐसा नहीं हुआ, सरकार ने पहले दिन किसानों से किया अपना वादा पूरा किया। कृषि कानून वापसी बिल दोनों सदनों में पास हो गया है। यह बिल अब राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा व राज्यसभा दोनों में बारी-बारी से कृषि विधि निरसन विधेयक 2021 को पेश किया। हालांकि अपने स्वभाव अनुरूप कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने कानून वापसी बिल पर चर्चा की मांग को लेकर हंगामा किया, लेकिन सरकार ने विपक्ष के हंगामे को दरकिनार करते हुए सबसे पहले आंदोलनकारी किसानों से किया अपना वादा पूरा किया। इससे पहले कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने पराली जलाना अपराध नहीं है, बयान देकर किसानों की एक और मांग पूरी की थी। सरकार ने बिजली एक्ट से भी किसानों को हटा दिया है।
अब दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन जारी रखने का कोई नैतिक औचित्य नहीं दिख रहा है, ऐसे में आंदोलनकारियों का बड़ा दिल दिखाते हुए आंदोलन समाप्ति की घोषणा के साथ बॉर्डर्स को खाली कर देना चाहिए। सिंघु बॉर्डर पर पंजाब के 32 किसान संगठनों की बैठक के बाद संकेत भी मिला है, जिसमें नेताओं ने माना है कि 'अब आंदोलन जारी रखना का कोई मतलब नहीं है, सरकार ने मांगें पूरी की हैं, अब हमारे पास कोई बहाना नहीं है।' संकेत है कि इस बैठक में घर वापसी के लिए सहमति बन गई है, बस संयुक्त किसान मोर्चा की मुहर लगनी बाकी है। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की 42 लोगों की कमेटी की इमरजेंसी मीटिंग भी अब 1 दिसंबर को ही होगी। पहले यह 4 दिसंबर को होने वाली थी। एसकेएम के इस स्टेप से साफ है कि वह भी सरकार के मूव के साथ तेजी से फैसले की ओर बढ़ रहा है। पंजाब के किसान नेता हरमीत कादियां ने 32 किसान संगठनों की बैठक के बाद कहा भी है कि 'लोकसभा और राज्यसभा में कृषि कानून वापस ले लिए गए हैं। पराली और बिजली एक्ट से किसानों को निकाल दिया गया है। जिन मांगों को लेकर हम आए थे, उन पर फैसला हो चुका है। इसलिए अब आंदोलन जारी रखने का कोई बहाना नहीं है।' उन्होंने हालांकि यह कहा है कि 'एमएसपी पर सरकार ने कमेटी बनाने की बात कही है। इसमें किसानों के प्रतिनिधि लिए जाएंगे या नहीं और वो कितने वक्त में फैसला लेगी? इन बातों पर सब कुछ साफ होना चाहिए।'
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने जरूर कहा है कि, 'कृषि कानून वापस हो चुके हैं, लेकिन अब एमएसपी और किसानों की समस्याओं पर चर्चा होनी चाहिए, एमएसपी पर कानून बनने तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।' आंदोलन खत्म होने को लेकर सबकी नजरें एक दिसंबर पर टिकी हैं, लेकिन अब इसे जल्द से जल्द खत्म होना चाहिए। दिल्ली के घेराव से आमजन से लेकर अर्थव्यवस्था तक बहुत प्रभावित हुए हैं। सरकार और आंदोलनरत संगठनों के बीच 'जिद' ने इस आंदोलन को विश्व का सबसे लंबा बना दिया है। तीनों कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद आंदोलन का जारी रहना सरकार पर भरोसे के संकट का ही नमूना है, हालांकि अब सरकार ने तीनों कृषि कानूनों की वापसी कर जनता के प्रति अपने विश्वास को ही स्थापित किया है।
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