डाॅ. एल. एस. यादव : अब स्वदेशी हथियारों से होगी सुरक्षा

डाॅ. एल. एस. यादव
अभी हाल ही में 15 अप्रैल को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि किसी देश की ताकत और शक्ति का मूल्यांकन करने के दो मापदंड होते हैं। जिसमें पहला उस देश की रक्षा क्षमता कैसी है और दूसरा वहां की अर्थव्यवस्था का आकार कैसा है। जहां तक रक्षा क्षमता का सवाल है तो हमने फैसला कर लिया है कि अब हम रक्षा सामग्री अपने यहां से ही खरीदेंगे। उन्होंने कहा कि पहले हम लाखों करोड़ों का सामान विदेशों से लेते थे, लेकिन अब यह सुनिश्चित कर लिया गया है कि रक्षा सामग्री का निर्माण भारत में होगा और भारतवासियों के हाथों द्वारा बनेगा, क्योंकि भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। वर्तमान में 85000 करोड़ रुपये की जो पूंजी रक्षा सामान खरीदने के लिए है उसका 68 प्रतिशत भारत की कंपनियों से ही लिया जाएगा।
दरअसल सरकार की योजना है कि हम अपनी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर दूसरे देशों पर आश्रित न रहें। इसी के मद्देनजर ऐसे 309 रक्षा आइटम घोषित किए गए हैं जो बाहर से नहीं मंगाए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि पहले छोटे से छोटे रक्षा उत्पादों के लिए भारत दूसरे देशों पर निर्भर रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। यदि कोई तकनीकी मामला फंसता है तो विदेशी रक्षा उत्पाद कंपनी को भारत की जमीन पर भारतीय नागरिकों के हाथों से तैयार करवाना होगा, इसीलिए रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार का सेना को साफ संदेश है कि हमें भविष्य के युद्ध स्वदेशी हथियारों व उपकरणों से लड़ने हैं, इसलिए सेना अपनी जरूरत का लगभग सारा साजो-सामान स्वदेशी निर्माताओं से ही खरीदेगी। अभी हाल ही में थल सेना उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बीएस राजू ने कहा था कि भारतीय सेना ने बीते दो वर्षों के दौरान तकरीबन 40000 करोड़ रुपये की कीमत के साजो-सामान के लिए दो अनुबंध स्वदेशी कंपनियों के साथ किए हैं। भविष्य में सेना को अपनी जरूरत का कौन सा हथियार चाहिए और उसमें सेना किस तकनीक को चाहती है इसके लिए सबसे पहले स्वदेशी हथियार निर्माताओं तथा भारतीय कंपनियों से ही संपर्क किया जाएगा। अब एक्सेप्टेंस आॅफ नेसेसिटी सैन्य व प्रतिरक्षा साजो-सामान बनाने वाली स्वदेशी कंपनियों को ही दिया जाएगा। इस तरह लगभग 90 प्रतिशत या इससे ज्यादा के आर्डर भारतीय कंपनियों को ही मिलेंगे। अब देश में सैन्य साजो-सामान चीन व पाकिस्तान जैसे देशों से मिलने वाली चुनौतियों के अनुरूप तैयार किया जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने सन 2025 तक 35000 करोड़ रुपये का लक्ष्य तय करने के साथ 1.75 लाख करोड़ रुपये के स्वदेशी रक्षा उत्पाद खरीदने का लक्ष्य भी रखा है।
सरकार ने वायुसेना को स्वदेशी रक्षा सामग्री से लैस कर उसे आत्मनिर्भर बनाने का फैसला किया है। इसके तहत लड़ाकू एवं अन्य विमान, राडार और हवा से हवा में तथा हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें देश में ही बनाई जाएंगी। इससे विदेशों पर निर्भरता कम हो जाएगी तथा रक्षा मंत्रालय को एक बड़ी रकम की भी बचत होगी। गौरतलब है कि विदेशों से आयात की जाने वाली रक्षा सामग्री ज्यादातर महंगी होती है। वायुसेना के पायलटों के प्रशिक्षण विमान खरीदने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि हिन्दुस्तान एयरोनाॅटिक्स लिमिटेड द्वारा तैयार किए जा रहे एचटीटी-40 प्रशिक्षण विमान जल्द ही वायुसेना को मिलने वाले हैं। इसी तरह परिवहन के लिए सी-295 विमान का उत्पादन देश में ही शरू होने वाला है। हिन्दुस्तान एयरोनाॅटिक्स लिमिटेड द्वारा तैयार किए जा रहे लाइट काॅम्बेट हेलीकाॅप्टर व लाइट यूटिलिटी हेलीकाॅप्टर की खरीद शुरू की जा चुकी है। इस तरह इनकी भी विदेशों से निर्भरता खत्म हो जाएगी। इसी तरह मिसाइलों के मामले में सतह से हवा में मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश मिसाइल व हवा से हवा में मार करने वाली अस्त्र मिसाइलों का देश में ही उत्पादन तेजी से चल रहा है। इसके अलावा असलेसा, रोहिणी, एसआरआई तथा पीएआर श्रेणी के अत्याधुनिक राडार देश में ही निर्मित हो रहे हैं। इनको वायुसेना में श्ामिल किया भी जा रहा है। वायुसेना को वर्ष 2024 तक स्वदेशी 83 हल्के लड़ाकू विमान तेजस के अत्याधुनिक हथियारों से लैस संस्करण की आपूर्ति पूरी हो जाएगी। तेजस विमानों की आपूर्ति तेजी से हो, इसके लिए केन्द्र सरकार भी पूरी तरह से तत्पर है। उल्लेखनीय है कि पिछले जनवरी माह में इस सौदे पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके अलावा एडवांस्ड काॅम्बेट एयरक्राफ्ट का भी निर्माण किया जा रहा है। इनके तैयार होने पर भारत को सुखोई व राफेल जैसे विमान दूसरे देशों से नहीं लेने पड़ेंगे। इस तरह रक्षा क्षेत्र स्वदेशी हथियारों के मामले में मजबूत हो जाएगा और भारत की विदेशों पर हथियार निर्भरता काफी कम हो जाएगी।
वर्ष 2030 तक रूस से हेलीकाॅप्टर पर निर्भरता खत्म करने की तैयारी की जा रही है। अगर अनुमति मिल जाती है तो एचएएल 2030 तक पहला हेलीकाॅप्टर बनाकर दे देगा। ज्ञातव्य है कि एचएएल थलसेना, वायुसेना एवं नौसेना के लिए हेलीकाॅप्टर की जरूरतें पूरी कर सकता है। दरअसल रूस-यूक्रेन जंग की वजह से भारतीय वायुसेना के हेलीकाॅप्टरों की सर्विसिंग में परेशानी आ रही है, क्योंकि स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति प्रभावित हो रही है। भारतीय वायुसेना के पास रूस के एमआई-17 हेलीकाॅप्टर हैं जो पिछले तीन दशकों से जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। इनकी अवधि 2028 में समाप्त हो रही है। फिलहाल एमआई-35 हेलीकाॅप्टरों के पुर्जे लगाकर काम चलाया जा रहा है। इस कारण भारत चाहता है कि स्वदेशी हेलीकाॅप्टर तैयार किए जाएं। वर्तमान में एचएएल स्वदेशी मीडियम लिफ्ट हेलीकाॅप्टर विकसित कर रहा है और मल्टीरोल हेलीकाॅप्टर तैयार करने की क्षमता रखता है।
भारतीय नौसेना को भी मानवरहित हथियारों से लैस किया जा रहा है। नौसेना के लिए भी लड़ाकू विमानों की जगह आर्म्ड ड्रोन खरीदने की तैयारी कर ली गई है। इसके अलावा समुद्र के भीतर नौसेना की ताकत बढ़ाने के लिए अनमैंड अंडर वाटर व्हीकल तैयार कर लिया गया है। वैसे यह मुख्य रूप से मानवरहित पनडुब्बी है। इसकी विशेषता यह है कि यह समुद्र के भीतर रहते हुए शत्रु पर आक्रमण करती है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा इस प्रकार के आर्म्ड ड्रोन का निर्माण देश में ही किया जा रहा है। इसके अलावा विदेशों से भी ऐसे ड्रोन एवं पनडुब्बियों की तकनीक हासिल किए जाने के प्रयास जारी हंै। वायुसेना के लड़ाकू बेड़े में भी आर्म्ड ड्रोन शामिल किए जाएंगे, इसकी प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। ये ड्रोन वायुसेना के लड़ाकू विमानों की कमी दूर करेंगे। विदित हो कि अमेरिका सहित विश्व के कई देशों की वायु सेनाएं आर्म्ड ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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