अलका आर्य का लेख : मोटापा विश्व के लिए चुनौती

अलका आर्य
मोटापा कैसे कम करें, संबधित विज्ञापन चारों ओर देखने को मिल जाते हैं, चाहे वह पार्क हो या बस स्टेंड, बस्ती हो या पाॅश इलाके की कोई दीवार। विश्व इस समय मोटापे की समस्या से जूझ रहा है। मोटापा दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य संकटों में से एक है। दुनियाभर के आंकड़े भयावह तस्वीर सामने रखते हैं। हालिया आकड़ों के अनुसार दुनिया में 80 करोड़ से अधिक लोग मोटे हैं। यह संख्या बढ़ रही है। विश्व मोटापा महासंघ ने भारत समेत दुनिया के 200 मुल्कों में वयस्कों और बच्चों के मोटापे पर किए गए अध्ययन का निष्कर्ष वर्ल्ड ओबेसिटी एटलस में जारी किया है। दुनिया में 2030 तक हर 5 में से 1 महिला और हर सात में से 1 पुरुष मोटापे के साथ जी रहा होगा। वर्ष 2030 तक दुनियाभर में एक अरब से अधिक लोग मोटापे की चपेट में होंगे।
जहां तक भारत का सवाल है, रिपोर्ट के अनुसार अगले 8 साल में, भारत की 7 करोड़ व्ायस्क आबादी मोटापे के दायरे में होगी। 2010 यानी 11 साल पहले यह संख्या 2 करोड़ थी। अंदाजा लगाया जा सकता है कि मोटे लोगों की बढ़ने की रफ्तार कितनी तेज है। 5 से 19 आयु वर्ग के 2.71 करोड़ बच्चे भी मोटापे की गिरफ्त में होंगे। रिपोर्ट के मुताबिक एक भी मुल्क ऐसा नहीं है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मोटापे के मानकों पर खरा उतरता हो। ध्यान देने वाला एक अहम बिंदु यह भी है कि अक्सर मोटापे को अमीर, विकसित मुल्कों व अमीर लोगों की समस्या के रूप में लिया जाता है, लेकिन वास्तव में यह नजरिया सही नहीं है। अधिक वजन, मोटापा विकसित व विकासशील दोनों तरह के मुल्कों की समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार मोटापे की समस्या 1975 से बच्चों, किशारों व वयस्कों व सभी वर्गों के लोगों में तीन गुणा हो गई है। यह समस्या विकसित व विकासशील दोनों तरह के मुल्कों में अपनी गहरी जड़ें बनाए हुए है। दुनिया की आधी मोटी महिलाएं अमेरिका, भारत, चीन, पाक समेत 11 मुल्कों में हैं और आधे मोटे पुरुष भारत, अमेरिका जैसे 9 मुल्कों में हैं। जहां तक बच्चों में मोटापे का सवाल है, दुनिया के कुल मोटे बच्चों में से 75 फीसदी बच्चे निम्न आय वाले मुल्कों में रहते हैं। मोटापा एक गंभीर शारीरिक समस्या ही नहीं है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डालता है। दरअसल मोटापा कई गंभीर बीमारियों की शुरुआत है। जिस पर काबू पाकर टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर, हृदयघात व स्ट्रोक जैसी कई बीमारियों को दूर रखा जा सकता है। मानसिक तौर पर ऐसे इंसानों में अवसाद के लक्षण देखने को मिल सकते हैं। वजह वे समाज में अपनी शारीरिक संरचना के चलते खुद को सहज नहीं पाते। उनमें आत्म-सम्मान की कमी भी देखने को मिल सकती है। उनके अंदर एक तरह की हीन भावना भी पैदा हो सकती है। यहां यह जिक्र करना प्रासगिंक है कि ऐसे इंसानों को अपनी शराीरिक बनावट के प्रति शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं, बल्कि उन्हें अपनी जीवन शैली में सुधार करने व स्वस्थ आहार लेने पर फोकस करना चाहिए। गौरतलब है कि विश्व मोटापा संघ ने अधिक वजन, मोटापे सरीखी गंभीर समस्या पर दुनियाभर का ध्यान आकर्षित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर काम करना शुरू किया। 11 अक्तूबर 2015 को विश्व मोटापा दिवस मनाने की शुरूआत की। यह दिवस सहयोगात्मक उपयोगी कार्रवाई और पहलों के उद्वेश्यों के साथ प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इसे मनाने के पीछे मकसद लोगों को इसके बारे में जागरूक करना व इसके उन्मूलन की दिशा में कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
यह भी गौर करने लायक है कि इस विश्व मोटापा दिवस का मकसद लोगों को जागरूक करने के साथ ही साथ लोगों को ऐसे लोगों का मजाक उड़ाना नहीं, समझाना भी है। 2016 में बचपन में मोटापे की समस्या पर फोकस किया गया था। वर्ष 2020 से विश्व मोटापा दिवस 4 मार्च को मनाया जाता है। इसका मिशन मोटापा कटौती, रोकथाम और उपचार करने के वैश्विक प्रयासों की अगुआई और संचालन करना है। विश्व मोटापा दिवस 2022 का थीम 'एवरीबडी नीड्स टू एक्ट ' है। मोटापे की प्रमुख वजहों में अधिक वसा वाले भोजन का सेवन करना है। कम व्यायाम करना व स्थिर जीवन जीना भी एक कारण है। असुंतलित आहार लेना, पर्याप्त नींद नहीं लेने से भी मोटापा बढ़ सकता है। खराब जीवन शैली व स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाली खाद्य सामग्री का सेवन इंसान को मोटा बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। अब दुनिया के कई मुल्कों में इस बात पर जोर दिया जाने लगा है कि पैकेट बंद खाने के सामान पर हेल्थ स्टार रेटिंग होनी चाहिए। हेल्थ स्टार रेटिंग पैकेट बंद खाने में शमिल नमक, चीनी और वसा की मात्रा के आधार पर दी जाती है। अभी ब्रिटेन, चिली, मैक्सिको, न्यूजीलैंड और आस्ॅट्रेलिया में पैकेट बंद खाने पर हेल्थ स्टार रेटिंग प्रणाली लागू है। भारत में भी इसे लागू करने पर विचार हो रहा है। जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों के बोझ से दबे भारत में रेटिंग प्रणाली लागू करने की जरूरत है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण फ्रंट आफ पैकेजिंग लेबलिंग को लेकर नई नीति बना रहा है। वसा, नमक, चीनी के बारे में जानकारी पैकेट के सामने वाले हिस्से पर प्रकाशित होगी। बच्चों में मोटापा एक अति चिंता का विषय है। कोविड-19 महामारी ने भी बच्चों में मोटापे की समस्या को बढ़ा दिया है। कारण स्कूलों का न खुलना व लाॅकडाउन के कारण शारीरिक गतिविधियों का थम जाना। इस संदर्भ में बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ वक्त-वक्त पर जागरूकता अभियान चलाती रहती है।
यूनिसेफ इंडिया ने अन्य भागीदारों के साथ मिलकर इस विश्व मोटापा दिवस के मौके पर भारत के बच्चों, किशारों को स्वस्थ आहार मुहैया कराने के लिए 'लेट्स फिक्स अवर फूड' नामक अभियान की शुरुआत की है। इसके तहत ई संवाद श्रंखला शुरू की है। ऐसा पहला संवाद हाल ही में आयोजित किया गया। यूनिसेफ इंडिया के प्रमुख पोषण अधिकारी अर्जुन डी वेक्ट का कहना है कि अस्वथकारी खाद्य सामग्री की आक्रामक विज्ञापन शैली व विपणन प्रणाली भी अस्वथकारी भोजन के माहौल को बनाने में अपनी भूमिका निभाती है। इस कारण भी बच्चों में मोटापा बढ़ा है। सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों के पर्याप्त पोषण वाले भोजन के बाल अधिकार को संरक्षण दे, ऐसा वे बच्चों की सुरक्षित व किफायती पौष्टिक आहार तक पहुंच की गांरटी देकर कर सकते हैं।' यूनिसेफ का मानना है कि सरकार को बच्चों की प्राथमिकताओं पर ध्यान देना चाहिए। दुनिया मोटापे की आर्थिक कीमत भी चुका रही है। मोटापा का अर्थव्यवस्था पर भी असर हो रहा है। भारत में वर्ष 2019 में मोटापे पर खर्च 1.72 लाख करोड़ रुपये था, जो जीडीपी का 0.8 फीसदी था। 2060 में यह खर्च 35.92 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा,जो जीडीपी का 2.75 फीसदी होगा।
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