अग्निपथ योजना : फौज की तर्ज पर मिले पैकेज

भारत सरकार की सेना में भर्ती प्रक्रिया के लिए अग्निपथ स्कीम का ऐलान करने की कई वजह हैं। दरअसल रक्षा बजट के दो हिस्से होते हैं, जिसमें कैपिटल बजट में सेना के आधुनिककरण के लिए 20 प्रतिशत से कुछ ज्यादा और रेवेन्यू एक्सपेंडिचर के लिए 70-75 प्रतिशत खर्च किया जाता है। सरकार पर लगातार रेवेन्यू बजट कम करने का दबाव था, इसलिए पेंशन को कम करने के मकसद से सरकार ने अग्निपथ स्कीम शुरू की, जिसमें साढ़े 17 साल से लेकर 21 साल के युवाओं को देश की तीनों सेनाओं में चार साल के लिए अग्निवीरों को सेवा देने का निर्णय लिया। इससे कैपिटल बजट की राशि बढ़ने से उसका इस्तेमाल नए हथियार, वायुयान, युद्धपोत और अन्य सैन्य उपकरण खरीदने और सेना के आधुनिकीकरण के दूसरे उपायों के लिए किया जा सकेगा। कारगिल युद्ध के दौरान गठित कारगिल समीक्षा समिति ने सिफारिश की थी कि सेना में जवानों की औसतन आयु 32-33 को कम करना चाहिए। अग्निपथ स्कीम में समिति की सिफारिश के ये उपाय लागू होते दिख रहे हैं और अगले दस साल के भीतर औसतन आयु 25-26 साल तक आ जाएगी।
रक्षा बजट में पेंशन की राशि बचाकर सेना के आधुनिकीकरण हो सके, इसी सोच विचार के साथ सरकार ने सेना में अग्निपथ स्कीम के तहत जवानों की भर्ती शुरू करने की शुरुआत की है। सेना में भर्ती की इस नई योजना के तहत चार साल के लिए सैनिक भर्ती होंगे, उसमें छह महीने की बेसिक ट्रेनिंग करेंगे और बाकी साढ़े तीन साल उन्हें कॉम्बेट एनवायरमेंट यानी विभिन्न बोर्डर एरिया में तैनात कर दिया जाएगा। इन चार साल की सेवा में उन्हें पहले दो साल प्रतिमाह 30 हजार रुपये और फिर करीब 40 हजार रुपये दिए जाएंगे। कार्यकाल समाप्त होने के बाद सभी अग्निवीरों को 11.71 लाख की एकमुश्त 'सेवानिधि' पैकेज का भुगतान किया जाएगा। चार साल की सेवा अवधि के बाद सभी जवानों को कौशल प्रमाण पत्र, कक्षा 12वीं की डिग्री मिलेगी। यदि इन चार साल के दौरान कोई अग्निवीर के साथ कोई हादसा या कोई शहीद हो जाता है तो उसे बीमा योजना के तहत उनके परिजनों को करीब एक करोड़ रुपये दिए जाएंगे। यही नहीं 'अग्निवीर' को सियाचिन और अन्य क्षेत्रों जैसे क्षेत्रों में वही भत्ता और सुविधाएं मिलेंगी, जो नियमित सैनिकों को मिल रही हैं यानी सेवा शर्तों में किसी प्रकार के भेदभाव की गुंजाइश नहीं होगी। इस योजना के तहत कार्यकाल समाप्त होने के बाद 25 फीसदी तक जवानो को उनके कामकाज और क्षमता का आकलन करके मैरिट के आधार पर स्थायी तौर पर नियमित कर दिया जाएगा, जो पुनः सेना में सेवा के बाद पेंशन के लिए पात्र होंगे। हालांकि सरकार सोचती है कि क्षमता, कौशल और अनुभव के आधार पर ऐसे जवान अपने बलबूते पर कॉर्पोरेट जगत और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) और राज्य पुलिस बलों सहित सरकार के अन्य अंगों में उपयुक्त नौकरी पाने में सक्षम होंगे, जिनमें नौकरियों के लिए इन्हें वरीयता दी जाएंगी। सरकार ने आवश्यक पात्रता मानदंडों को पूरा करने वाले अग्निवीरों के लिए रक्षा मंत्रालय में नौकरी की 10 फीसदी रिक्तियों को आरक्षित करने की मंजूरी दे दी। यही नहीं भारतीय तटरक्षक बल और डिफेंस सिविल पोस्ट के अलावा रक्षा क्षेत्र की सभी 16 सार्वजनिक उपक्रमों की नौकरियों में 10 फीसदी सीटें अग्निवीरों के लिए आरक्षित की जा रही है। सेना में चार साल की नौकरी पूरी करने वाले अग्निवीरों के लिए नागर विमानन ने भी एयर ट्रैफिक सर्विसेज और एयरक्राफ्ट टेक्नीशियन सर्विसेज में मौका देने का ऐलान किया है, तो सरकार के विभिन्न विभाग भी अग्निवीरों को नौकरी में प्राथमिकता देने का भरोसा दे रहे हैं। सरकार का यह भी विचार है कि सेना में अनुशासित सेवा देने वाले ऐसे जवान किसी भी विभाग में नौकरी करेंगे तो वे जनता के बीच एक अनुशासन की मिसाल पेश करेंगे।
रक्षा विभाग के पूर्व एवं वरिष्ठ अधिकारियों ने इस योजना को प्वाइंट आउट किया, जिसमें सरकार सुधार भी कर रही है। पहली सेना में चार की नौकरी के भीतर एक साल तो उनका बुनियादी ट्रेनिंग और विशेष ट्रेनिंग में निकल जाएगा। सवाल ये भी था कि चार साल में तो युवा सेना में ट्रेंड होंगे और तभी उन्हें रिटायर्ड कर दिया जाएगा। भारत की फौज सारे युद्ध जीत चुकी है और हर जवान का 'नाम, नमक और निशान' के साथ जज्बा देश के लिए मर मिटने का है, जिसमें शहीद होने पर उनके परिवार की देखभाल देश करता है और उनके परिवार को बहुत बड़ा पैकेज और वित्तीय सुविधा भी मिलती है। इसकी अपेक्षा अग्निपथ स्कीम में चार साल की सेना में नौकरी करने वाले को बहुत कम पैकेज मिलेगा। वहीं क्या 'नाम, नमक और निशान' इन चार साल में होगा? और क्या असुरक्षा महसूस करने वाले ये जवान उसी जज्बे के साथ काम करगे? ऐसे सुझावों पर गौर करते हुए सरकार ने कई अहम फैसले लिए हैं, जिसे देखते हुए चार साल के बाद जो दोबारा सेना में नहीं होंगे, उन्हें अनुभव के आधार पर सरकार रक्षा विभाग के अलावा केंद्रीय बलों में भर्ती करने के लिए वरीयता देगी। सरकार के इस कदम से खासकर सीएपीएफ न केवल अच्छी तरह से प्रशिक्षित, प्रेरित और अनुभवी सैनिकों के आने से मजबूत होगी, बल्कि इससे उसका प्रशिक्षण पर होने वाला खर्च भी कम होगा।
यदि अग्निवीर शहीद होते हैं तो उन्हें भी रेगुलर सेना के जवान की तर्ज पर पैकेज पर भी सरकार गौर कर रही है। दरअसल दो साल से सेना में भर्तियां नहीं हुई, इसलिए भी सेना की तैयारी में जुटे युवाओं में आक्रोश देखा जा रहा है। सरकार ने हालांकि 2-3 चीजे मान ली हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने माना कि चार साल की सेना में नौकरी से हटने वालों को बाद में इंडेक्शन करने की योजना बनाई जा रही है, जबकि इस साल अग्निवीरों की भर्ती के लिए दो साल की वन टाइम छूट दी है। सरकार इसके लिए लिखित में अधसिूचना जारी करेगी। यदि ऐसा होता है तो अग्निपथ स्कीम एक बेहतर योजना साबित होगी, जिसमें पेंशन का पैसा बचाकर सरकार सेना का आधुनिकरण भी कर सकेगी। वहीं दूसरा फायदा चार साल की नौकरी के बाद युवाओं को आगे नौकरी मिल सकेगी।
पहली बार सेना में भर्ती के लिए आई अग्निपथ स्कीम को लेकर आक्रोश की वजह यह भी रही है कि सेना में चार साल नौकरी करने वाले युवाओं के अनुभव होगा, इसलिए उन्हें सिक्योरिटी गार्ड जैसी सुरक्षा संबन्धी नौकरी मिल सकती है। जहां तक कार्पोरेट या सेक्टरों में नौकरी का सवाल है तो वहां समायोजन की कोई संभावना कम और उन्हें सुरक्षा से सबंधित नौकरियां मिल सकती है। इसका कारण है कि कार्पोरेट जगत में कार्य संस्कृति के साथ तकनीकी इन्वायरमेंट अलग-अलग है। ऐसी स्थिति में सेना से पूरी तरह प्रशिक्षित युवा सुरक्षा से संबंधित सिक्योरिटी या छोटे-मोटे काम ही कर पाएंगे, क्योंकि संबन्धित नौकरी करेगे, तो इनके समाज विरोधी गतिविधियों की तरफ रुख करने की आशंका सबसे बड़ा चिंता का विषय है। ऐसे सब पहलुओं को लेकर भी सरकार विचार कर रही है।
( ओ.पी. पाल से सेनि. मे.ज. एके. सिवाच की बातचीत पर आधारित)
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