नीलम महाजन सिंह का लेख : भारत-पाक वार्ता पर जमी बर्फ पिघले

नीलम महाजन सिंह का लेख : भारत-पाक वार्ता पर जमी बर्फ पिघले
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पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद उम्मीद की जा सकती है कि भारत व पाक के बीच वार्ता पर जमी बर्फ पिघल सकती है। पाकिस्तान के नए वजीरे आजम शहबाज शरीफ बेशक कश्मीर पर तल्ख हों, पर वे भारत से बेहतर संबंध के पैराकार रहे हैं। आज पाकिस्तान की जो आर्थिक व कूटनीतिक स्थिति है, उसमें उस पर भारत से संबंध सुधारने का दबाव भी है।

नीलम महाजन सिंह

मौजूदा दौर में भारत और पाकिस्तान के संबंध सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम पड़ोसी नहीं बदल सकते, संयोग से भारत के दो पड़ोसी चीन व पाकिस्तान के साथ रिश्ते तनावपूर्ण हैं। हाल में पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद उम्मीद की जा सकती है कि भारत व पाकिस्तान के बीच वार्ता पर जमी बर्फ पिघल सकती है। पाकिस्तान के नए वजीरे आजम शहबाज शरीफ बेशक कश्मीर पर तल्ख हों, पर वे भारत से बेहतर संबंध के पैराकार रहे हैं। उनकी पार्टी पीएमएल-एन व पूर्व पीएम व उनके भाई नवाज शरीफ भारत से शांतिपूर्ण संबंध बनाने के हिमायती रहे हैं। इमरान खान जब तक सत्ता में रहे तब तक उन्होंने भारत विरोधी रुख ही अपनाए रखा। आज पाकिस्तान की जो आर्थिक व कूटनीतिक स्थिति है, उसमें उस पर भारत से संबंध सुधारने का दबाव भी है।

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा भी कम से कम अपने बॉडी लैंग्वेज से भारत से बेहतर संबंध के इच्छुक दिख रहे हैं। अभी इमरान खान की विदाई के वक्त पाकिस्तान पर सैन्य शासन का अवसर होने के बावजूद जनरल बाजवा ने कोई तत्परता नहीं दिखाई। चूंकि चीन भी भारत से सैन्य तनाव कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, चीनी विदेश मंत्री की अचानक भारत यात्रा इसी परिप्रेक्ष्य में हुई थी। ऐसे में भारत को बदले हालात का फायदा उठाना चाहिए। आतंकवाद को खत्म किए बिना वार्ता नहीं करने की भारत की नीति रहने के बावजूद अभी नई दिल्ली को इस्लामाबाद से वार्ता शुरू करने की कम से कम पहल करनी चाहिए।

370 हटने के बाद बदली जम्मू-कश्मीर की स्थिति को भी बदलना चाहिए और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिया जाना चाहिए। भारत को पीओके को वापस पाने का कूटीतिक व सामरिक भी प्रयास करना चाहिए। लेकिन इस सबसे पहले पाकिस्तान की नई सरकार की नीयत भी टटोलनी चाहिए। पाक के नए पीएम शहबाज शरीफ के पास बहुत कम समय है, डेढ़ साल बाद वहां इलेक्शन है, उस वक्त भारत विरोधी माहौल रहेगा, लेकिन अभी शहबाज पर पाक की अर्थव्यवस्था सुधारने का दबाव है, जो भारत के सहयोग के बिना पटरी पर शायद ही आएगी। अमेरिका से पाक के ताल्लुक तल्ख हैं, चीन पाकिस्तान को और ज्यादा देना नहीं चाहता, सीपैक से चीन को अभी तक कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है और पाक के लिए भी सीपैक आर्थिक दलदल ही साबित हुआ है। रूस युद्ध के चलते पाक को केवल आश्वासन ही दे सकता है, सऊदी अरब व यूएई पहल से ही नाराज हैं, पाक के दोस्त तुर्की की आर्थिक हालत बहुत खराब है, ऐसे में पाक पर घिरा हुआ है। पाक के कॉरपोरेट की लॉबी भी पाकिस्तानी एस्टाब्लिशमेंट पर भारत से संबंध सुधारने का दबाव बनाया हुआ है। भारत अगर पाक के साथ वार्ता शुरू करता है तो इससे जहां दक्षिण एशिया में शांति का मार्ग प्रशस्त होगा, वहीं अफगानिस्तान को साधने में भी मदद मिलेगी, जहां भारत का बड़ा स्टेक है। इसी के साथ क्रॉस बोर्डर टेररिज्म में भी कमी आएगी। भारत की पहल के बाद अगर पाकिस्तान शांति बहाली में आनाकानी करेगा तो भारत के पास पाक पर दबाव बनाने व पीओके पर अपना दावा पेश करने का कूटनीतिक मौका होगा, जिसे भारत अवसर में बदल सकता है।

वरिष्ठ दूरदर्शन समाचार संवाददाता के रूप में, मुझे दोनों देशों की सचिव स्तर की बैठकों को कवर करने का अवसर मिला। पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की भारत यात्रा को लेकर अत्यधिक प्रचार किया गया। 'कश्मीर की बेटी' और कश्मीर के मुद्दों की विश्लेषको होने के नाते, मैंने समय-समय पर भारत सरकार को सलाह भेजी है। पाकिस्तान में सत्ता बदलने से क्या भारत और पाकिस्तान के संबंध बेहतर होंगे? वास्तव में दु:ख की बात है कि संवाद नहीं हो रहा है। कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच अहम मुद्दा है। यह विवादास्पद मुद्दा कभी खत्म नहीं होगा चाहे सरकारें आती और जाती रहें। वर्तमान विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर, आईएफएस विदेश मंत्रालय के सचिव थे और पाकिस्तान में भारत के राजदूत रहे हैं। डॉ. जयशंकर भारत और पाकिस्तान की समस्याओं के जानकार हैं। इन सबके बावजूद दोनों परमाणु देशों के बीच संबंधों को आसान बनाने के लिए कोई सकारात्मक प्रगति नहीं हुई है। पीएम शहबाज़ शरीफ पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के माध्यम से उन्हें उम्मीद है कि यह क्षेत्र 'आतंक-मुक्त' होगा। राजनयिक शिष्टाचार के नाते, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाहबाज़ शरीफ को बधाई दी और कहा, भारत आतंक मुक्त क्षेत्र में शांति और स्थिरता चाहता है, ताकि हम अपने विकास, चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कर सकें और अपने लोगों की समृद्धि सुनिश्चित कर सकें।

शहबाज तीन बार के पीएम नवाज शरीफ के छोटे भाई हैं। पनामा पेपर्स के खुलासे से संबंधित संपत्ति छिपाने के आरोप में 2017 में नवाज को दोषी पाए जाने के बाद जब वह पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के प्रमुख बने तो उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया। नवाज के विपरीत, शाहबाज़ के पाक फौज से सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, जो विदेश और रक्षा नीति को नियंत्रित करता है। भारत और पाकिस्तान के लिए यह वास्तव में महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध हों। विभिन्न मुद्दों को हल करने का प्रयास करने के लिए बातचीत में शामिल होना आवश्यक है। विदेश सचिव स्तर की वार्ता शुरू होनी चाहिए। यह उचित होगा कि पाक प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ अपने विदेश सचिव को भारतीय विदेश सचिव, विनय मोहन क्वात्रा, आई.एफ.एस. (वह मौजूदा विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, आई.एफ.एस. की सेवानिवृत्ति उपरांत विदेश-मंत्रालय के सचिव होंगे) के साथ भेंटवाार्ता के लिए दिल्ली भेजें। पाकिस्तान को सीमा पार से घुसपैठ और आतंकवाद को रोकना होगा।

पाकिस्तान को आश्वस्त करना चाहिए कि वह कश्मीर की हिंसा की रीढ़ नहीं है। राजनयिक और मीडिया के साथ बातचीत को मज़बूत करने के प्रयास किए जाने चाहिए। आधिकारिक जुड़ाव सकारात्मक संकेत भेजेगा। हालांकि चीन के साथ पाकिस्तान के संबंध नंबर एक हैं, फिर भी भारत-चीन संबंधों में तनाव का असर भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर नहीं पड़ना चाहिए। एलओसी का सम्मान करने का प्रयास किया जाना चाहिए। भारत और पाकिस्तान के पास सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए शांति ही एकमात्र समाधान है। पीएम नरेंद्र मोदी को अटल बिहारी वाजपेयी के 'पड़ोसियों के साथ शांति' के सिद्धांत को पुनर्जीवित करना चाहिए (क्योंकि हम भौगोलिक पड़ोसियों को नहीं बदल सकते हैं)। उम्मीद है कि पीएम शहबाज़ शरीफ दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाएंगे। मुझे यह उम्मीद है कि रमज़ान के अंत तक दोनों देश शांति की रणनीति तैयार कर लेंगे।

(लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार व विश्लेषक हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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