डा. ए.के. अरुण का लेख : आरोग्य का मार्ग प्राकृतिक चिकित्सा

डा. ए.के. अरुण का लेख : आरोग्य का मार्ग प्राकृतिक चिकित्सा
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प्राकृतिक चिकित्सा का दर्शन और विधियां प्राणतत्त्ववाद और लोक चिकित्सा पर आधारित है। प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत रोगों का उपचार व स्वास्थ्य-लाभ का मूल आधार है- 'रोगाणुओं से लड़ने की शरीर की स्वाभाविक शक्ति'। प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है, जिसका लक्ष्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के उचित इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण समाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्त्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक जीवन-शैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक सम्पूर्ण क्रांति है।

बढ़ती जानलेवा बीमारियों के दौर में प्राकृतिक जीवनशैली एवं प्राकृतिक चिकित्सा की वैज्ञानिकता पर चर्चा करना इस समय में बेहद जरूरी है। प्रत्येक वर्ष भारत में 18 नवंबर को राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष का थीम है, सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक चिकित्सा। जाहिर है कि यदि हम वास्तव में मानवता के स्वास्थ्य की कामना करते हैं और इसके लिए दिल से प्रतिबद्ध हैं तो हमें ईमानदारी से प्रकृति की ओर लौटना होगा। हम देख रहे हैं कि आम लोगों में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अनिंद्रा, तनाव, अवसाद, मोटापा, विभिन्न प्रकार के कैंसर, आईबीएस आदि आम लोगों में तेजी से बढ़ रहा है। प्रकृति और प्राकृतिक चिकित्सा में लगभग जीवनशैली के सभी रोगों का सक्षम उपचार संभव है। आवश्यकता है प्राकृतिक उपचार के सभी वैज्ञानिक पहलुओं के गंभीर अध्ययन की।

वर्ष 2023 के विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल) का थीम डब्लूएचओ ने ‘सब के लिए स्वास्थ्य’ तय किया था। आम लोगों को लगेगा कि यह तो बहुत सराहनीय है। वैसे भी कथित तेज़ आर्थिक विकास के दौर में लोगों का स्वस्थ रहना ज़रूरी है। व्यवहार में भले ही यह संभव न हो, लेकिन जुमले छोड़ते ही रहने चाहिए। कम से कम लोग नाउम्मीद तो नहीं होंगे। भारत ने 1978 में ‘अल्माअता घोषणा पत्र’ पर हस्ताक्षर कर ‘वर्ष 2000 तक सबके लिए स्वास्थ्य’ लक्ष्य पाने की प्रतिबद्धता जताई थी। सन 1983 में भारतीय संसद ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को पारित कर इस लक्ष्य को प्राप्त करने का संकल्प लिया था, लेकिन आज तक इस नीति पर न तो अमल हुआ है और न ही किसी भी राजनीतिक दल के मुख्य एजेंडा में यह मुद्दा शामिल हुआ। यह वैश्विक आपदा का दौर है। इसमें देश के लोग सरकार से वैश्विक स्तर के पहल की उम्मीद कर रहे हैं। सवाल है कि जन स्वास्थ्य की इतनी महत्ता और जरूरत के बावजूद भारत में प्राकृतिक चिकित्सा के उपेक्षा की मुख्य वजहें क्या हैं? सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक दल की हो जन स्वास्थ्य की हालत एक जैसी ही है। देश में सबको स्वास्थ्य के संकल्प के बावजूद विगत दो दशक में हम देश में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को भी खड़ा नहीं कर पाए। उल्टे ‘सबको स्वास्थ्य’ के नाम पर हमने गरीब बीमारों को ‘बाजारू भेड़ियों’ जैसे निजी स्वास्थ्य संस्थानों के हवाले कर दिया। आम आदमी की सेहत को प्रभावित करने वाले रोग टीबी, मलेरिया, कालाजार, मस्तिष्क ज्वर, हैजा, दमा, कैंसर आदि को रोक पाना तो दूर हम इसे नियंत्रित भी नहीं कर पाए। उल्टे जीवनशैली के बिगाड़ से उपजे रोगों को महामारी बनने तक पनपने दिया। अब स्थिति यह है कि रोगों का भी एक वर्ग और टीबी, मस्तिष्क ज्वर, पोसियो गरीबों के रोग कहे जाने लगे और मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, हृदय रोग आदि अमीरों के रोग मान लिए गए। भारत में स्वास्थ्य की स्थिति पर नज़र डालें तो सूरत ए हाल और चिन्ताजनक है। स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी खस्ता है। अन्य देशों की तुलना में भारत में कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 4 प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है, जबकि चीन 8.3 प्रतिशत, रूस 7.5 प्रतिशत तथा अमेरिका 17.5 प्रतिशत खर्च करता है। विदेशों में हेल्थ की बात करें तो फ्रांस में सरकार और निजी सेक्टर मिलकर फंड देते हैं जबकि जापान में हेल्थकेयर के लिए कंपनियों और सरकार के बीच समझौता है। आस्िट्रया में नागरिकों को फ्री स्वास्थ्य सेवा के लिए ई-कार्ड मिला हुआ है। हमारे देश में फिलहाल स्वास्थ्य बीमा की स्थिति बेहद निराशाजनक है। अभी यहां महज 28.80 करोड लोगों ने ही स्वास्थ्य बीमा करा रखा है इनमें 18.1 प्रतिशत शहरी और 18.1 प्रतिशत 14.1 ग्रामीण लोगों के पास हेल्थ इंश्योरेंस है। इसमें शक नही है कि देश में महज इलाज की वजह से गरीब होते लोगों की एक बड़ी संख्या है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक शोध में यह बात सामने आई है।

हमारे देश में स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य चिंतन का भी अभाव लगता है। इस महामारी के दौरान देश में अन्तरराष्ट्रीय आवाजाही भी बिना किसी खास एहतियात के जारी रही। एयरपोर्ट पर चाक चौबन्द इन्तजाम किए गए थे, लेकिन हकीकत को लेकर कुछ और ही बताई जा रही थी। जाहिर है कि देश में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। ऐसे में महामारी नियंत्रण, मुकम्मल उपचार जैसी चीजों पर भी गंभीरता से उपाय करने की आवश्यकता है। प्रदूषण, गन्दगी, साफ पानी की पर्याप्त अनुपलब्धता, स्वास्थ्य सम्बन्धी चेतना और जागरूकता का अभाव किसी भी महामारी या रोग के प्रसार के लिए अनुकूल वातावरण रखते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा एक मौलिक चिकित्सा-पद्धति एवं दर्शन है जिसमें 'प्राकृतिक', 'स्व-चिकित्सा' 'अनाक्रामक', औषधिरहित आदि कहे जाने वाले तरीकों का उपयोग होता है। प्राकृतिक चिकित्सा का दर्शन और विधियां प्राणतत्त्ववाद और लोक चिकित्सा पर आधारित है। प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत रोगों का उपचार व स्वास्थ्य-लाभ का मूल आधार है- 'रोगाणुओं से लड़ने की शरीर की स्वाभाविक शक्ति'। प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है, जिसका लक्ष्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के उचित इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण समाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्त्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक जीवन-शैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक सम्पूर्ण क्रांति है।

प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक भोजन, विशेषकर ताजे फल तथा कच्ची व हलकी पकी सब्जियां विभिन्न बीमारियों के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। एक शोध का यह आश्चर्यजनक परिणाम देखिए। उपवास के कारण कैंसर-ग्रस्त कोशिकाओं को मिल सकने वाले ग्लूकोज़ की मात्रा इतनी घट जाती है कि ऊर्जा के अभाव में वे अपनी संख्या या तो बढ़ा नहीं पातीं या कीमोथेरैपी के प्रति इतनी असुरक्षित और भेदनीय बन जाती हैं कि दवाओं से मरने लगती हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि कीमोथेरैपी के बिना भी महज उपवास रख कर कैंसर जैसे रोग को ठीक किया जा सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों एवं गरीब देशों के लिए विशेष रूप से वरदान है। प्राकृतिक चिकित्सा में शोध और उच्चतर अध्ययन की बेहद जरूरत है। सरकार और समुदाय के स्तर पर प्रत्येक जिले में प्राकृतिक स्वास्थ्य केंद्र, एवं जीवन विकास केंद्र की स्थापना की जानी चाहिए। आम जन मानस में प्राकृतिक जीवन शैली का प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए। यकीन मानिये यदि प्राकृतिक जीवन शैली और प्राकृतिक उपचार को बढ़ावा मिला तो लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में बहुत मदद मिलेगी।

(लेखक - डा. ए.के. अरुण जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)


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