योगेश कुमार सोनी का लेख : लावारिस पशुओं के लिए बने नीति

योगेश कुमार सोनी का लेख : लावारिस पशुओं के लिए बने नीति
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हाईवे पर लावारिस पशुओं की वजह से हर रोज कई लोगों की जान जा रही है और इसके बचाव लिए सरकारों के पास कोई भी प्लान नहीं हैं। जो लोग लावारिस पशुओं को हाईवे पर छोड़ देते हैं, उनके लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए और इसके लिए एक नया विभाग बनाकर पूरे मामले पर निगाह भी बनाए रखनी होगी चूंकि हमारे देश में कोई भी आसानी व आराम से मानता कहां हैं। यह बहुत ही आवश्यक हो गया है कि शासन-प्रशासन से सरकार और स्थानीय प्रशासन इस मामले को गंभीरता से ले। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि सरकार इससे निपटने के लिए ठाेस नीति बनाकर उसे अमल में लाए।

योगेश कुमार सोनी

कई मामलों में देखा जाता है मानव जीवन की अप्राकृतिक हानि होती है जिसको हम आम भाषा में यह भी कह देते हैं कि बेमौत मारा जाना। ऐसा ही स्थिति हाल ही में देशभर के तमाम हाईवे पर देखी जा रही है जिसमें लावारिस पशुओं की वजह से हर रोज कई लोगों की जान जा रही है और इसके बचाव लिए सरकारों के पास कोई भी प्लान नहीं हैं। रात होते ही लावारिस पशुओं से छुटकारा पाने के लिए पशुओं को गांववासी गांव की सीमा से दूर खदेड़ देते हैं और अंधेरे का फायदा उठाकर लोग पशुओं के झुंड को सड़कों पर ही छोड़कर चले जाते हैं, जबकि वो इस बात से भली भांति अवगत होते हैं कि इन पशुओं की वजह से हर रोज कई लोगों की जानें जाती हैं। इस मामले में प्रशासन की ओर दलील दी जाती है कि वह कई बार गांववासियों से कह चुके कि वह लावारिस पशुओं को हाईवे पर न छोड़ें व इसके अलावा ब्रेकर बनाने की बात भी कही जाती है, लेकिन सब शून्य हैं। चूंकि गांव वालों पर इस बात को लेकर कान पर जूं तक नही रेंगती व ब्रेकर का कहीं नाम और निशान नही दिखता।

बीते दिनों दिल्ली-जयपुर हाईवे पर बैल से टकराने से एक बड़ा हो गया जिसमें तीन कारें एक साथ भिड़ी जिसमें 7 सात लोगों की मौत हो गई। यह तो मात्र एक घटना का जिक्र है ऐसे हजारों घटनाएं देशभर में होती हैं। भारत सरकार हाईवे के मामले में हर रोज नए कीर्तिमान बना रही हैं। बीते दिनों भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने पांच दिनों से भी कम समय में एनएच-53 राजमार्ग पर लगातार एक ही लेन में 75 किलोमीटर सड़क बनाने का नया रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया है। एनएचएआई को यह रिकॉर्ड महाराष्ट्र के अकोला से अमरावती के बीच चल रहे निर्माण कार्य के लिए मिला है। इस मार्ग पर प्राधिकरण ने 105 घंटे 33 मिनट के रिकॉर्ड समय 75 किलोमीटर हाईवे का निर्माण किया है लेकिन यह तरक्की अधूरी इसलिए लगती है चूंकि जिस वजह से आप से देश के नागरिकों को सुविधा दे रहे हो और उस ही वजह से उनकी जान पर बात बन जाए तो क्या फायदा। लावारिस पशुओं से हो रही दुर्घटना को लेकर भी नितिन गडकरी को नीति बनानी चाहिए। जो लोग लावारिस पशुओं को हाईवे पर छोड़ देते हैं, उनके लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए और इसके लिए एक नया विभाग बनाकर पूरे मामले पर निगाह भी बनाए रखनी होगी चूंकि हमारे देश में कोई भी आसानी व आराम से मानता कहां हैं। दरअसल, शहर के मार्गों पर हादसों के साथ-साथ आवारा पशु ट्रैफिक जाम का कारण भी बनते हैं, हाईवे पर वाहन तेज रफ्तार होते हैं वाहन चालक हाईवे पर निश्चित तौर बहुत अधिक स्पीड में होते हैं और अचानक सामने पशु या अन्य जानवर आ जाते हैं जिससे भंयकर हादसा होना स्वाभाविक हो जाता है। एक बड़े हादसे की भयावहता का जिक्र करें तो राजस्थान सराधना वाले सिक्स लेन हाईवे पर बाइक और सांड की टक्कर हुई थी जिसमें इसमें बाइक सवार दो युवक और सांड की मौत हो गई थी। ऐसे मामलों पर प्रशासन से बात की जाती है तो अधिकारी एक दूसरे पर आरोप थोपते हैं। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि हाईवे पर सुरक्षा और लावारिस जानवरों की आवाजाही पर रोक की जिम्मेदारी नेशनल हाईवे अथॉरिटी की होती है। टोल प्रशासन का कहना है कि हाईवे पर पशुओं को हटाने के लिए दल है नियुक्त किया जाता है जिसमें पशुओं से होने वाले हादसों के लिए पशु मालिक ही जिम्मेदार माना जाता हैं और लावारिस जानवरों को गश्त करने वाला दल हटाने की कार्रवाई करता है लेकिन स्थिति यह है कि सभी विभाग एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं।

इस प्रकरण की सबसे अहम बात यह है कि सरकारें इस समस्या को व्यवस्थित करने के तमाम विभागों के अंतर्गत बजट पारित करती हैं, लेकिन शायद ही इसमें एक रुपया खर्च किया जाता हो। एक आरटीई के अनुसार एक वर्ष एक में राज्य में सरकार द्वारा जितना बजट पारित हुआ उसमें मात्र नौ प्रतिशत भी पूरा खर्च नही हुआ था, जिससे यह तो तय हो कि इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा। दरअसल मामला यह है कि लावारिस पशुओं को पकड़ा भी जाता है, लेकिन इनको रखने का कोई स्थायी समाधान नहीं होता। चूंकि नगर निगम की ओर से पशुओं को पकड़ा जाता है, लेकिन उन्हें फिर छोड़ देता है क्योंकि विभाग के पास पशुओं को रखने की पर्याप्त जगह है और चारा नहीं होता। ऐसी नहीं कि इसके लिए किसी बजट की कमी होती है लेकिन इस क्षेत्र में गंभीरता से काम नहीं किया जा रहा। इसके अलावा लावारिस जानवरों से फसलें बचाने के लिए किसान उन्हें खेत से भगाते हैं जिससे जानवर खेत से नजदीक हाईवे पर आ जाते हैं यहां एनएचआई के गश्ती दल की नजर अगर इन पर पड़ती है तो वे हाइवे से इन्हें हटा देते हैं जिससे जानवर रेलवे ट्रैक पर आ जाते हैं जिससे सालाना हजारों पशु ट्रेन की चपेट में आकर मर जाते हैं। इस वजह से पशुओं की मौत होती है वहीं दूसरी ओर ट्रेन सेवा भी बाधित होती है और लाखों रुपये का नुकसान भी होता है।

मानव जीवन की अप्राकृतिक हानि होने पर संबंधित विभागों पर कड़ी कार्यवाही की जरूरत है चूंकि किसी भी इंसान की बेवजह मौत पर मन में बहुत तकलीफ होती है। जब सरकारें देश को अग्रसर करने के लिए हाईवे व अन्य सुविधाएं दे रही है तो लावारिस पशुओं को व्यवस्थित करने के लिए कुछ गंभीरता दिखाए। इसके लिए निवारण की जरूरत है। लावारिस पशुओं के लिए लिए लावारिस गोवंश को रखने के लिए हर पंचायत समिति क्षेत्र में गोशाला खोलने होने की अनिवार्यता करनी चाहिए और यह बाकी कार्यों के लिए संवेदनशील तरीके से करना होगा तभी बात बन पाएगी। यदि उत्तर प्रदेश की परिवेश में बात करें तो राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते दिनों लावारिस गायों व अन्य पशुओं के लिए योजना बनाई जो कारगर भी सिद्ध हो रही है। सरकार इस दिशा में बेहतर काम कर रही है जिससे यूपी में हादसों में कुछ कमी दिखी। इस मामले को लेकर गोरक्षा के नाम पर उन्हें विभाग से छुड़वा देते हैं और उसके वह गाय व अन्य पशु छुड़वा तो देते हैं, लेकिन बाद उनकी देखरेख नही करते और स्थिति वही हो जाती है। हालांकि कुछ गोरक्षक दल इस पर बेहतर कार्य कर रहे हैं, लेकिन अधिकतर मात्र अपने व अपनी राजनीति को चमकाने के लिए ही दिखावा करते हैं। यह बहुत ही आवश्यक हो गया है कि शासन-प्रशासन से सरकार और स्थानीय प्रशासन इस मामले को गंभीरता से ले। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि सरकार इससे निपटने के लिए ठाेस नीति बनाकर उसे अमल में लाए, क्योंकि जब किसी भी परिवार का कोई भी सदस्य इस तरह बिना वजह मौत के आगोश में समा जाता है तो उसके जाने के बाद पूरा परिवार जिंदगीभर कुंठित रहता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके अपने विचार हैं।)

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