डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख : मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की क्षमता

डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख : मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की क्षमता
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भारत के दुनिया का दूसरा बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को पाने के लिए भारत को कई बातों पर ध्यान देना होगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाना होगा। मैन्युफैक्चरिंग के प्रोत्साहन के लिए लागत घटाने का प्रयास किया जाना होगा। स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी के लिए शोध एवं नवाचार पर फोकस किया जाना जरूरी होगा। कर तथा अन्य कानूनों की सरलता भी जरूरी होगी। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करना होगी। हम उम्मीद करें कि सरकार देश को नया मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की डगर पर आगे बढ़ेगी। इससे देश में विदेशी निवेश बढ़ेगा, निर्यात बढ़ेंगे और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी

इस समय दुनिया के बदले हुए आर्थिक और भूराजनीतिक परिदृश्य के बीच भारत दुनिया का नया मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की संभावनाओं को तेजी से मुठ्ठियों में लेते हुए दिखाई दे रहा है। मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के चार प्रमुख कारण उभरकर दिखाई दे रहे हैं। एक, देश में आत्मनिर्भर भारत अभियान और उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) को तेजी से प्रोत्साहन। दो, कोविड-19 की वजह से चीन के प्रति वैश्विक नकारात्मकता के बाद अब चीन में कोरोना संक्रमण के कारण उत्पादन ठप होने और सप्लाई चैन बाधित होने से वैश्विक उद्योग और वैश्विक पूंजी का भारत के दरवाजे पर तेजी से दस्तक देना। तीन, भारत की अर्थव्यवस्था का तेजी से निर्यात आधारित बनने की प्रवृत्ति। चार, भारत के मुफ्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और क्वाड्रिलेटरल सिक्युरिटी डॉयलॉग (क्वाड) के कारण उद्योग-कारोबार का तेजी से बढ़ना।

गौरतलब है कि 6 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से 'जीतो कनेक्ट 2022' के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि आत्मनिर्भर भारत हमारा रास्ता भी है और संकल्प भी। इस समय वोकल फार लोकल को बढ़ावा और विदेशी वस्तुओं के उपयोग को कम करने के साथ देश में प्रतिभा, उद्योग, व्यापार और प्रौद्योगिकी को तेजी प्रोत्साहित किया जा रहा है। दुनिया भारत के उत्पादों की तरफ बड़े भरोसे से देख रही है और भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने में दुनिया के विभिन्न देशों का अच्छा सहयोग और समर्थन मिल रहा है। उल्लेखनीय है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान में मैन्युफैक्चरिंग के तहत 24 सेक्टर को प्राथमिकता के साथ तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। चूंकि अभी भी देश में दवाई उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग तथा इलेक्िट्रक जैसे कई उद्योग बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर आधारित हैं। ऐसे में चीन के कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले डेढ़ वर्ष में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत 13 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपये आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किए हैं। अब देश के कुछ उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं। पीएलआई योजना से अगले पांच वर्षों में देश में 520 अरब डॉलर यानी लगभग 40 लाख करोड़ रुपये मूल्य की वस्तुओं का उत्पादन होगा। चूंकि देश के कुल आयात में रक्षा सामग्रियों के आयात पर बड़ा खर्च होता है, अतएव देश में रक्षा निर्माण सेक्टर में आत्मनिर्भरता और रक्षा निर्यात को बढ़ाने के अधिक प्रयास किए जा रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि रक्षा मंत्रालय के द्वारा 21 अगस्त, 2020 से लेकर 7 अप्रैल 2022 तक स्थानीय स्तर पर निर्मित होने वाले 310 विभिन्न प्रमुख रक्षा उपकरण और रक्षा प्लेट फॉर्म संबंधी तीन सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी की गई हैं। कोरोना की चुनौतियों के बाद भारत तेजी से दवाई का मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाकर दुनिया के 150 से ज्यादा देशों को दवाइयां निर्यात कर रहा है। ऐसे में भारत को दुनिया की नई फॉर्मेसी के रूप में देखा जा रहा है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 के बीच चीन के प्रति बढ़ी हुई वैश्विक नकारात्मकता और वर्ष 2022 में चीन में कोरोना संक्रमण के कारण उद्योग-व्यापार के ठहर जाने से चीन से बाहर निकलते विनिर्माण, निवेश और निर्यात के मौके भारत की ओर आने लगे हैं। नि:संदेह पिछले वर्ष मार्च 2020 से वर्ष 2022-23 के बजट के तहत सरकार के द्वारा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए उठाए गए कदमों के साथ-साथ भारतीय उत्पादों को अपनाने के प्रचार-प्रसार से उद्योगों को आगे बढ़ने का मौका मिला है।

यह माना जा रहा है कि भारत सस्ती लागत के विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ सकता है। भारत में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कम लागत के उत्पाद बनाए जा सकेंगे और विनिर्माण उद्योग जितनी अधिक बिक्री करेंगे उससे उतने ही रोजगार सृजित होंगे। नि:संदेह भारत की निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की डगर भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने में प्रभावी भूमिका निभा रही है। कोविड-19 और यूक्रेन संकट की चुनौतियों के बीच पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का उत्पाद निर्यात 419.65 अरब डॉलर और सेवा निर्यात 249.24 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचना इस बात का संकेत है कि अब भारत निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की डगर पर आगे बढ़ रहा है। ज्ञातव्य है कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारत का उत्पाद निर्यात 292 अरब डॉलर तथा सेवा निर्यात 206 अरब डॉलर रहा था। जैसे-जैसे भारत के निर्यात बढ़ रहे हैं। वैसे-वैसे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को आगे बढ़ने के मौके बढ़ रहे हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने क्वाड के रूप में जिस नई ताकत के उदय का शंखनाद किया है, वह भारत के उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे भारत के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने को बड़ा आधार मिलेगा। साथ ही भारत उद्योग-कारोबार के विस्तार हेतु जिस तीन आयामी रणनीति पर आगे बढ़ रहा है, उससे भी मैन्युफैक्चरिंग हब की संभावनाएं आगे बढ़ेगी। ये तीन महत्वपूर्ण आयाम हैं- एक, चीन के प्रभुत्व वाले व्यापार समझौतों से अलग रहते हुए नार्डिक देशों जैसे संगठनों के व्यापार समझौता का सहभागी बनना। दो, पाकिस्तान को किनारे करते हुए क्षेत्रीय देशों के संगठन बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्नोलॉजिकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन) को प्रभावी बनाना और तीन, मुक्त व्यापार समझौतों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ना। भारत द्वारा यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए को मूर्तरूप दिए जाने के बाद अब यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इजराइल के साथ एफटीए के लिए प्रगतिपूर्ण वार्ताएं सुकूनदेह हैं। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस की प्रभावी यात्रा के बाद यूरोपीय देशों में भारत के उत्पादों के निर्यात की नई संभावनाएं बनी हैं।

नि:संदेह भारत के दुनिया का दूसरा बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को पाने के लिए भारत को कई बातों पर ध्यान देना होगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाना होगा। मैन्युफैक्चरिंग के प्रोत्साहन के लिए लागत घटाने का प्रयास किया जाना होगा। स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी के लिए शोध एवं नवाचार पर फोकस किया जाना जरूरी होगा। कर तथा अन्य कानूनों की सरलता भी जरूरी होगी। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करना होगी। हम उम्मीद करें कि सरकार देश को दुनिया का नया मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। इससे देश में विदेशी निवेश बढ़ेगा, निर्यात बढ़ेंगे, आयात घटेंगे और रोजगार के अवसर भी छलांगें लगाकर बढ़ेंगे।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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