प्रणय यादव का लेख : नए नेतृत्व भविष्य की तैयारी

तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को बड़ी जीत मिलने के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए सभी पुराने चेहरों को लेकर उम्मीद लगाए बैठे थे, जिस तरह से नरेंद मोदी ने तीनों नए चेहरों को जिम्मेदारी सौंपी है उससे सब हैरान हैं। सवाल ये है कि मोदी ने मोहन यादव, विष्णुदेव साय और भजनलाल शर्मा में ऐसा क्या देखा। क्या सोचकर उन्हें राज्यों की बागडोर सौंप दी। मोदी की रणनीति क्या है? बीजेपी का प्लान क्या है? दरअसल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नए नेतृत्व को मौका देना नरेन्द्र मोदी की भविष्य की रणनीति का हिस्सा है। ये पार्टी में नई जान फूंकने, पार्टी को भविष्य के लिए तैयार करने की दिशा में बड़ा कदम है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की बड़ी जीत के बाद सबको लग रहा था कि फिर पुराने चेहरे वापस आएंगे। जो बड़े नेता हैं, वही कुर्सी पर बैठेंगे। शिवराज सिंह चौहान को लग रहा था वही मुख्यमंत्री बनेंगे, क्योंकि लाड़ली बहना ने जिताया। वसुन्धरा को तीन दर्जन से ज्यादा अपने वफादार विधायकों पर भरोसा था। उम्मीद रमन को भी रही होगी, लेकिन एक हफ्ते के इंतजार के बाद सबकी उम्मीदें टूटीं। ऐसे चेहरे सामने आए, जिनकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। नरेन्द्र मोदी ने जिन नेताओं को तीन राज्यों की कमान सौंपी वो मोदी के फैसले से खुद हैरान हैं। तो सवाल ये है कि मोदी ने मोहन यादव, विष्णुदेव साय और भजनलाल शर्मा में ऐसा क्या देखा। क्या सोचकर उन्हें राज्यों की बागडोर सौंप दी। मोदी की रणनीति क्या है? भाजपा का प्लान क्या है?
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नए नेतृत्व को मौका देना नरेन्द्र मोदी की भविष्य की रणनीति का हिस्सा है। ये पार्टी में नई जान फूंकने, पार्टी को भविष्य के लिए तैयार करने की दिशा में बड़ा कदम है। सोचने वाली बात है कि जो कांग्रेस किसी जमाने में पूरे देश पर एकछत्र राज करती थी। आज उसकी हालत इतनी खराब क्यों हो गई। असल में कांग्रेस ने एक बड़ी गलती की। जिसे वो आज भी नहीं सुधार रही है। नए नेतृत्व को मौका नहीं दिया। हर राज्य के क्षत्रप बन गए। जब इन क्षत्रों के किले ढह गए तो कांग्रेस खुद ब खुद जमीन पर आ गई। याद करिए मध्य प्रदेश में पहले अर्जुन सिंह, उनके बाद दिग्विजय सिंह और कमलनाथ। किसी और के लिए जगह ही नहीं थी, इसीलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी छोड़कर भागे। राजस्थान में पच्चीस साल से सिर्फ अशोक गहलोत।
सचिन पायलट ने मेहनत की, लेकिन कुर्सी अशोक गहलोत को मिली। इसलिए सचिन पायलट घुटन महसूस कर रहे थे। छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ला और महेन्द्र कर्मा जैसे नेता। इन नेताओं के जाने के बाद सन्नाटा। इन राज्यों में बीजेपी के लिए भी इसी तरह की स्थिति बन रही थी। मध्य प्रदेश में उमा भारती के बाद शिवराज सिंह चौहान को भेजा गया। उसके बाद बीस साल से सिर्फ शिवराज थे। छत्तीसगढ़ में पन्द्रह साल रमन सिंह रहे। कोई दूसरा नहीं पनप पाया, इसके चलते पार्टी कमजोर हो गई। राजस्थान में पहले भैरोसिंह शेखावत थे, उसके बाद पच्चीस साल से सिर्फ वसुन्धरा राजे। कहीं कहीं दूसरी पंक्ति का नेतृत्व न होने के कारण कुछ नेता खुद को पार्टी के बड़ा समझने लगते हैं, पार्टी को आंख दिखाने लगते हैं। ये बीमारियां बीजेपी में भी दिख रही थी।
बदलाव वैसे प्रकृति का नियम है। अगर जमीन पर हल न चलाया जाए, मिट्टी को न पलटा जाए तो खतपतवार खेत को खराब कर देती है। वही जीवन में होता है। वही राजनीति में होनी चाहिए। मोदी ने वही किया। खेत जोत कर नई फसल लगा दी। जो लोग ये कह रहे हैं कि इस तरह का प्रयोग असफल हो सकता है। अनुभवहीन लोगों को नेतृत्व देना खतरनाक हो सकता है। पार्टी को इसका नुकसान हो सकता है। ये सही है कि प्रयोग असफल हो सकते हैं। मोदी ने उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत को भेजकर प्रयोग किया था जो असफल हुआ। फिर तीरथ सिंह रावत को बनाया उन्होंने भी निराश किया, लेकिन पुष्कर सिंह धामी का प्रयोग सफल हुआ। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को भेजा। आज योगी देश में मोदी के बाद दूसरे बड़े लोकप्रिय नेता हैं। हरियाणा में मनोहर लाल का प्रयोग सफल रहा। झारखंड में रघुबर दास का प्रयोग मुसीबत साबित हुआ, लेकिन गुजरात में भूपेश पटेल हों या असम में हिमंता बिस्वा सरमा दोनों को कमान सौंपना फायदेमंद रहा। पार्टी मजबूत हुई।
हालांकि ये ध्यान भी रखना होगा कि नरेन्द्र मोदी से पहले भी इस तरह के प्रयोग बीजेपी करती रही है। नए नेतृत्व को मौका देती रही है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह को जब भेजा गया था तो उन्हें भी सरकार चलाने का अनुभव नहीं था, लेकिन शिवराज ने खुद को साबित किया। पार्टी को मजबूत किया। 17 साल तक मुख्यमंत्री रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद इसी तरह के प्रयोग का नतीजा है। जब वो गुजरात के चीफ मिनिस्टर बने थे। उससे पहले न कभी विधायक रहे, न मंत्री, लेकिन पार्टी ने उन्हें केशुभाई पटेल जैसे कद्दावर नेता की जगह भेजा। जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो पहली बार सांसद बनकर दिल्ली आए थे। तब लोग कह रहे थे राज्य सरकार चलाना अलग बात है और देश चलाना अलग है, लेकिन मोदी ने ऐसे लोगों को गलत साबित किया। वो दुनिया के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे और मोदी के नेतृत्व में बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई, इसलिए मोदी ने जिनको चुना है, उनका काम देखने से पहले कोई राय बनाना ठीक नहीं है।
अगर इनमें से कोई फेल होता है। तो उसे बदला जा सकता है और जिसने अच्छा काम किया वो पार्टी का भविष्य बनेगा। बीजेपी की अगली पीढ़ी का नेता होगा। मोदी ने पार्टी के भविष्य को देखते हुए ये प्रयोग किया है। कांग्रेस को भी बीजेपी से इस मामले में सीखना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस इस वक्त तमाम राज्यों में नेतृत्व की कमी से जूझ रही है। कांग्रेस को भी इस तरह के प्रयोग करने की हिम्मत दिखानी चाहिए। इन तीन राज्यों में चीफ मिनिस्टर और डिप्टी चीफ मिनिस्टर्स के नामों का संदेश साफ है। सरकार से बड़ा संगठन है। पार्टी सर्वोपरि है और पार्टी का सिर्फ एक चेहरा हैं नरेन्द्र मोदी। अगर कोई नेता ये समझता है कि पार्टी उनके दम पर चल रही है। किसी राज्य में पार्टी उनके नाम और काम पर चल रही है। उनके कारण जीती। वो जो चाहेंगे पार्टी को वही करना पड़ेगा तो ऐसे नेताओं का वक्त अब खत्म हो गया है। मोदी ने साफ साफ संदेश दे दिया कि संगठन में काम करने वाले हर व्यक्ति पर नेतृत्व की नजर है। हाईकमान के पास ग्राउंड रिपोर्ट है।
जो संगठन में काम करेगा। पार्टी उसे आगे बढ़ाएगी। वरना मोहन यादव हों या भजनलाल शर्मा ये दोनों आखिरी वक्त तक नए विधायकों के लिए खाने पीने और केन्द्रीय नेताओं के लिए फूल-मालाओं के इंतजाम में लगे थे। फोटो सेशन में भी आखिरी लाइन में खड़े थे, लेकिन मोदी ने आखिरी लाइन से उठाकर फ्रंट लाइन में सबसे आगे खड़ा कर दिया और जो फ्रंट लाइन में बैठे थे। वो सबसे आखिर में पहुंच गए। इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ता है। जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं में उम्मीद जगती है कि उनकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। चुनाव से पहले ये बहुत जरूरी है। मोदी के इस फैसले के बाद अब भाजपा के कार्यकर्ता कह पाएंगे कि एक दरी बिछाने वाला, पोस्टर बैनर चिपकाने वाला भी पार्टी का नेता बन सकता है। ये सिर्फ कहने की बात नहीं है, मोदी ने इसे करके दिखाया है, मोदी है तो मुमकिन है। पार्टी के कार्यकर्ताओं का ये भरोसा किसी भी राजनीतिक दल को ताकत देता है।
प्रणय यादव (लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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