प्रत्यूष शर्मा का लेख : एड्स की चुनौतियाें से निपटना जरूरी

एचआईवी संक्रमण की उत्पत्ति कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में वर्ष 1920 के आसपास हुई थी। वर्ष 1959 में एचआईवी के पहले मामले की पुष्टि एक ऐसे व्यक्ति में की गई, जिसकी मृत्यु कांगो में हुई थी। अनुसंधानों से पता चला कि अमेरिका में यह वायरस सर्वप्रथम वर्ष 1968 में पहुंचा था। एचआईवी एक प्रकार का रेट्रोवायरस है, जिसका सही ढंग से इलाज न किए जाने पर यह एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम या एड्स का रूप धारण कर सकता है। भारतीय समाज में एचआईवी एवं एड्स से जुड़ी मानसिकता को बदलना शायद नीति निर्माताओं के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है और इससे जल्द-से-जल्द निपटाया जाना भी आवश्यक है।
एड्स के संक्रमण के मामलों में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद इसका खतरा दुनियाभर में अभी कम नहीं हुआ है। यह एक लाइलाज बीमारी है, इसलिए जागरूकता ही इससे बचाव का एकमात्र जरिया है। लोग इस घातक बीमारी के प्रति जागरूक हों और अपना तथा अपने परिवार का जीवन तबाह होने से बचा सकें, इसीलिए प्रतिवर्ष 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर, 1988 को हुई थी जिसका मकसद, एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना, लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था।
माना जाता है कि एचआईवी संक्रमण की उत्पत्ति कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में वर्ष 1920 के आसपास हुई थी। वर्ष 1959 में एचआईवी के पहले मामले की पुष्टि एक ऐसे व्यक्ति में की गई, जिसकी मृत्यु कांगो में हुई थी। अनुसंधानों से पता चला कि अमेरिका में यह वायरस सर्वप्रथम वर्ष 1968 में पहुंचा था। ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) एक प्रकार का रेट्रोवायरस है, जिसका सही ढंग से इलाज न किए जाने पर यह एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम या एड्स का रूप धारण कर सकता है। एचआईवी दो प्रकार के होते हैं, एचआईवी-1 औऱ एचआईवी-2। एचआईवी-1 को विश्व भर में अधिकांश संक्रमणों का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रमुख प्रकार माना जाता है, जबकि एचआईवी-2 कम क्षेत्रों में पाया जाता है और यह विशेषकर पश्चिम एवं मध्य अफ्रीकी क्षेत्रों में ही केंद्रित है।
एचआईवी के इलाज में उपयोग की जाने वाली दवाओं को एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी कहा जाता है। यह रोग रक्त, वीर्य, योनि स्राव, गुदा तरल पदार्थ, असुरक्षित यौन संबंध और मां के दूध सहित शारीरिक तरल पदार्थ के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। एड्स को एचआईवी संक्रमण का सबसे गंभीर चरण माना जाता है। एचआईवी का वायरस शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में सीडी 4 नामक श्वेत रक्त कोशिका (टी-सेल्स) पर हमला करता है। ये वे कोशिकाएं होती हैं जो शरीर की अन्य कोशिकाओं में संक्रमण का पता लगाती हैं। शरीर में प्रवेश करने के बाद एचआईवी की संख्या बढ़ती जाती है और कुछ ही समय में वह सीडी-4 कोशिकाओं को नष्ट कर देता है एवं मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है। एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति की सीडी-4 कोशिकाओं में काफी कमी आ जाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में इन कोशिकाओं की संख्या 500-1600 के बीच होती है, परंतु एचआईवी से संक्रमित लोगों में सीडी4 कोशिकाओं की संख्या 200 से भी नीचे जा सकती है। कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली व्यक्ति को कई गंभीर रोगों जैसे- कैंसर आदि के प्रति संवेदनशील बना देती है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति के लिये मामूली चोट या बीमारी से भी उबरना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल हो जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, वर्ष 2022 के अंत तक वैश्विक स्तर पर लगभग 39 मिलियन लोग एचआईवी से प्रभावित थे, जिनमें से दो तिहाई (25.6 मिलियन) अफ्रीकी क्षेत्र में हैं। इसके कारण अब तक दुनिया भर में लगभग 40 मिलियन लोगों की मृत्यु हो चुकी है। यदि भारत की बात करें तो देश में एचआईवी-एड्स के रोगियों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 0.31 प्रतिशत है। एचआईवी-एड्स के संदर्भ में भारत की स्थिति काफी सकारात्मक है, फिर भी देश में निरंतर सतर्कता की जरूरत है। भारत में एचआईवी का पहला मामला वर्ष 1986 में सामने आया था। इसके बाद यह वायरस पूरे देश में तेज़ी से फैला। हमारे देश में लगभग 23.90 लाख लोग एचआईवी-एड्स से संक्रमित हैं और देश में हर साल एचआईवी संक्रमण के तकरीबन 87,000 मामले दर्ज किए जाते हैं। वर्ष 1986 भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की स्थापना की, जो अब स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एड्स विभाग बन गया है। पहले, एचआईवी और एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम की ओर से 90–90–90 लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
इसके अनुसार, वर्ष 2030 तक यह सुनिश्चित किया जाना है कि 90 प्रतिशत लोग अपनी एचआईवी स्थिति जान सकें, पॉजिटिव एचआईवी वाले 90 प्रतिशत लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंच सकें और इलाज तक पहुंच प्राप्त 90 प्रतिशत लोगों में से वायरस के दबाव को कम किया जा सके। 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा अपनाए गए सतत विकास लक्ष्यों में भी वर्ष 2030 तक एड्स, तपेदिक और मलेरिया महामारियों को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अब, एचआईवी-एड्स पर संयुक्त संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम का लक्ष्य 2025 तक एचआईवी परीक्षण, उपचार और वायरल दमन दर 95-95-95 प्रतिशत करना है। संसद द्वारा एचआईवी एवं एड्स (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 2017 को सितंबर 2018 से लागू किया गया। इसके माध्यम से एचआईवी-एड्स से पीड़ित लोगों को मेडिकल इलाज़, शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश तथा नौकरियों के संबंध में सामान अधिकार दिलाने की बात कही गई है। विश्व एड्स दिवस की हर साल थीम होती है। इसका मकसद लोगों में जागरूकता लाना होता है। इस साल साल एड्स दिवसकी थीम है ‘लेट कम्यूनिटी लीड’ इसका आशय है कि बीमारी से प्रभावित समुदायों को नेतृत्व करने की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करना है।
भारतीय समाज में एचआईवी एवं एड्स से जुड़ी मानसिकता को बदलना शायद नीति निर्माताओं के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है और इससे जल्द-से-जल्द निपटाया जाना भी आवश्यक है। एड्स को लेकर भारतीय समाज में कई भ्रांतियां भी मौजूद हैं। इन भ्रांतियांें को मिटाना भी एड्स दिवस मनाने का मकसद है। कई लोग सोचते हैं कि एड्स रोगी के साथ उठने बैठने से यह रोग फैलता है जो सही नहीं है , यह बीमारी छुआछूत की नहीं है। इस बीमारी को लेकर समाज में कई भ्रम हैं जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी है। एड्स का फैलाव छूने, हाथ से हाथ का स्पर्श, साथ-साथ खाने, उठने और बैठने, एक-दूसरे का कपड़ा इस्तेमाल करने से नहीं होता है । एड्स पीड़ित व्यक्ति के साथ नम्र व्यवहार जरुरी है ताकि वह अपना जीवन एक आम आदमी की तरह जी सके । संक्रमण के रोकथाम और नियंत्रण के साथ-साथ संक्रमित व्यक्ति की देखभाल करने पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिये।
प्रत्यूष शर्मा (लेखक बैंक में अधिकारी हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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