नहीं प्रियंका जी! इस देश का कोई प्रधानमंत्री कभी कायर नहीं रहा

नहीं प्रियंका जी! नहीं!! भाई को परेशानी में देख बहन का बिलखना स्वाभाविक है लेकिन जिस शख्सियत में देश के करोड़ों कांग्रेसियों को इंदिरा गांधी का अक्स नजर आता है, उनका बहकना पीड़ादायक है। कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को अदालत द्वारा सजा सुनाए लगी है? जाने के बाद देश के संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के चलते लोकसभा से अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी। इसे लेकर आक्रोशित कांग्रेसियों के सत्याग्रह प्रदर्शन के दौरान पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी का यह कहना कि 'इस देश का प्रधानमंत्री कायर वाला है और अचंभित और आहत करने वाला है।
देश में तीन दशक के लंबे अंतराल के बाद जनसमर्थन से स्पष्ट बहुमत के साथ एक दल की सरकार बनाने में सफल रहे नरेंद्र मोदी की बात तो छोड़िए, आजाद भारत में प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचे उनसे पूर्ववर्ती चौदह व्यक्तित्व को भी कभी कायर ठहराने की हिमाकत किसी ने नहीं की।
राजनीति के मैदान में आरोप-प्रत्यारोप कोई नई बात नहीं है। लेकिन शीर्ष पर पहुंची शख्सियतों से मर्यादा की अपेक्षा समाज हमेशा से रखता रहा है। राजनीति के रण में चुनौतियों का मुकाबला धैर्य के साथ योजना बनाकर चतुराई से किया जाता है, बौखलाकर नहीं। किस बात पर नाराज हैं राहुल और क्यों आक्रोशित हैं प्रियंका गांधी? एक ऐसा परिवार जिसके पास इस देश के करोड़ों लोगों का प्यार, सम्मान और समर्थन अपने पूर्वजों के पराक्रम एवं समर्पण के चलते दशकों से हासिल रहा, वह इतना बेबस,लाचार और खीझा हुआ क्यों दिखाई दे रहा है? मोतीलाल नेहरू की विद्वता से शुरू हुई कहानी पं. जवाहरलाल नेहरू की दूरदृष्टि, इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छाशक्ति, राजीव गांधी की कल्पनाशीलता और सोनिया गांधी की धीरता से गुजरती हुई राहुल-प्रियंका तक आते-आते हांफने क्यों
कहीं ऐसा तो नहीं बाल्यकाल में सुरक्षा कारणों से सार्वजनिक जीवन जीने में रही रुकावट ने गांधी परिवार की इस पीढ़ी के मनोभाव और शब्द चयन में तालमेल नहीं रहने दिया। अगर ऐसा है भी तो फिर इन्हें क्या अपनी मां सोनिया गांधी से सबक नहीं लेना चाहीए जो शब्द चयन में हमेशा रहती हैं। आज भी उन्हें लिखित भाषण सार्वजनिक रूप से बोलने में गुरेज नहीं है। इसका सोनिया जी को लाभ यह रहा कि वह अनावश्यक विवाद का हिस्सा भी नहीं बनीं, और भारतीय राजनीति में उन्होंने अपने आप को बेहद गरिमामय स्वरूप में स्थापित करने में सफल भी रहीं। सही शब्द चयन के साथ मुकाबला कैसे किया जाता है इसके लिए आप भाई-बहन को कहीं बाहर देखने की जरूरत नहीं है। आप अपने अगल-बगल बैठे दोनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और अशोक गहलोत को देख सकते हैं। भाजपा जब राहुल गांधी के मोदी सरनेम को लेकर दिये बयान को पिछड़े वर्ग के प्रति अपमान को मानसिकता साबित करने की कोशिश कर रही है, इसका मुकाबला यह दोनों मुख्यमंत्री अपने आपको पिछड़ा वर्ग से बताते हुए किस खूबी से कर रहे हैं।
प्रियंका जी, किस शख्स को आप कायर करार दे रही है? नरेंद्र मोदी को ? वह शख्स जिसने अपनी पार्टी को फर्श से अर्श पर पहुंचाने का करिश्मा कर दिखाया जो जन समर्थन अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसी त्रिमूर्ति अपनी पार्टी के प्रति जुटा पाने में कभी सफल ना हो सकी, वह करिश्मा इस शख्स ने कर दिखाया। बहुमत हासिल करने के बाद अपने संगठन के दशकों से दोहराये जा रहे वैचारिक संकल्पों को साकार करने का साहस दिखाया। कश्मीर में धारा 370 के तमाम प्रावधानों की समाप्ति, तीन तलाक की प्रथा का खात्मा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अयोध्या में राममंदिर का तेजी से निर्माण जैसे तमाम मसले क्या उन्हें एक साहसी व्यक्तित्व के रूप में मान्यता नहीं दिलाते? अगर वक्त के साथ पाकिस्तान के ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक के कदम पर धूल भले ही पड़ गई हो लेकिन अभी हाल ही में लंदन में खालिस्तानी समर्थकों द्वारा भारतीय दूतावास पर फहरा रहे भारतीय झंडे के साथ खिलवाड़ की गुस्ताखी के बदले भारत में ब्रिटिश दूतावास की सुरक्षा घटाने जैसा दमदार फैसला नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सरकार ने ही लिया। इसका नतीजा भी चौबीस घंटे में पूरी दुनिया ने देख लिया।
यहां तक की ही क्यों बात करें? अमेरिका सहित तमाम पश्चिमी देशों को चुनौती दे रहे रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से ताशकंद में सार्वजनिक रूप से यह कह देने वाला शख्स कि यह सदी युद्ध की नहीं है आपको कायर नजर आता है तो यह आपकी समझ पर सवाल पैदा करता है। क्योंकि हमें तो इस साहस में पं. जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की झलक दिखाई देती है, जिन्होंने शीत युद्ध के दौर में गुट निरपेक्ष की नीति पर चलने का हौसला दिखाया समझने की कोशिश कीजिए प्रियंका जी कि उस शख्स को देश कायर के संबोधन से कैसे स्वीकार कर सकता है जिसने कोविड की महामारी में देश के सभी लोगों को वैक्सीनेशन के दो सौ करोड़ डोज लगाने जैसा साहसिक कार्यक्रम क्रियान्वित कर दिखाया। जिसमें यह साहस है कि अगर स्वयं की सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि कानून पर जन विरोध महसूस किया तो किसी कृषि मंत्री से वापसी का ऐलान करने की जगह स्वयं देश को संबोधित करते हुए उनको वापिस करने की घोषणा की।
सच तो यह है कि इस समय राहुल-प्रियंका ही नहीं बल्कि पूरी कांग्रेस को देश की जन भावनाओं को समझने की जरूरत है। ठीक वैसे ही जैसे वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान समझी थी। इसका नतीजा भी जीत के रूप में कांग्रेस को मिला था। वर्तमान मामले में भी अडाणी समूह को लेकर जांच की मांग के साथ विरोध के स्वर को बुलंद करने में गलत कुछ भी नहीं लेकिन आरोप-प्रत्यारोप के आवेश में कब आपके निशाने पर पार्टी की जगह देश और व्यक्ति की जगह पद आ जा रहा है, इसका ध्यान रखने की जरूरत तो है ही।
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