प्रो. नीलम महाजन सिंह का लेख : कैश फॉर क्वेरी का सच उजागर हो

प्रो. नीलम महाजन सिंह का लेख  : कैश फॉर क्वेरी का सच उजागर हो
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महुआ मामले में कौन सही है?, कौन गलत है? इसकी जांच तो होनी ही चाहिए, अगर यह मामला सही है कि एक सांसद के लॉग इन का पासवर्ड एक बिजनेसमैन के पास था, तो यह सचमुच संगीन मामला है।

महुआ मामले में कौन सही है?, कौन गलत है? इसकी जांच तो होनी ही चाहिए, अगर यह मामला सही है कि एक सांसद के लॉग इन का पासवर्ड एक बिजनेसमैन के पास था, तो यह सचमुच संगीन मामला है। यह मामले कैसे उजागर हुआ, निशिकांत दुबे को जानकारी किसने दी, महुआ की कारस्तानी का पता किसको था, यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना महत्वपूर्ण सांसद के विशेषाधिकार तक किसी निजी व्यक्ति की पहुंच है। आचार समिति को एक नजीर स्थापित करनी चाहिए कि आगे कोई हिमाकत न करे। सांसदों को भी पद की गरिमा रखनी चाहिए। अपने लॉग इन का पासवर्ड अपने किसी अनन्य प्रिय को भी नहीं देना चाहिए।

पॉलिटिशियन का पावर से गहरा नाता है। यह पावर और खतरनाक हुई है, जब उसमें किसी बिज़नेसमैन का भी तड़का लगा है। यूं तो भारतीय राजनीति में पॉलिटिशियन और बिज़नेसमैन का नेक्सस बहुत पुराना है, लेकिन किसी पॉलिटिशियन के विशेषाधिकारों तक किसी बिज़नेसमैन की पहुंच हो, यह पहली बार जागृत हुआ है। बात 'संसद में सवाल के बदले नकद' मामले की हो रही है, जिसमें ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा विवादों में घिरी हुई हैं। महुआ पर सवाल पूछने के बदले में घूस लेने के आरोप हैं। इस मामले की जाँच लोकसभा की आचार समिति कर रही है। अब लोकपाल ने महुआ मोइत्रा के खिलाफ सीबीआई जाँच के आदेश दे दिये हैं। हालांकि सांसद निशिकांत दुबे ने एक्स पर पोस्ट किया है कि ‘उनकी शिकायत पर लोकपाल ने आरोपी सांसद महुआ मोइत्रा के राष्ट्रीय सुरक्षा को गिरवी रखकर भ्रष्टाचार करने के मामले की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया है’।

निशिकांत दुबे के इस दावे पर महुआ ने पलटवार भी किया है कि ‘मीडिया जो मेरा उत्तर जानने के लिए फोन कर रहे हैं; उनसे कहना है कि सीबीआई को 13 हजार करोड़ रुपये के अडानी कोल स्कैम मामले में पहले एफआईआर दर्ज करनी होगी’। मोइत्रा ने कहा कि ‘सीबीआई आपका स्वागत है’। एथिक्स कमेटी की 2 नवंबर को हुई बैठक में मोइत्रा व बसपा सांसद दानिश अली समेत अन्य विपक्षी सांसद बाहर निकल गए थे। विपक्षी सांसदों ने इस दौरान आरोप लगाया था कि मोइत्रा से आचार समिति के अध्यक्ष व भाजपा सांसद विनोद कुमार सोनकर ने निजी सवाल किए। मोइत्रा ने आचार समिति की बैठक के बाद बयान जारी कर कहा था कि उनका एक तरह से वस्त्रहरण किया गया। इन आरोपों को खारिज करते हुए सांसद विनोद कुमार सोनकर न कहा था कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब आचार समिति की बैठक आज नौ नवंबर को हो रही है, जिसमें समिति कड़ा एक्शन ले सकती है। ममता बनर्जी की सरल, सांसारिक जीवनशैली 'मां-माटी-मानुष' के नारे को 'कैश फॉर क्वेरी' घोटाले से झटका लगा है।

दरअसल, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने ही आरोप लगाया था कि कारोबारी दर्शन हीरानंदानी से पैसे लेकर अडानी ग्रुप के मामले में मोइत्रा ने संसद में सवाल किए हैं। आरोप में दुबे ने कहा है कि हीरानंदानी ने मोइत्रा के सांसद के लॉगिन का इस्तेमाल कर, विभिन्न स्थानों से प्रश्न दर्ज किए। हकीकत में देखा जाय तो यह गंभीर आरोप हैं। सांसद के लॉगइन तक किसी भी अन्य व्यक्ति की पहुंच नहीं होनी चाहिए, चाहे वह व्यक्ति कितना भी प्रभावशाली क्यों ना हो। इसके बाद दर्शन हीरानंदानी का हस्ताक्षरित एफिडेविट सामने आया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि, उन्होंने समय-समय पर महुआ मोइत्रा को अनेक प्रश्न भेजे हैं, जो उन्होंने लोकसभा में उठाये हैं। ये सब पीएम मोदी की छवि खराब करने के लिए किया गया था। हीरानंदानी ग्रुप के सीईओ, 41 वर्षीय दर्शन हीरानंदानी ने स्वीकार किया है कि, ‘मैंने गौतम अडानी समूह के खिलाफ़त में सवाल उठाने के लिए टीएमसी सांसद मोहुआ मोइत्रा के लॉगिन कोडवर्ड का इस्तेमाल किया है। परंतु उसका 'ओटीपी' तो महुआ के पास ही आता था'।

हीरानंदानी ने दावा किया कि मोइत्रा ने उनसे अनुग्रह व उपहार की मांग की। दर्शन हीरानंदानी ने स्वतः ही ओम बिरला को स्टाम्प पेपर पर नोटरीकृत एक शपथ पत्र भेजा है। दर्शन हीरानंदानी भी आपराधिक कदाचार के समान रूप से दोषी है, अगर वे वास्तव में सीधे मोइत्रा के लॉगिन पासवर्ड के माध्यम से प्रश्न पोस्ट कर रहा था। ये उच्च जोखिमपूर्ण कॉर्पोरेट-युद्ध हैं। सभी व्यापारिक समूह संसद में प्रश्न उठाने के लिए सांसदों का प्रयोग करते रहे हैं, पर पासवर्ड हासिल करके नहीं। हेमा मालिनी ने 'केंट-आरओ प्यूरीफायर' का मामला संसद में उठाया था, जिसकी वह मॉडलिंग करती थीं! उन्होंने इसके लिए माफी मांगी, लोकसभा अध्यक्ष ने उन्हें फटकार भी लगाई। दर्शन हीरानंदानी अपने को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वह अपने ही अनौचित्य के जाल में फंस गए हैं। उल्लखनीय यह है कि सुप्रीम कोर्ट के युवा वकील जय अनंत देहाद्राई, के मोहुआ मोइत्रा से गहरे रिश्ते जगजाहिर हैं। अब दोनों के रिश्तों में खटास आ चुकी है। जय अनंत देहाद्राई ने मोहुआ मोइत्रा के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो में एक शिकायत दर्ज की है। निशिकांत दुबे व देहाद्राई दोनों 26 अक्टूबर को एथिक्स कमेटी के सामने पेश हुए व अपने बयान दर्ज कराये। इसके जवाब में महुआ मोइत्रा ने दोनों के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में मानहानि का मुकद्दमा दायर किया है। मामला उजागर होने से पहले निशिकांत दुबे व जय अनंत देहाद्राई एक ही गाड़ी में देखे गए थे।

पूरा मामला इस तरह है कि भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने 15 अक्टूबर को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने आरोप लगाए थे कि महुआ ने संसद में सवाल पूछने के लिए बिज़नेसमैन दर्शन हीरानंदानी से तोहफे लिए थे। इस मामले को लोकसभा अध्यक्ष ने एथिक्स कमेटी को भेज दिया। निशिकांत ने 21 अक्टूबर को कहा, मैंने इसे लेकर लोकपाल से शिकायत की। दुबई से संसद की आईडी 47 बार खोली गई, जबकि उस वक्त वे कथित सांसद भारत में ही थीं। एथिक्स कमेटी ने 27 अक्टूबर को महुआ को सम्मन भेजा व 31 अक्टूबर को सुबह 11 बजे कमेटी के सामने पेश होने का निर्देश दिया था। महुआ ने इसी दिन एथिक्स कमेटी को लिखा था कि वे 5 नवंबर के बाद ही मौजूद हो पाएंगी। 28 अक्टूबर को एथिक्स कमेटी ने महुआ को 2 नवंबर को पेश होने को कहा। 6 नवंबर को महुआ ने दावा किया कि 7 नवंबर को होने वाली एथिक्स कमेटी की बैठक इसलिए स्थगित की गई ताकि कमेटी के कांग्रेस सांसदों को दूर रखा जा सके। महुआ पर लगे आरोपों की मसौदा रिपोर्ट पर विचार के लिए मंगलवार को समिति की बैठक होनी थी।

यह बैठक अब 9 नवंबर को हो रही है। अनेक बार सांसदों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं, पर मोइत्रा का मामला एकदम अलग सा है। महुआ मामले में कौन सही है? कौन गलत है? इसकी जांच तो होनी ही चाहिए। अगर यह मामला सही है कि एक सांसद के लॉग इन का पासवर्ड एक बिज़नेसमैन के पास था, तो यह सचमुच संगीन मामला है। यह मामला कैसे उजागर हुआ, निशिकांत दुबे को जानकारी किसने दी, महुआ की इस कारस्तानी का पता किनको था, यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना महत्वपूर्ण सांसद के विशेशाधिकार तक किसी निजी व्यक्ति की पहुंच है। आचार समिति को एक नजीर स्थापित करनी चाहिए कि आगे से इस प्रकार के अप्रिय कांड न हों। हमारे सांसदों को भी अपनी पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए। अपने लॉगइन का पासवर्ड अपने किसी ‘अनन्य प्रिय’ को भी नहीं देना चाहिए। इस मामले को केवल महुआ मोइत्रा व निशिकांत दुबे की व्यक्तिगत तल्खी तक ही नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि नज़रिया लेकर सवाल पूछने व लॉगइन तक कॉर्पोरेट जगत की पहुंच जैसे गंभीर मामले की तह तक जाँच होने के उपरान्त दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

प्रो. नीलम महाजन सिंह (लेखिका वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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