कांग्रेस के गले में फंस गया पंजाब का प्रयोग

Haribhoomi Editorial : पंजाब के जिस प्रयोग को कांग्रेस मास्टरस्ट्राेक की संज्ञा दे रही थी, वही पार्टी के गले की फांस बनता नजर आ रहा है। एक ओर नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे को लेकर पार्टी दो हिस्सों में बंट गई है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात ने कांग्रेस आलाकमान की नींद उड़ा दी है। पार्टी का एक धड़ा सिद्धू की ताजपोशी से पहले ही नाराज था, अब वो खुलकर सामने आ गया है। इस धड़े के वरिष्ठ नेताओं ने सिद्धू पर हमले शुरू कर दिए हैं।
सांसद मनीष तिवारी के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. अश्वनी कुमार ने सिद्धू के इस्तीफे को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि हमें तुरंत पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी का नया प्रधान नियुक्त कर देना चाहिए। मुख्यमंत्री चन्नी भी सिद्धू को नसीहत दे चुके हैं कि वो मिलें और बैठकर बात करें। अपने ऐतराज के बारे में उनसे चर्चा करें, फिर उन पर फैसला लिया जाएगा। उनके शब्दों से साफ है कि चन्नी सिद्धू से खुश नहीं हैं। इससे पहले सिद्धू पर सांसद मनीष तिवारी ने हमला बोला था। बिना नाम लिए तिवारी ने कहा कि पंजाब उनके हाथों में दे दिया गया, जिन्हें वहां की समझ ही नहीं है। पंजाब पाकिस्तान का सीमा से लगा राज्य है। इसे सही तरीके से हैंडल नहीं किया गया। पंजाब के हालात देखकर इस वक्त अगर कोई सबसे ज्यादा खुश होगा तो वह पाकिस्तान है।
पंजाब में इस वक्त राजनीतिक स्थिरता की जरूरत है। एक ओर जहां अनेक कांग्रेसी नवजोत सिंह सिद्धू को आड़े हाथ ले रहे हैं, वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने इसके लिए सीधे तौर पर पार्टी आलाकमान को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। सिब्बल ने दो टूक कहा कि जब पार्टी में कोई स्थायी अध्यक्ष ही नहीं है तो ऐसे फैसले कौन ले रहा है। इसके तुरंत बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने भी पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष को एक चिट्ठी लिख दी। हालांकि अभी यह खुलासा नहीं हुआ है कि इस चिट्ठी में क्या है, लेकिन माना जा रहा है कि पंजाब के फैसले को लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज हैं। उधर, सिद्धू को लेकर पार्टी हर कदम फूंक फूंककर रख रही है। कहने को यह कहा गया है कि राज्य स्तर पर नेता इस मामले को संभालें, लेकिन हरीश चौधरी को वहां पर्यवेक्षक बनाकर भेज दिया है, जो पल पल की जानकारी आलाकमान को दे रहे हैं। असल में सिद्धू के इस्तीफे के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं।
पहला तो यही कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद सिद्धू को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। चन्नी की ताजपोशी के बाद सिद्धू की सिफारिश पर एडवोकेट डीएस पटवालिया को एडवोकेट जनरल नहीं बनाया गया। सिद्धू कैप्टन के कुछ करीबियों के अलावा राणा गुरजीत को कैबिनेट में लाने के विरोधी थे, लेकिन उनकी नहीं चली। सिद्धू सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय को डीजीपी चाहते थे, लेकिन इकबालप्रीत सहोता को बनाया गया। सिद्धू चाहते थे कि गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास रहे, लेकिन हाईकमान ने वह रंधावा को दे दिया। कारण जो भी रहे हों, लेकिन सिद्धू को तवज्जो देना और अमरिन्दर को हटाना पार्टी के गले में अटक गया है। चन्नी को मुख्यमंत्री बनाते समय पार्टी यह दावा कर रही थी कि इस फैसले से पंजाब के 32 फीसदी दलित मतदाता प्रभावित होंगे और विधानसभा चुनाव में बड़ा फायदा होगा। वहीं अब अमरिन्दर सिंह के भाजपा अध्यक्ष से मुलाकात करने से पार्टी का बड़ा वोट बैंक दरकता नजर आ रहा है। नौ साल से भी ज्यादा समय मुख्यमंत्री रहे अमरिन्दर सिंह का पंजाब के मतदाताओं पर अच्छा खासा प्रभाव है। अगर वो पार्टी छोड़ते हैं तो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़ा नुकसान होना तय है। इसके अलावा अब गुटों में बंट चुकी पार्टी किस तरह से चुनाव मैदान में उतरेगी, यह भी अभी साफ नहीं है। अगर हालात यही रहे तो चुनाव में सफलता की उम्मीद करना बेमानी होगा।
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